‘विश्व धर्म संसद’ में भारत के अल्पसंख्यकों पर ज़ुल्म की चर्चा: जर्मनी की राह पर भारत!



 

चेतन कुमार

अमेरिका के शिकागो शहर में 14-18 अगस्त के बीच आयोजित ‘विश्व धर्म संसद’ में भारत में बढ़ती सांप्रदायिक नफ़रत, ख़ासतौर पर दक्षिणपंथी हिंदू संगठनों की ओर से अल्पसंख्यकों पर बढ़ते हमलों पर गहरी चिंता जतायी गयी। इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC) की पहल पर संसद के दौरान आयोजित एक पैनल चर्चा में राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों ने भारत में धार्मिक अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा में हुई बढ़ोतरी पर विस्तार से चर्चा की।

इस पैनल चर्चा में शामिल वक्ताओं ने कहा कि भारतीय संविधान धार्मिक, जातीय और भाषाई बहुलतावाद को राष्ट्र की पहचान के महत्वपूर्ण पहलुओं के रूप में पहचानता है लेकिन नाजियों और फासीवादियों से प्रेरित ‘हिंदू राष्ट्रवाद’ भारत को मुख्य रूप से हिंदू बनाने का आह्वान करता है और अन्य धर्मों के अनुयायियों को दोयम दर्जा देता है। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने और उनकी धुर दक्षिणपंथी पार्टी बीजेपी के सत्ता मे आने के बाद से धार्मिक अल्पसंख्यकों के ख़िलाफ़ हिंसा और मानवाधिकार उल्लंघन के मामलो में तेज इज़ाफ़ा देखा गया है। गौरक्षा के नाम पर हत्या और धर्मस्थलों पर हमले की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है। मोदी खुद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य रहे हैं जो एक अर्धसैनिक स्वरूप वाला हिंदू वर्चस्ववादी संगठन है और नाज़ियों से प्रेरणा लेता रहा है।

इस मौक़े पर आईएएमसी के कार्यकारी निदेशक रशीद अहमद ने इसे भारत के लिए बड़ा मुद्दा बताया। उन्होंने कहा, “भारत उसी रास्ते पर जा रहा है जिस रास्ते पर कभी जर्मनी गया था और हम सब जानते हैं कि जर्मनी कहाँ ख़त्म हुआ। आरएसएस की विचारधारा वही है। भारत अब उसी रास्ते पर है।” हालात की गंभीरता का बयान करते हुए रशीद अहमद ने कहा कि “मोदी के राज में कोई अल्पसंख्यक, ख़ासतौर पर मुसलमान अगर ट्रेन से एक स्थान से दूसरे स्थान जा रहा है तो कहना मुश्किल है कि गंतव्य तक वह पहुँचेगा या उसकी लाश!”

शिकागो के चिकित्सक और स्वतंत्र लेखक जावेद अख्तर ने कहा, “हिंदुत्व विचारधारा हिंदू धर्म को राष्ट्रवाद के साथ जोड़ती है और धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ असहिष्णुता को बढ़ावा देती है।” “भारत में, लिंचिंग एक सार्वजनिक तमाशा बन गया है। कानून एक निष्क्रिय पर्यवेक्षक है, कभी-कभी एक सक्रिय भागीदार है।”

वहीं आईएएमसी के एडवोकेसी निदेशक अजीत साही ने इसे भारत के संवैधानिकक लोकतंत्र के लिए बुरी ख़बर बताते हुए कहा, “भारत में, यह सिर्फ एक या दो या तीन नेताओं का कोई छोटा-मोटा आंदोलन नहीं है। यह लाखों डॉलर खर्च के साथ संगठित किया गया 100 साल पुराना आंदोलन है।” उन्होंने कहा कि भारत हिंदू कट्टरवाद की बुरी तरह चपेट में है इसलिए हम रोज़ाना इतनी हिंसा देख रहे हैं। मुसलमानों पर ज़ुल्म करने वालों को सरकार का संरक्षण हासिल है। न्यायपालिका, प्रशासन और विधायिका सभी इसमें शामिल हैं।

