13 जुलाई को गिरिडीह के एसपी अमित रेणु ने पत्रकारों को बताया कि गुप्त सूचना के आधार पर पीरटांड़ थाना क्षेत्र के कई उग्रवादी कांडों में शामिल एक लाख का इनामी नक्सली तूफान मांझी उर्फ राजकुमार किस्कू उर्फ किशोर चंद किस्कू उर्फ अनिल किस्कू को एसडीपीओ नीरज सिंह के नेतृत्व में छापामारी दल गठन कर डुमरी-गिरिडीह के मुख्य पथ पर स्थित मांझीडीह चैक पर गिरफ्तार किया गया। एसपी ने बताया कि पिछले कुछ दिनों से यह सूचना मिल रही थी कि कई कांडों का नामजद नक्सली तूफान अपने घर से लेकर मांझीडीह के आसपास देखा जा रहा है। जिस पर धनबाद व गिरिडीह जिला के कई थानों में नक्सल घटनाओं से संबंधित मुकदमा दर्ज हैं, जिसमें गिरिडीह जिला के पीरटांड़ थाना कांड संख्या-33/01, 58/01, 05/02, 01/08, 45/08, 32/10 यानी कुल छः मुकदमे व धनबाद जिला के तोपचांची थाना कांड संख्या 174/01 व टुंडी थाना कांड संख्या 66/09 में ये नामजद अभियुक्त हैं।
गिरिडीह एसपी के दावे के इतर गिरफ्तार इनामी नक्सली के कागजात एक दूसरी ही कहनी बयां कर रहे हैं। उसके पास आधार कार्ड, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड मौजूद हैं और इन सभी कागजात पर उनका नाम राजकुमार किस्कू है। 2016 में उसे प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत सरकार से घर बनाने के लिए पैसे भी मिले हैं, हालांकि यह पैसा उनकी पत्नी प्रमिला हेम्ब्रम के बैंक अकांउट में आया था, लेकिन उसमें भी पति का नाम राजकुमार किस्कू ही दर्ज है। राजकुमार किस्कू गिरिडीह जिला के पीरटांड़ थानान्तर्गत झरहा का रहने वाला है।
राजकुमार किस्कू की पत्नी प्रमिला हेंब्रम बताती है कि ‘मेरे पति हमेशा से गांव में ही रह रहे हैं। पहले पत्ता का छोटा सा बिजनेस करते थे, लेकिन 4-5 साल पूर्व से ही हम दोनों पति-पत्नी मांझीडीह चैक पर पीरटांड जिला परिषद् सदस्य सबीना हांसदा के दुकान को किराये पर लेकर एक छोटा सा होटल चला रहे थे। जिसमें चाय, पकौड़े, समौसा व कभी-कभार मुर्गा भी बनाकर बेचते थे। हमारी दुकान डुमरी-गिरिडीह मुख्य पथ पर है और कई बार पीरटांड़ थाना के पुलिस भी हमारे दुकान में चाय-पकौड़े खाये हैं। हरेक चुनाव में मेरे दुकान के बगल में स्थित विद्यालय में अर्द्धसैनिक बलों के कैंप लगते हैं और वे लोग भी हमारे दुकान पर बैठते थे।’
वे कहती है कि ‘हर दिन की तरह 12 जुलाई को हम दोनों पति-पत्नी दुकान पर ही थे, दिन के 12 बजे के लगभग पुलिस की गाड़ी आयी और एक ऑफिसर ने मेरे पति से आधार कार्ड मांगा। उन्होंने आधार कार्ड लेकर देखने के बाद मेरे पति को कहा कि थाना चलो कुछ पूछताछ करनी है और मेरे पति को लेकर पीरटांड़ थाना चले गये। मैं भी पीछे-पीछे थाना आयी। पुलिस ने मुझे बताया कि पूछताछ कर शाम में छोड़ दूंगा। 12 जुलाई की रात-भर मैं पति के घर आने का इंतजार करती रही लेकिन वे नहीं आये। 13 जुलाई की सुबह मैं फिर थाना पहुंची, तो पुलिस ऑफिसर ने मुझे इनके भाइयों को बुलाने को कहा। मैं इनके सभी भाईयों को थाना ले गयी। उन लोंगो से भी पुलिस ने पूछताछ की और बोला की शाम तक छोड़ देंगे। लेकिन 14 जुलाई को अखबार में छपा कि मेरे पति को इनामी नक्सली बताकर जेल भेज दिया गया है’।
प्रमिला हेंब्रम कहती हैं कि ‘मेरे दो छोटे बेटे हैं और अब अकेले दुकान चलाना मुश्किल है, इसलिए तब से ही दुकान भी बंद है।’ वे सवाल करती हैं कि ‘अगर मेरे पति इनामी नक्सली होते, तो मुख्य सड़क पर 4-5 साल से दुकान क्यों चलाते’?
