पढ़िए, कांग्रेस का ‘उदयपुर डिक्लेरेशन!’

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‘‘उदयपुर नव संकल्प ऐलान’’

भारत के स्वतंत्रता संग्राम की कोख़ से जन्मी ‘भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ असीम संघर्ष, त्याग और बलिदान की बुनियाद पर खड़ी है। करोड़ों देशवासियों ने कांग्रेस के नेतृत्व में जिस क्रांति का आगाज़ किया था, वह ब्रितानवी हुकूमत से आज़ादी लेकर अपना शासन और अपने संविधान के लिए तो था ही, उस संघर्ष के मूल में चौतरफा असमानता, भेदभाव, कट्टरता, रूढ़िवादिता, छुआछूत और संकीर्णता को खत्म करने की कवायद भी थी।

देश-प्रेम व बलिदान की भावना से ओत-प्रोत आज़ादी के आंदोलन का आधार था – ‘सबके लिए न्याय’। करोड़ों कांग्रेसजनों ने स्वतंत्रता संग्राम में जेल की अमानवीय यातनाएं सहीं व भारत मां की आज़ादी के लिए अपने प्राणों का बलिदान दे दिया। साल 1885 से 1947 तक के 62 वर्षों के लंबे संघर्ष के बाद स्वतंत्रता आंदोलन की यह क्रांति भारत की आज़ादी के रूप में परिणित हुई।

न्याय, संघर्ष, त्याग और बलिदान की इस परिपाटी ने आज़ादी के बाद अगले 70 वर्षों तक भारत की एकता, अखंडता, प्रगति व उन्नति का रास्ता प्रशस्त किया। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस व उसके नेतृत्व ने कट्टरवाद, नक्सलवाद, उग्रवाद व हिंसा का रास्ता अपनाकर भारत के बहुलतावादी व समावेशी सिद्धांतों को चुनौती देने वाली हर ताकत से लोहा लिया। भारतीय मूल्यों की रक्षा के इस संघर्ष में महात्मा गांधी, श्रीमती इंदिरा गांधी, श्री राजीव गांधी व असंख्य कांग्रेसजनों ने अपने प्राणों को न्यौछावर कर दिया।

सन 1947 में भारत को राजनीतिक आज़ादी तो हासिल हो गई, पर देश के सामने अनगिनत चुनौतियां थीं। न पर्याप्त अनाज पैदा होता था, न उद्योग-धंधे थे, न सुई तक बनाने के कारखाने थे, न स्वास्थ्य सुविधाएं थीं, न शैक्षणिक संस्थान थे, न सिंचाई की सुविधा थी, न पर्याप्त बिजली का उत्पादन था, न यातायात और संचार के साधन थे, न देश की सुरक्षा का पूर्ण इंतजाम। देश को सैकड़ों रियासतों की सामंतशाही से मुक्त करा एक सूत्र में पिरोना ही अपने आप में एक बड़ी जिम्मेदारी थी।अर्थात् भारत की आज़ादी के साथ उस समय के अविकसित भारत में चुनौतियों का अंबार भी हमें मिला, जिसे कांग्रेस नेतृत्व के दृढ़ संकल्प ने अवसर में तब्दील कर दिया। एक मज़बूत, शांतिप्रिय, समावेशी और प्रगतिशील भारत की नींव रखी।

भारत के पहले प्रधानमंत्री, पंडित जवाहरलाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल व उनके सहयोगियों ने न केवल देश को एक सूत्र में पिरोया, बल्कि योजना आयोग तथा पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से खाद्यान्न, बांध एवं सिंचाई, बिजलीघर, परमाणु ऊर्जा, सड़क, रेल, संचार, सुरक्षा, शिक्षण संस्थान, शोध संस्थान, कारखाने व ढांचागत विकास की बुनियाद खड़ी की। पंडित नेहरू ने सार्वजनिक उपक्रमों (पीएसयू), आईआईटी, आईआईएम, विश्वविद्यालयों, बड़े सिंचाई बांधों व परियोजनाओं, बड़ी स्टील फैक्ट्रियों, अंतरिक्ष परियोजनाओं, एटॉमिक एनर्जी कमीशन, डीआरडीओ की स्थापना की व उन्हें आधुनिक भारत के मंदिरों की संज्ञा दी।

1960 और 1970 के दशक में कांग्रेस ने देश में हरित क्रांति का सूत्रपात किया। देश को खाद्यान्न में आत्मनिर्भर बनाया। बैंकों के राष्ट्रीयकरण से देश के साधारण जनमानस के लिए बैंकिंग व्यवस्था के दरवाजे खोले। भारत की संप्रभुता को चुनौती देने वाली ताकतों के दांत खट्टे किए तथा बांग्लादेश के निर्माण में एक निर्णायक भूमिका निभाई।

