92 साल का एक विदेशी बूढ़ा मोदी जी के लिए खतरनाक कैसे हो गया?

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
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एक तरफ घोटाला दर घोटाला की खबरें आ रही हैं दूसरी ओर, केंद्रीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा है कि सोरोस बूढ़े, अमीर और खतरनाक हैं। इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को लीड बनाया है और यही शीर्षक है। उन्होंने ‘डर के मनोविज्ञान’ को भी रेखांकित किया है और यह भी इंडियन एक्सप्रेस के शीर्षक का हिस्सा है। अखबार की खबर के अनुसार सोरोस का भारत सरकार या प्रधानमंत्री के खिलाफ बोलना हमें परेशान करता है क्योंकि हमने उपनिवेशवाद झेला है…. विदेशी हस्तक्षेप का डर जानते हैं: ऑस्ट्रेलिया में विदेश मंत्री। 

यह अलग बात है इंडियन एक्सप्रेस ने आज उद्धव ठाकरे की खबर को भी प्रमुखता दी है और लीड के शीर्षक से ज्यादा जगह में इसका शीर्षक है, “चुनाव चिन्ह से झटके के बाद उद्धव ने विरोध तेज किया : चोर को सीख मिलनी चाहिए, चुनाव आयोग प्रधानमंत्री के गुलाम की तरह काम कर रहा है।” यह या ऐसा शीर्षक आजकल अखबारों में निश्चित रूप से दुर्लभ है। द टेलीग्राफ ने इस खबर का शीर्षक लगाया है, “उद्धव मोदी से,  कहिए कि लोकतंत्र खत्म हो गया है।” फ्लैग शीर्षक है, “सेना नेता ने चुनाव आयोग के निर्णय़ पर हल्ला बोला।”

कहने की जरूरत नहीं है कि सरकार की ओर से बीबीसी की खबर को भी इसी श्रेणी में डाला जा चुका है। भारत में अगर कोई ऐसी खबर करे तो उसके खिलाफ सरकारी कार्रवाई और जांच होती है और विदेश में कोई खिलाफ बोले तो मोदी के खिलाफ साजिश हो जाती है। इसलिए न सिर्फ उसपर रोक लगा दी गई, डॉक्यूमेंट्री के कुछ दिन बाद भारत में बीबीसी के दफ्तर पर छापा भी पड़ गया। उसके बारे में कहा गया है कि कुछ आपत्तिजनक मिला है लेकिन क्या, यह अभी नहीं बताया गया है। इसके बावजूद विदेश मंत्री ने जो कहा उसे सिर्फ जर्नलिज्म ऑफ करेज वाले  इंडियन एक्सप्रेस ने लीड बनाया है। टाइम्स ऑफ इंडिया में यह खबर सिंगल कॉलम है। हिन्दुस्तान टाइम्स में पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर डबल कॉलम है और द हिन्दू में पहले पन्ने पर है ही नहीं। 

आप जानते हैं कि विदेश मंत्री 1977 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हुए थे और 29 जनवरी 2015 को भारत के विदेश सचिव बने थे। 2018 में सेवा से रिटायर हुए और 23 अप्रैल 2018 को विदेश मंत्री बना दिए गए। विदेश सचिव के रूप में  उनकी नियुक्ति की घोषणा 28 जनवरी 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक के बाद लिया गया। यानी नरेन्द्र मोदी ने जिसे विदेश सचिव बनाया उसे ही विदेश मंत्री बना दिया। उनका राजनीति से कितना और कैसा संबंध रहा होगा आप समझ सकते हैं। पर वह अलग मुद्दा है। 

अब उनके कहे पर आता हूं। उन्होंने एक बूढ़े विदेशी को ‘खतरनाक’ भी कहा है। चूंकि सोरोस की टिप्पणी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके मित्र अडानी पर है इसलिए यही माना जाए कि वे प्रधानमंत्री के लिए खतरनाक हैं। उस प्रधानमंत्री के लिए जो 2019 के चुनाव से पहले घुसकर मारने की बात करते थे। सवाल यह है कि प्रधानमंत्री रहते हुए नरेन्द्र मोदी इतने कमजोर कैसे हुए कि एक विदेशी बूढ़ा उनके लिए इतना खतरनाक हो गया। जाहिर है उनके काम ही इसका कारण हो सकते हैं और वह अडानी का साथ देना उन्हें पैसे कमाने में सहायता देना है। आज ही खबर छपी है एक केंद्रीय मंत्री ने पांच-छह कारोबारियों को फोन करके अडानी के एफपीओ में पैसे लगाने के लिए कहा था। 

