अब सुधीर चौधरी की ‘नाक’ पर बन आई है, तो नैतिक उपदेश झड़ रहे हैं…

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सुधीर चौधरी साहब, जिस बात पर आपको तकलीफ हुई, वो काम आप और आपका चैनल हर दूसरे दिन करता है
विनीत कुमार

देश के प्रथम सेल्फी टीवी संपादक का दर्द उफान पर है. ये दर्द एक ट्वीट की शक्ल में इस तरह उभरा है कि पढ़नेवाला सामान्य पाठक भी समझ जाएगा कि प्रथम सेल्फी संपादक होने का जो दर्जा उन्हें अब तक हासिल था,  उस पर रजत शर्मा और अर्णव गोस्वामी ने मिट्टी मलने का काम किया है. उन दोनों को संजय लीला भंसाली ने पद्मावती पहिले दिखा दी और अब दोनों वैलिडिटी पीरियड राष्ट्रभक्त की भूमिका में मामले को सेटल करने में जी-जान से जुटे हैं.

इधर सुधीर चौधरी सेल्फी सर्टिफिकेट के बावजूद राष्ट्रभक्त होते-होते रह गए. भंसाली ने साबित कर दिया कि भई यदि हमें राष्ट्रभक्त संपादक ही चुनना होगा और भी सरकारी अनुवाद फार्म यानी अंग्रेजी-हिन्दी दोनों में तो आपको क्यों, रजत-अर्णव को क्यों नहीं?

अब देखिए कि सुधीर चौधरी की व्यक्तिगत पीड़ा और खुंदक कैसे महान सिद्धांत की शक्ल में हमारे सामने आयी है. दर्शन ये प्रस्तावित कर रहे हैं कि आप सेंसर बोर्ड से पहले संपादक को फिल्म कैसे दिखा सकते हैं? शुद्ध रूप से नीतिपरक बातें. अच्छा लगता है ये जानकर कि उनके भीतर नैतिकता के पाठ बचे हुए हैं. लेकिन कोई पलटकर उनसे पूछे कि साहब, आप कोर्ट का फैसला आने से पहले किसी को देशद्रोही, किसी संस्थान को राष्ट्रविरोधियों का अड्डा बताते हो, उस वक्त नैतिकता कहां चली जाती है, आपका संपादकीय विवेक कहां चला जाता है?

यहां आपकी ईगो हर्ट हुई और आपको एहसास कराया गया कि आपका कद छोटा है तो आपने ट्वीट कर दिया लेकिन यही काम जब आप करते हो और जिससे कइयों की जिंदगी तबाह हो जाती है, उस वक्त जमीर कभी सवाल नहीं करता कि खबर के नाम पर किसी की जिंदगी से खेलने का हक आपको किसने दे दिया?

सुधीर चौधरी साहब… आज जो सवाल उठा रहे हैं, मैं उसे सौ फीसदी सही मानता हूं. इस तरह से सांस्थानिक ढांचे को लांघकर किसी को भी लूप लाइन नहीं बनानी चाहिए. लेकिन सच तो ये है कि आज आप अपने ही सवालों के बीच एक गुनाहगार की शक्ल में खड़े नजर आ रहे हो.