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दोस्तों पिछले कुछ दिनों से एक अजीब सी धमकी उर्फ चेतावनी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। एक अखबार की कतरन की फोटो जिसमें लिखा है कि राशनकार्ड के पात्र होने के नये नियम हैं कि वही लोग राशन कार्ड रख सकेंगे, जिनके पास
1. खुद के नाम जमीन ना हो
2. पक्का मकान ना हो
3. भैंस, बैल, ट्रैक्टर -ट्राली ना हो
4. मुर्गी पालन, गौ-पालन आदि ना करतो हो
5. शासन से कोई वित्तीय सहायता ना मिलती हो
6. बिजली का बिल ना आता हो
7. जीविकोपार्जन के लिए कोई आजीविका का साधन ना हो
अप्रैल माह में सरकार की तरफ से जो आदेश जारी हुआ है, उसके अनुसार यदि उपरलिखित सम्पत्ति आपके पास है और फिर भी आपके पास राशन कार्ड है तो बेहतर है कि आप 20 मई तक अपना राशन कार्ड सरेंडर कर दें, वरना सरकार आपके खिलाफ कार्यवाही कर सकती है, एफ आई आर कर सकती है। राशन कार्ड सरेंडर करने में जनता की मुश्किलों को कम करने की कोशिश में सरकार ने ये सावधानी बरती है कि कार्ड को सरेंडर करने के लिए राजधानी नहीं जाना पड़ेगा, उसे आप अपने ब्लाॅक आफिस या ज़िला आपूर्ति अधिकारी के पास सरेंडर कर सकते हैं। करना ही पड़ेगा, वरना आपके खिलाफ रिकवरी की कार्यवाही की जा सकती है। ये रिकवरी 24 रुपये किलो के हिसाब से गेहूं और 32 रुपये किलो के हिसाब से चावल के लिए होगी।
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जब से लोगों ने ये सुना है, या अखबार में पढ़ा है, उनके पैरों के नीचे से जमीन निकल गई, और ब्लाॅक आफिसों में राशन कार्ड सरेंडर करने वालों की भारी भीड़ लगी हुई है। इतनी भीड़ तो कभी राशन कार्ड बनवाने वालों की नहीं लगी, जितनी राशन कार्ड वापस देने वालों की लगी है। इस भीड़ को देख कर लगता है कि कई लोगों ने तो सिर्फ वापस करने के लिए राशनकार्ड बनवाए हैं, ताकि सरेंडर करने वालों की लिस्ट में उनका नाम आ जाए, और उन पर कार्यवाही ना हो। इसकी पीछे जो लाॅजिक है वो ये कि जब यूपी सरकार का बुलडोजर चलता है तो वे ये नहीं देखता कि जिस पर कार्यवाही होनी है, मकान सिर्फ उसका गिरा है या किसी और का भी गिरा है। जब योगी के ग़ैरकानूनी, अंधे-कानून की लाठी चलती है तो वो ये नहीं देखती कि अपराधी कौन है, और कौन निरपराध है, वो लाठी सभी के सिर पर लगती है।
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मुश्किल ये है कि मान लीजिए आपके पास राशन कार्ड नहीं है, लेकिन मकान है। अब अगर ज़िला मजिस्ट्रेट को आदेश मिला कि उसे अपने ज़िले में इतने ”कुछ निश्चित संख्या में” लोगों पर कार्यवाही करनी है, उसके पास लोग कम हैं, तो ज़ाहिर है कि वो उन लोगों के नाम निकलवाएगा जिनके नाम उसकी वोटर लिस्ट में, रेजिडेंट लिस्ट में, या किसी और लिस्ट में तो हों, लेकिन राशनकार्ड सरेंडर करने वालों की लिस्ट में ना हों। बस आपके नाम एक रिकवरी का हुक्मनामा तैयार किया जाएगा, और आपसे वसूली की जाएगी। आप लाख गुहार लगाते रहिए कि आपके नाम कोई राशनकार्ड है ही नहीं, तो आप सरेंडर क्या करें। लेकिन वसूली तो पहले हो जाएगी, उसके बाद आप कोर्ट में ये गुहार लगा सकते हैं कि ये वसूली गै़रकानूनी है। हो सकता है कि कोर्ट आपको राहत दे और ज़िला अधिकारी को ये हिदायत दे कि आपका पैसा वापिस कर दिया जाए, हो सकता है कि कोर्ट आपसे यही पूछ ले कि मान लीजिए आपके पास राशन कार्ड नहीं है, तो भी क्या यू पी के नागरिक होने के नाते आपका फर्ज नहीं बनता कि आप इस वसूले हुए रिकवरी के पैसे को भूल जाएं। सब कोर्ट की मर्जी पर निर्भर करता है, क्योंकि भारत में न्याय प्रक्रिया स्थापित कानून के हिसाब से नहीं, न्यायाधीश की मर्जी के हिसाब से चलती है। अब भुगतिए।
ये बात मैं मनघडंत नहीं बना रहा हूं। यू पी में हाल ही में ऐसा कारनामा हुआ है। योगी जी ने अचानक एक दिन कह दिया, कि जिन लोगों को हमारी सरकार मानेगी कि वो किसी धरना-प्रदर्शन में शामिल थे, उन पर सार्वजनिक संपत्ति को नुक्सान पहुंचाने की जिम्मेदारी आयद होगी, और फिर उनसे वसूली की जाएगी। ये कौन तय करेगा कि वो सार्वजनिक संपत्ति को नुक्सान पहुंचा रहे थे। ”सरकार”। गवाह कौन होगा? ”कोई ज़रूरत नहीं”। कैसे साबित होगा कि ये व्यक्ति सार्वजनिक संपत्ति को नुक्सान पहुंचा रहा था? ”सबूत की ज़रूरत नहीं है, सरकार ने कह दिया हो गया” ये कौन तय करेगा कि जिस सरकारी संपत्ति को नुक्सान पहुंचा उसका हर्जाना कितना होगा? ”सरकार”। एक बार योगी उर्फ अजय सिंह बिष्ट ने कह दिया, तो कानून बनना ही था। बस धड़ाधड़ लोगों के पास रिकवरी के हुक्मनामें पहुंचने लगे, भरो जुर्माना वरना….
