देशभक्त होने का दावा करने वाली पार्टी और उसकी सरकार की माँग और काम को देख रहे हैं न? 

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
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जजों की नियुक्ति करने वाले कॉलेजियम में प्रतिनिधि चाहिए और अपने प्रतिनिधि (एलजी) को अनंत अधिकार दिलाने की कोशिश, इसके लिए सुप्रीम कोर्ट नौ जजों की पीठ बनाए और जहां अधिकार हैं वहां कार्रवाई आधी रात में हुई, जो पद पर था उसे अपने अधिकार का उपयोग करने नहीं दिया गया (सीबीआई प्रमुख को हटाने का मामला)। सीबीआई के दुरुपयोग से अब कौन इनकार कर सकता है?   

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए बनाए गए कोलेजियम में केंद्र की भाजपा सरकार अपना प्रतिनिधि रखना चाहती है। केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने मुख्य न्यायाधीश चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ को चिट्ठी लिखी है। चिट्ठी में कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम में सरकार के प्रतिनिधि शामिल होने चाहिए। इससे पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ावा मिलेगा। आप जानते हैं कि उपराज्यपाल ने हाल में दिल्ली सरकार के शिक्षकों को प्रशिक्षण के लिए फिनलैंड भेजने के प्रस्ताव को नामंजूर कर दिया है। इसपर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने विधानसभा में उपराज्यपाल के खिलाफ जो कुछ बोला उसका वीडियो सोशल मीडिया पर यह कहकर शेयर किया जा रहा है कि वे संवैधानिक पद पर हैं और उनके खिलाफ यह भाषा।  

दूसरी ओर, दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने एलजी ऑफिस तक मार्च किया। इस दौरान वे एक तख्ती लिए हुए थे जिसपर लिखा था, एलजी साब, शिक्षिकों को फिनलैंड जाने दो। इस रैली के संबंध में सॉलिसीटर जनरल, तुषार मेहता ने कहा था, जब मामला कोर्ट में चल रहा है तो संवैधानिक पद पर बैठे लोग विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। प्रदर्शन और थियेट्रिक्स (नाटक) अदालत की कार्रवाई का विकल्प नहीं हो सकता है। इसपर दिल्ली सरकार के वकील एएम सिघवी ने कहा था, विधायी और कार्यकारी अधिकारों के उपयोग को रोकने की बात हो तो दिल्ली सरकार केंद्र सरकार पर बहुत सारे आरोप लगा सकती है (टाइम्स ऑफ इंडिया, 18 जनवरी 2023)।   

कुल मिलाकर स्थिति यह है कि केंद्र सरकार अपने प्रतिनिधि यानी उपराज्यपाल के पक्ष में खड़ी है और पहली ही नजर में उनकी जो कार्रवाई जनहित के खिलाफ लग रही है उसे उनकी जायज कार्रवाई और अधिकार साबित करने में लगी हुई है। मेरा मानना है कि एलजी के काम सही भी हों लेकिन जनहित के खिलाफ हों तो केंद्र सरकार को उनका समर्थन नहीं करना चाहिए लेकिन उसकी तो पूरी राजनीति ही अलग है। और बेशक वह अलग मुद्दा है। ऐसे में केंद्र सरकार ने अब सुप्रीम कोर्ट से यह मांग कर चौंका दिया है कि दिल्ली की निर्वाचित सरकार के  साथ / अलग / ऊपर काम करने के लिए मनोनीत उसके प्रतिनिधि बोले तो उपराज्यपाल के अधिकारों से संबंधित विवाद के निपटारे के लिए और बड़ी पीठ बनाई जाए। 

सॉलिसीटर जनरल ने मुख्य न्यायाधीश के नेतृत्व वाले पांच जजों से कहा है, हम नहीं चाहते कि इतिहास हमें राष्ट्रीय राजधानी को पूरी अराजकता को सौंपने के लिए याद करे (द हिन्दू, 19 जनवरी 2023)। इसका मतलब दिल्ली की चुनी हुई सरकार को अधिकार देना अराजकता है और भाजपा सरकार जो चाहे सो कर सकती है, करना चाहती है क्योंकि वह चुना हुई है। हिन्दुस्तान टाइम्स की खबर के अनुसार, केंद्र ने बुधवार को मांग की कि सु्प्रीम कोर्ट के नौ या उससे अधिक न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ शहर-राज्य में नौकरशाही के नियंत्रण को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच सत्ता संघर्ष पर फैसला सुनाए और दलील दी कि यह मामला राष्ट्रीय राजधानी से संबंधित है। 

