उत्तराखंड में बीते तीन सालों से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के छात्रों को छात्रवृत्ति न मिलने की खबर है. उत्तराखंड में पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहे किशोर कुमार नामक एक छात्र ने बताया है कि इस सन्दर्भ में मुख्यमंत्री से लेकर राज्यपाल, प्रधान सचिव, डीएम सभी से मिलने के बाद भी कोई हल नहीं निकला है. किशोर कुमार ने बताया कि पिथौरागढ़ के समाज कल्याण अधिकारी से भी बात हुई और उन्होंने बताया कि करीब लाख आवेदन पत्र दाखिल हुए थे जिनमें से 81 आवेदन पत्र ख़ारिज हो गये हैं. क्यों ख़ारिज हुए ?
उत्तराखंड, जहां अनुसूचित जाति की आबादी लगभग 20% है, और इस समुदाय का बहुत छोटा सा हिस्सा ही उच्च शिक्षा प्राप्त कर पाता है, क्योंकि गांव में इस तरह की शिक्षा की समुचित व्यवस्था नहीं इसलिए दूरदराज से आने वाले इस समुदाय के बच्चों को उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए मुख्य रूप से जिला मुख्यालय स्थित डिग्री कॉलेजों का रुख करना पड़ता है, लेकिन जाति इन शहरों में भी उनका पीछा नहीं छोड़ती और कमोबेश साधनहीन यह बच्चे अपनी जात के कारण किराए पर कमरा पाने में असमर्थ रहते हैं, उनकी इन समस्याओं को देखते हुए सरकार के समाज कल्याण विभाग द्वारा प्रत्येक जिला मुख्यालय में अंबेडकर छात्रावास स्थापित किए गए हैं लेकिन यह छात्रावास भी इन छात्रों की बुनियादी समस्याओं को हल नहीं कर पाते. इसके कई वजह हैं.:
New Doc 2019-11-12 11.00.111- लगभग सभी छात्रावास कॉलेजों से काफी दूरी पर बनाये गए हैं जहां से कॉलेज तक पहुंचने के लिए छात्रों को लंबी दूरी तय करनी पड़ती है कई बार तो यह दूरी 5 से10 किलोमीटर तक की भी है, जैसे अल्मोड़ा स्थित अंबेडकर छात्रावास फलसीमा, कॉलेज से 8 से 10 किलोमीटर की दूरी पर है,आवागमन के साधन आमतौर पर उपलब्ध नहीं होते, और जो होते हैं उनमें हर रोज इन गरीब बच्चों का काफी पैसा केवल आने जाने में ही खर्च हो जाता है, गौरतलब है कि इन छात्रावासों में अधिकतम 50 बच्चों के रहने की व्यवस्था है जिनमें गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले अनुसूचित जाति के बच्चों को रखा जाता है. और यह चयन मेरिट के आधार पर होता है.
2- छात्रावासों से जुड़ी दूसरी सबसे बड़ी समस्या भोजन की है, नियमानुसार इन छात्रावासों में मैस्स की व्यवस्था होनी चाहिए. लेकिन सभी छात्रावासों में यह व्यवस्था मौजूद नहीं, साथ ही जहां यह व्यवस्था मौजूद है वहां इसे ठेकेदारी पर चलाया जाता है और प्रतिदिन प्रति छात्र ₹69 की दर से भोजन छात्रों को मुहैया कराया जाता है गौरतलब है कि ₹ 69 में गुणवत्ता युक्त भोजन मिलना नामुमकिन है यह भी देखने लायक है कि जनजाति छात्रावासों में यह दर ₹100 की है. आश्रम पद्धति छात्रावासों में ₹200 की है और खेल छात्रावासों में ₹150 से ₹200 के बीच की है. ₹ 69 में जो भोजन इन छात्रों को मुहैया कराया जाता है. इतना खराब है उसे खाया भी नहीं जा सकता.
