भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने निजीकरण के खिलाफ बैंक यूनियनों की हड़ताल का समर्थन किया है। 9 बैंक यूनियनों की संयुक्त संस्था, यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (यूएफबीयू) ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण और मोदी सरकार द्वारा लाए गए प्रतिगामी बैंकिंग सुधारों के खिलाफ 15 और 16 मार्च को दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है।
कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने इसे लाभ का निजीकरण और नुकसान का निजीकरण बताते हुए मोदी सरकार पर हमला बोला है। उन्होंने कहा है कि वे पूरी तरह बैंककर्मियों के साथ हैं।
केंद्र सरकार लाभ का निजीकरण और नुकसान का राष्ट्रीयकरण कर रही है।
सरकारी बैंक मोदी मित्रों को बेचना भारत की वित्तीय सुरक्षा से खिलवाड़ है।
मैं हड़ताल कर रहे बैंक कर्मचारियों के साथ हूँ।#BankStrike
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) March 16, 2021
इसके पहले कांग्रेस महासचिव रणदीप सुरजेवाला ने प्रेस वार्ता में कहा कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के ताबड़तोड़ निजीकरण के खिलाफ हड़ताल में भाग ले रहे 10 लाख बैंक कर्मचारियों के साथ हम एकजुटता प्रकट करते हैं।
यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस द्वारा आह्वान की गई हड़ताल मोदी सरकार की ग़लत प्राथमिकताओं के खिलाफ है। लोगों को हो रही असुविधा के लिए मोदी सरकार ही पूर्णतया जिम्मेदार है।
सुरजेवाला ने कहा कि सरकारी बैंकों को निजी हाथों में बेचने का कोई औचित्य नहीं है। यह विनिवेश से जुड़े 1.75 लाख करोड़ रुपये के लक्ष्य को हासिल करने का एक और हताशापूर्ण प्रयास है।
उन्होंने कहा कि रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन जैसे विशेषज्ञ ने भी इसको लेकर आगाह किया है और कहा कि यह बहुत बड़ी गलती होगी।
कांग्रेस महासचिव सुरजेवाला ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा बैंकों के राष्ट्रीयकरण करने का मकसद बैंकिंग व्यवस्था को हर भारतीय के पास ले जाना था। इस निर्णय का उद्देश्य ऐसे लोगों को बैंकिंग सुविधाएँ और ऋण उपलब्ध कराना था, जो उच्च कारोबारी प्राथमिकता में नहीं आते। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक सिर्फ मुनाफा कमाने के लिए नहीं होते, बल्कि अतीत में इनका इस्तेमाल सामाजिक सुधारों के माध्यम के तौर पर भी हुआ है।
उन्होंने कहा कि देश की बड़ी आबादी गांवों में रहती है और कृषि से जुड़ी हुई है। हमें उन तक पहुंचने के लिए सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की जरूरत है। निजी क्षेत्र की प्राथमिकता सूची में गांव और छोटे कस्बे में नहीं रहे हैं।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में अंधाधुंध तरीके से बेचकर सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में बेहतर प्रशासन सुनिश्चित करने की अपनी जिम्मेदारी से भाग रही है। सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को बेचने की बजाय में उनके अधिक जवाबदेही सुनिश्चित करने की जरूरत है।
सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक सड़कों जैसे सार्वजनिक बुनियादी ढांचे और ग्रामीण क्षेत्रों जैसे प्राथमिकता वाले क्षेत्रों को ऋण देने में सबसे आगे रहे हैं, जहाँ वित्तपोषण की अत्यंत आवश्यकता रहती है।
अतीत में भी, इस सरकार ने ओएनजीसी को एचपीसीएल का अधिग्रहण करने के लिए मजबूर किया, जो ओएनजीसी के लिए कोई लाभकारी सौदा नहीं था। इस सौदे के कारण ओएनजीसी के नकद भंडार में 91 प्रतिशत की गिरावट आई और आज ओएनजीसी को 2014 में तेल की खोज पर किए गए खर्च की तुलना में आधे से भी कम खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ा, जिसके परिणामस्वरुप घरेलू तेल उत्पादन मोदी शासन के दौरान बहुत काम हो गया है।
रणदीप सुरजेवाला ने कहा सरकार को ‘हम दो-हमारे दो’ की मानसिकता से बाहर निकलने की ज़रूरत है। इसकी बजाय सरकार को सभी गरीबों और समाज में हाशिए पर रह गए लोगों के साथ-साथ हर भारतीय के कल्याण पर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए।