कानपुर के प्रत्याशी के ख़िलाफ़ बीजेपी में विद्रोह, प्रकाश शर्मा ने लिखी पीएम को चिट्ठी

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कानपुर में बीजेपी प्रत्याशी रमेश अवस्थी को लेकर पार्टी में विद्रोह जैसी स्थिति है। रमेश अवस्थी ने आज नामांकन तो कर दिया है लेकिन बीजेपी के तमाम कार्यकर्ता उनको प्रत्याशी बनाया जाना पचा नहीं पा रहे हैं। पार्टी के पूर्व प्रदेश उपाध्यक्ष और बजरंग दल के पूर्व राष्ट्रीय संयोजक प्रकाश शर्मा ने रमेश अवस्थी को प्रत्याशी बनाय जाने पर गहरा असंतोष जाहिर करते हुए प्रधानमंत्री मोदी, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और संगठन महा मंत्री पी.एल. संतोष को एक पत्र लिखकर सवाल उठाकर कहा है कि कानपुर के लाखों कार्यकर्ता पार्टी के इस फ़ैसले से निराश हैं।

प्रकाश शर्मा ने इस पत्र में बीजेपी और इससे पहले जनसंघ के गठन और विस्तार में कानपुर के कार्यकर्ताओं की भूमिका की याद दिलाते हुए लिखा है,  ‘कानपुर नगर सीट पर जिस तरह प्रत्याशी थोपा गया है, वह अचंभित और हतप्रभ करने वाला है। पार्टी में किसी भी स्तर पर या आसपास उनके योगदान की कोई जानकारी नहीं है। चुनावी रणभूमि में प्रत्याशी अभी परिचय में ही फंसे हैं। ऐसी निष्क्रियता 400 पार के लक्ष्य को असंभव बना देगी। क्या कानपुर की धरा कार्यकर्ताविहीन हो गई है? कुछ गलतियों के कारण 1999, 2004 और 2009 में पार्टी को कानपुर नगर लोकसभा सीट गंवानी पड़ी थी। एकाएक ऐसा प्रत्याशी चयन निराश करने वाला है। कार्यकर्ता अंदर ही अंदर सुलग रहे हैं, लेकिन अपनी बात ऊपर तक पहुंचाने में अक्षम हैं।’

प्रकाश शर्मा ने साथ में एक दोहा भी लिखा है जिसका अर्थ है, ‘प्रिय वचन बोलकर चाटुकारिता करने वाले तो बहुतायत में मिलते हैं, लेकिन हितकारी बात करने वाले लोग दुर्लभ होते हैं। कानपुर सीट के बारे में दोबारा विचार अति आवश्यक है। वरना परिणाम संगठन, समाज और राष्ट्रहित में नहीं होंगे।’

रमेश अवस्थी को लेकर प्रकाश शर्मा जैसे वरिष्ठ नेता का यह पत्र बताता है कि बाहर से प्रत्याशी लाकर थोपने की रणनीति कानपुर जैसे गढ़ में बीजेपी के लिए मुश्किल पैदा कर सकती है। वैसे, यह केवल कानपुर का नहीं, कई अन्य ज़िलों का हाल है। बीजेपी के पुराने कार्यकर्ताओं का दर्द है कि वे दरी बिछाते ही रह गये और बाहरी लोग पार्टी के विधायक और सांसद बन गये। अब तो एक चुटकुला भी चल रहा है कि जिस तरह से पूर्व कांग्रेसी विधायक और सांसद बीजेपी में शामिल हो गये हैं, उसके बाद कांग्रेस मुक्त भारत का सपना कांग्रेसयुक्त बीजेपी में बदल गया है। तमाम भ्रष्टाचार के आरोपी नेताओं का भी बीजेपी में शामिल होना उन पुराने  कार्यकर्ताओं को पच नहीं रहा है जो कभी राजनीति में शुचित की बात करते हुए बीजेपी को ‘पार्टी विद अ डिफ़रेंस’ बताते थे। जो भी हो, प्रकाश शर्मा के इस पत्र ने साफ़ कर दिया है कि बीजेपी के लिए उत्तर प्रदेश में स्थिति उतनी आसान नहीं है जितना की दावा किया जा रहा है। बीजेपी कार्यकर्ताओं की उदासीनता पार्टी पर भारी पड़ सकती है।

प्रकाश शर्मा का पत्र पढ़ें-

 

 


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