1980 के दशक में एक बार फिर कांग्रेस ने 21वीं सदी के भारत की नींव रखी। एक तरफ दूरसंचार क्रांति का उदय हुआ, तो दूसरी तरफ पंचायती राज और शहरी स्थानीय निकाय संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा देकर सत्ता का विकेंद्रीयकरण किया। कंप्यूटर व सूचना प्रौद्योगिकी की क्रांति ने आधुनिक भारत के निर्माण में सबसे अहम भूमिका निभाई, जिसके सुखद परिणाम आज भी देखने को मिल रहे हैं। 1990 के दशक में, जब विपक्षी सरकारों ने भारत का सोना तक गिरवी रख अर्थव्यवस्था को जीर्ण-शीर्ण कर दिया था, तो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने एक बार फिर देश को आर्थिक उदारीकरण व वैश्वीकरण से जोड़कर भारत की तरक्की व अर्थव्यवस्था को एक नई दिशा दी।

2004 से 2014 का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का कार्यकाल देश में सदैव समावेशी विकास, अभूतपूर्व आर्थिक प्रगति, अधिकार संपन्न भारत व आम नागरिकों के सशक्तीकरण के मील पत्थर स्थापित करने के लिए जाना जाएगा। एक तरफ सत्ता त्याग देने की श्रीमती सोनिया गांधी की साहसिक कुर्बानी, तो दूसरी ओर डॉ. मनमोहन सिंह की आर्थिक विद्वता ने देश को नई ऊँचाईयों पर ला खड़ा किया। श्रीमती सोनिया गांधी, डॉ. मनमोहन सिंह, श्री राहुल गांधी के सामूहिक नेतृत्व व दूरदर्शिता ने एक अधिकार संपन्न भारत की संरचना की, जिसमें हर नागरिक को मनरेगा के तहत ‘काम का अधिकार’, ‘भोजन का अधिकार’,‘शिक्षा का अधिकार’, आदिवासी भाईयों को ‘जल-जंगल-जमीन का अधिकार’, किसानों को भूमि के ‘उचित मुआवज़े का अधिकार’, नागरिकों को सरकार की जवाबदेही के लिए ‘सूचना का अधिकार’ मिले।

एक तरफ देश ने पहली बार ‘‘डबल डिजिट ग्रोथ’’ को पार कर लिया, तो दूसरी तरफ 14 करोड़ लोग गरीबी रेखा से उबर पाए व देश में एक सशक्त व प्रगतिशील ‘‘मध्यम वर्ग’’ तबके का उभार हुआ। देशवासियों ने आकांक्षाओं व तरक्की की नई बुलंदियां छुईं। चारों तरफ सामाजिक सौहार्द्र भी था, शांति व भाईचारा भी था, प्रगति व तरक्की भी थी, और आगे बढ़ते रहने की नई अभिलाषा भी।

कई प्रकार की षडयंत्रकारी ताकतों को अधिकार संपन्न भारत, सामाजिक सौहार्द व समावेशी विकास रास नहीं आया तथा दुष्प्रचार का एक कुचक्र रचकर नियोजित रूप से सत्ता अर्जित कर ली। पर पिछले 8 वर्षों में जैसे देश की तरक्की, प्रगति, सामाजिक सौहार्द्र, आकांक्षाओं व अपेक्षाओं को जानबूझकर गहरे अंधकार में धकेल दिया गया। कभी नोटबंदी के नाम पर देश के रोजगार व व्यवसाय पर हमला बोला गया, तो कभी मनमानी जीएसटी से छोटे-छोटे और मंझले उद्योगों को तालाबंदी के कगार पर ला खड़ा किया। कभी मनमाने लॉकडाऊन से लाखों-करोड़ों देशवासियों को सड़कों पर दर-बदर की ठोकरें खाने को मजबूर किया, तो कभी कोरोना की विभीषिका में सरकार की नाकामी के चलते लाखों लोगों को तिल-तिल कर दम तोड़ने पर मजबूर कर दिया। अहंकार की पराकाष्ठा तो यह कि लाशों से पटी पड़ी गंगा मैया और उसके तट भी अहंकारी शासकों को नजर नहीं आए।

यही नहीं, बीते 8 वर्षों में देश का नौजवान असहनीय बेरोजगारी का दंश झेल रहा है। महंगाई की आग ने तो हर व्यक्ति व परिवार को झुलसाकर रख दिया है। घर के लिए एक गैस सिलेंडर खरीदना भी सपना हो गया है। पेट्रोल, डीज़ल, आटा, खाने का तेल, दाल, सब्जी, रोजमर्रा के इस्तेमाल की सभी चीजों की आसमान छूती कीमतों ने देशवासियों की जिंदगी दूभर कर दी है। बेरोजगारी और महंगाई अब देश के नागरिकों के लिए अभिशाप बन गए हैं।

