इंसान को भेड़िये में बदलना ‘प्रो इंडिया’ पत्रकारिता नहीं है डॉ.सुभाष चंद्रा !

Mediavigil Desk
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ज़ी न्यूज़ के मालिक डॉ.सुभाषचंद्र ने पिछले दिनों ख़ुद ज़ी न्यूज़ के पर्दे पर आकर सफ़ाई दी कि उनका चैनल बीजेपी का पक्ष नहीं लेता। उन्होंने कहा कि ज़ी न्यूज़ की पत्रकारिता ‘प्रो बीजेपी’ नहीं ‘प्रो इंडिया’ है। यानी वे किसी पार्टी का नहीं भारत का पक्ष लेते हैं (कोई चाहे तो इसमें बीजेपी ही भारत है कि प्रतिध्वनि सुन सकता है!)।

बहरहाल, डॉ.सुभाष चंद्रा ने पत्रकारिता की जो परिभाषा दी है, वह इस पेशे का उल्टा टॉंग देने जैसा है। पत्रकारिता का एक मात्र रिश्ता तथ्य से है। झूठ किसी सरकार का हित कर सकता है, भारत का नहीं जिसका साँविधानिक उद्घोष ही ‘सत्यमेव जयते’ है। यानी जो पत्रकारिता हर हाल में सत्य का झंडा बुलंद करती है, उसे ही भारत का पक्षधर कहलाने का हक़ है।

ज़ी न्यूज़ इन दिनों जेएऩयू मामले में जाली वीडियो चलाने का आरोपी है ( ‘दोषी’ भी लिखा जा सकता है जैसा कि ज़ी न्यूज़ दूसरे आरोपियों के बारे में लिखता है)। वह लगातार संदर्भहीन वीडियो टुकड़े दिखाकर लोगों में उन्माद भरने का अभियान चला रहा है। यहाँ तक कि ज़माने की तक़लीफ़ को आवाज़ देने वाले गौहर रज़ा जैसे शायरों को ‘अफ़ज़ल प्रेमी गैंग’ का हिस्सा बता रहा है। ‘झूठमेव जयते’ का झंडा बुलंद करने वाली यह पत्रकारिता chlamydien test ‘प्रो बीजेपी’ ही हो सकती है, ‘प्रो इंडिया’ नहीं। यह एम्बेडेड (नत्थी पत्रकारिता) का नमूना है जिसने दुनिया में न जाने कितने ‘युद्धपिपाशुओं’ का रास्ता आसान बनाया है।

और सुभाषचंद्रा ने प्रो.इंडिया पत्रकारिता को शिखर पर ले जाने का ज़िम्मा जिस संपादक को सौंपा है, उसकी पहचान क्या है ? मीडिया समीक्षक हिमांशु पांड्या ने एक बेगुनाह शिक्षिका के साथ किये गये उसके ‘दुष्कर्म’ की याद दिलाते हुए अपनी फ़ेसबक वॉल पर कुछ यूँ लिखा है–

uma khurana

यह तस्वीर एक शिक्षक उमा खुराना की है. 28 अगस्त,2007 को उनके तुर्कमान गेट स्थित सरकारी स्कूल के बाहर अचानक भीड़ इकठ्ठा हुई और उमा जी कुछ समझ पातीं, इसके पहले गुस्साई भीड़ ने उन्हें स्कूल के बाहर खींचकर सड़क पर न केवल जान से मारने का प्रयास ही किया बल्कि सरे राह उनके कपडे फाड़ कर नग्न तक कर दिया था. मौके पर पहुंची पुलिस पर भी भीड़ ने पथराव कर दिया. पुलिस की गाड़ियों में आग लगा दी गई.

भीड़ ‘लाइव इंडिया’ नामक एक चैनल पर दिखाई गयी खबर से भड़की हुई थी जिसमें एक स्टिंग ऑपरेशन के जरिये उन्हें सेक्स रेकेट चलाने का दोषी करार दिया गया था.

जांच के बाद यह पूरा स्टिंग ऑपरेशन फर्जी पाया गया. सुधीर चौधरी नामक दलाल पत्रकार ने उमा जी के कुछ दुश्मनों के कहने पर यह नकली स्टिंग किया था. इसमें जिस लडकी को स्कूली छात्रा के रूप में दिखाया गया था, वह दरअसल उसी चैनल की एक रिपोर्टर थी जो छात्रा होने की एक्टिंग कर रही थी. न्यूज़ चैनल पर एक महीने का प्रतिबन्ध लगा दिया गया. उमा जी पूरी तरह बेदाग़ साबित हुईं.

यही सुधीर चौधरी आजकल अपने उसी फर्ज़ी वीडियो के पुराने हथकंडे से लोगों को देशद्रोही साबित करने में लगे हैं. इस बार वे भीड़ को लोगों को मार देने के लिए उकसा रहे हैं.

उमा जी की जगह खुद को रखकर सोचियेगा एक बार.

एक पत्रकार हमें भेड़ियों में बदल रहा है.”

सुधीर चौधरी, इंसान को भेड़ियों में बदलने के इसी सिलसिले को ज़ी न्यूज़ के ज़रिये नई ऊँचाइयों पर पहुँचा रहा है और डॉ.सुभाष चंद्रा इसे ‘प्रो इंडिया’ पत्रकारिता बता रहे हैं। सुधीर उन्हें इतना पसंद है कि उगाही के मामले में जेल जाने के बावजूद उसे संपादक की कुर्सी से हटाने की न्यूनतम् कार्रवाई नहीं की गई। ज़ाहिर है, यह रिश्ता पसंद से कुछ आगे का है. नीचे जिंदल समूह से उगाही का जो चर्चित वीडियो दिया गया है, उसमें बार-बार जिस तरह सुभाष चंद्रा का नाम लिया जा रहा है, वह इस रिश्ते को स्पष्ट कर देता है। पैसा लेकर नेकनामी या बदनामी दिलाने की यह सुपारी पत्रकारिता सदियों बाद भी कलंक की तरह याद की जाएगी।

देशप्रेम और पत्रकारिता की परिभाषा सिखाने से पहले डॉ.सुभाष चंद्रा अगर अपने गिरहबान में झाँक लें तो बेहतर होगा। उनके कारनामे जिस ’भारत’ के पक्ष में हैं, वह शहीदों के सपनों का भारत नहीं है। सुभाषचंद्रा और सुधीर चौधरी के भारत से द्रोह करना ही सच्ची देशभक्ति है !

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