अमेरिकी बार की रिपोर्ट: आतंक निरोधक क़ानूनों के ज़रिए मानवाधिकार संगठनों का दमन कर रही है मोदी सरकार!

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मोदी सरकार बनने के बाद भारत में गैरलाभकारी संगठनों के ज़रिए समाज में चेतनानिर्माण का काम करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है। यहाँ तक कि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और गैरलाभकारी संगठनों (एनपीओ) को परेशान करने के लिए मोदी सरकार आतंकवाद विरोधी क़ानूनों का सहारा ले रही है। यह कोई आरोप नहीं, अमेरिकन बार एसोसिएशन सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स (एबीए) की हालिया रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि भारत मानवाधिकार रक्षकों और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं को निशाना बनाने के लिए  सरकार फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) के दिशानिर्देशों का उल्लंघन कर रही है।

फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकियों को मिलने वाली आर्थिक सहायता पर नज़र रखने वाली वैश्विक संस्था है। रिपोर्ट कहती है,“2010 में एफएटीएफ का सदस्य बनने के बाद, भारत ने अपने आतंकवाद विरोधी और मनी लॉन्ड्रिंग कानून में संशोधनों का सिलसिला शुरू किया, जिसका मक़सद खुद को एफएटीएफ आवश्यकताओं के अनुकूल बनाना था। हालाँकि, इसका गैर-लाभकारी संगठनों (एनपीओ) और मानवाधिकार रक्षकों पर व्यापक प्रतिकूल असर पड़ा जो अपनी नागरिक स्वतंत्रता का प्रयोग करने और सरकार की आलोचना करने के कारण अक्सर क़ानूनी शिकंजे में रहते हैं।” .

इस रिपोर्ट में तीन कठोर आतंकवाद विरोधी कानूनों की जाँच की गयी है। ये हैं गैरकानूनी गतिविधियाँ रोकथाम अधिनियम 1967 (यूएपीए), धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), और विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (एफसीआरए)।

इसके अलावा, यह रिपोर्ट भारत में एनपीओ और मानवाधिकार रक्षकों से जुड़े विशिष्ट मामलों की जांच करती है, जिसमें पत्रकार सिद्दीकी कप्पन के खिलाफ फर्जी मामला, नागरिकता विधेयक के प्रदर्शनकारियों के खिलाफ आतंकी फंडिंग के आरोप, कश्मीरी राजनीतिक नेता वहीद-उर-रहमान पारा की गिरफ्तारी, भीमा कोरेगांव मामला, और तेलंगाना में लोकतांत्रिक अधिकार कार्यकर्ताओं का दमन शामिल है।

रिपोर्ट से पता चलता है कि भारतीय जांच अधिकारी अक्सर मानवाधिकार रक्षकों और भारत सरकार की आलोचना करने वाले एनपीओ को दंडित करने के अपने प्रयासों में अस्पष्ट आरोपों और असंगत सबूतों का इस्तेमाल करते हैं। इसके अलावा, यह नोट किया गया है कि समय के साथ आतंकवाद विरोधी कानूनों का विस्तार हुआ है, जिनमें अस्पष्टता प्रतिवादियों के लिए उपलब्ध मौलिक प्रक्रियात्मक सुरक्षा को कमजोर कर रही है।

रिपोर्ट में सिफारिश की गयी है कि इन क़ानूनों का  दुरुपयोग रोकने के लिए भारत सरकार को यूएपीए, पीएमएलए और एफसीआरए कानूनों में संशोधन करे। रिपोर्ट यह यह भी सलाह देती है कि कानूनी, पत्रकारिता या कार्यकर्ता गतिविधियों में शामिल व्यक्तियों से जुड़ी जांच या अभियोजन के दौरान, अधिकारियों को एफएटीएफ सिफारिशों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए उद्देश्यपूर्ण जोखिम मूल्यांकन को प्राथमिकता देनी चाहिए।

इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल के कार्यकारी निदेशक रशीद अहमद ने कहा, “एबीए की रिपोर्ट भारत में मानवाधिकार रक्षकों और गैर सरकारी संगठनों को लक्षित करने के एक खतरनाक पैटर्न पर प्रकाश डालती है, इस मुद्दे को हमने अतीत में लगातार उठाया है। चूँकि हम न्याय और मानवाधिकार के सिद्धांतों को कायम रखना चाहते हैं, इसलिए यह जरूरी है कि भारत इन निष्कर्षों पर ध्यान दे और क़ानूनों में आवश्यक संशोधन करे। आतंकवाद विरोधी कानूनों का विकास नागरिक समाज और उसके रक्षकों की कीमत पर नहीं होना चाहिए, और हम इन मूलभूत सिद्धांतों को बनाए रखने और एफएटीएफ सिफारिशों के अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए नए सिरे से प्रतिबद्धता का आह्वान करते हैं।

 

 


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