सुप्रीम कोर्ट से एक विवादित फैसले के आने के बाद, अनुसूचित जाति परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष सह कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ उदित राज ने एलान किया है कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के ख़िलाफ़ आंदोलन करेंगे। डॉ. उदित राज ने ये घोषणा सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद की, जिसमें अदालत ने कहा है कि बंद चहारदीवारी के अन्दर किसी को जातिसूचक गाली देना – एस सी एसटी एक्ट के अंतर्गत नहीं आएगा. यही नहीं, इसके साथ ही पीड़ित को कोर्ट मे यह साबित करना होगा कि जातिसूचक गाली देने का मकसद जातिगत रूप से नीचा दिखाना ही था.
अदालत ने उत्तराखंड निवासी हितेश वर्मा की अपील पर सुनवाई करते हुए यह कहा कि राज्य उच्च न्यायालय ने आरोपियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को समाप्त करने से इनकार कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत अपराध केवल इस तथ्य पर स्थापित नहीं होता कि सूचनादाता अनुसूचित जाति का सदस्य है, जब तक कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के सदस्य को अपमानित करने का इस कारण से कोई इरादा नहीं है कि पीड़ित ऐसी जाति का है।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसरटी) से संबंधित किसी व्यक्ति के खिलाफ घर की चारदीवारी के अंदर किसी गवाह की अनुपस्थिति में की गई अपमानजनक टिप्पणी अपराध नहीं है। इसके साथ ही न्यायालय ने एक व्यक्ति के खिलाफ एससी-एसटी कानून के तहत लगाए गए आरोपों को रद्द कर दिया, जिसने घर के अंदर एक महिला को कथित तौर पर गाली दी थी।
अदालत ने कहा कि किसी व्यक्ति का अपमान या धमकी अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति कानून के तहत अपराध नहीं होगा। जब तक कि इस तरह का अपमान या धमकी पीड़ित के अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति से संबंधित होने के कारण नहीं है। न्यायालय ने कहा कि एससी व एसटी कानून के तहत अपराध तब माना जाएगा जब समाज के कमजोर वर्ग के सदस्य को किसी स्थान पर लोगों के सामने अभद्रता, अपमान और उत्पीड़न का सामना करना पड़े।
डॉ. उदित राज ने कहा कि इससे अब तरह तरह के व्याख्यान निकलेंगे और अंत में एस सी एस टी एक्ट कमजोर होगा माना कि कुछ कुछ मामलो में कानून का दुरूपयोग होता है तो इससे कहीं ज्यादा दहेज़ और बलात्कार के कानूनों का दुरूपयोग हुआ है. लेकिन उच्च न्यायपालिका ने कभी उन कानूनों को रोकने या कमजोर करने का काम नहीं किया है. वर्तमान न्यायिक व्यवस्था अर्थात जजों कि नियुक्ति का कोलेजियम सिस्टम न्यायपूर्ण और पारदर्शी नहीं है इसलिए न्याय नहीं मिल पा रहा है. हमने सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ आन्दोलन करने का फ़ैसला किया है.
उदित राज ने एक ट्वीट कर के भी इस फैसले के प्रति अपना रोष जताया और सवाल किया है कि दहेज के मामले में 498 A के दुरुपयोग के कितने ही मामले हैं, लेकिन अदालत वहां पर ऐसा दखल नहीं देती और ऐसा फैसला नहीं करती। ये तय है कि ज़्यादातर न्यायाधीश, जातीय पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं और हम उनके ख़िलाफ़ आंदोलन करेंगे।
Supreme Court held that offence committed within four walls ,will not attract SC/ST Act. There are instances of misuse but it’s more in the matters of Rape &Dowry but judiciary doesn’t interfere there. It’s clear that most of judges are caste biased & will agitate against them.
— Dr. Udit Raj (@Dr_Uditraj) November 6, 2020
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की पीठ ने कहा, तथ्यों के मद्देनजर हम पाते हैं कि अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) कानून, 1989 की धारा 3 (1) (आर) के तहत अपीलकर्ता के खिलाफ आरोप नहीं बनते हैं। इसलिए आरोपपत्र को रद्द किया जाता है। इसके साथ ही न्यायालय ने अपील का निपटारा कर दिया।
पीठ ने कहा कि हितेश वर्मा के खिलाफ अन्य अपराधों के संबंध में प्राथमिकी की कानून के अनुसार सक्षम अदालतों द्वारा अलग से सुनवाई की जाएगी। पीठ ने अपने 2008 के फैसले पर भरोसा किया और कहा कि इस अदालत ने सार्वजनिक स्थान और आम लोगों के सामने किसी भी स्थान पर अभिव्यक्ति के बीच अंतर को स्पष्ट किया था।
स्वर्ण सिंह और अन्य बनाम राज्य का ज़िक्र करते हुए अदालत ने कहा कि यह कहा गया था कि यदि भवन के बाहर जैसे किसी घर के सामने लॉन में अपराध किया जाता है, जिसे सड़क से या दीवार के बाहर लेन से किसी व्यक्ति द्वारा देखा जा सकता है तो यह निश्चित रूप से आम लोगों द्वारा देखी जाने वाली जगह होगी। पीठ ने कहा कि प्राथमिकी के अनुसार, महिला को गाली देने का आरोप उसकी इमारत के भीतर हैं और यह मामला नहीं है जब उस समय कोई बाहरी व्यक्ति सदस्य केवल रिश्तेदार या दोस्त नही घर में हुई घटना के समय मौजूद था।
इस फैसले के बाद से विवाद मच गया है। उदित राज के अलावा कई और दलित चिंतकों और कार्यकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की आलोचना की है और इसे संविधान के ख़िलाफ़ बताया है। जबकि दूसरी ओर सवर्ण जातियों के कई प्रतिनिधियों ने इस फैसले का स्वागत किया है। लेकिन साफ है कि सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में कई बातें साफ़ नहीं की हैं। इससे न केवल भ्रम की स्थिति है, क्या इस फैसले के आधार पर जातीय आधार पर तिरस्कार बढ़ने की संभावना नहीं होगी?
ये स्टोरी मीडिया विजिल के लिए निर्मल पारीक ने की है। वे मीडिया विजिल के साथ इंटर्न हैं।