राजद्रोह अब स्थगित है
एक ऐतेहासिक फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आज़ाद भारत में पहली बार, राजद्रोह के क़ानून की समीक्षा पूरी होने तक, इसके उपयोग पर रोक लगा दी है। मंगलवार को राजद्रोह की वैधता के मामले पर सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने भारत सरकार से पूछा था कि
क्या केंद्र सरकार सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को निर्देश देगी कि केंद्र सरकार की भारतीय दंड संहिता की धारा 124-A के पुनरीक्षण और समीक्षा का कार्य सम्पन्न होने तक राजद्रोह के मामलों को दर्ज करने पर रोक लगा दी जाए? अदालत ने इसका जवाब देने के लिए, सरकार को 24 घंटे का समय दिया था और बुधवार को आगे की सुनवाई में अदालत ने आदेश दिया कि
भारतीय दंड संहिता की धारा 124A के तहत 162 साल पुराने राजद्रोह कानून (Sedition) को तब तक स्थगित रखा जाना चाहिए जब तक कि केंद्र सरकार इस प्रावधान पर पुनर्विचार नहीं करती।
क्या हुआ अदालत में?
मंगलवार को ही अदालत कह चुकी थी कि सरकार को उसके इस सवाल का जवाब 24 घंटे के अंदर देना है कि क्यों न समीक्षा पूरी होने तक, राजद्रोह के नए मामले दर्ज करने पर रोक लगा दी जाए। इस मामले पर आगे की सुनवाई करते हुए,
भारत के चीफ जस्टिस एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने जो आदेश दिया, उसे पढ़ते हुए चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा;
- हम आशा और भरोसा करते हैं कि केंद्र और राज्य आईपीसी की धारा 124A के अंतर्गत किसी भी तरह की एफआईआर दर्ज करने से बचेंगे।
- जब तक इस क़ानून का पुनर्परीक्षण नहीं हो जाता, तब तक इस प्रावधान का उपयोग ठीक नहीं होगा।
- वे लोग, जिन पर पहले ही सेक्शन 124A के अंतर्गत मामला दर्ज है और वे जेल में हैं – वे ज़मानत के लिए याचिका दाख़िल कर सकते हैं।
- अगर इस मामले में कोई नया केस दर्ज होता है तो संबंधित पक्ष को अदालत जाने और हमारे द्वारा पास किए गए इस आदेश के आधार पर राहत और प्रतिरक्षण पाने का अधिकार है।
क्या हुआ था मंगलवार को?
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को, राजद्रोह (Sedition) क़ानून और उसके अंतर्गत दर्ज किए जाने वाले मामलों पर अपना जवाब देने के लिए 24 घंटों का समय दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा था कि
क्या केंद्र सरकार सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को निर्देश देगी कि केंद्र सरकार की भारतीय दंड संहिता की धारा 124-A के पुनरीक्षण और समीक्षा का कार्य सम्पन्न होने तक राजद्रोह के मामलों को दर्ज करने पर रोक लगा दी जाए? केंद्र सरकार को बुधवार तक अपना जवाब कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करना था।
ग़ौरतलब है, पिछले साल जुलाई में देशद्रोह कानून के दुरुपयोग को लेकर केंद्र और राज्यों की व्यापक आलोचना से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि
ब्रिटिश राज में बने, और ब्रितानी राज के ख़िलाफ़ आवाज़ को उठाने से रोकने के लिए अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल किए गए राजद्रोह सम्बंधित भारतीय दंड संहिता के प्रावधान को निरस्त क्यों नहीं कर रही है?
पिछले शनिवार को केंद्र ने इस मामले के जवाब में देशद्रोह कानून और
संविधान पीठ के 1962 के फैसले का बचाव करते हुए और इसकी वैधता को बरकरार रखने के इरादे ज़ाहिर करते हुए कहा था कि लगभग छह दशकों तक “समय की कसौटी” का सामना किया जा चुका है और इसके दुरुपयोग के उदाहरणों को लेकर कभी भी इस पर पुनर्विचार करने को उचित नहीं ठहराया जा सकता। परंतु दो दिन बाद ही सोमवार को केंद्र ने एक नए हलफ़नामे में कहा कि
सरकार ने राजद्रोह क़ानून के प्रावधानों की फिर से जाँच और पुनर्विचार करने का फ़ैसला किया है।
“आजादी का अमृत महोत्सव (स्वतंत्रता के 75 वर्ष) की भावना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृष्टि में, भारत सरकार ने धारा 124ए, देशद्रोह कानून के प्रावधानों का पुनरीक्षण और पुनर्विचार करने का निर्णय लिया है.”
इसी हलफ़नामे पर सुनवाई करते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब माँगा है कि
आईपीसी राजद्रोह प्रावधानों और सम्बंधित UAPA की समीक्षा के दौरान इस क़ानून के अनुपालन पर केंद्र की क्या राय है, और ऐसे मामलों का क्या होगा जिनमें इन धाराओं के तहत लोगों पर केस चल ही रहे हैं, या फिर नए मामलों के दर्ज होने पर केंद्र के क्या विचार हैं? इस मामले में अगली सुनवाई बुधवार 11 मई को होगी।