अग्निवीर: युवा आक्रोश ने तार-तार किया सरकार की सफलताओं का झूठ!

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भरोसे का खंडहर होना

(शीतल पी.सिंह)

 

गोकि हम एक लोकतांत्रिक समाज बनने के ऐलान के साथ 1947 में शुरू हुए लेकिन 2022 तक पहुँचते पहुँचते एक अघोषित तानाशाह मुल्क में तब्दील होने के क़रीब हैं ।प्रेस फ़्रीडम, मानवाधिकार, अल्पसंख्यकों से व्यवहार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आदि लोकतांत्रिक मानकों को आंकने वाली विश्व संस्थाओं के ऑकलन लगातार इसकी तस्दीक़ कर रहे हैं!

शुरुआत में हमारे नेता अवाम से सच बोलते थे , कम से कम सच बोलने की कोशिश करते हुए मिलते थे । मनमोहन सिंह ऐसे आख़िरी व्यक्ति थे । फिर काल्पनिक दौरदौरा आया । लोगों की आँखें चुंधियाऊँ दावों ने देश को मदहोश कर दिया!

पेट्रोल तीस रुपये लीटर बिकेगा!
डालर चालीस रुपये तक गिरा दिया जाएगा!
इतना कालाधन वापस लाएँगे कि पंद्रह बीस लाख तो हर एक के खाते में गिर ही गए समझो!
किसानों की इनकम 2022 तक दुगनी कर देंगे!
हर साल दो करोड़ लोगों को रोज़गार मिलेगा!
निर्यात तीन गुना कर देंगे!
अर्थव्यवस्था फ़ाइव ट्रिलियन पहुँचा देंगे!
पीओके और अक्साई चिन भारत में वापस क़ब्ज़ा लिया जाएगा!

चूँकि देश के मिज़ाज और अर्थव्यवस्था की विस्तारित पायदानों में सामन्तवाद मौजूद है और उसके विभाजन भी ! आबादी का बहुमत आसानी से धोखा खा जाने की प्रवृत्तियों में पला बढ़ा था,अशिक्षित अर्धशिक्षित अल्पशिक्षित था,ये झूठ विभाजित समाज को एक समय विस्मित कर गया।

लेकिन सांडे के तेल से पौरुष हासिल करने की मूर्खता की मियाद लंबी नहीं होती सो झूठ ने दम तोड़ना शुरू कर दिया। सांप्रदायिक और जातिवादी विभाजन को अनवरत गहरा करके और आधुनिक संचार साधनों पर लगभग संपूर्ण नियंत्रण करके इस झूठ को ज़िंदा रखने की नाकाम कोशिश जारी रहीं पर अब लगता है कि पानी सर से ऊपर जा रहा है या जाने वाला है।

आर्थिक असफलताओं के बेहद जल्द प्रकटीकरण ने इस तिलिस्म को तार तार होने में प्रमुख भूमिका निभाई । बेरोज़गारी जिसने आज़ादी के बाद के हर रिकॉर्ड तोड़ डाले हैं मुख्य भूमिका में आ गई!

सरकार चूँकि सफलताओं का इतना डंका पीट चुकी है और अवाम से सच स्वीकार करना उसकी फ़ितरत नहीं है इसलिए वह यह तक बताने को तैयार नहीं कि उसके पास अब फ़ौज को भी पेंशन देने की हैसियत नहीं बची है । इस झूठ को ढकने के लिये अलंकारिक शब्दावली में अग्निपथ/ अग्निवीर योजना को मदारी ने झोले से बाहर किया।

देश में हर साल क़रीब साठ हज़ार सैनिक रिटायर होते हैं और उतने ही भर्ती किये जाते रहे हैं । पर 2020 से भर्ती बंद है यानि तीन साल से कोरोना के नाम पर एक लाख अस्सी हज़ार सैनिक कम कर लिए गए । उसके पहले की भर्ती प्रक्रिया के सफल हुए युवाओं की भी भर्ती ग़ायब कर दी गई और उन्हें भी कहा जा रहा है कि वे बिना पेंशन बिना भविष्य के अग्निवीर बनें!

अग्निवीर योजना दरअसल अब साठ हज़ार की जगह क़रीब दस हज़ार सैनिक हर साल भर्ती करने की योजना है, यानि हम पचास हज़ार सैनिक प्रतिवर्ष कम करने जा रहे हैं । ऐसा इसलिए क्योंकि सालाना जो क़रीब चालीस हज़ार अग्निवीर भर्ती किये जाने हैं उनके सिर्फ़ एक चौथाई यानि दस हज़ार ही मुख्य सेना में पक्के किये जाएँगे । बाक़ी चार साल में छाँट दिये जाने को अभिशप्त तीस हज़ार के लिए वही स्वप्निल दुनिया मीडिया और भक्तमंडल के भांट पेश कर रहे हैं जिनको सिर्फ़ समोसा बेचने का रोज़गार ही पहले से उपलब्ध है!

अग्निवीर योजना पेंशन और अन्य देनदारियों की ज़िम्मेदारी से पिंड छुड़ाने की योजना है , बेरोज़गार नौजवान इसे समझ रहे हैं।

हालाँकि पोस्ट रिटायरमेंट पद पाने को लपलपाते / पद पाए हुए तमाम जनरल/ कर्नल/ अचानक पैदा हुए रक्षा विशेषज्ञ, सामाजिक अपराधी ऐंकरों के नेतृत्व में विभिन्न टेलीविजन चैनलों/यूट्यूब चैनलों पर प्रचंड बेरोज़गारी से पीड़ित नौजवानों को इस योजना का लालीपाप बेचने की भीषण कोशिश कर रहे हैं लेकिन वर्षों वर्षों सड़कों के किनारे सुबह सुबह मीलों दौड़कर फ़ौज में जाने का स्वप्न जीते नौजवानों को ये प्रवचन हृदयविदारक प्रतीत हो रहे हैं और उसका विस्फोट रेल पटरियों पर हो रहा है।

सरकार सच बोलने की जगह कि उसके पास पेंशन और वेतन देने के पैसे की कमी है,अग्निवीर योजना के झूठे लाभ बेचना चाह रही है जो अब बिकना मुश्किल है।

 

शीतल पी.सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं। यह टिप्पणी उनके फेसबुक से साभार।