माखनलालः सीनियर पत्रकारों के बीच मची कुर्सी की जंग लील गयी 23 छात्रों का करियर

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पत्रकारों के बीच उच्च अकादमिक पद प्राप्त करने की विद्वेषपूर्ण प्रतिस्पर्धा का खमियाजा पत्रकारिता के दो दर्जन छात्रों को उठाना पड़ा है। कहानी माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भाेपाल की है जहां एडजंक्ट प्रोफेसर के पद पर हाल में नियुक्त इंडिया टुडे के पूर्व प्रबंध संपादक दिलीप मंडल और वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार के खिलाफ़ आंदोलनरत 23 छात्रों को अगली सूचना तक निष्कासित कर दिया गया है। 

माखनलाल युनिवर्सिटी के पत्रकारिता के छात्र पिछले कुछ दिनों से मंडल ओर मुकेश कुमार के खिलाफ मोर्चा खाेले हुए थे। उनकी शिकायत थी कि ये दोनों एडजंक्ट प्रोफेसर सोशल मीडिया पर उच्च जातियों के खिलाफ लिखते हैं जिससे उनकी भावना आहत होती है। इन छात्रों ने लिखित में कुलपति को प्रतिवेदन देकर मंडल को विश्वविद्यालय से हटाने की मांग की थी।

छात्र विशेष तौर पर दिलीप मंडल से नाराज़ थे, जिनके बारे में उनकी शिकायत थी कि वे छात्रों से उनकी जाति पूछ कर उसके हिसाब से बरताव करते हैं। छात्रों ने चेतावनी दी थी कि यदि उनकी मांगें नहीं मानी गयीं तो वे अभियान चलाएंगे। इस अभियान के बीच ही 13 दिसंबर की रात सैकड़ों की संख्या में पुलिस बल को परिसर में बुलाया गया। बल प्रयोग करके छात्रों को कुलपति कक्ष से बाहर किया गया।

छात्रों के मुताबिक कुछ के हाथ, पैर, नाक में चोटें आईं, एक छात्र बेहाश भी हुआ एवं उसे अस्पताल भी ले जाया गया। उसी रात 8:30 बजे के लगभग 20 छात्रों को पुलिस द्वारा गिरफ्तार करके अज्ञात स्थान पर ले जाया गया।

अगले ही दिन 14 दिसंबर को विश्वविद्यालय की अनुशासन समिति की बैठक में 23 छात्रों को निष्कासित करने की अनुशंसा की गयी और 17 दिसंबर को इस संबंध में एक आदेश जारी कर दिया गया।

निष्कासन से पहले तक दिलीप मंडल छात्रों को शास्त्रार्थ के लिए आँनलाइन आमंत्रित करते रहे, लेकिन 17 दिसंबर को उन्होंने एक लंबी पोस्ट छात्रों के नाम लिखकर उद्घाटन किया कि दरअसल ये छात्र उनके और जगदीश उपासने के बीच चल रही कुलपति बनने की प्रतिस्पर्धा का शिकार हुए हैं। मंडल ने लिखाः

“मैं जिस षड्यंत्र की ओर आपका इशारा कर रहा था, उसकी जड़ें भोपाल में नहीं, छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में हैं. रायपुर के कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय में कुलपति यानी वाइस चांसलर का पद इन दिनों खाली है. उसके लिए आवेदन मंगाए गए हैं. आवेदनों के आधार पर सर्च कमेटी ने कुछ नाम चुने हैं. मेरे खिलाफ खुलकर अभियान चला रहे जगदीश उपासने, जो आपके विश्वविद्यालय के कुलपति रह चुके हैं, का नाम उस चुने हुए लोगों की लिस्ट में है. अखबारों में छपा है कि मेरा नाम भी सलेक्टेड लोगों की लिस्ट में है. कई लोग कह रहे हैं कि मेरा नाम लिस्ट में सबसे ऊपर है. उनमें से ही कोई वहां कुलपति बनेगा. यही है भोपाल में चल रहे विवाद का मूल कारण, जिसमें आप बिना किसी गलती के फंस गए हैं. आपको इस आग में तब झोंका गया है, जब आपकी परीक्षाएं करीब हैं”.

https://www.facebook.com/dilipc.mandal/posts/2667168506710457

जिस साजिश की बात मंडल कर रहे हैं, उस पर 14 दिसंबर को ही मुकेश कुमार ने इशारा करते हुए एक पोस्ट लिखी थी। दिलचस्प है कि छात्रों का अभियान दोनों के खिलाफ बराबर था लेकिन इस मामले में मुकेश कुमार को अपने आप ही रियायत मिल गयी। इक एक वजह यह भी रही कि मुकेश कुमार खुद किसी कुलपति की दौड़ में नहीं हैं, न ही उनके इतने अनुयायी हैं जितने मंडल के हैं।

दिलचस्प है कि एक ओर जब नागरिकता कानून में संशाेधन को लेकर विरोधरत जामिया, जेएनयू, अलीगढ़, नदवा, असम, हैदराबाद आदि के शिक्षण संस्थानों में छात्रों पर दमन हो रहा था और इसका चौतरफा विरोध हो रहा था वहीं माखनलाल में छात्रों पर हुए पुलिसिया हमले के विरोध में आवाजें नहीं उठीं। कुछेक पत्रकार जो माखनलाल के पूर्व छात्र रहे हैं, केवल उनकी ओर से ही छात्रों को समर्थन मिलता दिखा।

छात्रों को निकाले जाने के मसले पर कुछ और पत्रकार व शिक्षक भी इत्तेफ़ाक नहीं रखते, मसलन डीयू में पत्रकारिता पढ़ाने वाले विनीत कुमार ने लिखा है कि “ऐसे भव्य शैक्षणिक इमारतों की नींव में “माफी” मौजूद होती है. शिक्षक का मन और छात्र का दिमाग एक दिशा में काम कर जाय तो छात्र जीवन और पढ़ाई सबसे खूबसूरत प्रसंग बन जाते हैं. इन छात्रों के साथ ऐसी एक कोशिश होनी चाहिए”.

वैसे, जगदीश उपासने और दिलीप मंडल के अलावा कुछ और नाम हैं जो कुशाभाउ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय, रायपुर के कुलपति पद के लिए सुने जा रहे हैं। भाजपा सांसद राकेश सिन्हा का नाम भी इनमें एक है।

मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस की सरकारें आने के बाद से ही पत्रकारिता संस्थानों के खाली पदों पर दिल्ली के उन पत्रकारों की निगाह लगी है जो भाजपा और संघ विरोधी हैं। जाहिर है, प्रदेश सरकारों के पास भी अच्छे नामों की कमी है, खासकर उनकी जो भाजपा या संघ की राजनीति के विरोधी हों। इस दिशा में पिछले दिनों कुछ गोलबंदियां बहुत साफ़ देखी गयीं जब मुख्यमंत्री बनने के बाद भूपेश बघेल का दिल्ली में एक अभिनंदन समारोह एक समुदाय की ओर से रखा गया जिसमें दिलीप मंडल प्रमुख भूमिका में थे। अटकलें तब से ही लगायी जा रही थीं।

कुलपति जो बने, लेकिन छात्र आंदोलनों और उनके प्रति देशव्यापी समर्थन के माहौल में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के निष्कासित छात्र खुद को बिलकुल अकेला पा रहे हैं। कुछ वरिष्ठ पत्रकार बेशक छात्रों को निकाले जाने से निराश हैं लेकिन इस माहौल में वे भी अल्पमत में हैं।


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