समाचार चैनलों में केवल एक शब्द ‘दलित’ या ‘मुसलमान’ कितना पैनिक मचा सकता है, सुमित अवस्थी का 4 फरवरी को प्रसारित हुआ ”सबसे बड़ा दंगल” नाम का टॉक शो उसका उदाहरण है। परिचर्चा के अंतिम दो मिनट काफी दिलचस्प हैं जिन्हें नीचे देखा जा सकता है।
दो मिनट का यह छोटा सा हिस्सा मीडिया और उसके संपादकों के चरित्र को खोलकर रख देता है। इस बारे में अकील अहमद ने अपनी फेसबुक दीवार पर दिलचस्प टिप्पणी की है:
”अम्बानी का NEWS18 INDIA पर समाजवादी पार्टी के प्रतिनिधि के अनुपस्थिति में, बसपा और भाजपा के प्रवक्तावो द्वारा कार्यक्रम ‘सबसे बड़ा दंगल’ में अखिलेश सरकार की खूब आलोचना करवाने के बाद, जब anchor सुमित अवस्थी ने उछल उछल उत्साह बढाने वाले उपस्थित दर्शको से पूछा – “कितने लोग मानते है की भाजपा की सरकार बनेगी”….लगभग आधे लोगो के हाथ उठे..फिर सुमित ने पूछा _”कितने लोग मानते है CONG+SP की सरकार बनेगी ..फिर लगभग उतने ही लोगो के हाथ उठ गये ….
अब बारी … थी सुमित की बसपा के बारे में पूछने की …”कितने लोग मानते है कि बसपा की सरकार बनेगी __एकदम सन्नाटा __एक भी हाथ नही उठा …….अब इठलाते बलखाते एक कुटिल मुस्कान के साथ anchor सुमित अवस्थी बसपा के प्रवक्ता सुधीन्द्र भदौरिया से व्यंगपूर्ण लहजे में कहा ..’देख रहे ….आपकी पार्टी को तो एक भी व्यक्ति नही कह रहे की सरकार बना पाएंगे ‘…..सुधीन्द्र भदौरिया ने जवाब में mike उठाया और सीधा दर्शको से पूछ लिया ..”आप सब में कितने ‘दलित ‘ हैं , हाथ उठाईये …..
अदभुत ..एक भी हाथ नही उठा..इधर नंगा हो गए सुमित अवस्थी के चेहरे के रंग उड़ गए और वो चिल्लाने लगा ..ये क्या बात हुई ये कैसा प्रश्न है …..और फिर कार्यक्रम भी वही समाप्त।”
सुमित अवस्थी का भदौरिया के सवाल पर भड़क जाना दिखाता है कि टीवी मीडिया में किस तरह चुनी हुई जनता से काम चलाया जाता है, जिसके बारे में भदौरिया कह रहे थे कि यह ”मिश्रित” दर्शकवर्ग नहीं है। चूंकि एक भी हाथ भदौरिया के सवाल के जवाब में नहीं उठा, तो साफ था कि दर्शकों में से कोई भी दलित नहीं था। जब कोई दलित है ही नहीं तो बसपा पर हाथ क्यों उठाएगा क्योंकि बसपा तो दलितों की ही पार्टी है।
सुमित अवस्थी को इतनी सी बात समझ में नहीं आई और उन्होंने भदौरिया पर जातिवादी होने का आरोप लगा डाला। क्या विडंबना है। जो ऐंकर और चैनल अपने श्रोताओं में एक भी दलित या मुसलमान को नहीं रखता वह जातिवादी नहीं है लेकिन जो नेता उसमें दलित के न होने का सवाल उठाता है वह जातिवाद करने का आरोपी बना दिया जाता है।
सुमित अवस्थी का सवर्णवाद और ब्राह्मणवाद नंगा होते ही प्रोग्राम का अंत हो जाना स्वाभाविक था।