सोहराबुद्दीन केस की सुनवाई की कवरेज पर अदालती रोक को नौ पत्रकारों ने दी चुनौती

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सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ हत्‍याकांड की सुनवाई कर रहे जज बृजगोपाल हरकिशन लोया की 2014 में अचानक नागपुर में हुई मौत की संदिग्‍ध परिस्थितियों पर पहली बार उनके परिजनों के मुंह खोलने और पत्रिका द कारवां में 21 नवंबर को कहानी सामने आने के बाद डिफेंस के वकीलों के आग्रह पर मुंबई की विशेष सीबीआइ अदालत ने सोहराबुद्दीन मामले की सुनवाई की रिपोर्टिंग करने से मीडिया को रोक दिया था। इस संबंध में 29 नवंबर को सीबीआइ की अदालत ने प्रतिबंधात्‍क निर्देश जारी किया था। करीब महीने भर बाद मंगलवार 26 दिसंबर को कुछ पत्रकारों ने इस आदेश के खिलाफ मुंबई उच्‍च न्‍यायालय का दरवाजा खटखटाया है।

कुल नौ पत्रकारों द्वारा मुंबई उच्‍च न्‍यायालय में दायर रिट याचिका कहती है कि सीबीआइ अदालत के उक्‍त आदेश को खारिज किया जाए क्‍योंकि वह कानूनी रूप से गलत है, अवैध है और पत्रकारों को अपना कर्तव्‍य निभा पाने की राह में बड़ा अवरोध है।

याचिका डालने वाले पत्रकार दि टाइम्‍स ऑफ इंडिया, मुंबई मिरर, दि इंडियन एक्‍सप्रेस, फ्री प्रेस जर्नल, दि वायर और स्‍क्रोल से ताल्‍लुक रखते हैं। स्‍क्रोल डॉट इन ने इस याचिका के बारे में खबर चलायी है। स्‍क्रोल के संपादक नरेश फर्नांडीज़ भी नौ याचिकाकर्ताओं में एक हैं।

उच्‍च न्‍यायालय इस याचिका पर 12 जनवरी को सुनवाई करेगा।

याचिका का कहना है कि जो सुनवाई कैमरे के सामने बंद कमरे में न हो रही हो, उसकी रिपोर्टिंग को रोकने का अधिकार अदालत के पास नहीं है। याचिका कहती है कि सोहराबुद्दीन केस वैसे भी पिछले कुछ वर्षों में इतना ज्‍यादा प्रकाशित हो चुका है कि उसकी रिपोर्टिंग को रोकने से ”कोई लाभ नहीं होने वाला”।

जिन वकीलों ने सीबीआइ की अदालत में सुनवाई को रोकने के लिए गुहार लगाई थी, उनकी दलील थी कि जज लोया की मौत की संदिग्‍ध परिस्थितियों पर खबर सार्वजनिक होने के बाद वादी के वकीलों, आरोपी और डिफेंस टीम की जान को खतरा हो सकता है। उनका यह भी दावा था कि अतीत में इस मामले की गलत रिपोर्टिंग की गई है जिसने दोनों पक्षों की राय को ”पूर्वाग्रहग्रस्‍त” करने का काम किया है।

ध्‍यान रहे कि सोहराबुद्दीन शेख एनकाउंटर केस में भारतीय जनता पार्टी के अध्‍यक्ष अमित शाह मुख्‍य आरोपी थे, जिन्‍हें जस्टिस लोया की संदिग्‍ध मौत के बाद सुनवाई कर रहे जज ने बरी कर दिया था। लोया से पहले जो जज मामले की सुनवाई कर रहे थे, उनका ऐन मौके पर तबादला कर दिया गया था। जस्टिस बीएच लोया की मौत की संदिग्‍ध परिस्थितियों के विवरण द कारवां में सिलसिलेवार प्रकाशित होने के बाद न केवल उनके परिजनों ने बल्कि कानूनी जानकारों, पूर्व जजों और न्‍यायविदों समेत लोया के गृहजिले लातूर के बार असोसिएशन ने भी उनकी मौत के मामले में जांच की मांग उठायी है।