आम आदमी पार्टी (आप) के द्वारा दूसरा कार्यकाल शुरू करने के तीन महीने बाद मई 2015 में केंद्र सरकार द्वारा जारी एक अधिसूचना में सुझाव दिया गया था कि निर्वाचित सरकार अधिकारियों की नियुक्ति और स्थानांतरण पर कोई नियंत्रण नहीं रख सकती है क्योंकि दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है। अदालत दिल्ली द्वारा इस अधिसूचना को चुनौती देने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रही है, जिसने तर्क दिया है कि यह कदम 2018 के शीर्ष अदालत के फैसले के विपरीत था, जिसमें सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि को छोड़कर सभी मुद्दों पर निर्वाचित सरकार को प्रधानता दी गई थी।

यहां यह दिलचस्प है कि पढ़े-लिखे शहरी लोग केंद्र की चुनी हुई सरकार का विरोध करें तो उन्हें अर्बन नक्सल करार दिया जाता है भले वह आतंकवादी की आरोपी को सांसद बना दे। एक ट्वीट के अनुसार दलित अपने हक के लिए लड़े तो (उग्रवाद), आदिवासी अपने हक के लिए लड़े तो (नक्सलवाद), मुस्लिम अपने हक के लिए लड़े तो (आतंकवाद), पिछड़ा अपने हक के लिएं लड़े तो (जातिवाद), लेकिन भारतीय जनता पार्टी के लोग अपने स्वार्थ के लिए जो भी करें वह राष्ट्रवाद। दिक्कत कुछ भी करार दिए जाने से नहीं है। दिक्कत है कंप्यूटर में फर्जी सूबत प्लांट करके जेल में डाले जाने के आरोपों से और उसके मामले भी अदालत में समय पर नहीं सुने जाने से है। 

अर्नब गोस्वामी को हफ्ते भर में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल जाने और सिद्दिकी कप्पन को जमानत मिलने पर भी जेल से छूटने में कई दिन लग जाने वाली व्यवस्था से किसी को भी परेशान होना चाहिए। कहने की जरूरत नहीं है कि ऐसी व्यवस्था बनाने और चलाने वाली सरकार जनहित की परवाह ही नहीं करती है। उसे अपने और अपने प्रतिनिधियों के अधिकारों और हितों की ही चिन्ता है और कर्तव्यों से लगभग कोई मतलब नहीं है। लेकिन बहुमत को इसकी परवाह नहीं है तो बहुमत से चुनी सरकार भी निश्चित है।  

इंडियन एक्सप्रेस में खबर है कि के चंद्रशेखर राव (केसीआर) की रैली में विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार देश की संघीय संरचना को नष्ट करने की कोशिश कर रही है। द हिन्दू में इस खबर का शीर्षक है, भारत राष्ट्र समिति के प्रेसिडेंट और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने कहा है कि उनकी पार्टी भाजपा के कुशासन को खत्म करने के लिए संघर्ष करेगी और गरीब समर्थक किसान केंद्रित व्यवस्था लागू करेगी। केसीआर ने खम्मम में शक्ति प्रदर्शन की। इस रैली में पंजाब, दिल्ली के मुख्यमंत्री समेत कई दलों के वरिष्ठ नेता मंच साझा कर रहे थे। 

द टेलीग्राफ के अनुसार राहुल गांधी ने कहा है कि मुख्यधारा की मीडिया के कारण ही कांग्रेस भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से भारत के लोगों के साथ सीधी बातचीत शुरू करने के लिए मजबूर हुई। कांग्रेस नेता जहां कुछ समय से नरेंद्र मोदी सरकार के दुष्प्रचार के औजार की तरह काम करने के लिए मीडिया की आलोचना कर रहे हैं, वहीं उन्होंने बुधवार को अपना हमला तेज करते हुए कहा कि लोगों की वास्तविक चिंताओं के लिए बहुत कम जगह है और यह रवैये की समस्या है, अज्ञानता की नहीं। उन्होंने यह भी कहा न्यायपालिका सहित अन्य संस्थान सरकार के दबाव में काम कर रहे हैं, जिससे विपक्ष का काम और मुश्किल हो गया है।

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।