प्रमिला हेब्रम अपने पति की गिरफ्तारी 12 जुलाई को बता रही है, जबकि गिरिडीह एसपी ने 13 जुलाई को गिरफ्तार करने की बात कही थी। आखिर गिरफ्तारी की तिथि में हेर-फर क्यों? प्रमिला हेम्ब्रम की बात से सहमति जताते हुए पीरटांड के जिला परिषद् के पति रविलाल किस्कू ने भी कहा कि मेरे ही दुकान में किराये पर पिछले 4-5 साल से राजकुमार किस्कू व इनकी पत्नी दुकान चला रही है।
राजकुमार किस्कू की गिरफ्तारी के मामले पर उनके पिता बाबूलाल किस्कू बताते हैं कि ‘मुझे सात बेटे थे, एक बेटे की मृत्यु हाल-फिलहाल ही हुई है। राजकुमार का और तीन नाम किशोर चंद किस्कू, अनिल किस्कू और तूफान मांझी पुलिस बता रही हैं, यह सच नहीं है। हां, राजकुमार का बड़ा भाई का नाम किशोर लाल किस्कू जरूर है, जो कि आज से 15-16 साल पहले ही विक्षिप्त अवस्था में घर से गायब हो गया था, जिसका अब तक पता नहीं चला है। उसे एक बेटी भी है, जो उस समय मात्र 2 साल की थी, अब उसकी शादी भी हो गई है। अगर पुलिस राजकुमार को किशोर समझकर गिरफ्तार की है, तो यह हमारे उपर बहुत बड़ा अन्याय है।’
बाबूलाल किस्कू कहते हैं कि अगर मेरा बेटा इतना बड़ा नक्सली था और उसके उपर इतने मुकदमे थे, तो फिर आजतक हमारे घर में पुलिस या न्यायालय का एक भी नोटिस क्यों नहीं आया? जबकि राजकुमार का राशन कार्ड, आधर कार्ड, मतदाता पहचान पत्र जैसे सभी वैध कागजात है, वह हर चुनाव में वोटिंग करता रहा है, वह खुलेआम मुख्य पथ पर दुकान चला रहा है, तो फिर पूछताछ के नाम पर एक दिन थाना में रखने के बाद गिरफ्तारी दिखाकर जेल भेज देना कहां का न्याय है?’
गिरिडीह एसपी और राजकुमार किस्कू के परिजनों के पास मौजूद सभी साक्ष्यों को देखने से तो यही लगता है के पुलिस की कहानी में काफी झोल है और पुलिस की कहानी पर सवाल ही सवाल है।
झारखंड में पिछली भाजपा सरकार के भी कार्यकाल में कई फर्जी मुठभेड़ और फर्जी गिरफ्तारियां चर्चा का विषय बनी थी, जिसमें कई मामले में अभी जांच चल भी रही है। झारखंड में दिसंबर 2019 में सत्ता परिवर्तन तो हो गया, लेकिन यहां के आदिवासियों-मूलवासियों पर नक्सली के नाम पर पुलिसिया जुल्म यथावत जारी है।
रूपेश कुमार सिंह, स्वतंत्र पत्रकार हैं।