‘मन की बात’ का नगाड़ा बजाता मीडिया बना पीएम ईवेंट मैनेजमेंट का हिस्सा

संजय कुमार सिंह संजय कुमार सिंह
मीडिया Published On :


मन की बात को ईवेंट बनाने पर विभिन्न अखबारों की रिपोर्ट 

दूसरे अखबारों ने ‘मन की बात’ का प्रचार किया तो टेलीग्राफ ने उसका सच बताया

और एक मोदी की कहानी भी जिसे विकास के दावों के बावजूद न्यूनतम मजदूरी नहीं मिलती है

 

आज जब अखबारों में मन की बात के सौ एपिसोड पूरे होने पर इसे ईवेंट बनाए जाने और उससे संबंधित खबरों तथा अच्छाइयों के पुल बांधे गए हैं और ज्यादातर अखबारों में यही ली़ड है तो द टेलीग्राफ ने बताया है कि किसानों की सहायता करने वाली डाक कर्मचारियों की यूनियन की मान्यता सरकार ने रद्द कर दी है और इसमें बदले की कार्रवाई की बदबू है। मन की बात के बारे में तस्वीरों के साथ बताया है कि लोगों ने कितनी गंभीरता से सुना और जब उसमें विकास की बात की जा रही है तो बंगाल में अखबार को मोदी उपनाम वाला एक मजदूर मिला जिसे न्यूनतम मजदूरी का आधा से कम मिलता है। जाहिर है, विकास के तमाम दावों के बावजूद इस मजदूर के पास ‘मन की बात’ सुनने के लिए रेडियो, टीवी या स्मार्ट फोन तो नहीं ही है, समय भी नहीं है। 

एक तरफ अखबार अगर इसे बड़ी घटना और सरकार के काम के प्रचार का मौका मान रहे हैं तो द टेलीग्राफ के कोट कॉलम में आज महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रेसिडेंट नाना पटोले का बयान है, “प्रधानमंत्री के ‘मन की बात’ का 100 वां एपिसोड धूम-धाम ने मनाया गया। इन 100 एपिसोड में प्रधानमंत्री मोदी ने कभी भी देश के ज्वलंत मुद्दों जैसे महंगाई, बेरोजगारी और ढहती अर्थव्यवस्था की चर्चा नहीं की।” अखबार ने पहले पन्ने पर मन की बात सुनते हुए लोगों की तस्वीर प्रकाशित की है। इसका शीर्षक है, मन की बात सुनने वाले लोग …. 1) पहली तस्वीर का कैप्शन है, श्रीनगर में बच्चों ने तिरंगा हाथ में लेकर रविवार को प्रधानमंत्री के मन की बात का 100 वां एपिसोड सुना। (पीटीआई की तस्वीरें) 2) अभिनेता माधुरी दीक्षित और शाहिद कपूर तथा राज्यपाल रमेश बैंस मुंबई के एक प्रसारण कार्यक्रम में। 3) केंद्रीय विदेश मंत्री एस जय शंकर और अमेरिका में राजदूत तरणजीत सिंह संधू न्यू जर्सी में प्रसारण सुन रहे हैं जहां यह आधी रात से बाद का समय था। 4) केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी भी कान लगाये हुए हैं। और 5) रक्षा राज्य मंत्री दर्शकों में।   

अखबार ने मोदी नाम के जिस मजदूर की बात की है वह किसी ईंट भट्ठे में काम करता है और ईंट भट्ठों में गुलाम बनाकर मजदूरी कराने की कहानियां हमलोग बचपन में सुनते थे। द टेलीग्राफ की खबर से लगता है कि पश्चिम बंगाल में वह व्यवस्था अब भी जारी है और जाहिर है इसकी तुलना उन राज्यों से नहीं की जा सकती है जहां के मजदूर इस व्यवस्था में काम करते हैं। वहां की हालत और खराब होगी या काम ही नहीं होगा तभी लोग इतने कम पैसे में बंगाल में काम कर रहे हैं। और सरकारी दावे अपनी जगह हैं। दूसरे अखबार ऐसे तथ्य नहीं बताते वह तो है ही। 

