रिजिजू की टिप्पणी और सीजेआई की प्रतिक्रिया के निहितार्थ क्या हैं? – टिप्पणी को विस्तार से समझें

मयंक सक्सेना मयंक सक्सेना
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गुरुवार को संसद में केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू की टिप्पणी के बाद अब भारत के मुख्य न्यायाधीश का एक बयान आया है। इस बयान को किरेन रिजिजू की टिप्पणी पर सीजेआई की प्रतिक्रिया के तौर पर देखा जा रहा है। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने एक मामले में ज़मानत देते हुए कहा, ‘अगर हम व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में कार्रवाई नहीं करते हैं और राहत देते हैं तो हम यहां क्या कर रहे हैं?’ उन्होंने इसी मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट के लिए कोई मामला छोटा और कोई बड़ा नहीं होता है।

क्या कहा था किरेन रिजिजू ने?

माना जा रहा है कि सीजेआई की ये टिप्पणी, केंद्रीय क़ानून मंत्री की उस टिप्पणी पर प्रतिक्रिया है, जो उन्होंने संसद में देते हुए कहा था,

“सुप्रीम कोर्ट को उन्हीं केसों को सुनना चाहिए जो प्रासंगिक हों तथा संविधान कोर्ट के लिए विचार योग्य हों। यदि सुप्रीम कोर्ट जमानत याचिकाएं और अन्य फालतू पीआईएल सुनना शुरु करेगा तो निश्चित रूप से माननीय अदालत पर यह अतिरिक्त बोझ डालेगा।”  

किरेन रिजिजू का संसद में ये बयान एक सवाल के जवाब में आया था, जिसमें राज्यसभा सांसद राजीव शुक्ल ने अदालतों में लंबित मामलों को लेकर सवाल किया था। लेकिन इस जवाब में भी केंद्रीय मंत्री ने घुमाफिरा कर अपने उसी पुराने स्टैंड को दोहराया, जिसको लेकर लगातार केंद्र सरकार और न्यायपालिका के बीच ठनी हुई है। 

अदालत में किस मामले में हुई ये टिप्पणी?

सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ एक ऐसे मामले की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें एक व्यक्ति को बिजली चोरी के आरोप में लंबा समय जेल में काटना पड़ा है। ये मामला सीजेआई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की पीठ के सामने आय़ा और इस मामले में एक व्यक्ति को बिजली चोरी के लिए कुल 18 साल की लगातार सजा काटने का आदेश दिया गया है। मामले में दोषी को नौ मामलों में से हर एक में दो साल की सजा सुनाई गई। अधिकारियों द्वारा माना गया कि सजाएं एक साथ नहीं बल्कि लगातार चलती हैं, और इसलिए दोषी को कुल 18 साल की सजा होगी। इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा अपील अस्वीकार करने के बाद, इस व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल की थी।

क्या हुआ अदालत में?

 

इस मामले को सुनते ही खंडपीठ की पहली प्रतिक्रिया थी कि ये बिल्कुल हैरान करने वाला मामला है। इस मामले में अभियुक्त पहले ही 7 साल की सज़ा काट चुका है।

अदालत ने इस में मद्रास हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एस नागामुथु से सलाह मांगी और उन्होंने जवाब में कहा कि ऐसे तो ये बिजली चोरी की जगह आजीवन कारावास की सज़ा बन जाएगी। इस पर खंडपीठ की प्रतिक्रिया थी कि इसी कारण सुप्रीम कोर्ट की आवश्यकता है।
इसके बाद अदालत ने इस मामले में अपीलकर्ता को राहत देते हुए कहा कि ये एक छोटा और नियमित मामला है लेकिन ऐसे मामलों में “न्यायशास्त्रीय और संवैधानिक दोनों दृष्टियों से पल-पल के मुद्दे सामने आते हैं।”

अदालत ने आदेश में क्या कहा?

