जनरल बहल और ब्रिगेडियर पुगलिया ने फ़तेह किया ‘क्विंट’ मोर्चा !

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अच्छा पत्रकार वह होता है जो बिना देरी किये, सटीक ख़बर लोगों तक पहुँचा दे, लेकिन जो पत्रकार घटना घटने के पहले ही जानकारी मुहैया करा दे, वह कौन हुआ ? जवाब सिर्फ एक हो सकता है- पत्रकार का बाप !

तो खबर यह है कि पत्रकारिता का उद्धार करने पत्रकारों के बाप मैदान में कूद पड़े हैं। वे पक्के राष्ट्रभक्त हैं और धुन के इतने पक्के कि उनकी क़लम से निकली बात को सही साबित करने के लिए पूरी क़ायनात जुट जाती है। कोई देरी-वेरी होती है तो वे ख़ुद मोर्चे पर डट जाते हैं और ख़बर को सही होना ही पड़ता है। ‘जनरल’ राघव बहल और ‘ब्रिगेडियर’ संजय पुगलिया की कहानी कुछ ऐसी ही है जिसे पत्रकारिता के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज किया जाना चाहिए।

raghav-behal-1क़िस्सा यह है कि सात-आठ सौ करोड़ (सही क़ीमत ख़ुदा जाने) में नेटवर्क 18 का टीनटप्पर मुकेश अंबानी के हाथों टिकाकर निकल लेने वाले राघव बहल का पत्रकारिता खेलने का शौक अधूरा रह गया था, सो उन्होंने ‘द क्विंट’ नाम का एक डिजिटल प्लेटफॉर्म खड़ा किया और जुट गये बैटिंग करने। बहल के साथ सीएनबीसी आवाज़ के संपादक बतौर लंबा वक़्त गुज़ार चुके संजय पुगलिया भी एडोटीरियल डायरेक्टर बनकर क्विंट से जुड़ गये। पर बात बन नहीं रही थी। मसला था हिट्स का ताकि क्विंट काँटा तेज़ी से घूमने लगे। अब पुगलिया ठहरे एस.पी. सिंह के चेले, जिनका नाम हिंदुस्तनी टीवी पत्रकारों के महानायकों की ख़ाली जगह पर भर दिया जाता है तो उनसे उम्मीद भी ज़्यादा थी। ऐसे में अचानक उड़ी में आतंकी हमला हो गया।pugaliya

ठीक इसी वक़्त बहल और पुगलिया एक नये अवतार में आ गये। वे अब क़लम नहीं बंदूक के लिए मचल रहे थे और जब जवाबी कार्रवाई में देर होने लगी तो जनरल बहल के निर्देश पर ब्रिगेडियर पुगलिया ने हमला बोल दिया। नतीजा थी वह ख़बर जो 22 सितंबर को करीब साढ़े दस बजे क्विंट में उतराई और देखते ही देखते शेयर के समंदर में तूफ़ान आ गया। ख़बर में बताया गया था कि  कि 20-21 सितंबर की दरम्यानी रात 18-20 भारतीय सैनिकों ने उड़ी सेक्टर में नियंत्रण रेखा पार की और कम से कम 20 आतंकियों का खात्मा कर दिया। यह ख़बर और कहीं नहीं थी और न हो सकती थी। पत्रकार से जनरल और ब्रिगेडियर बने लोगों ने योजना पूरी तरह गुप्त रखी थी। कोई कैसे पता पा सकता था ?

ज़ाहिर है विरोधी जल उठे। कहा गया कि इस ख़बर में आर्मी युनिट का नाम ग़लत है। 20-21 की रात हमले की बात का आर्मी सूत्रों से खंडन कराया गया। अजय शुक्ल सामरिक मामलों के पत्रकार और सेना के पूर्व कर्नल ने इस खबर को कल्पना की उड़ान बता कर साबित कर दिया कि वह बहल-पुगलिया जोड़ी से कितना जलता है। तमाम वरिष्ठ कहे जाने वाले अन्य पत्रकारों ने ऐसी ही राय ज़ाहिर करके अपनी पोल खोल दी।

quint-pugaliya-ashutoshलेकिन एस.पी सिंह के चेले पुगलिया ने भी कच्ची गोलियाँ नहीं खेली थीं। पिछले दिनों वे एक ख़बर को लेकर अपने पूर्व सहयोगी और आम आदमी पार्टी नेता आशुतोष को फटकारा था कि उन्होंने एस.पी को शर्मिंदा किया है। ऐसे में क्विंट की ख़बर को तो सच होना ही था। जो लिख दिया सो लिख दिया।

और आख़िरकार 29 सितंबर को  डायरेक्टर जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशन्स (डीजीएमओ) ने दोपहर बाद प्रेस कान्फ्रेंस करके साफ कहा कि कल रात हमें सटीक जानकारी मिली जिसके बाद नियंत्रण रेखा के करीब आतंकियों के लाँच पैड को नष्ट कर दिया गया।

अब बोलो..? क्विंट ने अपने विरोधियों का मुँह बंद कर दिया कि नहीं… यही बात उसने 22 सितंबर को बताई थी। यह उसकी ख़बर पर मुहर है। ख़बर में सितंबर का महीना और रात की बात तो पूरी तरह सही है न । 20-21 की रात हो या 28-29 की रात…असल बात तो हमला है जो हो गया। है कि नहीं ?

जनरल बहल और ब्रिगेडियर पुगलिया को नाकाम साबित करने के लिए पाकिस्तान ने भी कम कोशिश नहीं की। 28 और 29 की दरम्यानी रात हुए सर्जिकल स्ट्राइक को गोलाबारी ही सही, उसने माना तो। यह भी माना कि 28 सितंबर के हमले में पाकिस्तान के 2 सैनिक मारे गये, लेकिन जब क्विंट ने 21 को अपनी खबर में 20 के मारे जाने की ख़बर दी थी, तो वह चूँ भी नहीं बोला था। पाक मीडिया भी अपने 20 लोगों के मारे जाने की ख़बर पचा गया था।

पर सच तो सच है जनाब। सामने आता ही है…जनरल बहल और ब्रिगेडियर जैसे पत्रकार उसे ढूँढ-ढूँढकर मारेंगे तो उसकी चीख़ शिनाख़्त करा ही देगी।

इस बीच ख़बर है कि क्विंट के दफ़्तर में नई चमक आ गई है। 5-6 लाख से ज़्यादा शेयर हो रही ख़बर को संभालना मुश्किल हो रहा है। सबको राष्ट्रवाद के फ़ायदे समझ आ गये हैं। वहाँ काम करने वाले एक दूसरे से गले मिलते हुए कह रहे हैं—एट लास्ट, वी आर इन !

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