उलटबांसी: एक अरब नागरिकों के आधार में संभावित सेंध का पता लगाने वाली रिपोर्टर पर FIR

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आधार कार्ड जारी करने वाली सरकारी एजेंसी यूआइडीएआइ ने दैनिक ट्रिब्‍यून की रिपोर्टर रचना खैरा पर एफआइआर दर्ज करा दी है। शिकायत में उन सभी व्‍यक्तियों के नाम दर्ज हैं जो खैरा की उद्घाटनकारी रिपोर्ट में सामने आए थे और जिनके माध्‍यम से रिपोर्टर ने इस रैकेट को उजागर किया था।दिलचस्‍प है कि रिपोर्टर पर धोखाधड़ी और चारसौबीसी के मुकदमे लगाए गए हैं जबकि रिपोर्ट की मानें तो धोखा इस देश की सवा अरब जनता के साथ हुआ है।

रचना खैरा ने 3 जनवरी को जालंधर टाइमलाइन से ट्रिब्‍यून में एक रिपोर्ट की थी जिसका शीर्षक था ”500 रुपये और 10 मिनट में एक अरब आधार विवरण तक पहुंचा जा सकता है”। खबर के मुताबिक पिछले कोई छह महीने से वॉट्सएप पर अज्ञात विक्रेता ऐसी सेवाएं सस्‍ते में दे रहे थे जिसके इस्‍तेमाल से पलक झपकते ही आपके पास एक अरब लोगों का आधार डेटा आ सकता है। टिब्‍यून ने ऐसे ही एक सेवा प्रदाता से संपर्क किया, पेटीएम से उसे 500 रुपये चुकाए और केवल 10 मिनट के भीतर उसे एक लॉगइन आइडी और पासवर्ड दिया गया जिससे वह किसी भी आधार संख्‍या को डाल कर उसका विवरण मंगवा सकता था।

एक अरब नागरिकों का आधार डेटा मात्र 500 रुपये में लीक, ट्रिब्‍यून का धमाकेदार एक्‍सपोज़

चंडीगढ़ में यूआइडीएआइ के अफसरों ने शुरुआत में इस ख़बर पर आश्‍चर्य ज़ाहिर किया था। बाद में शनिवार को यूआइडीएआइ के चंडीगढ़ स्‍थानीय कार्यालय ने ट्रिब्‍यून के प्रधान संपादक को एक पत्र लिखकर पूछा कि ”क्‍या आपके संवाददाता के लिए यह संभव हुआ कि यूआइडीएआइ के पोर्टल तक कथित पहुंच के माध्‍यम से उसने किसी व्‍यक्ति की उंगलियों के निशान या आयरिस स्‍कैन को देखा अथवा प्राप्‍त किया हो” और ”कथित लॉग इन यूजर आइडी और पासवर्ड के सहारे संवाददाता ने वास्‍तव में कितने आधार नंबर एन्‍टर किए और वे नंबर किनके नाम से थे”?

इन सवालों के जवाब 8 जनवरी तक मंगवाए गए थे। पत्र में कहा गया था कि जवाब न मिलने की सूरत में ”मान लिया जाएगा कि उंगलियों के निशान और/या आयरिस स्‍कैन में कोई सेंध नहीं लगी है”।

रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद यूआइडीएआइ ने एक बयान में कहा था कि ”आधार के डेटा में कोई सेंध नहीं लगी है”।

एफआइआर करवाने वाले शख्‍स बीएम पटनायक यूआइडीएआइ में काम करते हैं। दि इंडियन एक्‍सप्रेस के मुताबिक एफआइआर अपराध शाखा के साइबर सेल में आइपीसी की धारा 419, 420, 468 और 471 सहित आइटी कानून की धारा 66 और आधार कानून की धारा 36/37 के तहत दर्ज की गई है। गौरतलब है कि आइटी कानून की धारा 66ए को सुप्रीम कोर्ट ने बहुत पहले अमान्‍य करार दे दिया है। आधार कानून के तहत किसी पत्रकार पर होने वाली यह देश में संभवत: दूसरी एफआइआर है।

इससे पहले अप्रैल के पहले सप्‍ताह में दिल्‍ली में ही आधार कानून के तहत एक पत्रकार पर एफआइआर दर्ज की गई थी। मामला सीएनएन न्‍यूज़ 18 के पत्रकार देबायन रॉय का था जिन्‍होंने आधार के पंजीकरण में मौजूद खामियों को दर्शाने के लिए एक स्‍टोरी की थी। इस स्‍टोरी का नतीजा यह हुआ कि उन्‍हीं के खिलाफ इस आरोप में मुकदमा मढ़ दिया गया कि उन्‍होंने एक ही पहचान के आधार पर दो नामों से आधार कार्ड बनवाने की कोशिश की।

आधार कानून के तहत पहली FIR का शिकार बना दिल्‍ली का पत्रकार

देबायन द्वारा रिपोर्ट की गई न्‍यूज़ 18 की स्‍टोरी में यह दिखाने की कोशिश की थी कि एक व्‍यक्ति एक ही सूचना के आधार पर दो आधार संख्‍याएं हासिल कर पाने में सक्षम है। चूंकि रॉय को इस पूरी प्रक्रिया के बाद आधार कार्ड नहीं प्राप्‍त हुआ, तो ज़ाहिर है यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी (यूआइडीएआइ) के पास कहने को यह होगा कि उसकी प्रक्रिया फुलप्रूफ है और उसने एक गलत काम होने से रोक लिया। सवाल हालांकि इससे कहीं ज्‍यादा व्‍यापक है जिसे न्‍यूज़ 18 की स्‍टोरी उठाती है।

आधार कार्ड के मामले में पहले भी एक एफआइआर स्‍कॉच डेवलपमेंट फाउंडेशन के चेयरमैन और मोदीनॉमिक्‍स नामक पुस्‍तक के लेखक समीर कोचर के खिलाफ की जा चुकी है, लेकिन चह मुकदमा आइटी कानून के अंतर्गत दर्ज किया गया था क्‍योंकि उस वक्‍त दिल्‍ली पुलिस के सिस्‍टम में आधार कानून की धारा के तहत एफआइआर करने की सुविधा नहीं थी। कोचर ने अपनी पत्रिका Inclusion में एक लेख लिखा था जो आधार प्रणाली पर सवाल उठाता था। लेख का शीर्षक था- Is a deep state at work to steal digital India.

दो हफ्ते बाद एजेंसी ने कोचर पर एफआइआर दर्ज कर दी। इस मामले पर scroll.in ने पूरे विवरण के साथ एक स्‍टोरी प्रकाशित की थी। उसे यहां देखा जा सकता है और समझा जा सकता है कि क्‍यों और कैसे आधार प्रणाली की खामियां उजागर करने वालों के खिलाफ़ मुकदमे कायम किए जा रहे हैं।

विडंबना है कि आधार डेटा में धोखाधड़ी, फर्जीवाड़े आदि की बात को उजागर कर रहे पत्रकारों पर ही पलट कर धोखाधड़ी और फर्जीवाड़े का मुकदमा कर दिया जा रहा है। सवाल उठता है कि अगर सरकार का रवैया सच सामने लाने वाले पत्रकारों को ही फंसाने का रहा, तो फिर कौन पत्रकार कल को सच सामने लाने की कोशिश करेगा।

रचना खैरा ने एफआइआर किए जाने पर एक सांकेतिक ट्वीट किया है जो बहुत कुछ कह जाता है: