डॉ. आशीष मित्तल
केन्द्रीय बजट 2021 के दो मुख्य पहलू हैं- एक कि अर्थव्यवस्था का संकट बहुत गहरा है और विदेशी तथा घरेलू कॉरपोरेट के विकास के लिए किसानों को और चूसा जाएगा। जन कल्याण में भयंकर कटौती की जा रही है और सरकार ने कॉरपोरेट कल्याण में अपनी भूमिका बढ़ाई है।
जहां कोविड के विरुद्ध संघर्ष में आम लोग सामूहिक रोग प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त कर रहे हैं, भारत सरकार पर कोरोना की बीमारी का गहरा असर है – आंकड़ों की बाजीगरी, भ्रामक दावे, बढ़ा-चढ़ाकर की गयी घोषणाएं और तुच्छ आवंटन के रूप में, जिनमें से कुछ तो कई सालों के लिए हैं, यह दिख रहा है।
कृषि संकट गहराता जा रहा है, किसानों की हालत बदतर होती जा रही है, लाखों की संख्या में वे दिल्ली की सीमाओं पर सरकार का दरवाजा खटखटाने के लिए आए हैं। पर विदेशी कम्पनियों के प्रति प्रधानमंत्री का लगाव इतना गहरा है कि उन्होंने पिछले दिनों दावोस में हुई विश्व आर्थिक फोरम की बैठक में घोषणा की, कि भारत सरकार उत्पादन संबंधित प्रोत्साहन के रूप में विदेशी कम्पनियों को 26 बिलियन डालर, यानि 1.84 लाख करोड़ रुपये का सहयोग देगी। पहले भी सरकार खेती में निजी विवेशकों के सहयोग के लिए 1 लाख करोड़ रुपये अवंटित कर चुकी है।
प्रधानमंत्री निर्लज्जता के साथ इसे आत्मनिर्भरता कह रहे हैं क्योंकि उनकी आत्मा विदेशी कम्पनियों व कॉरपोरेट के साथ है, देश के किसानों व आम जन के साथ नहीं है। उनसे उन्होंने काफी दूरी बना रखी है।
बजट में खेती व संबंधित क्षेत्रों पर आवंटित खर्च इस साल 1.54 लाख करोड़ रुपये से घटाकर 1.48 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है, जबकि बजट खर्च को जनता पर कर बढ़ाकर तथा सरकारी उधारी बढ़ाकर, 30.42 से बढ़ाकर 33.8 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया है। यह पहले कुल खर्च का 5.06 फीसदी था और अब 4.37 फीसदी रह गया है, हालांकि अब भी खेती कुल उत्पादन में 15 फीसदी योगदान करती है।
मोदी सरकार ने एक नया कृषि कर शुरू करने की घोषणा की है जिससे पेट्रोल, डीजल व खाद के दाम और बढ़ेंगे, जिससे खेती की लागत बढ़ेगी और कुछ फसलों पर टैक्स लगेगा जिससे खाना महंगा होगा। सरकार ने केवल खेती के कर्ज आवंटन की रकम बढ़ाकर 16 लाख करोड़ रुपये की है, हालांकि इसमें किसानों को दी जाने वाली ब्याज में छूट की रकम घटा दी है। यह पहले 21,175 करोड़ रुपये थी, अब यह 19,400 करोड़ रुपये कर दी है, यानि कर्ज पर ब्याज बढ़ेगा।
बजट में मनरेगा का खर्च लगभग 35 फीसदी काट दिया गया है। यह पिछले साल खर्च किये गए 111,500 करोड़ रुपये की जगह केवल 73,000 करोड़ रुपये होगा। इससे निश्चित तौर पर बेरोजगारों के बीच दरिद्रता बढ़ेगी, वैसे भी कोविड से पहले व उसके दौरान औद्योगिक रोजगार घटे हैं।
पीएम किसान, यानि किसान निधि पर आवंटन 75,000 करोड़ से घटाकर 65,000 करोड़ रुपये कर दिया गया है, जबकि कुल 14.37 करोड़ किसान परिवारों में से केवल 6.12 करोड़ परिवारों ने इसका पिछले आवंटन में लाभ प्राप्त किया है।
कई योजनाओं में असली खर्च बजट आवंटन से कहीं कम रहा है और इनमें सिंचाई भी है। पीएम आशा में, जो बाजार में हस्तक्षेप कर 11 राज्यों में दलहन व तिलहन के दाम एमएसपी पर देने की योजना थी, उसका आवंटन तीन साल पहले 4,100 करोड़ था, पर इस साल केवल 400 करोड़ रुपये है।
सरकार ने बीमा में विदेशी निवेश की सीमा 49 फीसदी से बढ़ाकार 74 फीसदी कर दी है जिससे विदेशी पूंजी का बीमा में नियंत्रण बढ़ेगा।
बीमा, खेती, कृषि उत्पादन व व्यापार में विदेशी पूंजी बढ़ाना वास्तव में विश्व व्यापार संगठन के ही आदेशों का पालन है।
स्वास्थ्य सेवाओं में सरकारी सुविधाओं को सुधारने का कोई प्रयास नहीं है जबकि दावा है कि इस क्षेत्र में 137 फीसदी वृद्धि की गयी है। इसमें से 46,180 करोड़ रुपये अगले 6 सालों में आत्मनिर्भर स्वास्थ्य बीमा योजना पर खर्च है और 35,000 करोड़ का खर्च कोरोना वैक्सीन पर खर्च है जो मोदी के कॉरपोरेट मित्रों के सहयोग के लिए है।
शिक्षा की बुरी तरह अवहेलना की गयी है और चौकाने वाली बात यह है कि स्कूली शिक्षा पर आवंटन घटा दिया गया है।
आरबीआई ने कहा है कि इस साल एनपीए, नाकारा खाते बढ़ेंगे, पर बैंकों की पूंजी पूरी करने के लिए केवल 20,000 करोड़ रुपये दिये हैं जिससे स्पष्ट है कि आने वाले दिनों में बैंकों का संकट बढ़ेगा। फिर भी सरकारी फण्ड का मोदी के कॉरपोरट मित्रों को आवंटन बढ़ाया जा रहा है।
किसानों का जो आंदोलन चल रहा है वह केवल 3 कानून की वापसी तक सीमित नही है, उसका आधार पूरे ग्रामीण इलाके को विकसित करने, उसमें किसानों के आधार पर आधुनिक विकास करने, नये ग्रामीण रोजगार पैदा करना है। पूरे देश की जनता को इसका समर्थन करना चाहिये और मोदी के बजट प्रस्तावों का विरोध करना चाहिये।
डॉ. आशीष मित्तल, अखिल भारतीय किसान मजदूर सभा (एआईकेएमएस) के महासचिव हैं।