‘हलाल’ के ज़रिए मुस्लिम कारोबारियों और सांप्रदायिक सद्भाव को निशाना बनाने की कोशिश



भारत पर लगभग दस साल से शासन कर रही बीजेपी विकास के दावे चाहे जितने करे, चुनाव के लिए ध्रुवीकरण के ही भरोसे रहती है। पाँच राज्यों के विधानसभा चुनाव में हुए हालिया प्रचार इसकी गवाही देते हैं जहाँ खुद प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी रैलियों में हिंदू-मुस्लिम विवाद बढ़ाने वाले मुद्दों को हवा दी। बहरहाल, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस मामले में सबको पीछे छोड़ने में जुटे हैं। यूपी मे हलाल प्रमाणपत्र उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने का फैसला इसी की एक कड़ी है। इसका एक मक़सद तो सांप्रदायिक भावनाओं को उभारना है और दूसरी दूसरा मुस्लिम कारोबारियो की रीढ़ तोड़ना।

वैसे दिलचस्प बात ये है कि हलाल सर्टिफाइड उत्पादों के निर्यात पर कोई रोक नहीं लगायी गयी हैं। यानी इसका मकसद स्थानीय बाज़ार ही है। सरकार जानती है कि निर्यात घटने से अर्थव्यवस्था को नुकसान होता है और बहुत से देशों में हलाल सर्टिफाइड उत्पादों की काफ़ी माँग है जो निर्यात पर प्रतिबंध से प्रभावित होगी।  हलाल एक अरबी शब्द है जिसका मतलब है कि कोई चीज़ इस्लामिक धार्मिक आचरण के अनुरूप या कुरान द्वारा निर्धारित इस्लामिक कानून के मुताबिक है। हलाल शब्द जानवरों या पक्षियों को खाने के लिए मारने के तरीके के लिए भी प्रयोग किया जाता है। इस तरीके में जानवर की साँस की नली को काट कर उसका खून बहा दिया जाता है।

प्रख्यात समाजशास्त्री राम पुनियानी ने अपने एक ताज़ा लेख में लिखा है, “हलाल उत्पादों का व्यापार बहुत महत्वपूर्ण और बहुत बड़ा है। यह उद्योग करीब 35 ख़रब डॉलर का है। पर्यटन और निर्यात क्षेत्रों में इसे बढ़ावा देना भारत के लिए भी फायदेमंद है। इन उत्पादों के मुख्य ग्राहकों में दक्षिण एशियाई देश और इस्लामिक सहयोग संगठन (ओआईसी) के सदस्य देश शामिल हैं। उत्तर प्रदेश सरकार का दावा है कि कुछ कंपनियां फर्जी हलाल सर्टिफिकेट जारी कर रही थीं।  मसले को सांप्रदायिक रंग देने के लिए यह भी कहा गया कि इन कंपनियों के कारण सामाजिक विद्वेष बढ़ रहा है और वे जनता के विश्वास को तोड़ रही हैं। अगर मसला यही था कि कुछ कंपनियां फर्जी सर्टिफिकेट जारी कर रही थीं तो उन्हें रोकने के तरीके ढूंढे जा सकते थे। फिर, प्रतिबन्ध केवल घरेलू बाज़ार के लिए क्यों? आखिर निर्यात भी तो इसी कथित फर्जी प्रमाणीकरण के आधार पर हो रहा है।”

उधर हलाल कौंसिल ऑफ़ इंडिया के अध्यक्ष मुफ़्ती हबीब यूसुफ कासमी ने कहा है कि हलाल के मुद्दे पर विवाद हर चीज़ को हिन्दू बनाम मुस्लिम नज़रिए से देखने की प्रवृत्ति का नतीजा है। उन्होंने कहा, “हलाल का सम्बन्ध साफ़-सफाई और शुद्धता से है. यह हिन्दू-मुस्लिम मसला नहीं है. यह भोजन का मसला है।”