खबर के अनुसार मजदूर मोदी ने कहा, “मेरी कमाई का एक हिस्सा कर्ज चुकाने में चला जाता है… हमारे पास बहुत कम पैसा बचता है।” मजदूर मोदी ने लेबर कॉन्ट्रैक्टर से 5,000 रुपये का कर्ज लिया था, जिसे बोलचाल में “सरदार” कहा जाता है। ईंट भट्ठे पर काम करने वाले कई अन्य मजदूर भी अपना कर्ज चुकाने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं। अधिकार कार्यकर्ता आलमगीर मोलिक इनके लिए  काम करते हैं, ने कहा, “बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ के मौसमी प्रवासी परिवार अवैध और अपंजीकृत ठेकेदारों तथा बिचौलियों की मदद से बंगाल आते हैं, जो उन्हें लाने के लिए स्रोत पर अग्रिम भुगतान करते हैं।” इससे गरीबी का अंदाजा लगाया जा सकता है पर विकास का दावा किया जा रहा है। 

डाक कर्मचारियों की यूनियन के बारे में अखबार ने लिखा है कि सरकारी कार्रवाई की खबर 27 अप्रैल को द हिंदू में रिपोर्ट की गई थी। जाहिर है कि यह आरएसएस समर्थित कर्मचारी संघ की शिकायतों पर किया गया है। नेशनल फेडरेशन ऑफ पोस्टल एम्प्लॉइज (एनएफपीई), के घटक, अखिल भारतीय डाक कर्मचारी संघ ग्रुप सी (एआईपीईयू) की मान्यता रद्द की गई है। इसके पूर्व पदाधिकारी ने द टेलीग्राफ को बताया कि सरकार की कार्रवाई “मनमानी” है और महासंघ ने इसे कलकत्ता उच्च न्यायालय में चुनौती दी है। 

सीपीएम के राज्यसभा सदस्य बिनॉय विश्वम ने शनिवार को संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव को पत्र लिखकर मान्यता रद्द करने के 26 अप्रैल के आदेश को वापस लेने की मांग की है। उन्होंने लिखा है, “एआईपीईयू 1920 में गठित सबसे पुरानी यूनियनों में से एक है और एनएफपीई इस क्षेत्र की सबसे बड़ी यूनियनों में से एक है। आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) द्वारा की गई शिकायत के कारण उसकी मान्यता रद्द करने में  बदले की भावना और बदले की राजनीति की गंध है।” 

एक बयान में, सीटू ने “सरकार की विध्वंसक और कर्मचारी-विरोधी नीतियों के प्रति श्रमिकों और कर्मचारियों के विरोध को रोकने के लिए सरकार की क्रूर कार्रवाइयों” की निंदा की है। एनएफपीई के सूत्रों ने बताया कि देश के 70 फीसदी डाक कर्मचारी इसके सदस्य हैं। उन्होंने कहा कि दोनों संगठनों के खिलाफ शिकायत भारतीय डाक कर्मचारी महासंघ (बीपीईएफ) की ओर से आई है, जो बीएमएस का सहयोगी है। संपर्क करने पर, बीएमएस उत्तर क्षेत्र के सचिव पवन कुमार ने न तो पुष्टि की और न ही इनकार किया कि बीपीईएफ ने शिकायत की थी। ऐसी हालत में मन की बात को ईवेंट बनाना और उसका प्रचार समझ सकते हैं कि हो क्या रहा है।  

हेडलाइन मैनेजमेंट

आज हिन्दुस्तान टाइम्स में शीर्षक है, “कर्नाटक चुनाव प्रचार में प्रधानमंत्री ने कहा, कांग्रेस एक मियाद निकला इंजन है, विकास रोक दिया”। प्रधानमंत्री जो कहते हैं सो कहें पर शीर्षक लगाने के लिए उसमें ऐसी कोई बात तो होनी ही चाहिए। बेशक, शीर्षक इसलिए नहीं लगाया गया है कि उसमें कुछ नहीं है या हास्यास्पद दावा है बल्कि प्रधानमंत्री इससे जिन लोगों को प्रभावित करना चाहते हैं, मकसद उनकी बात उन तक पहुंचाना है। बीचे में मेरे जैसे लोग लपक लेते हैं वह अलग बात है।

