टूलकिट से देशद्रोह नहीं नागरिक अधिकार बरामद, दिशा रवि को ज़मानत!


अदालत ने कहा कि ‘मतभेद और असहमति जाग्रत लोकतंत्र की पहचान है। संविधान का अनुच्छेद 19 असहमति का पूरा अधिकार देता है। अभिव्यक्ति की आज़ादी में अपने विचार के पक्ष में वैश्विक समर्थन जुटाने का अधिकार भी शामिल है। किसी भी नागरिक को यह पूरा हक़ है कि वह संचार के बेहतरीन साधनों का इस्तेमाल करेक दूसरे देशों में समर्थन जुटाये।…सरकार के ज़ख़्मी ग़ुरूर पर मरहम लगाने के लिए देशद्रोह के मुक़दमे नहीं थोपे जा सकते।’


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आख़िरकार दिल्ली की एक अदालत ने 22 वर्षीय पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को ज़मानत दे दी। दस दिनों से जेल में बंद दिशा रवि दिल्ली पुलिस के मुताबकि ‘राजद्रोही’ है। वजह है एक टूलकिट जो किसान आंदोलन के समर्थन में बनाया गया था और जिसे विश्व प्रसिद्ध पर्यावरण कार्यक्रता ग्रेट थनबर्ग ने ट्वीट किया था। टूलकिट और कुछ नहीं एक गूगल दस्तावेज़ है जिसमें प्रदर्शन को तेज़ करने के संबंध में कार्यक्रम लिखा था। अदालत ने कहा कि सरकार के ज़ख़्मी ग़ुरूर पर मरहम लगाने के लिए देशद्रोह के मुक़दमे नहीं थोपे जा सकते।

दिल्ली के अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश धर्मेंद्र राणा ने कहा कि रिकॉर्ड पर पेश धुँधले और बरायनाम सबूतों को देखते हुए ज़मानत न देने का उनके पास कोई कारण नहीं है। अदालत ने माना कि न तो सबूत पर्याप्त हैं और न ही दिशा रवि का कोई आपराधिक इतिहास है। अदालत ने उसे एक लाख रुपये के निजी मुचलके पर ज़मानत दे दी। अदालत ने 20 फरवरी को आदेश सुरक्षित रख लिया था।

न्यायाधीश ने अपने फ़ैसले में लिखा है- ‘मेरी राय में व्हाट्सऐप ग्रुप बनाना या किसी अहानिकारक टूलकिट का एडिटर होना कोई अपराध नहीं है। टूलकिट को पोयटिक जस्टिस फाउंडेशन से जोड़ा गया है लेकिन इसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है। केवल व्हाट्सऐप चैट को नष्ट करने को सबूत नष्ट करना बताना भी निरर्थक है। प्रोटेस्ट मार्च को दिल्ली पुलिस की अनुमति प्राप्त थी। ऐसे में सहअभियुक्त शांतनु का दिल्ली पहुँचने में कुछ भी गलत नहीं था। अपनी पहचान छिपाने का इससे ज्यादा कोई मतलब नहीं कि वह बेवजह कोई विवाद नहीं चाहती थी।’

फैसले में कहा गया है कि ऐसा कुछ भी रिकॉर्ड में नहीं है जिससे पता चले कि अभियुक्त किसी अलगाववादी विचार का समर्थन कर रही है। पुलिस का यह कहना दिशा ने टूलकिट ग्रेटा थनबर्ग को फॉरवर्ड किया था, कहीं से साबित नहीं करता कि उसने अलगाववादियों को अंतरराष्ट्रीय मंच मुहैया कराया।

अदालत ने कहा कि ‘मतभेद और असहमति जाग्रत लोकतंत्र की पहचान है। संविधान का अनुच्छेद 19 असहमति का पूरा अधिकार देता है। अभिव्यक्ति की आज़ादी में अपने विचार के पक्ष में वैश्विक समर्थन जुटाने का अधिकार भी शामिल है। किसी भी नागरिक को यह पूरा हक़ है कि वह संचार के बेहतरीन साधनों का इस्तेमाल करेक दूसरे देशों में समर्थन जुटाये।’