राम पुनियानी लिखते हैं, “हम अक्सर मांस के व्यापार और निर्यात से मुसलमानों को जोड़ते हैं। मगर तथ्य यह है कि मांस और बीफ का व्यापार कर रहीं कई बड़ी कंपनियों के मालिक हिन्दू हैं। भारत से मांस की सबसे बड़ी निर्यातक कंपनी अल कबीर एक्सपोर्ट्स के मालिक सतीश सब्बरवाल हैं। और अरेबियन एक्सपोर्ट्स प्राइवेट लिमिटेड का स्वामित्व सुनील कपूर के हाथों में है।“

मांस के छोटे व्यापारियों, जिनमें से अधिकांश मुसलमान हैं, के प्रति योगी सरकार के पूर्वाग्रहपूर्ण रवैये का अंदाज़ सबको उसी समय हो गया था जब सत्ता में आने के कुछ ही समय बाद, कई दुकानों को इस आधार पर बंद करवा दिया गया था कि उनके पास लाइसेंस नहीं है। इस मनमानी पर टिप्पणी करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने योगी सरकार और लखनऊ नगर निगम से पूछा था कि आखिर किस प्रावधान के अंतर्गत राजधानी लखनऊ में मांस की दुकानों को बंद करवाया जा रहा है। अदालत ने लखनऊ नगर निगम को लताड़ते हुए कहा था कि अधिकारियों ने समय रहते मांस की दुकानों के लाइसेंस का नवीनीकरण क्यों नहीं करवाया।

राम पुनियानी कहते हैं कि “योगी ने मुसलमानों को दुःख देने का एक और तरीका ईज़ाद किया है, जिसकी नक़ल अन्य भाजपा-शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री कर रहे हैं, और वह तरीका है मुसलमानों के घरों को बुलडोज़र के ज़रिए गिरवाना। बताया यह जाता है कि ये घर ‘अवैध’ हैं। अवैध इमारतों और घरों के मामले में क्या किया जाना चाहिए, यह सुस्थापित है। और ऐसा भी नहीं है कि सभी गैर-मुसलमानों ने नियम-कानूनों का पालन करते हुए अपने घर बनाये हैं। मगर बुलडोजर केवल मुसलमानों के घर ढहा रहे हैं। आदित्यनाथ तो बुलडोज़र को विकास और शांति का प्रतीक बताते हैं। वे कहते हैं कि बुलडोज़र कानून को लागू करने में मददगार हैं. मगर प्रतिपक्ष कहता है कि बुलडोज़र न्याय एकतरफ़ा है।

अब हलाल उत्पादों पर प्रतिबन्ध लगाकर उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने यह साबित कर दिया है कि वह लोगों को बांटने वाली अपनी नीतियों से तौबा नहीं करेगी। हलाल सर्टिफिकेशन को अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त है। समाज के सभी तबकों की भावनाओं का सम्मान, किसी भी बहुवादी समाज के मूलभूत मूल्यों का हिस्सा होता है. हलाल उत्पादों से मतलब केवल मांस नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार का यह कदम, सांप्रदायिक विभाजनों को और गहरा करेगा। हमें यह समझना होगा कि भाजपा को समय-समय पर विभाजक मुद्दे उठाते रहने पड़ते हैं। आम चुनाव कुछ ही महीने दूर हैं और यह मुद्दा भी सांप्रदायिक राजनीति की काम का है।

यूपी में योगी आदित्यनाथ जो कर रहे हैं, उसकी माँग देश के कई राज्यों में बीजेपी और आरएसएस से जुड़े संगठनों ने कर दी है। साफ़ है कि हलाल  के मुद्दे पर देश भर में सांप्रादायिक सद्भाव को हलाल करने की तैयारी की जा रही है।  भारत में अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने की इस राजनीति की चर्चा पूरी दुनिया में है। पिछले दिनों  अमेरिका के धार्मिक स्वतंत्रता आयोग ने भी इस मुद्दे पर चिंता जतायी थी। आयोग ने बीती मई में अमेरिकी विदेश मंत्रालय को सौंपी अपनी वार्षिक रिपोर्ट में इस पर गहरी चिंता जताते हुए भारत को विशेष चिंता वाले देशों की सूची में शामिल करने की सिफ़ारिश की थी। ग़ौरतलब है कि आयोग ने लगातार चौथे साल यह सिफ़ारिश की थी जो मोदी सरकार के कामकाज पर गंभीर सवाल उठाता है।

 


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