ख़बरों के चयन में अराजकता, मनमानी और डर का उदाहरण

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


अधिकारियों को ख़बरों पर नजर रखने का सरकारी आदेश भी हिन्दी में पहले पन्ने पर नहीं है

दिल्ली दंगे के अभियुक्तों, अकील अहमद, रहीश खान और इरशाद को बरी कर दिये जाने तथा दिल्ली की एक अदालत द्वारा दिल्ली पुलिस की खिंचाई किये जाने की खबर आज हिन्दुस्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया, दोनों में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर है। इस समय देश में जो हालात हैं और सांप्रदायिक दंगों पर जो दावे किये जाते हैं तथा जो रवैया है उसके मद्देनजर मेरी राय में दिल्ली के अखबारों में यह खबर पहले पन्ने पर होनी चाहिए। केंद्र की भाजपा सरकार को नीचा दिखाने के लिए नहीं, भूतपूर्व और भावी दंगाइयों को यह बताने के लिए कि करता कोई है, भरना किसी और को पड़ता है तथा राजनीति ऐसा करती है तो इसके शिकार वे भी हो सकते हैं। नकली अभियुक्त छूट गये तो अब असली पकड़े जा सकते हैं।

सरकार अगर ऐसी ही है तो भी इसे हाईलाइट किया जाना चाहिये पर सरकार की भक्ति करनी हो और जमीर ऐसा करने की इजाजत दे तो संपादक जनता को मरने और राजनीतिज्ञों को हिंसक व सांप्रदायिक राजनीति करने में सहयोग करते रह सकते हैं। यह उनका विवेक है, आजादी भी। मैं लोगों को बताता रहूंगा जो अलग मामला है। आप जानते हैं कि दिल्ली पुलिस सीधे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह के नेतृत्व में काम करती है तथा सीएए / एनआरसी के समर्थकों और विरोधियों के बीच झगड़े के बाद दिल्ली में दंगा हो गया था। इसमें 53 लोग मारे गये थे, 700 के करीब लोग घायल हुए थे। फरवरी 2020 में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के इन्हीं दंगों से संबंधित एक मामले की जांच किए बिना सबूतों में हेरफेर करने के लिए दिल्ली की एक स्थानीय अदालत ने दिल्ली पुलिस की आलोचना की है और तीन आरोपियों को बरी कर दिया।

अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश ने कहा, “कथित घटनाओं में शामिल होने के लिए आरोपी व्यक्तियों के खिलाफ गंभीर संदेह होने के बजाय…मुझे आईओ (जांच अधिकारी) पर संदेह है कि उसने रिपोर्ट की गई घटनाओं की ठीक से जांच किए बिना इस मामले के सबूतों में हेरफेर किया है।” आज ही इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर एक खबर है जो बताती है कि हरियाणा के नूंह में ‘बुलडोजर न्याय’ चुन कर नहीं किया गया था और हाल के इस ध्वस्तीकरण अभियान के कुल 354 पीड़ितों में 283 मुस्लिम हैं और 71 हिन्दू। इसके साथ यह याद दिला दूं कि मंगलवार, 25 अप्रैल 2023 को कर्नाटक चुनाव प्रचार के दौरान केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था, ‘गलती से भी कांग्रेस आई तो पूरा कर्नाटक दंगे से ग्रस्त हो जाएगा’।

