डॉ. कफ़ील ख़ान पर एनएसए लगाने को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की कड़ी टिप्पणी, राष्ट्रीय सुरक्षा क़ानून हटाने और डॉ. ख़ान की रिहाई होने के बाद तिलमिलाई यूपी सरकार ने इसके ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगा दी थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी याचिका की सुनवाई करने की बजाय उसे खारिज कर दिया है। ये याचिका डॉ. कफ़ील ख़ान के अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलन के दौरान दिए गए एक भाषण को लेकर लगाए गए एनएसए के मामले में थी।
सर्वोच्च अदालत की तीन सदस्यीय बेंच ने ये याचिका निरस्त की, जिसमें सीजेआई अरविंद बोबडे भी शामिल थे। सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा, ‘आपराधिक मामलों का फैसला, उनके अपने आधार पर होता है। आप किसी और मामले के प्रिवेंटिंव डिटेंशन ऑर्डर को दूसरे मामले में इस्तेमाल नहीं कर सकते।’ इसके पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट, अलीगढ़ के डॉ. कफ़ील के भाषण पर लगाए गए एनएसए को, ये कह कर खारिज कर चुका था कि ‘इसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं था और ये राष्ट्रीय एकता को बढ़ाने वाला भाषण’ था।
अदालत ने कहा, ‘यह इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक अच्छा आदेश प्रतीत होता है। हमें इसमें दखल देने का कोई कारण नहीं दिखता। लेकिन इस प्रेक्षण का आपराधिक मामलों की कार्यवाही पर कोई असर नहीं पड़ेगा।’
इससे पहले 1 सितंबर के इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हाल ही में चुनौती दी थी, जिसमें हाईकोर्ट ने डॉ. कफ़ील ख़ान पर लगाए गए एनएसए को अवैध बताया था।
जनवरी, 2019 में गोरखपुर के इन्सेफेलाइटिस से बच्चों की मौत के बाद चर्चित हुए डॉ. कफ़ील ख़ान को अलीगढ़ में दिए गए इस कथित ‘भड़काऊ’ भाषण के मामले में एनएसए लगाकर – मुंबई से गिरफ्तार कर लिया गया था और सितंबर तक वे जेल में थे।
इस पर ज़्यादा जानकारी के लिए हमारी वो बातचीत सुन सकते हैं, जो डॉ. कफ़ील ने सितंबर में रिहाई के बाद मीडिया विजिल से की थी।