प्रधानमंत्री संसद में नहीं बोलेंगे, अकेले हवन करेंगे, ख़बर और फ़ोटो टेलीग्राफ़ ने छापी है

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


 

बाकी अखबार बता रहे हैं तीसरे कार्यकाल में अर्थव्यवस्था दुनिया के तीन सर्वोच्च में होगी, पांच ट्रिलियन भूल गये!

 

आज के अखबारों में मोदी जी की गारंटी छपी है, “हमारे तीसरे कार्यकाल में भारत दुनिया की तीन सर्वोच्च अर्थव्यवस्थाओं में होगा”। मुझे लगता है कि आबादी ज्यादा है, क्षेत्रफल भी कम नहीं है और आबादी का घनत्व तो अच्छा-खासा है ही। इसलिए भारत की अर्थव्यवस्था तो बड़ी होगी ही उसमें वृद्धि भी तेज होगी। पर मुद्दा प्रति व्यक्ति आय और उपलब्ध सुविधाओं तथा जीवनस्तर का है जिसपर सरकारें बात नहीं करती हैं। मोदी सरकार का इस तरह का दावा विडंबनापूर्ण है क्योंकि बिना सोचे-समझे नोटबंदी और बगैर पूर्व तैयारी के जीएसटी लागू करने का नुकसान तो हुआ ही है। नियम ऐसे बना दिये गये हैं कि छोटे स्तर पर कारोबार करके घर चलाना मुश्किल हो गया है। आप चाहे टिफिन बनाकर या अचार बेचकर या कपड़े सिलकर घर चलाना चाहें नियम इतने सख्त और संशोधित कर दिये गये हैं कि बहुत जरूरी नहीं हो तो आप काम नहीं करेंगे क्योंकि फायदा कम और झंझट ज्यादा है। 

इसलिए हर चौराहे पर आयकर से लेकर जीएसटी आदि रिटर्न दाखिल करने वालों के नंबर और दर टंगे मिल जाएंगे। बेशक नियम सख्त करने और सबों पर लागू करने से इस तरह के काम करने वालों का काम मिलता होगा पर मेरे जैसे लोगों ने काम करना छोड़ दिया है। कम से कम बढ़ाने की कोशिश तो नहीं ही कर रहे हैं। ऐसी हाल में अर्थवयवस्था बड़ी हो जाएगी कहकर श्रेय लेना पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था होने का प्रचार करना है। इसके बारे में पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा था, यह लक्ष्य 2023-24 में पूरा होना था लेकिन हम इसके आस-पास भी नहीं हैं। मुख्य आर्थिक सलाहकार वी अनंत नागेश्वरन ने आईएमएफ के पूर्वानुमान का हवाला देते हुए कहा था कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2026-27 तक पांच ट्रिलियन डॉलर को पार कर जाएगी। चिदंबरम ने इसे गोलपोस्ट बदलना कहा था। पांच ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था का दावा आप भी भूल ही गये होंगे। 

अब पूरी तरह नया गोलपोस्ट आ गया है और सरकार यह नहीं कह रही है कि अर्थव्यवस्था कब कितने की होगी बल्कि यह कहा है कि तीसरे कार्यकल (पांच वर्ष में कभी भी?) दुनिया की तीन सर्वोच्च अर्थव्यवस्थाओं में होगी। आपको याद होगा कि पहले बैंक में पांच साल में रुपये दूने हो जाते थे और उदारीकरण के दिनों में पांच लाख का फ्लैट कइयों ने 10 और 15 लाख में भी बेचा। दिल्ली में 1990 के दो लाख के फ्लैट दो करोड़ के हो गये हैं और गाजियाबाद या नोएडा में ऐसा नहीं है। जेवर एयरपोर्ट के प्रचार का असर है लेकिन किसी कंपनी की साढ़े तीन सौ कारें बाढ़ के पानी में डूबने की तस्वीर भी है। ऐसे में उसके दावों का क्या होगा जो पहले ही गोल पोस्ट बदलने के लिए जाना जाता है। पर आज यह खबर सभी अखबारों में प्रमुखता से है। इंडियन एक्सप्रेस में तो यह खबर लीड है।  