अभी यह आरोप है और अन्य आरोपों की तरह इसका भी जवाब शायद ही मिले पर एक दो आरोप नहीं हैं कि उन्हें निराधार मान लिया जाए बल्कि कइयों के परिस्थितजन्य साक्ष्य हैं। दूसरी ओर यह कहा जा चुका है कि इसमें छिपाने या डरने के लिए कुछ नहीं है लेकिन जांच की मांग के बावजूद मामले की जाँच नहीं कराई जा रही है। ऐसे में क्यों न माना जाए कि प्रधानमंत्री के लिए अगर एक बूढ़ा विदेशी खतरनाक है और विदेश मंत्री इसे जानते हैं तो उन्हें बताना चाहिए कि प्रधानमंत्री इतने कमजोर क्यों और कैसे हो गए, कब हुए कि कोई उनके लिए खतरनाक कैसे हो गया या है। निश्चित रूप से उन्हें इसपर प्रकाश डालने की जरूरत है पर ऐसा होगा क्या? 

इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को इतना महत्व क्यों दिया है, समझना मुश्किल नहीं है। सरकार और सरकारी पार्टी हर विरोधी को ऐसे ही बदनाम करती है वह चाहे कम्युनिस्ट हो या अरबन नक्सली या विदेशी। ऐसे जैसे आरोप वही सही होंगे जो भाजपा अधिकृत रूप से लगाए। वैसे तो इसकी संभावना भी होनी ही चाहिए और कांग्रेस पर आंतरिक लोकतंत्र न होने का आरोप लगाया जाता रहा है। यह भाजपा के आंतरिक लोकतंत्र का मामला है और पार्टी में यह कितना है या है भी कि नहीं मैं नहीं जानता लेकिन यह जरूर जानता हूं कि भाजपा में बहुत कम लोगों की हिम्मत है कि सरकार या प्रधानमंत्री के खिलाफ बोल पाएं। पर वह भी अलग मुद्दा है। 

फिलहाल सोरोस को बदनाम करने की सरकारी कोशिशों पर पी चिदंबरम ने कहा है, मैं नहीं जानता था कि मोदी सरकार इतनी कमजोर है कि 92 साल के एक अमीर विदेशी के बयान भर से पलट जाए। कहने की जरूरत नहीं है कि गोदी मीडिया सरकार के बताये रास्ते पर नतमस्तक है जबकि द टेलीग्राफ ने आज बताया है कि प्रधानमंत्री को खुश करने के लिए सोरोस को क्या करना चाहिए। इस बॉक्स का शीर्षक यही है और इसमें बताया गया है कि एक जॉर्ज सोरोस विश्व गुरु लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड (केवल नरेंद्र मोदी को प्रदान किया जाने वाला) स्थापित करें। वैसे भी कोई अपराधी भी आरोप लगाये तो आरोप खारिज नहीं होगा बल्कि जवाब तो तब भी दिया जाना चाहिए। आरोप लगाने वाले से मजबूत हो तो विपक्ष के नेता से आरोप को ऑथेंटिकेट करने के लिए क्यों कहा जाता है? 

आप निम्नलिखित रोल ऑफ ऑनर से प्रेरणा और विचार प्राप्त कर सकते हैं। “प्रथम-फिलिप कोटलर प्रेसिडेंशियल अवार्ड” जनवरी 2019 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी को उनके “राष्ट्र के उत्कृष्ट नेतृत्व” के लिए दिया गया था। जब यह सामने आया कि यह पुरस्कार वर्ल्ड मार्केटिंग समिट इंडिया द्वारा दिया गया है, जिसका आयोजन दिसंबर 2018 में गेल इंडिया द्वारा सह-प्रायोजित था, इसमें पतंजलि और रिपब्लिक टीवी की भागीदारी थी, तो हँसी नहीं रुकी। मार्केटिंग गुरु कोटलर, जिनके नाम पर पुरस्कार दिया गया था, इस पर उनकी चुप्पी गौर करने लायक थी। उन्होंने प्रधानमंत्री को अपनी बधाई ट्वीट की और कहा कि उन्होंने (प्रधानमंत्री ने) “भविष्य के (पुरस्कार) प्राप्तकर्ताओं के लिए मानदंड बढ़ा दिए हैं”। यह पता नहीं है कि मोदी के बाद पुरस्कार किसने प्राप्त किया। प्रधानमंत्री को पुरस्कार प्रदान करने वाले प्रोफेसर जगदीश सेठ को 2020 में पद्म भूषण प्राप्त हुआ था इसके अलावा 2019 में मोदी को स्वच्छ भारत अभियान के लिए बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन द्वारा “ग्लोबल गोलकीपर अवार्ड” से सम्मानित किया गया था। 