यही नहीं, उन्होंने यह भी कहा था, एक तरफ डबल इंजन की सरकार बीजेपी की है तो दूसरी तरफ रिवर्स गियर सरकार है। उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस आ गई तो सबसे बड़ा भ्रष्टाचार, तुष्टिकरण, परिवारवाद होगा और कर्नाटक राज्य दंगे से ग्रस्त हो जाएगा। कर्नाटक में 20 मई को कांग्रेस सरकार ने शपथ ली थी। आज द हिन्दू में खबर है, कर्नाटक ने भाजपा राज में 40 प्रतिशत कमीशन के आरोप की जांच के लिए एक पैनल बनाया है। यह खबर किसी और अखबार में पहले पन्ने पर तीन कॉलम में नहीं दिखी। अजीत पवार के भाजपा सरकार में शामिल होने और शरद पवार को लेकर परेशानी और अटकलों की खबर अब पुरानी हो चुकी है। इसी तरह, मणिपुर के नगा प्रभुत्व वाले जिले में तीन लोग मारे गये यह दूसरे अखबारों में इतनी प्रमुखता से नहीं है। नवोदय टाइम्स ने इसे लीड बनाया है पर इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर सिंगल कॉलम में है।
इंडियन एक्सप्रेस की लीड विकास पर मूडी का तेज रुख है। हालांकि, मणिपुर हिंसा को रेखांकित किये जाने की खबर भी है और कहा गया है कि इसका योगदान डाउनग्रेड में हो सकता है। द टेलीग्राफ ने इंडियन एक्सप्रेस की इसी खबर को लीड छापा है लेकिन विकास और तेजी की बात को छोड़कर बताया है कि मणिपुर पर सरकार को क्रेडिट रेटिंग अलर्ट मिला है। उपशीर्षक है, मूडीज ने विरोध पर एतराज को रेखांकित किया है। इस तरह साफ है कि एक ही खबर ने इंडियन एक्सप्रेस ने सरकार की सकारात्मक छवि बताई अलर्ट का भी उल्लेख किया। लेकिन विकास के सरकारी प्रचार के बीच वास्तविक विकास भी खबर नहीं है। खबरों की परिभाषा के अनुसार विरोध पर प्रतिबंध को रेखांकित किया जाना बड़ी खबर है।

इंडियन एक्सप्रेस की यह लीड, टाइम्स ऑफ इंडिया में सिंगल कॉलम में है, अधपन्ने पर। टाइम्स ऑफ इंडिया और हिन्दुस्तान टाइम्स ने मणिपुर की हिंसा को लीड बनाया है जबकि द हिन्दू में बिहार में चल रहे जातिवार आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का स्टे नहीं लगने की खबर लीड है। इंडियन एक्सप्रेस में कल खबर थी, आज उसका दूसरा भाग है, कश्मीर में नशा बढ़ रहा है। आतंकवाद से बड़ी समस्या है।
दूसरी ओर, आज नवोदय टाइम्स में (अंदर के पन्ने पर) खबर है आम आदमी पार्टी की सरकार ने पंजाब में नशा तस्करों की कमर तोड़ दी। और भी खबरें देखिये, सरकार के काम का अंदाज लगाइये उसकी प्राथमिकताएं समझिये और डबल इंजन सरकार की उपयोगिता देखिये। याद कीजिये कि फिल्म अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती और शाहरुख खान के बेटे के पास कितना नशा मिला था कि कई दिनों तक टीवी पर हंगामा चलता रहा। हिन्दुस्तान टाइम्स में आज अधपन्ने की लीड है, ट्रेन में चार लोगों को गोली मारने वाले आरपीएफ के जवान की हिंसा के शिकार ट्रेन में चार लोगों को गोली मारने वाले आरपीएफ के जवान चेतन सिंह चौधरी के सताये उज्जैन के वाहिद खान की कहानी है। इससे पता चलता है आरपीएफ एक धर्मान्ध अपराधी को पाल-पोष रहा था। उसने सरकारी हथियार से ड्यूटी पर चार जनों को मार दिया।

मरने वालो में दोनों धर्म के लोग हैं। मारने वाला अगर मंत्री न बना दिया जाए तो उसका भी जीवन बर्बाद ही है। यही होता है धार्मिक कट्टरता का परिणाम। कल पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का एक पुराना भाषण सुन रहा था। उन्होंने 2002 में गुजरात दंगे पर संसद में कहा था कि बंटवारे के समय जो मुस्लिम आये थे उन्हें उस समय अरब सागर में नहीं डाला जा सका तो अब उनकी संख्या बहुत ज्यादा है। ऐसा नहीं कर सकते हैं। लेकिन लोगों को उम्मीद है, और 40 में 40 सीटें देने पर उल्टा लटकाने का दावा करके उम्मीद दिलाई जा रही है। जबकि सच यह है कि न सिर्फ दंगाई और बलात्कारी बरी हो रहे हैं बल्कि झूठे फंसाये गए लोग भी बच रहे हैं। ऐसे में जाहिर है, अपराधी बच जा रहे होंगे और दूसरी तरफ बलात्कारी को बचा लिया गया है। उसका मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है पता नहीं आपके अखबार कितना और क्या बता रहे हैं।

