IIMC के छात्रों को प्रवचन देंगे ‘तिहाड़ी’ पत्रकारिता के जनक सुभाषचंद्रा !

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भारतीय जन संचार संस्थान यानी आईआईएमसी में 3 अप्रैल को डॉ.सुभाषचंद्रा का ‘प्रवचन’ होगा। संस्थान की ओर से छात्रों को ‘डॉ.सुभाषचंद्रा शो’ में शामिल होने का सर्कुलर जारी किया गया है। यानी मामला सिर्फ़ संस्थान के ऑडीटोरियम में किसी टीवी शो की शूटिंग का नहीं है, संस्थान चाहता है कि छात्र इससे लाभान्वित भी हों।

तो क्या पत्रकारिता सिखाने वाले देश के इस सबसे मशहूर संस्थान के लिए अब पत्रकारिता के आदर्श सुभाषचंद्रा जैसे मीडिया मुगल ही हैं। सुभाषचंद्रा का पत्रकारिता में योगदान ज़ी न्यूज़ जैसा न्यूज़ चैनल है, जिसकी ख़्याति इन दिनों नकली वीडियो गढ़ने और दो हज़ार के नोट में चिप होने की अफ़वाह उड़ाने को लेकर है। यह सही है कि डॉ.सुभाषचंद्रा बीजेपी के सहयोग से राज्यसभा सदस्य बने हैं लेकिन यह चैनल बीजेपी की जैसी बेशर्म वक़ालत करता है, उससे तो बीजेपी के पुराने नेता भी झेंप जाते हैं।

जेएनयू को ‘देशद्रोही’ साबित करने के लिए ज़ी न्यूज़ ने कैसे वीडियों में छेड़छाड़ की थी, इसका भंडाफोड़ तो संस्थान के ही एक प्रोड्यूसर विश्वदीपक ने की थी। पत्रकारिता के नाम पर जारी इस खेल से बेहद आहत विश्वदीपक ने इस्तीफ़ा देने के साथ जो पत्र सार्वजनिक किया था,वह हिला देने वाला था। ज़ी को लोग ‘छी न्यूज़’ तक कहने लगे थे। पढ़े-ज़ी न्यूज़ के पापों से घिन आ रही थी, प्रोड्यूसर विश्वदीपक ने दिया इस्तीफ़ा !

यही नहीं, ज़ी न्यूज़ अकेला चैनल है जिसके संपादक सुधीर चौधरी अपने सहयोगी के साथ उगाही के मामले में तिहाड़ की हवा खा चुके हैं। सौ करोड़ की उगाही का यह मामला बिना कंपनी के मालिक यानी सुभाषचंद्रा की जानकारी के संभव नहीं था। यही वजह है कि इस सिलसिले में हुए स्टिंग ऑपरेशन के सामने आने के बाद कंपनी ने कोई कार्रवाई नहीं की। यही नहीं सुधीर चौधरी के जेल से वापस आने के बाद उसे फिर ज़ी के संपादक की कुर्सी से नवाज़ दिया गया। बेशर्मी का ऐसा कोई उदाहरण पत्रकारिता के इतिहास में नहीं मिलता जो बार-बार दूसरों को इस कसौटी पर कसता है कि नेताओं को ईमानदार होना ही नहीं चाहिए, दिखना भी चाहिए। और आरोप लगते ही पद से इस्तीफ़ा माँगने का भी चलन हो।


बहरहाल, सुभाषचंद्रा ने अपने बूते अपना मीडिया साम्राज्य खड़ा किया है (कैसे किया है, उसके काफ़ी संकेत उनकी हाल में प्रकाशित आत्मकथा में मिलते हैं !) वे अपने चैनल पर प्रवचन देने के लिए आज़ाद हैं। सवाल तो आईआईएमसी से है कि वह कैसे लोगों को पत्रकारिता के आदर्श बतौर छात्रों के सामने पेश कर रहा है।

.बर्बरीक