सुधीर चौधरी साहब, जिस बात पर आपको तकलीफ हुई, वो काम आप और आपका चैनल हर दूसरे दिन करता है
विनीत कुमार
देश के प्रथम सेल्फी टीवी संपादक का दर्द उफान पर है. ये दर्द एक ट्वीट की शक्ल में इस तरह उभरा है कि पढ़नेवाला सामान्य पाठक भी समझ जाएगा कि प्रथम सेल्फी संपादक होने का जो दर्जा उन्हें अब तक हासिल था, उस पर रजत शर्मा और अर्णव गोस्वामी ने मिट्टी मलने का काम किया है. उन दोनों को संजय लीला भंसाली ने पद्मावती पहिले दिखा दी और अब दोनों वैलिडिटी पीरियड राष्ट्रभक्त की भूमिका में मामले को सेटल करने में जी-जान से जुटे हैं.
इधर सुधीर चौधरी सेल्फी सर्टिफिकेट के बावजूद राष्ट्रभक्त होते-होते रह गए. भंसाली ने साबित कर दिया कि भई यदि हमें राष्ट्रभक्त संपादक ही चुनना होगा और भी सरकारी अनुवाद फार्म यानी अंग्रेजी-हिन्दी दोनों में तो आपको क्यों, रजत-अर्णव को क्यों नहीं?
Surprised to see the makers of #Padmavati showing it to select editors even before CBFC clears the film.Most surprising is filmmakers refuse to clarify in the disclaimer whether #Padmavati is a work of fiction or based on history.Lets make these editors CBFC members.
— Sudhir Chaudhary (@sudhirchaudhary) November 18, 2017
अब देखिए कि सुधीर चौधरी की व्यक्तिगत पीड़ा और खुंदक कैसे महान सिद्धांत की शक्ल में हमारे सामने आयी है. दर्शन ये प्रस्तावित कर रहे हैं कि आप सेंसर बोर्ड से पहले संपादक को फिल्म कैसे दिखा सकते हैं? शुद्ध रूप से नीतिपरक बातें. अच्छा लगता है ये जानकर कि उनके भीतर नैतिकता के पाठ बचे हुए हैं. लेकिन कोई पलटकर उनसे पूछे कि साहब, आप कोर्ट का फैसला आने से पहले किसी को देशद्रोही, किसी संस्थान को राष्ट्रविरोधियों का अड्डा बताते हो, उस वक्त नैतिकता कहां चली जाती है, आपका संपादकीय विवेक कहां चला जाता है?
I have seen the complete @FilmPadmavati .I will tell you what I saw in the entire film. Do watch #AajKiBaat Tonight at 9 @indiatvnews pic.twitter.com/bqOAfMmxvl
— Rajat Sharma (@RajatSharmaLive) November 17, 2017
यहां आपकी ईगो हर्ट हुई और आपको एहसास कराया गया कि आपका कद छोटा है तो आपने ट्वीट कर दिया लेकिन यही काम जब आप करते हो और जिससे कइयों की जिंदगी तबाह हो जाती है, उस वक्त जमीर कभी सवाल नहीं करता कि खबर के नाम पर किसी की जिंदगी से खेलने का हक आपको किसने दे दिया?
सुधीर चौधरी साहब… आज जो सवाल उठा रहे हैं, मैं उसे सौ फीसदी सही मानता हूं. इस तरह से सांस्थानिक ढांचे को लांघकर किसी को भी लूप लाइन नहीं बनानी चाहिए. लेकिन सच तो ये है कि आज आप अपने ही सवालों के बीच एक गुनाहगार की शक्ल में खड़े नजर आ रहे हो.