अपने आदेश में खंडपीठ ने अहम टिप्पणियां करते हुए कहा,

“व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार अहस्तांतरणीय है। ऐसे मामलों पर ध्यान देते हुए सुप्रीम कोर्ट अपना कर्तव्य निभाता है, न अधिक और न ही कम।”

अदालत ने इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट की प्रासंगिकता और उसकी अहमियत को नागरिक अधिकारों के संदर्भ में परिभाषित करते हुए जोड़ा,

“इस मामले के तथ्य एक और उदाहरण देते हैं कि इस अदालत के औचित्य का संकेत ये है कि वह जीवन के मौलिक अधिकार और प्रत्येक नागरिक के लिए निहित व्यक्तिगत स्वतंत्रता के रक्षक के रूप में अपने अधिकार क्षेत्र का प्रयोग करे। अगर अदालत ऐसा नहीं करती हैं तो इस मामले में सामने आई प्रकृति से न्याय का गंभीर गर्भपात जारी रहेगा और जिस नागरिक की स्वतंत्रता निरस्त कर दी गई है, उसकी आवाज पर ध्यान ही नहीं दिया जाएगा।”

इसी के साथ सुप्रीम कोर्ट के ऐतेहासिक संदर्भ को देते हुए, खंडपीठ ने सरकार की ओर से क़ानून मंत्री द्वारा संसद में की गई टिप्पणियों पर सीधा नहीं पर जवाब तो दिया ही,

“इस न्यायालय का इतिहास स्पष्ट करता है कि यह नागरिकों की शिकायतों से जुड़े प्रतीत होने वाले छोटे और नियमित मामलों में है, जिसमें न्यायशास्त्रीय और संवैधानिक दोनों दृष्टियों से लगातार मामले सामने आते हैं। नागरिकों की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए इस अदालत द्वारा संविधान के अनुच्छेद 136 के संवैधानिक सिद्धांतों पर हस्तक्षेप को इसीलिए स्थापित किया गया। व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त अनमोल और अविच्छेद्य अधिकार है। ऐसी शिकायतों पर ध्यान देने में सुप्रीम कोर्ट सिर्फ संवैधानिक कर्तव्य, दायित्व और कार्य करता है; इससे अधिक और कुछ नहीं कम नहीं।”

इस मामले में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने आदेश लिखवाने के बाद टिप्पणी की, ‘आप बिजली की चोरी के अपराध की सज़ा को हत्या के अपराध की सजा जितना नहीं बढ़ा सकते। इस मामले में हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करना चाहिए था।”

रिजिजू की टिप्पणी का जवाब?

इस मामले के दौरान टिप्पणी करते हुए ही, सीजेआई ने अप्रत्यक्ष रूप से किरेन रिजिजू द्वारा संसद में की गई टिप्पणी का जवाब भी दे दिया। उन्होंने कहा,

“जब आप यहां बैठते हैं तो सुप्रीम कोर्ट के लिए कोई भी मामला छोटा नहीं होता और कोई मामला बहुत बड़ा नहीं होता है। क्योंकि हम यहां अंतरात्मा की पुकार और नागरिकों की स्वतंत्रता की पुकार का जवाब देने के लिए बैठे हैं। जब आप यहां बैठते हैं और आधी रात को रोशनी जलाते हैं तो आपको एहसास होता है कि हर रोज कोई न कोई मामला ऐसा ही होता है।”

क्यों चल रही है सरकार और न्यायपालिका के बीच तनातनी?

पिछले करीब एक महीने से केंद्र सरकार और सर्वोच्च न्यायालय के बीच लगातार तनातनी चल रही है। ये तनातनी कोलेजियम सिस्टम के रहने या न रहने को लेकर है। केंद्र सरकार अब अदालतों में जजों की नियुक्ति में अधिकार चाहती है और इसलिए कोलेजियम सिस्टम के ख़िलाफ़ लगातार सरकार की ओर से बयान आ रहे हैं।  सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि कोलेजियम के दिए नामों को सरकार मंजूर नहीं कर रही है, जबकि सरकार का कहना है कि कोलिजियम सिस्टम में बदलाव की जरूरत है। यहां तक कि कानून मंत्री खुलेआम बोल चुके हैं कि सरकार को इसके अधिकार मिलने चाहिए। अदालत इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता में विधायिका के हस्तक्षेप की मंशा मानती है।

इस पर सरकार की ओर से केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू लगातार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष बयान देकर, न्यायपालिका पर हमला बोल रहे हैं। अदालत की ओर से इस विवाद में सीधा कोई बयान नहीं आ रहा है लेकिन आयोजनों में अपने भाषणों में इसके बारे में इंगित करने के बाद अब इस आदेश में सीजेआई ने किरेन रिजिजू के बयान पर ही जवाब दिया है।


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