मणिपुर में ‘गुजरात मॉडल’ दोहरा रही है बीजेपी- IAMC



मणिपुर में जारी हिंसा और दो कुकी आदिवासी महिलाओं की नग्न-परेड कराने की गूंज दुनिया भर मे सुनाई पड़ रही है। लोग भारत के एक राज्य में हुई इस दरिंदगी और प्रधानमंत्री मोदी की चुप्पी पर आश्चर्य जता रहे हैं। मानवाधिकारों के पक्ष में मुखर भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिकों के चर्चित संगठन इंडियन अमेरिकन मुस्लिम काउंसिल (IAMC) ने  4 मई को कुकी महिलाओं के खिलाफ क्रूर यौन हिंसा की कड़ी निंदा की है। बहुसंख्यक मैतेई समुदाय और अल्पसंख्यक कुकी-ज़ोमी आदिवासियों के बीच बड़े पैमाने पर जारी संघर्ष में अब तक करीब 130 लोग मारे जा चुके हैं और करीब 35,000 विस्थापित हुए हैं। आईएएमसी ने अमेरिका में बसे भारतीय मूल के लोगों को मणिपुर के पीड़ितों को मानवीय सहायता पहुँचाने का आह्वान किया है।

मणिपुर के इस वायरल वीडियो में दिख रहा है कि मैतेई लोगों की भीड़ दो कुकी महिलाओं की नग्न परेड करा रही है। ख़बर है कि कुकी महिलाओं को अपने कपड़े उतारने के लिए मजबूर किया गया। फिर एफआईआर के मुताबिक एक 21 वर्षीय महिला के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और इस दरिंदगी को रोकने का प्रयास करने पर उसके भाई की हत्या कर दी गयी। ख़बर ये भी है कि जब यह दरिंदगी हो रही थी तो मणिपुर पुलिस के लोग पास में ही थे। हैरान करने वाली बात ये भी है कि एक पीड़ित महिला के पति ने भारतीय सेना को अपनी सेवाएँ दी हैं। इस पूर्व  सैनिक ने आईपीकेएफ के तहत श्रीलंका और फिर करगिल युद्ध में भागीदारी की थी।

इस दरिंदगी भरी घटना पर क्षोभ जताते हुए आईएएमसी के कार्यकारी निदेशक रशीद अहमद ने कहा, “भारतीय अमेरिकियों को मणिपुर में क्रूर हिंसा का विरोध करने के लिए आवाज उठानी चाहिए। कुकी महिलाओं पर हुए ये हमले वर्तमान सांप्रदायिक, हिंदू-वर्चस्ववादी शासन द्वारा भारतीय राजनीति के दिल में अंतर्निहित विभाजन की एक दुखद याद दिलाते हैं। प्रधानमंत्री मोदी की अब तक की चुप्पी ने मणिपुर में आग में घी डालने का काम किया है।”

मणिपुर में 4 मई को हुई इस घटना के अलावा  मणिपुर में तमाम अन्य दिल दहलाने वाली घटनाएँ हुई हैं। इस हिंसा के परिणामस्वरूप हजारों घर और सैकड़ों चर्च नष्ट हो गये हैं। मणिपुर में राजनीतिक रूप से कमजोर अल्पसंख्यक कुकी-ज़ोमी ईसाइयों को हिंसा का खामियाजा भुगतना पड़ा है। खबर ये भी है कि पीड़ितों के पास मौजूद हथियारों को सरकार ने ज़ब्त कर लिया और इसे आतंकी कार्रवाइयों के लिए दे दिया गया। हजारों हथियार सरकारी बलों के इन समूहों के पास पहुँच गये जिसमें सरकार की मिलीभगत पता चलती है। सरकार की ओर से लूट की कोई एफआईआर भी लंबे समय तक दर्ज नहीं करायी गयी। उल्टा ड्राप बाक्स लगाकर हथियार लौटाने का अनुरोध करते बैनर लटकाये गये।

आईएएमसी ने कहा है कि मणिपुर की बीजेपी सरकार ने सूचनाओं को रोकने के लिए इंतज़ाम किया। इंटरनेट की पहुँच रोककर अत्याचार की तमाम खबरों को छिपाने की कोशिश कीगयी। महिलाओ के साथ हुई भीड़ की क्रूर यौन हिंसा की खबर भी इसीलिए देर से आयी।

आईएएमसी के अध्यक्ष मोहम्मद जवाद ने कहा, “आज हम जो समन्वित यौन हिंसा और राज्य की उदासीनता देख रहे हैं, वह 2002 के गुजरात नरसंहार के दौरान हुई मुस्लिम महिलाओं के सामूहिक बलात्कार की याद दिलाती है, और जो चौंकाने वाले ढंग से नियमित अंतराल में दोहरायी गयी है।” उन्होंने कहा, “तब और अब के नरसंहार के मूल कारण एक ही हैं: सत्तारूढ़ भाजपा और उसकी वैचारिक प्रेरणास्रोत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) द्वारा प्रचारित विभाजनकारी, धार्मिक राष्ट्रवादी विचारधारा।”

मणिपुर को लेकर पूरी दुनिया में चिंता है। यूरोपीय संसद में भी इसे लेकर प्रस्ताव पारित किया गया है। लेकिन भारत सरकार ने हस्तक्षेप करने और आगे की हिंसा को रोकने के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव का विरोध किया। भारत सरकार ने हिंसा को “राजनीति से प्रेरित, हिंदू बहुसंख्यकवाद को बढ़ावा देने वाली विभाजनकारी नीतियों” से जोड़ते हुए यूरोपीय संसद के एक बयान की आलोचना की है और  इसे “अस्वीकार्य हस्तक्षेप” कहा है।

मोहम्मद जवाद ने कहा, “भारतीय अमेरिकियों को मणिपुर में विस्थापित हजारों लोगों को मानवीय राहत प्रदान करने और अमेरिकी राजनेताओं पर भी ऐसा करने के लिए दबाव डालने के लिए जुटना चाहिए।”

ग़ौरतलब है कि मणिपुर में 53 फ़ीसदी मैइती आबादी है जिसमें ज़्यादातर हिंदू हैं। बीजेपी इन्हें ईसाई धर्म को मानने वाले अल्पसंख्यक कुकी आदिवासियों के खिलाफ नफ़रत के ज़रिए गोलबंद करना चाहती है। राजनीति का यह मॉडल वही है जो गुजरात में अपनाया गया है।

 

 


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