आज के अखबारों में एक और चुनावी खबर प्रमुखता से छपी है और वह है, रक्षा मंत्री राज नाथ सिंह का बयान। उन्होंने कहा है, अगर जरूरत पड़ी तो हम नियंत्रण रेखा पार कर सकते हैं। इंडियन एक्सप्रेस में इस खबर का शीर्षक है, भारत नियंत्रण रेखा पार कर सकता था, कर सकता है और अगर जरूरत हुई तो करेंगे। आप जानते हैं कि 2019 के चुनाव प्रचार में पुलवामा के बाद या बावजूद कहा था, घुसकर मारेंगे। ऐसे में कल कारगिल दिवस के मौके पर केंद्रीय रक्षा मंत्री ने जो कहा वह चुनावी तैयारी का भाग लगता है। चीन के मामले में भारत सरकार ने जो कहा और किया, उसे फिलहाल भूल जाइये। अभी तो मुद्दा यह है कि प्रधानमंत्री मणिपुर पर बोल नहीं रहे हैं और सरकार यह प्रचारित करने में लगी है कि विपक्ष चर्चा के लिए तैयार नहीं है। अखबार सरकार की सेवा में लगे हैं यह अब खबर नहीं है और ऐसे में आज जब सभी अखबारों में कांग्रेस के अविश्वास प्रस्ताव की चर्चा है तो खबर यह भी है कि प्रधानमंत्री ने प्रगति मैदान परिसर में नए बने आईईसीसी कांपलेक्स का उद्घाटन किया और इसकी तस्वीर भी छपी है। 

कुल मिलाकर, मणिपुर पर सरकारी पक्ष जाने बिना और सरकार अपना पक्ष रखे बिना दूसरे काम ऐसे कर रही है जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो या मुद्दा ही नहीं हो। अखबारों का भी यही हाल है। अखबार यह बताने में भी लगे हैं कि सरकार बेफ्रिक है …. कोई खतरा नहीं है। अमर उजाला ने अविश्वास प्रस्ताव की खबर को लीड बनाया है और शीर्षक है, मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव स्पीकर ने दी मंजूरी, अगले सप्ताह चर्चा संभव। इसके साथ सिंगल कॉलम की एक और खबर का शीर्षक है, सच हुई पीएम की भविष्यवाणी। इसके अनुसार, 2023 में विपक्ष की ओर से अविश्वास प्रस्ताव लाने की भविष्वाणी पीएम मोदी ने बीते लोकसभा चुनाव से ठीक पहले ही कर दी थी। इस संबंध में पार्टी की ओर से उसका एक वीडियो भी जारी किया गया है। 

ऐसे राजनीतिक और अखबारी माहौल में द टेलीग्राफ का आज का पहला पन्ना देखने लायक है। अखबार में सबसे ऊपर 30 मई 2019 को प्रधानंमत्री ने हिन्दी में पद और गोपीनीयता की जो शपथ ली थी उसके हिससे का अंग्रेजी अनुवाद छापा गया है और बताया गया है कि यह शपथ हिन्दी में ली गई थी। इसके नीचे एक तरफ प्रधानमंत्री की तस्वीर है जिसमें वे हाथ जोड़े, कुर्ता पैजामे में किसी आम गृहस्थ ही तरह (पर अकेले) पूजा करते हुए दिख रहे हैं। इसका कैप्शन है, प्रेस सूचना ब्यूरो द्वारा पीटीआई के जरिये भेजी गई तस्वीर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी हवन करते दिख रहे हैं जो प्रगति मैदान, नई दिल्ली के पुनर्विकसित इंटरनेशनल एक्जीबिशन कम कनवेंशन सेंटर में किया गया। अखबार ने इसके साथ तीन अलग तस्वीरें छापी हैं। 

पहली के बारे में बताया गया है कि वह मणिपुर में नंगी घुमाई गई महिलाओं में से एक का पति है जो बुधवार को चुराचांदपुर में एक कमरे में अकेले बैठा हुआ है। अखबार ने इसके बारे में बताया है कि वह कारगिल युद्ध का जांबाज है और बुधवार को उसके इस विजय की सालगिरह थी। वह भारतीय सेना में सूबेदार के पद पर काम करता था। दूसरी तस्वीर एक परिवार की है जो एक तस्वीर लिये बैठा है। अखबार ने बताया है कि यह एक छात्र हंगलालमुंआ वैफेई का परिवार है जो मई में मणिपुर में मारा गया था। यह तस्वीर भी बुधवार की चुराचांदपुर की है। तीसरी तस्वीर डेविड थिएक के परिवार की है जिसका सिर मणिपुर में दो जुलाई को कथित रूप से मैतेयी हमलावरों द्वारा धड़ से अलग कर दिया गया था। यह भी बुधवार की चुराचांदपुर की ही है। कुल मिलाकर, अखबार ने यह दिखाने की कोशिश की है कि देश के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखने तथा भारत की प्रभुता और अखंडता को अक्षुण्ण रखने के लिए ईश्वर की शपथ लेने के बावजूद प्रधानमंत्री दिल्ली में जब हवन कर रहे थे तो बुधवार को मणिपुर में लोग परेशानहाल थे, अकेले थे और इनमें कारगिल युद्ध का विजेता भी था जिसकी पत्नी को भीड़ ने नंगा घुमाया और उसके साथ छेड़छाड़ की थी। 

