सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद मुज़फ्फ़रनगर के दंगा आरोपित नेताओं का बचना मुश्किल

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को आदेश दिया था कि कोई भी राज्य या केंद्र शासित प्रदेश संबंधित हाई कोर्ट की पूर्व सहमति के बिना अपने एमपी, एमएलए के खिलाफ आपराधिक मामले वापस नहीं ले सकता है। इस फैसले के बाद, उत्तर प्रदेश सरकार के दो भाजपा मंत्रियों, एक पार्टी विधायक और एक हिंदुत्व नेता के खिलाफ मुजफ्फरनगर दंगों के मामलों को वापस लेने का प्रयास उच्च कानूनी जांच (higher legal scrutiny) के तहत आने की उम्मीद है। मंगलवार की सुवाई में अदालत ने राजनीतिक नेताओं के खिलाफ आपराधिक मामलों से निपटने वाले जजों को उनके पदों से स्थानांतरित नहीं किए जाने के आदेश भी दिए।

HC सभी अपराधिक मामलों का चार्ट प्रस्तुत करे..

मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना और जस्टिस विनीत सरन और सूर्यकांत की पीठ ने उच्च न्यायालयों (high courts) से कहा है की वे 16 सितंबर, 2020 से राजनेताओं के खिलाफ मामलों को वापस लिए जाने की जांच करें। पीठ ने सभी हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार-जनरल को विशेष अदालतों में राजनेताओं के खिलाफ लंबित मामलों,निपटाए गए मामलों और लंबित मामलों का एक चार्ट प्रस्तुत करने के लिए भी कहा।

यूपी सरकार की 2020 में राजनेताओं के खिलाफ मामला वापस लेने की मांग..

बता दें, की योगी आदित्यनाथ सरकार ने दिसंबर 2020 में एक कोर्ट में याचिका दायर की थी। जिसमे उन राजनेताओं के खिलाफ मामलों को वापस लेने की मांग की थी, जिन पर 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों में शामिल होने और भड़काने के आरोप थे। इन दंगो में 60 से अधिक लोग मारे गए थे। मामला वापसी की याचिकाएं अभी भी लंबित हैं।

मुजफ्फरनगर दंगों के मामले भी न्याय मित्र हंसरिया के उल्लेख में शामिल..

मंगलवार की सुनवाई में मुजफ्फरनगर दंगों के मामले उन मामलों में शामिल थे जिनका उल्लेख वरिष्ठ अधिवक्ता और न्याय मित्र विजय हंसरिया ने सुप्रीम कोर्ट में किया। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने संगीत सोम, कपिल देव, सुरेश राणा और साध्वी प्राची के खिलाफ मुजफ्फरनगर दंगों के मामलों सहित निर्वाचित प्रतिनिधियों के खिलाफ 76 मामले वापस लेने की मांग की थी।

 

SC की 2017 के बाद से सांसदों के आपराधिक मुकदमे के पूरा होने पर नज़र..

बता दे की अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका (PIL) पर 2017 में एक फैसले के बाद से, शीर्ष अदालत, विशेष अदालतों की स्थापना करके एक साल के भीतर सांसदों के खिलाफ आपराधिक मुकदमे के पूरा होने की निगरानी कर रही है। मंगलवार को, मुख्य न्यायाधीश ( CJI) ने इस तरह के परीक्षणों में तेजी लाने के लिए 2017 से अदालत द्वारा जारी निर्देशों का पालन करने के लिए आवश्यक कदम उठाने में केंद्र सरकार के आचरण पर कड़ी नाराजगी ज़ाहिर की।

हमे कुछ नहीं पता होता हम सिर्फ अखबारों में पढ़ते हैं…

न्यायमूर्ति रमना ने कहा: “हमें नहीं पता कि क्या हो रहा है। ये सारी स्टेटस रिपोर्ट, हम सिर्फ अखबारों में पढ़ते हैं।मीडिया को सब पहले ही पता चल जाता है। प्रतियां हमें प्रस्तुत नहीं की जाती हैं। हमें प्रतियां एक दिन पहले शाम को ही मिल जाती हैं। हम कुछ नहीं जानते।”

CJI ने सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता से कहा: “जब यह मामला शुरू हुआ, तो हमें आश्वासन दिया गया था कि सरकार इस मुद्दे को लेकर बहुत गंभीर है और कुछ करना चाहती है। लेकिन कुछ नहीं हुआ है। कोई प्रगति नहीं। जब आप स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने से भी कतराते हैं, तो आप हमसे क्या कहने की उम्मीद कर सकते हैं?”

अदालत ने एमिकस क्यूरी हंसारिया द्वारा सूचित किए जाने के बाद यह टिप्पणी की कि सीबीआई ने अभी तक सांसदों और पूर्व सांसदों के खिलाफ दर्ज मुकदमे पर एक स्थिति रिपोर्ट दायर नहीं की है। प्रवर्तन निदेशालय ने मनी लॉन्ड्रिंग अपराधों में स्थिति रिपोर्ट दायर की थी।

CJI ने बताया कि अदालत ने केंद्र से 10 सितंबर, 2020 को स्थिति रिपोर्ट जल्द से जल्द पेश करने को कहा था, और 6 अक्टूबर को एक अनुस्मारक (reminder) जारी किया था। जब केंद्र ने सीबीआई और ईडी की ओर से स्थिति रिपोर्ट जमा करने के लिए और समय मांगा था।

 

 

समय देने के बाद भी मामला पेश नही हुआ..

न्यायमूर्ति रमना ने मेहता से कहा,“ उसके बाद आपको और समय दिया गया। आज भी यही स्थिति है। आपने केवल आरोपी और मामले का नाम दिया है, लेकिन विवरण नहीं दिया है कि सबसे पुराना मामला कौन सा है, संख्या आदि।

मेहता ने कहा: “मैं मानता हूं कि हमारे पास कमी है। हमने ईडी की ओर से कल रिपोर्ट दाखिल की थी। मैंने सीबीआई निदेशक को तुरंत आपके आधिपत्य(Lordships) के समक्ष रखने की आवश्यकता पर बल दिया।”

जैक्टिस रमना ने कहा: “यह काम नहीं करता है। कुछ बातों का अनुमान लगाना पड़ता है। हम अपनी नाराजगी ज़ाहिर करने के लिए और क्या कह सकते हैं? हमें बताया गया कि केंद्र सांसदों और विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों को लेकर चिंतित है। तभी हंसारिया ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि राजनेताओं के खिलाफ कुछ आपराधिक मामले सात साल से लंबित हैं।

मेहता ने निवेदन किया: “मैं शीघ्र सुनवाई के लिए आपके लॉर्डशिप के निर्देशों को नमन करता हूं। यदि आपका लॉर्डशिप हमें अंतिम अवसर प्रदान करता है तो हम अनुपालन करेंगे।”

मेहता के निवेदन पर न्यायमूर्ति रमना ने उन्हें दो सप्ताह का समय दिया है। अगर तब तक लंबित मामलों का विवरण कोर्ट में नही दिया गया तो कोर्ट उचित आदेश पारित करेगा और यह माना जायेगा की सरकार इस मुद्दे पर गंभीर नहीं है। मामले की अगली सुनवाई 25 अगस्त को होगी।