भारतीय मस्लिम, ईसाई, सिख ‘दंडमुक्ति की संस्कृति’ से पीड़ित: अमेरिकी सांसद

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यू.एस. कांग्रेस में द्विदलीय टॉम लैंटोस मानवाधिकार आयोग के सहअध्यक्ष क्रिस स्मिथ ने भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों की स्थिति को पीड़ाजनक बताते हुए नाराज़गी और चिंता जतायी है। उन्होंने कहा कि पीएम मोदी के राज में भारत के धार्मिक अल्पसंख्यकों की पीड़ा को देखकर उन्हेंबहुत क्रोधआता है। उन्होंने भारत कोउसके घृणा आधारित व्यवहार के लिए अत्यधिक विशेष चिंता का देशकहा।

स्मिथ ने कहा, “मोदी हमारी चिंताओं को जानते हैं पर कहते हैं कि उन्हें कोई परवाह नहीं है।उन्होंने कहा, ‘मैं बहुत निराश और बहुत क्रोधित हूं क्योंकि लोग पीड़ित हैंमुस्लिम, ईसाई, पंजाब में सिखदोषियों को दंडित न किये जाने (दंडमुक्ति) की इस अविश्वसनीय रूप से चिंताजनक संस्कृति के कारण बहुत से लोग पीड़ित हैं।

स्मिथ टॉम लैंटोस आयोग की सुनवाई में बोल रहे थे जिसका शीर्षक थाभारत: हालिया मानवाधिकार रिपोर्टिंग।उनकी चिंता को आयोग के सहअध्यक्ष, कांग्रेस सदस्य जिम मैकगवर्न ने साझा किया। उन्होंने भारत के बिगड़ते मानवाधिकार रिकॉर्ड पर अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्टिंग का हवाला दिया।

मैकगवर्न ने कहा, “मानवाधिकार पर्यवेक्षकों की सर्वाधिक चिंता वाली कई समस्याएं मौजूदा प्रधान मंत्री मोदी द्वारा भारत के धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र को हिंदू प्रथम राष्ट्र में नया रूप देने के प्रयास से जुड़ी हुई हैं।

इस सुनवाई को कई मानवाधिकार विशेषज्ञों ने संबोधित किया जिसमें अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर संयुक्त राज्य आयोग (यूएससीआईआरएफ) के आयुक्त स्टीफन श्नेक भी शामिल थे, जिन्होंने भारत को विशेष चिंता वाले देश (सीपीसी) के रूप में नामित करने के लिए यूएससीआईआरएफ द्वारा बारबार सिफ़ारिश करने पर चर्चा की। इस सूची में उन देशों को रखा जाता है जहाँ धार्मिक स्वतंत्रता को सबसे ज़्यादा कुचला जाता है।

स्केनहेक ने कहा, “अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता (आईआरएफए) अधिनियम 1998 के तहत हमारे राज्य विभाग को धार्मिक स्वतंत्रता के विशेष रूप से गंभीर उल्लंघन में शामिल किसी भी देश को विशेष चिंता वाले देश या सीपीसी के रूप में नामित करने की आवश्यकता है। न केवल यूएससीआईआरएफ के विश्लेषण और सार्वजनिक रिपोर्टिंग के आधार पर, बल्कि विदेश विभाग की अपनी वार्षिक अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट के आधार पर भी भारत स्पष्ट रूप से आईआरएफए के तहत इन सीपीसी मानकों को पूरा करता है।

श्नेक ने कहा कि यह उन्हेंआश्चर्यचकितकरता है कि अमेरिकी विदेश विभाग ने अल्पसंख्यक विरोधी हिंसा और भेदभाव बढ़ने के बावजूद भारत को सीपीसी के रूप में नामित करने से बारबार इनकार किया है। उन्होंने कहा, “सीपीसी में डाले बिना, ऐसा लगता है जैसे हम भारत को खुली छूट दे रहे हैं।

एमनेस्टी इंटरनेशनल में एशिया एडवोकेसी निदेशक कैरोलिन नैश ने धार्मिक और जातीय हिंसा को भड़काने के इरादे से भाजपा नेताओं और समर्थकों द्वारा की जा रही बयानबाजी पर प्रकाश डालते हुए तत्काल हस्तक्षेप को ज़रूरी बताया।उन्होंने कहा कि अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा करने वाली भीड़ को सरकार द्वारा संरक्षण; सरकारी आलोचकों की गिरफ्तारी, नजरबंदी और धमकी; गैरकानूनी निगरानी के लिए आक्रामक स्पाइवेयर का उपयोग और निर्यात; और इन दुरुपयोगों को उचित ठहराने के लिए सरकार द्वारा कानून में बदलाव करके उन्हें हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है।