अखबार की आज की लीड भी दूसरे अखबारों से अलग, मणिपुर से संबंधित है और बताती है कि मणिपुर सरकार पर नेटबंदी के दौरान सूचनाएं छिपाने का आरोप है। शीर्षक है, सुप्रीम कोर्ट को पूरी जानकारी नहीं दी गई थी। इसके बावजूद प्रधानमंत्री संसद में इसपर बयान देने को तैयार नहीं है और इसलिए विपक्ष अगर अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया है तो अखबार बता रहे हैं (अमर उजाला) कि सरकार निश्चिंत है …. कोई खतरा नहीं है और प्रधानमंत्री ने पहले ही कहा था कि (विपक्ष को) 2023 में फिर अविश्वास प्रस्ताव लाने का मौका मिले।   

इन खबरों के बीच द हिन्दू और टाइम्स ऑफ इंडिया ने ईडी प्रमुख संजय मिश्रा को 15 अक्तूबर तक पद पर बने रहने देने की सरकार की अपील को सेकेंड लीड बनाया है जो सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से की है। आप जानते हैं कि 11 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि 31 जुलाई तक पद छोड़ दें और इस पद पर पांचवें साल में पहुंचे मिश्रा को लगातार तीन बाद सेवा विस्तार मिल चुका है और उनका लगातार तीसरी बार सेवा विस्तार के बाद इस पद पर बने रहना  अवैध है। इसके बावजूद सुप्रीम कोर्ट ने 11 जुलाई को ही सरकार को 31 जुलाई तक का समय दिया था। कहने की जरूरत नहीं है कि अब जो कारण बताया जा रहा है वह तब भी बताया गया होगा और बताना चाहिए था और इसके बावजूद 31 जुलाई तक ही पद पर रहना था तो ऐसी व्यवस्था की जानी चाहिए थी न कि अपील करके अदालत का समय खराब करना चाहिए। पर ऐसा हुआ है तो खबर है ही और महत्वपूर्ण है। लेकिन कई अखबारों ने इसे प्रमुखता नहीं दी है और छोटी सी खबर छापी है या पहले पन्ने पर छापा ही नहीं है। 

दिल्ली में जब सामान्य से ज्यादा बारिश हो रही है और ग्रेटर नोएडा के इकोटेक 3 एरिया में खुल में खड़ी 350 कारें जब पानी में डूब गईं तब आज इंडियन एक्सप्रेस में खबर है कि सरकार ने लोकसभा में एक विधेयक पास करवाया है जिससे वन भूमि का उपयोग रणनीतिक आवश्यकताओं के लिए किया जा सकता है और सीमा के पास इसके लिये हरियाली से संबंधित सहमति की आवश्यकता नहीं होगी। सरकार यह कानून बनाना चाहती है कि अंतरराष्ट्रीय सीमा पर रणनीतिक प्रकृति की सड़क, रेलवे लाइन या अन्य परियोजनाओं के लिए वन भूमि का उपयोग करने के लिए क्लीयरेंस की आवश्यकता नहीं होगी। मुझे अभी इस कानून की आवश्यकता या उपयोग समझ में नहीं आ रहा है और पता नहीं क्यों यह सरकार की प्राथमिकताओं में है। कल खबर थी कि सरकारी पुरस्कार प्राप्त करने वाले उसे वापस नहीं कर सकेंगे और इसके लिए उन्हें पहले ही अंडरटेकिंग देना होगा। इस कानून की आवश्यकता और इसे प्राथमिकता मिलना भी समझ से परे है पर ऐसी खबरें मिलती रहती हैं भले आम अखबारों में इन्हें जगह नहीं दी जाये। सरकार जब मणिपुर पर नहीं बोल रही है. मीडिया को इसकी जरूरत नहीं लग रही है तो इन कानूनों या विधेयकों की जरूरत पर कौन सवाल करेगा और करे भी तो कौन सा जवाब आना है।   

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं.

 


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