लेह के बाद करगिल के दिल पर भी राहुल गाँधी की दस्तक, पर ख़बर गोल!

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


राहुल गांधी से सवाल : क्या आप स्थिति बदल सकते है?

मीडिया ने अनुच्छेद 370 हटाने के बाद कश्मीर के हालात नहीं बताये, राहुल गांधी दौरे पर हैं, उनकी खबरें भी नहीं दीं। सरकार के काम और विपक्ष के प्रचार की खबरें नहीं देकर मीडिया देश का भारी नुकसान कर रहा है। 

देश का मीडिया नहीं बता रहा है, लेकिन राहुल गांधी कश्मीर में हैं। लेह के बाद कारगिल में। द टेलीग्राफ की आज की लीड खबर है, “एकराहुल गांधी से सवाल : क्या आप स्थिति बदल सकते है? मुस्लिम युवक ने राहुल गांधी से पूछा, क्या आप स्थिति बदल सकते हैं?” मुजफ्फर रैना की बाईलाइन से श्रीनगर डेटलाइन की यह खबर इस प्रकार है, “1999 में, कारगिल युद्ध का मैदान बन गया था जहां भारत की परीक्षा हुई। इससे एकजुटता की एक लहर पैदा हुई थी जो इसके बाद के विजय का प्रतीक बना।

लगभग एक चौथाई सदी के बाद, कारगिल ने एक और परीक्षा रखी है: देश में मुसलमानों के समक्ष जो स्थिति है उसे बदलने के लिए आप क्या कर सकते हैं? यह सवाल कांग्रेस नेता राहुल गांधी से पूछा गया जो लद्दाख के मुस्लिम बहुल वाले कारगिल में गये थे। इससे पहले वे पास के बौद्धों के प्रभुत्व वाले लद्दाख में और छह दिन का दौरा समाप्त कर वहां पहुंचे थे। वहां एक युवक ने राहुल से अंग्रेजी में पूछा: “…हमारा मुस्लिम होना एक ऐसी पहचान है जो हमें बहुत प्रिय है। हमें कारगिल का (कारगिली) होने पर बहुत गर्व है, हमें मुस्लिम होने पर भी बहुत गर्व है। बराबर गर्व है। हम अपनी पहचान को बहुत मजबूती से रखते हैं। यह हमें अत्यंत प्रिय है। हमने देश में युवाओं को छोटे-छोटे अपराधों के लिए, भाषणों के लिए जेल जाते देखा है, हम जानना चाहते हैं कि जब आप सत्ता में आएंगे तो उस परिदृश्य को बदलने के लिए क्या करेंगे जिसका सामना भारतीय मुसलमान अभी कर रहे हैं? 

इस पर तेज जयकारे गूंजने लगे। युवाओं ने आगे कहा, हमें अपने दिल की बात कहने के लिए इस तरह का मौका नहीं मिलता है। यह उन जगहों में से एक है जहां हम बिना शर्माए, बिना किसी झिझक के अपनी बात कह सकते हैं। हम अपनी समस्याओं के बारे में बात करने से डरते हैं। हम नहीं चाहते हैं कि सरकारों द्वारा हम लोगों को निशाना बनाया जाए। हम सरकारी नौकरी के अवसरों से वंचित नहीं रहना चाहते हैं। सत्ता में आने पर आप क्या करेंगे?” राहुल ने जवाब दिया: “आप सही हैं कि भारत में मुसलमानों पर हमले हो रहे हैं। यह (शिकायत) गलत नहीं है। लेकिन आपको यह भी एहसास होना चाहिए कि भारत में कई अन्य लोगों पर भी हमले हो रहे हैं। कृपया देखें कि आज मणिपुर में क्या हो रहा है। चार महीने से मणिपुर जल रहा है। 