आइये, देखें कैसे यह दावा हास्यास्पद है। नरेन्द्र मोदी जिस कांग्रेस की बात कर रहे हैं उसे कैसे मियाद निकला इंजन कहा जा सकता है और उस लिहाज से भाजपा कैसे नई या ठीक है इसपर अगर बहस होगी तो कभी अंत नहीं होगा। लेकिन नरेन्द्र मोदी के निशाने पर राहुल गांधी रहते हैं तो सवाल उठता है कि नरेन्द्र मोदी अपने बारे में क्या कहेंगे। कहने की जरूरत नहीं है कि उम्र उनकी ज्यादा हुई और राहुल गांधी का स्वास्थ्य उनकी पार्टी के उनकी उम्र वाले कई नेताओं से बेहतर है। राहुल गांधी ने हाल में इसका प्रदर्शन भी किया और उस दौरान चुनौतियां भी दी गईं।

बेशक आज का शीर्षक उसके जवाब में ‘मन की बात’ के अलावा कुछ और नहीं है। मार्गदर्शक मंडल में भेज दिये गए भाजपा नेताओं को अगर छोड़ा जा सकता है पर बंगला दिया जा सकता है तो यहां पद देने से पार्टी पुरानी या मियाद निकली हो गई? कुछ भी बोल देने की अपनी आदत को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कह दिया कि कांग्रेस ने विकास को रोक दिया है। जबकि सच्चाई है कि वह सत्ता में है ही नहीं। विकास उसे करना होता है जो सत्ता में है और भाजपा ने सत्ता में रहकर अगर कोई काम किया है तो कर्नाटक की 40 प्रतिशत कमीशन वाली सरकार भी चलाई है। उसमें कांग्रेस कहां, कैसे जिम्मेदार ठहराई जा सकती है। पर प्रधानमंत्री हैं, कुछ भी बोलेंगे सुर्खियां बनेंगी।

टाइम्स ऑफ इंडिया ने आज मन की बात के 100वें एपिसोड की खबर को लीड बनाया है और बताया है कि प्रधानमंत्री ने कहा कि इसके जरिये उन्होंने खाली जगह भरी और लोगों को जुड़ने का एक तरीका दिया। बेशक, उन्होंने कहा है तो दिया होगा लेकिन यह उसी सरकार के बारे में है जो तमाम मौकों पर चुप रह जाती है। कई सवालों का कोई जवाब नहीं है कई मामलों में स्पष्टीकरण नहीं है और लोग व्हाट्सऐप्प के बकवास को अधिकृत बयान मानने के लिए मजबूर हैं या उसी तरह पेश कर रहे हैं। 

यह सब तब है जब पहले की सरकारों में पत्र का जवाब जरूर आता था। यहां तक कि शादी के निमंत्रण का भी। आम पत्रकारों ने अगर निमंत्रण भेजा तो यह जवाब जरूर आता था कि मंत्री जी दूसरी व्यस्तताओं की वजह से नहीं आ सकेंगे। अब तो सरकारी काम से भी चिट्ठी लिखिये तो पावती तक नहीं आई (पुरानी बात है, अब मैंने तो नहीं लिखी कोई चिट्ठी)। पहले यह जरूर बताया जाता था कि आपका पत्र संबंधित विभाग को भेज दिया गया है। कितने ही मामले हैं जब पता चला कि शिकायत की थी पर कोई जवाब नहीं आया। ऐसे में प्रधानमंत्री जिस खाली जगह को भरने की बात कर रहे हैं वह उन्हीं का बनाया हुआ है। 