अदालत ने कहा कि भारत की पाँच हज़ार पुरानी सभ्यता अलग-अलग विचारों की कभी विरोधी नहीं रही। ऋगवेद में भी कहा गया है कि हमारे पास चारो ओर से ऐसे कल्याणकारी विचार आते रहें, जो किसी से न  दबें, उन्हें कहीं से रोका न जा सके और जो अज्ञात विषयों को प्रकट करने वाले हों। सरकार की नीतियों को भेदभाव रहित बनाने के लिए मतभेद,असहमति या विरोध करना जायज़ तरीक़ों में शामिल है।

अदालत ने यह भी कहा कि केवल संदिग्ध लोगों से जुड़ना कोई अपराध नहीं है। सामाजिक सक्रियता के दौरान बहुत लोग मिलते हैं जिसमें कुछ संदिग्ध लोग भी हो सकते हैं। मुद्दा वह मक़सद है जिससे कोई किसी से मिलता है।

इससे पहले दिल्ली पुलिस की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी राजू ने कहा था कि दिशा रवि, खालिस्तान समर्थक संगठन “सिख्स फॉर जस्टिस’ और ‘पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन’के संपर्क में थीं, और भारत किसानों के विरोध की आड़ में नफरत फैलाने के लिए एक टूलकिट तैयार की थी। एएसजी ने कहा कि दिशा ने अपने चैट और दस्तावेजों के इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड ड‌िलीट करने की कोशिश की, जो कि “प्रथम दृष्टया उनकी आपराधिक मानसिकता” का पता देता है।

न्यायाधीश ने कहा कि जब तक उनकी न्यायिक अंतरात्मा संतुष्ट नहीं हो जाती, तब तक उन्हें आगे न बढ़ने की “बुरी आदत” है। उन्होंने कहा “मुझे एक बुरी आदत है। मैं तब तक आगे नहीं बढ़ सकता जब तक कि मैं अपनी न्यायिक अंतरात्मा को संतुष्ट नहीं करता।”

दिशा रवि की ओर से पेश अधिवक्ता सिद्धार्थ अग्रवाल ने कहा, “मैं 22 साल की एक लड़की हूं, जो बेंगलुरु की रहने वाली है, एक स्नातक हूं, जिसका इतिहास, भूगोल, अतीत, वर्तमान या भविष्य, किसी का खालिस्तान से कोई लेना-देना नहीं है।” अग्रवाल ने कहा, “उन्होंने सिख फॉर जस्टिस और उनके बीच एक भी बातचीत पेश नहीं की है। वे यह भी नहीं कहते हैं कि सिख फॉर जस्टिस संगठन, पोएटिक जस्टिस फाउंडेशन से जुड़ा है।” दिशा के वकील ने कहा, “एफआईआर में कहा गया है कि मैंने चाय और योग पर हमला किया है। क्या यह देशद्रोह का पैमाना है?”

अग्रवाल ने तर्क दिया कि, दिशा केवल शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन का आयोजन कर रही थी और इसे धारा 124 ए आईपीसी के तहत राजद्रोह के अपराध के तहत नहीं लाया जा सकता है। अगर अपराध यह है कि मैंने शांतिपूर्वक विरोध किया, तो मैं दोषी हूं! यदि अपराध यह है कि मैंने इस शांतिपूर्ण विरोध के बारे में विज्ञापन दिया है, तो मैं दोषी हूं। यदि यह पैमाना है, तो मैं निश्चित रूप से दोषी हूं। मसलन, अगर योग है। और मुझे योग से ज़्यादा कुंग फू पसंद है। क्या मैं चीनी जासूस बन जाऊंगा? यह मैं नहीं कह रहा हूं। यह उनकी एफआईआर में है। एफआईआर में उनका आरोप है कि मैंने चाय और योग पर हमला किया है। क्या यह देशद्रोह का पैमाना है?” टूलकिट भारत के खिलाफ कोई “असंतोष” पैदा नहीं करता है और इसे राजद्रोह नहीं माना जा सकता है।

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