विनीत कुमार
न्यूज चैनल के एंकर एवं एंकरिनी!
आप लोग ताजमहल पर नेताओं से झौं-झौं करवाने के बीच देश के कुछ उन लोगों से भी कुछ बुलवा लो जिसने प्रेम तो किसी लड़के से किया, इश्क किसी लड़की से हुआ लेकिन दोनों की कहानी में ताजमहल एक गवाह बनकर मौजूद रहा. ऐसा गवाह जिसने हाथ पकड़कर न तो कन्यादान किया और न ही मजिस्ट्रेट के आगे गवाही दी.
लेकिन दोनों ने जब उसकी साइड के मीनारों और गुंबद की तरफ देखकर हौले से एक-दूसरे का हाथ थामा तो मन ही मन दोहराया- हम प्रेम के इस प्रतीक को साक्षी मानकर कसम खाते हैं कि अपनी इस दोस्ती में, प्रेम में कभी भी गलतफहमी को आने नहीं देंगे… हम जब भी ऐसा करें, ताजमहल तुम हमें याद आ जाना..
कभी उनसे भी एकाध बाइट ले लो जो बुरी तरह मिड लाइफ क्राइसिस में जी रहे थे. आखिरी उम्मीद से ताजमहल के पास आए और जैसे किसी पीर की दुआ सा असर हुआ साथ की उस अकेली एक तस्वीर से. जब कभी अलग होना भी चाहा तो ताजमहल आड़े आ गया और तब से इसकी गुंबदों के बीच अटककर जीते रह गए.
एंकर-एंकरनी… पता नहीं आपने किस स्कूल, किस मीडियम और बोर्ड से पढ़ाई की है कि आपको ताजमहल सिर्फ और सिर्फ सियासत की इमारत लगता है. कुछ नहीं तो हिन्दी की बेच दी हुई किताबें दरियागंज संडे मार्केट से दोबारा खरीदकर पलटिए, आपको ताजमहल के बारे में वो सबकुछ मिलेगा जिसकी जरूरत आपकी टीवी बहस से कहीं ज्यादा समाज को है.
सच तो ये है सरजी-मैडमजी कि इस इमारत पर हिन्दुस्तान के प्रेमी-प्रेमिकाओं के इश्क की परत इतनी गहरी चढ़ी हुई है कि आप उसे ही कुरेदेंगे तो खुद को मानवीयता की उस जमीन पर खड़ा पाएंगे जहां से आप इसे पत्थर, गारे की इमारत के रूप में नहीं, उस रूपक की तरह देख पाएंगे जहां वो कल को रहे या न रहे, वो रूपक इसकी तासीर को बचाए रखेगा.
विनीत कुमार की फेसबुक वॉल से साभार। लेखक मीडिया शिक्षक और विश्लेषक हैं।