आपको यह नहीं सोचना चाहिए कि केवल आप (मुसलमान) ही ऐसे लोग हैं जिन पर हमला हो रहा है। यह मुसलमानों, अन्य अल्पसंख्यकों के साथ हो रहा है। यह दलितों और आदिवासियों के साथ हो रहा है। राहुल ने उपस्थित युवाओं और अन्य लोगों से वादा किया, यह कुछ ऐसा है जिससे लड़ने के लिए हम प्रतिबद्ध हैं। आप जानते ही हैं कि मैं और कांग्रेस पार्टी इस लड़ाई में सबसे आगे हैं। आप चाहे किसी भी धर्म से हों, किसी भी समुदाय से हों, जहां से आते हों, आपको इस देश में सहज महसूस होना चाहिए। इस देश के हर कोने में सहज महसूस होना चाहिए। यही भारत की संवैधानिक बुनियाद है। इस पर युवक ने आगे पूछा, “क्या आप जेल में बंद मुस्लिम युवाओं को रिहा करेंगे?” राहुल गांधी ने जवाब दिया, “सुनो मित्र, हमें अदालतों के अनुसार काम करना होगा। हम देश की कानूनी व्यवस्था के बाहर काम नहीं कर सकते, ठीक है ना? मुझे संविधान के तहत काम करना है। मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। अगर सुप्रीम कोर्ट ने (मेरी संसद की सदस्यता) बहाल नहीं की होती तो मुझे उनके फैसले का पालन करना होता। एक राजनीतिज्ञ के रूप में, हमारे पास यही साधन हैं।

राहुल गांधी ने आगे कहा, “लेकिन आप जो कह रहे हैं, बिल्कुल (सही है), हम किसी भी समुदाय, किसी भी समूह, किसी भी धर्म, किसी भी जाति, किसी भी भाषा के प्रति अनुचित होने के मामले में बहुत संवेदनशील हैं। यह तो तय है।” कांग्रेस की स्थिति के बारे में एक सवाल पर राहुल ने कहा कि भाजपा पतन का सामना कर रही है है, न कि उनकी पार्टी। कांग्रेस सांसद ने कहा, “कर्नाटक में, हिमाचल (प्रदेश) में किस पार्टी को पतन का सामना करना पड़ा? क्या वह कांग्रेस थी? अब मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में चुनाव है। आप देखेंगे कि वहां किसको पतन का सामना करना पड़ता है। कांग्रेस सभी चार राज्यों में जीत हासिल करेगी।”

जोरदार नारों के बीच राहुल गांधी ने कहा, मत सोचिये कि कांग्रेस भाजपा से नहीं लड़ सकती। मैं आपको गारंटी देता हूं कि 2024 के चुनावों में हम भाजपा को हरा देंगे। भाजपा ने देश में सभी संस्थानों को नियंत्रित कर रखा है। क्या आपको लगता है कि भारत में स्वतंत्र और निष्पक्ष मीडिया है? क्या भारत में मीडिया तटस्थ है? भाजपा ने भारत में सभी संस्थानों पर हमला किया है। मीडिया, नौकरशाही, चुनाव आयोग या न्यायपालिका सब पर हमला हो रहा है। यदि समान अवसर होता, मीडिया निष्पक्ष होता और भाजपा ने संस्थानों पर कब्जा नहीं किया होता, तो वह 2109 का चुनाव भी नहीं जीत पाती। लेकिन इसके बावजूद, कांग्रेस और भारत गठबंधन भाजपा को हरा देगा, राहुल गांधी ने कहा।”  

इस खबर में राहुल गांधी ने कहा है और वैसे भी यह कोई अनजाना मामला नहीं है कि मीडिया न सिर्फ कांग्रेस को नजरअंदाज कर रहा है बल्कि यह भी सही है कि हर मौके पर ज्यादातर मीडिया भाजपा सरकार के प्रति नरम होता है जबकि कांग्रेस या इंडिया गठजोड़ के प्रति उदासीन या प्रतिकूल होता है। आज जब राहुल गांधी की इस यात्रा और कश्मीर के युवा मुसलमानों की चिन्ता खबर नहीं है (या पहले पन्ने पर) प्रमुखता से नहीं है। आज जब द टेलीग्राफ इस खबर को लीड बनाया है तो मेरे बाकी सभी अखबारों में लीड यही है कि चीन और भारत सीमा पर तनाव कम करन में सहमत हैं या कम करने के प्रयास चल रहे हैं। भारत की सीमा में चीन के घुस आने पर प्रधानमंत्री का मशहूर बयान आपको याद ही होगा और मीडिया ने जो बताया है या नहीं बताया है उसकी चर्चा करने की अभी जरूरत नहीं है। लेकिन राहुल गांधी जब चीन सीमा पर आम लोगों से मिल रहे हैं तो उसकी खबर किसी और अखबार में लगभग नहीं है। 