ये धमकी या चेतावनी नहीं थी, सीधी कार्यवाही थी। और मजे की बात ये थी कि लोग भी बिना चूं-चपड़ किए जुर्माना दिए जा रहे थे। कोई छठी क्लास का बच्चा भी बता देगा कि कानून के राज में ऐसे मज़ाक लोकतंत्र की ऐसी-तेसी कर सकते हैं। लेकिन योगी सरकार है जहां, ऐसे चमत्कार हैं वहां के हिसाब से कानून ने आव देखा ना ताव, धड़ा-धड़ वसूली शुरु कर दी। उत्तरप्रदेश रिकवरी आफ डेमेजिस टू पब्लिक एंड प्राइवेट प्राॅपर्टी एक्ट 2020 ऐसा कानून है, जिसमें अगर सरकार बस नाम भर ले दे तो आप पर रिकवरी का दावा हो जाएगा, और इसमें कोई क्लेम ट्राइब्यूनल या जुडिशियल रिव्यू नहीं होगा। बढ़िया, यानी सरकार आपको अपराधी मानेगी, और आप ये दावा भी नहीं कर सकते कि आप अपराधी नहीं है। कोई जांच नहीं, कोई कानून नहीं, जो हमने कह दिया वही सही। इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बिना किसी न्यायिक अधिकारी के आप नोटिस कैसे जारी कर सकते हैं, यानी आप ही मुद्दई, आप ही गवाह और आप ही जल्लाद बने बैठे हैं। ऐसे कैसे चलेगा। लेकिन यूपी में तो चल ही रहा है।
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अभी यूपी के ही किसी अधिकारी ने ये बयान भी दिया है कि ये राशनकार्ड के बारे में ये आदेश एक अफवाह है, और आदेश सिर्फ राशनकार्डों के सत्यापन का है जो एक नियमित कार्यवाही है। लेकिन इसका क्या करें कि सभी ज़िला अधिकारियों ने अपने इलाकों में इस आदेश को फैला दिया है।
यूपी है, यूपी में योगी है, मनमौजी है, वैसे भी योगी कानून, संविधान को नहीं मानता। मन का मौजी होता है, उसने कह दिया, हो जाना चाहिए, वरना….खैर धमकी-चेतावनी की अवहेलना मत कीजिए। उपरलिखित लिस्ट में से कुछ भी आपके पास हो, तो राशनकार्ड सरेंडर कर दीजिए। अगर नहीं हो, तब भी राशनकार्ड सरेंडर कर दीजिए, वरना साबित करना पड़ेगा कि लिस्ट में जो लिखा है, वो आपके पास नहीं है। और अगर आपके पास राशन कार्ड नहीं है, तो पहले राशन कार्ड बनवाइए, और फिर उसे सरेंडर कीजिए। अब यूपी में रहना है, तो ये सब करना ही पड़ेगा। बड़े दिनों बाद हिंदु हितो वाली सरकार आई है, थोड़ा भुगतना पड़ेगा भुगतिए। बाकी ”राशनकार्डिए” ”विद्वजन देखें कि नया शब्द है या कोई पुराना रिपीट हो गया है, के माथे पर नहीं लिखा होता कि उसे पास राशन कार्ड है, इसलिए गेहूं कि साथ घुन के पिसने का खतरा है, बल्कि सच कहें तो घुन ही पिसेगी, गेहूं के बचने की संभावना ज्यादा है। तो बचा निकल ल्यो, चचा ग़ालिब कह गए हैं….
वो जिनके पास कार्ड था राशन का,
वही लुट-पिट के तेरे दर से जाते हैं
कल ही ग़ालिब के लोकल एक्सपर्ट बता के गए कि ये ग़ालिब का शेर है, कह रहे थे कि गली ज़री वाली में ग़ालिब ने खुद उन्हें सुनाया था। हमने मान लिया है, आप भी मान लीजिए। अल्ला-अल्ला, खैर सल्ला