पहले मई दिवस पर कार्ल्स मार्क्स की बेटी, एलेनोर मार्क्स का भाषण

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4 मई, 1890 के मई दिवस का एक हस्तनिर्मित चित्र


1 मई को आज जब हम अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस मनाते हैं, तो इसके इतिहास में जाने की ज़हमत नहीं उठाते हैं, लेकिन ये इतिहास की लंबी लड़ाई से उपजे अधिकारों का सिलसिला है। 1890 में पहली बार जब मई दिवस 4 मई को मनाए जाने की शुरुआत हुई थी। लंदन के हाएड पार्क में कार्ल मार्क्स की बेटी, एलेनोर ने ये छोटा सा भाषण दिया था। काम के नियत घंटे – 8 करने के आंदोलन के इस विशाल प्रदर्शन से, प्रस्तुत है उस छोटे से भाषण का हिंदी अनुवाद;

हम यहां राजनैतिक पार्टी का काम करने नहीं आए हैं, बल्कि हम यहां आज श्रम के पक्ष में, उसके अपने साथ खड़े होने, उसके अपने अधिकारों की मांग करने आए हैं। मुझे वो दिन भी याद है, जब हम इसी हाएड पार्क में कुछ दर्जन की संख्या में 8 घंटे मज़दूरी की मांग को लेकर आए थे, लेकिन हम फिर सैकड़ों हुए, सैकड़ों से हज़ारों होते रहे, जब तक कि हम आज की इस रैली में नहीं बदल गए – जिसने इस पार्क को भर दिया है। हम एक और प्रदर्शन के साथ आमने-सामने खड़े हैं, लेकिन मुझे यह देखकर खुशी हुई कि लोगों का बड़ा हुजूम हमारी तरफ है।

हम में से वे, जो डॉक कर्मियों की हड़ताल, खासकर गैसकर्मियों की हड़ताल झेल रहे है और वो जिन्होंने अपने आसपास आदमियों, औरतों और बच्चों को खड़ा देखा है, हमने बहुत हड़ताल कर ली हैं और अब हम हर हाल में दिन में काम के 8 घंटों को क़ानूनी रूप देकर ही मानेंगे; क्योंकि जब तक हम ऐसा नहीं करेंगे, यह हमसे पहले अवसर पर छीन लिया जाएगा। हम केवल अपने आप को दोषी ठहराएंगे यदि हम जीत हासिल नहीं करते हैं, कि ऐसे महान दिन को इतनी आसानी से गंवा दिया। पार्क में आज दोपहर एक आदमी है जिसे मिस्टर ग्लेडस्टोन ने एक बार कैद किया था- माइकल डेविट; लेकिन आज श्रीमान ग्लेडस्टोन के उनके साथ बहुत अच्छे रिश्ते हैं। आप इस बदलाव का कारण क्या मानते हैं? लिबरल पार्टी को अचानक होम रूल में क्यों बदल दिया गया है? बस इसलिए कि आयरिश लोगों ने कंजर्वेटिव्स का समर्थन करने के लिए 80 सदस्यों को हाउस ऑफ कॉमन्स में भेजा; उसी तरह से हमको भी इन लिबरल और रेडिकल सदस्यों को बाहर करना चाहिए, अगर वे हमारे कार्यक्रम का समर्थन नहीं करते।

मैं इस दोपहर को न केवल ट्रेड यूनियनिस्ट के रूप में बोल रही हूं, बल्कि एक समाजवादी के तौर पर भी अपनी बात रख रही हूं। समाजवादियों का मानना है कि 8 घंटे काम, सबसे पहला और अहम कदम है, जिसे उठाया जाना चाहिए। और इससे कोई एक वर्ग, बाकी दो का साथ नहीं देगा बल्कि समाज के सबसे ऊपर और नीचे के बेरोज़गारों को इससे छुटकारा मिल जाएगा। ये संघर्ष का अंत नहीं, बल्कि केवल शुरुआत होगी। सिर्फ यहां आकर, 8 घंटें काम के पक्ष में प्रदर्शन करना ही काफी नहीं है। हम उन कुछ ईसाईयों की तरह नहीं बन सकते, जो 6 दिन पाप करते हैं और सातवें दिन चर्च चले जाते हैं। बल्कि हमको इस मकसद के पक्ष में हर रोज़ बोलना होगा, पुरुषों और खासतौर पर स्त्रियों को अपने साथ लाना होगा।

नींद से जागे शेर की तरह उठो 

उठो अपराजेय संख्या में 

अपनी ज़ंजीरों को गिरा दो, 

धरती पर ओस की तरह 

जो नींद में तुमको पहना दी गई थी 

हम हैं असंख्य, वो हैं कुछ ही बस

(एलेनोर मार्क्स, कार्ल मार्क्स की सबसे छोटी बेटी, लेखिका-अनुवादक और समाजवादी एक्टिविस्ट थी।)