इन खबरों के बीच अमर उजाला में आज पहले पन्ने पर कम से कम दो खबरें चर्चा करने लायक है। पहली का शीर्षक है, 26/11 का आरोपी तहव्वुर जल्द लाया जाएगा भारत। प्रत्यर्पण के खिलाफ याचिका अमेरिकी अदालत से खारिज। कहने की जरूरत नहीं है कि नीरव मोदी, मेहुल चोकसी और विजय माल्या जैसे भगोड़ों के भी जल्दी आने की खबरें छपती रहती हैं, कुछ को लाया भी गया है। मेहुल चोकसी के लिए तो जेट भी भेजा गया था पर उसे लाया नहीं जा सका। ऐसे में मुझे दूसरी खबरें छोड़कर इन्हें पहले पन्ने पर छापने का मकसद यही समझ में आता है कि यह सरकार का प्रचार है और दिखाना है कि सरकार काम कर रही है।

अब तीन अखबारों के बॉटम स्पेड का शीर्षक बताता हूं आप तय कीजिये कि कौन सी खबर किस कारण से इतनी प्रमुखता पाई होगी या वाकई इस योग्य है। और अगर है तो दूसरे अखबारों में (पहले पन्ने पर) क्यों नहीं है। कहने की जरूरत नहीं है कि अमर उजला उत्तर प्रदेश का अखबार है। यहां बॉटम स्प्रेड का शीर्षक है, पूर्व सांसद प्रभुनाथ (सिंह) दोहरे (मतलब डबल) हत्याकांड में दोषी करार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा – पुलिस, अभियोजक व न्यायपालिक कर्तव्य निभाने में नाकाम। खबर के अनुसार प्रभुनाथ जदयू से तीन बार और राजद से एक बार सांसद रहे हैं। हत्या के एक अन्य मामले में उम्र कैद की सजा काट रहे हैं। मुझे लगता है बिहार के ऐसे पूर्व सांसद से ज्यादा महत्वपूर्ण होगा उत्तर प्रदेश के मौजूदा और भाजपा सांसदों का मामला – पर यह संपादकीय विवेक का मामला है।

नवोदय टाइम्स का आज का बॉटम स्प्रेड है, मूसेवाला के शूटरों ने अयोध्या में ली थी ट्रेनिंग। मूसेवाला पंजाब का था इसलिए नवोदय टाइम्स में बॉटम होना तो समझ में आता है लेकिन अयोध्य में शूटरों को ट्रेनिंग दी जाती है यह अमर उजाला के लिए भी महत्वपूर्ण होना चाहिए और जनवरी में जब मंदिर का उद्घाटन होना है तो यह पूर्व सांसद को सजा होने से ज्यादा महत्वपूर्ण मामला है लेकिन पसंद अपनी-अपनी। तीसरी खबर अंग्रेजी में हिन्दुस्तान टाइम्स में बॉटम छपी है। इसका शीर्षक है, उत्तर प्रदेश में अधिकारियों से कहा गया है कि सरकार विरोधी उन खबरों पर नजर रखें जो बिना पुष्टि के तोड़–मरोड़ कर गलत तथ्यों पर नकारात्मक रिपोर्टिंग की जा रही हों। दिल्ली में हिन्दुस्तान टाइम्स ने जब इसे पहले पन्ने पर छापा है, आदेश हिन्दी में है तो हिन्दी अखबारों, खासकर उत्तर प्रदेश में पहले पन्ने पर होनी चाहिये थी। पर नहीं है तो कुछ किया नहीं जा सकता है। अभी संपादक स्वतंत्र हैं। इमरजेंसी में जगह खाली छोड़ देते थे।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं!

 

 


Related