नैश ने विशेष रूप से भेदभावपूर्ण नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू करने की भारत की हालिया घोषणा पर प्रकाश डाला जो मुसलमानों की नागरिकता से जुड़े अधिकारों को निशाना बनाने वाला क़ानून है। उन्होंने कांग्रेस से ऐसे भेदभावपूर्ण उपायों के खिलाफ कार्रवाई करने का आग्रह किया।

उन्होंने कहा, “सीएए का हालिया कार्यान्वयन और इसकी भेदभावपूर्ण नागरिकता प्रक्रिया लाखों लोगों के लिए नागरिकता से वंचित होने का मंच तैयार कर सकती हैउन्होंने कहा, “जैसा कि भारत चुनावों की तैयारी कर रहा है, हम अमेरिकी सरकार, दोनों कांग्रेस के सदस्यों और प्रशासन के अधिकारियों से आग्रह करते हैं कि वे भारत सरकार को बतायें कि अमेरिका घृणित बयानबाजी, नागरिक समाज के कानूनी उत्पीड़न और धार्मिक और जातीय समूहों को निशाना बनाने की निंदा करेगा।

“2021 में, फ्रीडम हाउस ने भारत की रेटिंग को ‘’मुक्तसेआंशिक रूप से मुक्तश्रेणी में डाल दिया था। फ्रीडम हाउस में रिसर्च उपाध्यक्ष एड्रियन शबाज़ ने कहा, ”यह लोकतांत्रिक गिरावट अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कार्रवाई और नागरिक अधिकारों पर प्रतिबंधों से प्रेरित है।उन्होंने कहा, “इनमें से कई नकारात्मक रुझान प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा लागू की गई नीतियों का परिणाम हैंयूएस कांग्रेस को भारत सरकार से ऑनलाइन मानवाधिकारों का सम्मान करने का आग्रह करना चाहिए, विशेष रूप से सोशल मीडिया प्लेटफार्मों पर कनेक्टिविटी प्रतिबंध या ब्लॉक लगाने से बचना चाहिए और अभिव्यक्ति को सेंसर करने से बचना चाहिए।

ह्यूमन राइट्स वॉच के एशिया एडवोकेसी निदेशक जॉन सिफ्टन ने कहा, “कांग्रेस को इन चिंताओं के बारे में राष्ट्रपति बिडेन से सीधे प्रधान मंत्री मोदी से बात करने के लिए और अधिक मजबूती से आग्रह करने की जरूरत है।उन्होंने कहा, “राष्ट्रपति बिडेन का मोदी को गले लगाना और इस स्थिति के लिए सरकार की आलोचना करने की अनिच्छा से भारत यह समझेगा कि बिगड़ते आचरण का कोई परिणाम नहीं होगा।

अमेरिकन बार एसोसिएशन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स के कानूनी सलाहकार वारिस हुसैन ने कहाभारत ने अपने आतंकवाद विरोधी कानूनों का दायरा इस तरह से बढ़ाया है, जिसके परिणामस्वरूप गैरलाभकारी संगठनों के साथसाथ मानवाधिकार संगठनों पर भी व्यापक रूप से प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। उन्हें अपनी नागरिक स्वतंत्रता का प्रयोग करने और सरकार की आलोचना करने के लिए अभियोजन का निशाना बनाया गया है।उन्होंने कहा, “भारत के साथ अपने लंबे समय से चल रहे सुरक्षा संबंधों को बनाए रखने के लिए, अमेरिकी नीति निर्माताओं को इन मुद्दों को अपने भारतीय समकक्षों के साथ उठाना चाहिए।

ग्लोबल क्रिश्चियन रिलीफ में एडवोकेसी के वरिष्ठ निदेशक इसहाक सिक्स ने कहा, “प्यू रिसर्च सेंटर ने धर्म के आधार पर सामाजिक शत्रुता के मामले में भारत को सभी देशों में शीर्ष सात में स्थान दिया है। कांग्रेस और बिडेन प्रशासन को गंभीर धार्मिक स्वतंत्रता और अन्य मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए जिम्मेदार भारतीय सरकारी एजेंसियों और अधिकारियों की पहचान करनी चाहिए और उन संस्थाओं के खिलाफ लक्षित प्रतिबंध लागू करना चाहिए।

आयोग की सुनवाई पर प्रतिक्रिया देते हुए, IAMC अध्यक्ष मोहम्मद जवाद ने कहा, “हम मोदी सरकार के तहत भारत में खतरनाक मानवाधिकार स्थिति पर प्रकाश डालने के लिए टॉम लैंटोस आयोग की सराहना करते हैं। संयुक्त राज्य कांग्रेस और बिडेन प्रशासन के लिए यह जरूरी है कि वे कड़ा रुख अपनायें और धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति अपने घृणा आधारित व्यवहार के लिए मोदी सरकार को जवाबदेह ठहरायें। हम इन उल्लंघनों को संबोधित करने और देश और विदेश दोनों में लोकतंत्र और धार्मिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों को बनाए रखने के लिए त्वरित और निर्णायक कार्रवाई का आग्रह करते हैं।