प्रधानमंत्री ने कहा है और अखबार ने लिखा है कि यह सिर्फ रेडियो कार्यक्रम नहीं है आध्यात्मिक यात्रा है। खबर के साथ एक बॉक्स है, इसके अनुसार प्रधानमंत्री ने कहा है, 2014 में दिल्ली आने के बाद, यहां जीवन बहुत अलग था ….. एक खालीपन था। देश वासी जो मेरे सब कुछ हैं …. मैं उनसे अलग नहीं रह सकता था। मन की बात ने मुझे इस चुनौती का एक समाधान दिया। आम आदमी से जुड़ने का एक तरीका। इसमें कहा नहीं गया है पर सच यह भी है कि प्रेस कांफ्रेंस करते होते तो लोगों को अधिकृत सूचनाएं मिलती सरकार और प्रशासन से संबंधित सवालों के जवाब मिलते। पर उन्होंने इतने समय में एक प्रेस कांफ्रेंस नहीं की और देशवासियों से जुड़ने का नया तरीका निकाला।    

मन की बात और इंडियन एक्सप्रेस 

इंडियन एक्सप्रेस में मन की बात की खबर और उसकी प्रस्तुति का अंदाज वोट खींचने की कोशिश के अलावा कुछ नहीं है। शीर्षक है, मोदी ने जनता जनार्दन का अह्वान किया मन की बात मेरा चढ़ावा (आहुति) है, मुझे जुड़ने में मदद करता है। कहने की जरूरत नहीं है कि पहले की सरकारें मीडिया के जरिए जनता से जुड़ती थीं अब मीडिया सरकार की भाषा ही बोलती है। फिर भी प्रेस कांफ्रेंस नहीं होती है। 

मोदी जी ने जनता से जुड़ने के लिए मन की बात की शुरुआत की है जिसके 100 एपिसोड होने को ईवेंट बनाकर ऐसे प्रचारित किया जा रहा है जैसे इसी से वोट मिल जाएंगे या मिल जाने चाहिए। सरकारी या सत्तारूढ़ पार्टी की कोशिश अपनी जगह है लेकिन मीडिया इस प्रचार में सरकारी पार्टी का जो साथ दे रहा है वह रेखांकित करने लायक है।   

इंडियन एक्सप्रेस ने इस मूल खबर के साथ एक और बाईलाइन वाली खबर छापी है जो बताती है कि इस रेडियो शो के पीछे लिखने, अनुवाद करने और उसे तैयार करने में कितना श्रम लगता है। और बताया गया है कि प्रधानमंत्री चुनाव प्रचार में कर्नाटक में थे जबकि पहले रिकार्ड किया गया संदेश देश भर में श्रोताओं के लिए दिन में 11 बजे प्रसारित किया गया।        

 

द हिन्दू में मन की बात की सरकारी तैयारियां 

द हिन्दू ने मन की बात को ऐसे पेश किया है जैसे प्रधानमंत्री ने 100वें एपिसोड में इससे जुड़े पुराने दिनों को याद किया। हालांकि खबर की शुरुआत इस तरह होती है, शिक्षा और संस्कृति का संरक्षण तथा संवर्धन देश की प्राचीन परंपरा रही है और देश राष्ट्रीय शिक्षा नीति और क्षेत्रीय भाषाओं में अध्ययन के विकल्प जैसे विभिन्न माध्यमों से उस परंपरा की ओर काम कर रहा है। अखबार ने बताया है कि इस विशेष रेडियो कार्यक्रम का न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय और सभी राजभवनों में सीधा प्रसारण किया गया।

सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी ने कार्यक्रम को सुनने के लिए चार लाख स्थानों पर व्यवस्था की थी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मुंबई के विले पार्ले में एक समारोह में और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली में भाजपा मुख्यालय में इसे सुना। कार्यक्रम को सुनने के लिए विदेश मंत्री एस. जयशंकर न्यू जर्सी में भारतीय समुदाय के सदस्यों के साथ शामिल हुए। इसमें श्री मोदी ने कहा कि जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तो उन्हें आम लोगों से मिलने और बातचीत करने के कई मौके मिले। लेकिन 2014 में दिल्ली आने के बाद उन्होंने पाया कि काम की प्रकृति अलग थी। “…जिम्मेदारी अलग है, कोई परिस्थितियों से बंधा है, सुरक्षा की कठोरता और समय सीमा”।

लेखक वरिष्ठ पत्रकार और प्रसिद्ध अनुवादक हैं।