जयशंकर ने अपने आका की जो चाकरी की है उसपर द टेलीग्राफ का शीर्षक है, देखिये जयशंकर को कौन परेशान करता है। फ्लैग शीर्षक है, मंत्री ने सोरोस को बूढ़ा और दुराग्रही कहा पर उन्हें खतरनाक महसूस करते हैं। अखबार ने इसीलिए पुरस्कार शूरू करने की सलाह दी है और परोक्ष तौर पर कहा है कि तब सोरोस सबके प्रिय होते। आप जानते हैं कि म्युनिख सिक्यूरिटी कांफ्रेंस में सोरोस ने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अडानी विवाद पर संसद में और अंतरराष्ट्रीय निवेशकों पर सवालों के जवाब देने होंगे और यह भी कि इससे भारत में लोकतंत्र की पुनर्बहाली शुरू हो सकती है। 

अखबार के अनुसार जयशंकर से रायसिना@सिडनी वार्ता में बीबीसी के संदर्भ में भारत में लोकतंत्र कम किए जाने पर टिप्पणी करने के लिए कहा गया था। मंत्री ने दिल्ली और मुंबई में बीबीसी के कार्यालयों में तीन दिन चली खोज पर कोई टिप्पणी नहीं की। जयशंकर ने कहा कि सोरोस और उनके जैसे अन्य लोगों ने नैरेटिव बनाने में निवेश किया। उन्होंने कहा, “वैश्विकीकरण की सहजता जो अवसर का निर्माण करती है, नैरेटिव्स को भी आकार देने, पैसा कमाने और फाउंडेशन को अपने एजेंडे पर काम करने की अनुमति देती है।” लेकिन मुद्दा यह है कि सरकार अगर सरकारी पैसे (सेवाओं और मुफ्त राशन या रेवड़ी) से चुनाव जीतती है और विपक्ष के आय के स्रोत बंद कर देती है तो क्या विपक्ष हार मानकर बैठ जाए या हर विरोधी के खिलाफ लगाए जाने वाले आरोपों का समर्थन करे। 

अखबार की खबर के अनुसार, जयशंकर ने कहा भी है “इस विशेष मामले में, यह बहुत स्पष्ट है कि उनकी बहुत मजबूत राजनीतिक प्राथमिकताएँ हैं। मुझे लगता है कि किसी की राजनीतिक प्रतिबद्धता मोदी के खिलाफ हो या मोदी के किसी विरोधी के समर्थन में हो तो गलत क्यों है या कैसे हो सकता है। वैसे भी अगर वह वोट नहीं देता है और कुछ गैर कानूनी नहीं करता है (विदेश से शायद कर ही न पाये) तो उसके कहे-किए जो प्रचार क्यों नहीं माना जाए। वैसे भी सोरोस ने जो कहा है वह उनकी राय भर है। कहने के लिए कह देना कि 1.4 अरब लोग मताधिकार से अपना नेता चुनते हैं ठीक हो सकता है पर सच यही है कि इनमें कितने मतदाता हैं और कितने वोट देते हैं और कितनों के वोट से सरकार चुनी जाती है। बाकी या ज्यादातर तो विरोधी ही हैं और उन्हें खुलकर सरकार के खिलाफ काम करने देना ही लोकतंत्र है। उन्हें सरकारी ताकतों से दबाना और अपने करीबी को ठेके देना-दिलाना दोनों गलत है। लेकिन जयशंकर जी उसकी सेवा क्यों न करें जिसने उन्हें मंत्री बनाया है। यह सरकारी खर्चे पर प्रचारक बनाना नहीं है? 

 

 

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।