यह संयोग नहीं है कि इस गणतंत्र दिवस यानी रिपब्लिक डे पर 26 जनवरी को चिल्लाकर अंग्रेज़ी बोलने वाले इकलौते भारतीय समाचारवाचक अर्नब गोस्वामी का समाचार चैनल ‘रिपब्लिक’ लॉन्च हो रहा है। इसे मुहावरे में समझें या यूं ही, लेकिन यह ‘रिपब्लिक’ अब औपचारिक रूप से एनडीए यानी भारतीय जनता पार्टी यानी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अपनी दुकान होगा जिसके गर्भगृह यानी न्यूज़रूम में केवल दक्षिणमुखी बजरंगियों की एक फौज आपको जबरन राष्ट्रवाद की खुराक पिलाने का धंधा करेगी।
टाइम्स नाउ छोड़ने के अगले ही दिन अर्नब गोस्वामी ने इस कंपनी को ज्वाइन कर लिया था। कहा जा रहा था कि यह स्वतंत्र पत्रकारिता का एक ठिकाना होगा, लेकिन इंडियन एक्सप्रेस ने सबसे पहले ख़बर छापी कि इस चैनल में सबसे बड़ा निवेश भारतीय जनता पार्टी के राज्यसभा सांसद और केरल में एनडीए के उपाध्यक्ष उद्यमी राजीव चंद्रशेखर का होगा। (फोटो दाएँ) ‘रिपब्लिक’ की मूल कंपनी का नाम है एआरजी आउटलायर मीडिया प्राइवेट लिमिटेड जिसके प्रबंध निदेशक खुद अर्नब गोस्वामी हैं, जिन्होंने 19 नवंबर को यह पद ग्रहण क लिया था और उसके बाद से घूम-घूम कर सबको बता रहे हैं कि यह चैनल दिल्ली की लुटियन पत्रकारिता को चुनौती देगा।
चंद्रशेखर ने इस चैनल में 30 करोड़ रुपये का निवेश अपनी अलग-अलग कंपनियों के रास्ते किया है। चंद्रशेखर की एशियानेट के अलावा अर्नब की कंपनी एसएआरजी मीडिया होल्डिंग का इसमें निवेश है।
मसला केवल निवेश का नहीं है बल्कि इस गणतंत्र को लेकर जैसी परिकल्पना इसके मालिकों ने रची है, उसी हिसाब से अपना गणतंत्र रचने के लिए उन्हें कामगार फौज की भी तलाश है। इंडियन एक्सप्रेस की 21 सितंबर की एक ख़बर के मुताबिक चंद्रशेखर की कंपनी जुपिटर कैपिटल के सीईओ अमित गुप्ता ने अपनी संपादकीय प्रमुखों को एक ईमेल भेजा था जिसमें निर्देश दिया गया था कि संपादकीय टीम में उन्हीं पत्रकारों को रखा जाए ”जिनका स्वर दक्षिणपंथी हो”, ”जो सेना समर्थक हों”, ”चेयरमैन चंद्रशेखर की विचारधारा के अनुकूल हों” और ”राष्ट्रवाद व राजकाज” पर उनके विचारों से ”पर्याप्त परिचित” हों।
बाद में गुप्ता ने हालांकि इस ईमेल को ”इग्नोर” करने के लिए एक और मेल लिखा, लेकिन बंगलुरू में अंडर 25 समिट में अर्नब ने अपने रिपब्लिक के पीदे का विचार जब सार्वजनिक किया तो यह साफ़ हो गया कि टीवी के इस नए गणतंत्र को दरअसल वास्तव में बजरंगी पत्रकारों की एक ऐसी फ़ौज चाहिए जो मालिक के कहे मुताबिक दाहिनी ओर पूंछ हिला सके। अर्नब का कहना था कि वे लुटियन की दिल्ली की पत्रकारिता से पत्रकारिता को बचाने का काम करेंगे क्योंकि वे लोग समझौतावादी हैं और उन्हें जनता का प्रतिनिधित्व करने का कोई हक़ नहीं है।
क्या वास्तव में पत्रकार जनता का प्रतिनिधि हो सकता है? अगर चैनल ‘रिपब्लिक’ हो सकता है तो पत्रकार उसका प्रतिनिधि भी हो सकता है। ज़ाहिर है, सच्चा प्रतिनिधि वही होगा जो रिपब्लिक के मालिकान की अवधारणा के साथ हो।
बहरहाल, इंडियन एक्सप्रेस ने जब लिखकर अर्नब से यह सवाल पूछा कि क्या उनके मालिक चंद्रशेखर का चैनल में निवेश हितों का टकराव नहीं है क्योंकि वे खुद रक्षा सौदों से जुड़े हैं और रक्षा पर संसद की स्थायी समिति के सदस्य भी हैं साथ ही रक्षा मंत्रालय की परामर्श समिति में भी हैं। इस पर अर्नब की ओर से अख़बार को कोई जवाब नहीं मिला। देखें:
Leaked email says ‘editorial talent’ in @rajeev_mp owned media channels should be aligned to his ‘ideology’https://t.co/YIeFYvGpL1 pic.twitter.com/tBLtxWXJIq
— Srivatsa (@srivatsayb) October 20, 2016
‘रिपब्लिक’ 26 जनवरी से शुरू हो रहा है। यह रिपब्लिक डे पर किसी भी पत्रकारिता संस्थान के लिए गौरव की बात होनी चाहिए, लेकिन एक बात साफ़ है कि इस रिपब्लिक में संविधान के मूल्यों का तटस्थता से निर्वाह नहीं किया जाएगा क्योंकि इसके स्वामित्व पर सवाल हैं और पत्रकारों की भर्ती प्रक्रिया पर भी सवाल उठ चुके हैं। देखने को केवल यह रह जाता है कि नया वाला रिपब्लिक पुराने वाले रिपब्लिक की पैदाइश है या पुराना वाला रिपब्लिक चलाने वालों को नए रिपब्लिक की जरूरत आन पड़ी है।