यही नहीं, आप यह भी जानते हैं कि कारगिल कब और कैसे हुआ था। 2019 के पहले पुलवामा हुआ था और तबके कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने उस पर क्या कहा है और आगे के लिए क्या आशंका जताई है। इसके साथ तथ्य यह भी है कि पुलवामा पर कोई अधिकृत सरकारी रिपोर्ट नहीं है, 2019 के चुनाव पर एक निजी विश्वविद्यालय के अनुसंधान के कुछ हिस्सों की चर्चा पर ही सरकार और विश्वविद्यालय परेशान हैं। संबंधित शिक्षक ने इस्तीफा दे दिया है। आदि आदि। दूसरी ओर, यह भी तथ्य है कि 2019 चुनाव के बाद कश्मीर से अनुच्छेद 370 को खत्म कर दिया गया है उसपर संविधान पीठ चर्चा कर रही है। इससे पहले ही राज्य को केंद्रशासित प्रदेशों में बांटा जा चुका है और आज की खबरों के अनुसार केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा है कि देश बचाने के लिए ऐसा किया गया है। 

यही नहीं, इंडियन एक्सप्रेस की दो खबरें ऐसी हैं, इनपर भी नजर डाल लीजिये 1) छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने कहा है कि राज्य में भाजपा का चेहरा सिर्फ ईडी और आयकर विभाग है। 2) आरएसएस समर्थिक दो संस्थाओं ने अधिकारियों द्वारा उन्हें राजनीतिक कहे जाने पर एतराज किया। चीन सीमा से संबंधित जो खबरें छपी हैं वह विदेश सचिव के हवाले से है। इंडियन एक्सप्रेस ने ही बताया है कि चीन के प्रमुख से मोदी की बातचीत जोहान्सबर्ग में की। नवोदय टाइम्स में इस खबर का शीर्षक है, ब्रिक्स सम्मेलन से इतर शी से बातचीत में बोले मोदी, एलएसी का सम्मान जरूरी है। अब आप इस खबर को कितना महत्व देंगे यह आप तय कीजिये। 

मैं यह भी बता दूं कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बिलकिस बानो के अपराधियों की सजा कम करने का आधार यह भी है कि सीबीआई ने इसका विरोध नहीं किया। सीबीआई ने विरोध नहीं किया इसलिए सरकार ने छोड़ दिया। हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि सीबीआई विरोध करती तो नहीं छोड़ा जाता और जब सीबीआई कई मामलों में अपराधियों का पता नहीं लगा पाती है या जो सबूत जुटाती या पेश करती है वह अदालतों में नहीं टिकती है तो उस सबूत पर सजा देने की मांग करनी चाहिए या नहीं या नहीं की जा सकती है तो उसके एतराज नहीं करने का क्या मतलब है। जहां तक सुप्रीम कोर्ट की बात है, राजस्थान कांग्रेस के एक विधायक के बेटे की जमानत रद्द कर दी है उसपर बलात्कार का मामला है। 

आज सबसे दिलचस्प खबर द हिन्दू में आरटीआई पर है, आरटीआई के लापता विवरण बहाल किये जाएंगे, सरकारी पोर्टल ने कहा। आप जानते हैं कि भ्रष्टाचार दूर करने का दावा कर सत्ता पाने वाली कांग्रेस को सूचना के अधिकार कानून से कितनी (और क्यों) दिक्कत है। यह विडंबना ही है कि जिस सरकार ने आरटीआई जैसा कानून दिया था उसे भ्रष्ट कहने वालों को कानून से भारी परेशानी है और इससे सूचना तो नहीं ही दी जाती है इस कानून को खत्म करने के तमाम उपाय अक्सर सुने-देखे जाते हैं। द हिन्दू समेत दूसरे संस्थानों ने पिछले दिनों इसपर खबर की थी उसके बाद यह आश्वासन मिला है जो आज हिन्दू में छपा है। 