इन दिनों भारत के कई हिस्से हिंसा की चपेट मे है और आरोप है कि इसके पीछे सत्ताधारी बीजेपी है। पूर्वोत्तर में मणिपुर में 150 से ज़्यादा लोग मारे जा चुके हैं और 50 हज़ार से ज़्यादा लोग विस्थापित हैं। वहीं हरियाणा में धार्मिक जुलूस की आड़ में मुसलमानों पर हमले की घटना सरगर्म है। मणिपुर में  हिंसा का खामियाजा मुख्य रूप से ईसाई कुकी-ज़ो आदिवासी समुदाय को भुगतना पड़ा है। कुकी स्वामित्व वाले हजारों घरों और सैकड़ों चर्चों को नष्ट कर दिया गया और उनके ख़िलाफ़ अत्यधिक क्रूरता बरती गयी। “मेरे परिवार ने सब कुछ खो दिया है, हर एक चीज़, उनकी सभी यादें चली गईं। वे शून्य से शुरुआत करने जा रहे हैं। वे बमुश्किल अपनी जान बचाकर भागे,” नॉर्थ अमेरिकन मणिपुर ट्राइबल एसोसिएशन (एनएएमटीए) के सह-संस्थापक फ्लोरेंस लोव ने कहा। “मुझे नहीं लगता कि हमें खड़े होकर ऐसा कुछ होते हुए देखना चाहिए,” उन्होंने कहा।

वैसे भारत में ऐसी हिंसा का इतिहास पुराना है। 2002 में गुजरात में 2,000 से अधिक मुसलमानों का नरसंहार हुआ था। तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। जेसुइट पादरी और प्रतिष्ठित मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर सेड्रिक प्रकाश ने कहा, “27 फरवरी, 2002 को भारत के गुजरात में जो हुआ, वह भारतीय इतिहास में शायद सबसे काले दिन, सप्ताह और महीने के रूप में दर्ज किया जाएगा।” उन्होंने अपने करीबी दोस्त के बारे में एक कहानी सुनाई, जो नरसंहार में मारा गया था। “मैं प्रतिशोध में विश्वास नहीं करता; मैं नफरत में विश्वास नहीं करता। यीशु ने मुझे सिखाया: अगर मुझे शांति चाहिए, तो मुझे न्याय के लिए लगातार प्रयास करना चाहिए,” उन्होंने कहा।

फादर प्रकाश ने कहा कि आज भी अहमदाबाद के हालात निराशाजनक हैं जहाँ लोग विरोध के लिए इकट्ठा भी नहीं हो सकते। उन्होंने कहा, “हमारे यहां भेदभाव, दानवीकरण, अपमान है– विशेष रूप से मुसलमानों के साथ, लेकिन ईसाई और दूसरे अल्पसंख्यक समूह भी निशाने पर हैं।

चर्चा में शामिल एशियाई अमेरिकी गठबंधन के कार्यकारी सचिव राजिंदर सिंह मागो ने कहा, “हिन्दू धर्म महान है। लेकिन हिंदू राष्ट्रवाद- ‘हिंदू राष्ट्र’, जहां मुस्लिम और अन्य अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं हैं- दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में भारत की स्थिति और इसके बहुलतावाद पर एक काला धब्बा है।” उन्होंने कहा “अपने सर्वोत्तम काल के दौरान भारतीय सभ्यता की प्रतिभा समावेशी रही है, न कि बहिष्कार की।”

चर्चा में प्रेस की स्वतंत्रता में आयी तेज गिरावट, पत्रकारों की गिरफ्तारी, कार्रवाई, बार-बार उत्पीड़न और मौत की धमकियों पर भी चिंता जतायी गयी। कश्मीर में यह ख़ासतौर पर हो रहा है। “फिलहाल, मेरे पांच सहयोगी आतंक और राजद्रोह के आरोप में जेल में बंद हैं। जम्मू-कश्मीर राज्य पत्रकारिता के लिए ब्लैक होल बन गया है। मानवाधिकारों पर कहानियां कवर करने के लिए पत्रकारों को नियमित रूप से निशाना बनाया जाता है,” कश्मीर के पत्रकार रकीब हमीद नाइक ने कहा, जो 2020 से देश से बाहर हैं। उन्होंने कहा, ”प्रेस संस्था आज प्रभावी रूप से ध्वस्त हो गई है।”

 

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

 

 


Related