कहने को तो कागज में भोजन का मैन्यू की बना हुआ है लेकिन वह मैन्यू केवल कागज में ही है आज तक एक बार भी मैं न्यू के हिसाब से भोजन कभी भी छात्रों को उपलब्ध नहीं कराया जा सका है.पानी की व्यवस्था के लिए फिल्टर या आर ओ आदि की व्यवस्था भी बेहद खराब और दोषपूर्ण है. खराब किस्म के फिल्टर लगाई गई है जिससे अधिकांश छात्र पीलिया किडनी स्टोन जैसी कई व्याधियों का शिकार पिछले कई वर्षा में हुए हैं.
3- छात्राओं के लिए पृथक छात्रावास की व्यवस्था भी नियमानुसार होनी चाहिए लेकिन केवल दो ही जगह में पूरे प्रदेश में छात्राओं के लिए प्रथक छात्रावास बने हुए हैं.
4- पिछले 3 साल से अनुसूचित जाति के छात्रों को मिलने वाली छात्रवृत्ति को सरकार की तरफ से अकारण ही रोक दिया गया है जिससे अति गरीब तबके से आने वाले इन छात्रावासों के छात्रों के पढ़ाई और अन्य खर्चे निकालने मुश्किल हो गए हैं गांव में रहने वाले इनसे गरीब मां-बाप इनकी पढ़ाई का खर्च उठाने में असमर्थ है, जिस कारण कई बच्चे पढ़ाई छोड़ने को भी विवश हुए है.
5- छात्रावास में फर्नीचर, साफ सफाई ,शौचालय एवं सुरक्षा की व्यवस्था बहुत ही खराब है सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं, यहां तक कि छात्राओं के छात्रावास में भी समुचित सुरक्षा व्यवस्था नहीं है.
6 – नियमानुसार समाज कल्याण विभाग द्वारा सभी छात्रावासों में वार्डन ,गार्ड, एवं आकस्मिक स्थिति के लिए एक पैरामेडिक की नियुक्ति की जानी चाहिए थी लेकिन अधिकांश छात्रावासों में वार्डन की व्यवस्था भी नहीं, छोटी-छोटी समस्याओं के लिए भी छात्रों को बहुत अधिक परेशान होना पड़ता है.
7 – छात्र संख्या को 50 तक सीमित रखना भी एक समस्या है, 1 जिले में केवल अधिकतम 50 बच्चे ही इन छात्रावासों में प्रवेश ले सकते हैं अनुसूचित जाति समुदाय के अन्य बच्चों को कमरा ना मिलने, पढ़ाई एवं रहने का खर्चका खर्च न उठा पाने के कारण अधूरी पढ़ाई ही छोड़कर काम की तलाश करनी पड़ती है.
8 – लंबे समय से छात्रों की मांग रही है कि प्रत्येक अंबेडकर छात्रावास में एक अंबेडकर लाइब्रेरी का प्रावधान भी किया जाए जिसमें प्रतियोगी परीक्षाओं के अतिरिक्त अन्य पुस्तकें भी बच्चों को पढ़ने को मिल सकें लेकिन इस ओर समुचित ध्यान नहीं दिया जा सका है.
उपर्युक्त समस्याओं के अलावा भी कई अन्य समस्याओं से छात्रों निरंतर रूबरू होते हैं इन समस्याओं के निवारण के लिए छात्रों ने अपने अध्यक्ष किशोर कुमार के नेतृत्व में समाज कल्याण अधिकारी, जिलाधिकारी, विधायक समाज कल्याण मंत्री, सांसद एवं सीधे मुख्यमंत्री तक से बात कर बीसियों बार प्रतिवेदन एवं ज्ञापन दिए जा चुके हैं कई बारमुलाकात की जा चुकी हैं लेकिन समस्याएं जस की तस बनी हुई है. सामाजिक शैक्षणिक एवं आर्थिक रूप से कमजोर अनुसूचित जाति समुदाय के बच्चे सरकार द्वारा समुचित संरक्षण के अभाव में अपनी पढ़ाई छोड़ने को मजबूर हो रहे हैं शायद सरकार यही चाहती है.
उत्तराखंड से किशोर कुमार की रिपोर्ट पर आधारित