जनचौक की ऐसी ही एक खबर का शीर्षक था, आरटीआई को मारने का नया फंडा, गायब किए जा रहे हैं आवेदन और जवाब। इसमें कहा गया है, सूचना का अधिकार कानून के तहत मांगी गई सूचना का जवाब आवेदक को देने के साथ ही आरटीआई ऑनलाइन पोर्टल पर भी अपडेट किया जाता है। जिससे किस मामले में कब क्या जानकारी दी गई है, उसे भविष्य में भी देखा जा सके। लेकिन मोदी सरकार में सूचना देने को कौन कहे पहले से उपलब्ध सूचनाओं को भी आरटीआई की वेबसाइट से गायब करवाया जा रहा है। कई आरटीआई कार्यकर्ताओं ने बुधवार को देखा कि उनके पिछले आवेदनों के रिकॉर्ड सैकड़ों की संख्या में आरटीआई ऑनलाइन पोर्टल से गायब हो गए हैं, जो नागरिकों द्वारा केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों से मांगे गए थे। साइट ने 2013 से 58.3 लाख आवेदन निस्तारित किए हैं। लेकिन अब उसे रिकॉर्ड से ही हटा देने का खेल चल रहा है। फिलहाल पुरानी सूचनाओं को बहाल किये जाने का इंतजार है।  

द हिन्दू ने इस बारे में लिखा है, पोर्टल ने अपनी वेबसाइट पर एक नए संदेश में कहा है, “रख-रखाव गतिविधि के कारण, अभिलेखीय डेटा (2022 से पहले का) जल्द ही उपलब्ध होगा। और इस डेटा को वर्तमान में प्रदान की गई रिपोर्ट में प्लग किया जाएगा।” अखबार के अनुसार, हाल के महीनों में यह तीसरी बार है कि आरटीआई ऑनलाइन पोर्टल कोई नई सुविधा या प्रदर्शन में सुधार दिखाए बिना ‘रख-रखाव’ मोड में चला गया है। ‘रख-रखाव’ के ये मामले साइट से डेटा गायब होने का एकमात्र उदाहरण नहीं हैं। जमीनी स्तर पर कैशलेस उपभोक्ता पहल में योगदानकर्ता श्रीकांत लक्ष्मणन ने इस महीने की शुरुआत में पाया कि राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण (एनएचए) को उनके एक आरटीआई आवेदन के जवाब वाली एक पीडीएफ फाइल साइट से गायब हो गई थी। उन्होंने कहा, यह अभी भी गायब ही है।

आरटीआई ऑनलाइन पोर्टल का प्रबंध करने वाले कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी), ने द हिंदू के इस सवाल का जवाब नहीं दिया कि सरकारी अधिकारियों के पास पूर्व में ऑनलाइन दी गई प्रतिक्रियाओं को हटाने की शक्ति है अथवा नहीं। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि व्यक्तिगत (निजी) जानकारी देने के सभी मामलों पर रोक लगाने के लिए इस महीने संसद में आरटीआई अधिनियम, 2005 में संशोधन किया गया था; पहले, सार्वजनिक हित में व्यक्तिगत जानकारी का खुलासा किया जा सकता था। यहां प्रधानमंत्री की डिग्री का मामला उल्लेखनीय है जिसका जवाब नहीं दिया गया है और मामला अदालतों में अटका हुआ है या फैसलों के कारण रुका हुआ है। दूसरी ओर, खबर के अनुसार, कार्यकर्ताओं ने तर्क दिया है कि इससे राशन वितरण के सामाजिक ऑडिट जैसे मामलों में सरकारी अधिकारियों को जवाबदेह बनाना अधिक कठिन हो सकता है।

इससे पहले 2019 में, सरकार को केंद्रीय सूचना आयोग (सीआईसी) में नियुक्तियों पर अधिक अधिकार देने के लिए आरटीआई अधिनियम में संशोधन किया गया था, जो निकाय केंद्र सरकार के पास दायर आरटीआई आवेदनों की अपील सुनता है और निर्णय जारी करता है। सतर्क नागरिक संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार, सीआईसी और राज्यों के अपने सूचना आयोगों में लंबे समय से रिक्तियां लंबित हैं और लाखों मामले लंबित हैं। नई दिल्ली स्थित कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के निदेशक वेंकटेश नायक ने सीआईसी की नवीनतम रिपोर्ट के विश्लेषण में कहा, केंद्र सरकार के निकायों में आरटीआई (के जवाब पर) अपील अब तक के उच्चतम स्तर पर लंबित थी। 1.62 लाख आवेदनों पर अपील की गई थी। श्री नायक ने लिखा, “यह आरटीआई अधिनियम के तहत अपने दायित्वों के प्रति इन सार्वजनिक प्राधिकरणों के प्रदर्शन के प्रति बहुत उच्च स्तर के असंतोष को इंगित करता है।”

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं!

 

 


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