समाज का कोई वर्ग सत्तासीन सरकार की बेरुखी से अछूता नहीं रहा। जब तीन खेती विरोधी काले कानूनों के खिलाफ लाखों किसान सड़कों पर उतरे, तो सरकार ने उन्हें बर्बरता से मारा, उनकी राह में कील और कांटे बिछाए तथा उन्हें ‘आतंकी’ तक घोषित कर डाला। दूसरी तरफ देश भयंकर आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रहा है। उद्योग धंधे चौपट पड़े हैं और सरकार बेपरवाह है। 75 साल में पहली बार देश का रुपया बेदम और बेजार दिखाई पड़ता है। यहां तक कि एक डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत ₹77.50 पार कर गई है। अब तो 70 साल में बनाई देश की हर संपत्ति को मौजूदा सरकार द्वारा मनमाने तरीके से बेचा जा रहा है। ऐसा लगता है कि सरकार ने ‘इंडिया ऑन सेल’ का बोर्ड लगा रखा हो।

अपनी अक्षम्य नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए मौजूदा भाजपा सरकार देश में सांप्रदायिक वैमनस्यता का वातावरण निर्मित कर रही है। अल्पसंख्यकों, दलितों व गरीबों को निशाना बनाया जा रहा है। भाजपा द्वारा धर्म व जाति के आधार पर नफरत के बीज बोकर सत्ता की भूख मिटाई जा रही है। भारत के बहुलतावाद, भाईचारे व समावेशी मूल्यों पर हमला बोला जा रहा है। भारत को जाँत-पाँत, धर्म, खान-पान, पहनावे, भाषा, क्षेत्रवाद, और रंग के आधार पर विभाजित करने का कुत्सित षडयंत्र हो रहा है। केंद्र की सत्तासीन सरकार व उसकी विचारधारा के कट्टरवाद व रूढ़िवादिता ने देश की अर्थव्यवस्था को हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया है। यह सब देश के वर्तमान और भविष्य के लिए गंभीर खतरे की घंटी है।

इन विषम परिस्थितियों व चुनौतियों के मद्देनजर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने ‘‘नवसंकल्प शिविर’’ का आयोजन किया है। मौजूदा विभाजनकारी वातावरण में आम जनमानस को धार्मिक व जातीय बंटवारे के जाल में उलझाकर चुनावी हित साधने की राजनीति गहन चिंतन का विषय है। पार्टी ने छः विषयों पर छः समूहों का गठन किया। हर समूह में खुले मन से सभी साथियों ने प्रभावशाली सुझाव व विचार व्यक्त किए। सभी समूहों ने अपने मंथन की विस्तृत रिपोर्ट आज कांग्रेस अध्यक्षा को सौंप दी। हाल में हुए चुनावों में अपेक्षाकृत परिणाम न आना व संगठन की खामियों तथा उसे जरूरी तब्दीलियां करने व जमीनी जुड़ाव को मजबूत करने पर गहन मंथन किया गया। खुले मन से त्रुटियों पर चर्चा हुई, भिन्न-भिन्न विचारों पर मंथन हुआ, वैचारिक और नीतिगत मतभेद पर सभी दृष्टिकोण गहनता से देखे गए और बेहतरी के अनेकों सुझाव दिए गए। कांग्रेस के सब साथियों ने मिलकर आत्मचिंतन, आत्ममंथन व आत्मावलोकन किया। एक नव संकल्प के साथ दृढ़ता से देश प्रेम व राष्ट्र निर्माण के पथ पर चलने, न्याय की परिपाटी पर हर हाल में खरे उतरने और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के समक्ष उत्पन्न मौजूदा चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों से जूझने व जीतने की प्रतिबद्धता प्रदर्शित की। छः विषयों पर समूहों की चर्चा से भविष्य के रास्ते के कई महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकलकर सामने आए।

‘‘संगठन’’ व कांग्रेस के जमीनी कार्यकर्ता ही पार्टी की असली ताकत हैं। संगठनात्मक स्तर पर कांग्रेस की निर्णायक भूमिका निभाने हेतु व्यापक विचार मंथन हुआ। इस मंथन के निष्कर्षों का सारांश यह है कि अगले 90 से 180 दिनों में देशभर में ब्लॉक स्तर, जिला स्तर, प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर पर सभी रिक्त नियुक्तियां संपूर्ण कर जवाबदेही सुनिश्चित कर दी जाए। संगठन को प्रभावी बनाने हेतु ब्लॉक कांग्रेस के साथ-साथ ‘‘मंडल कांग्रेस कमिटियों’’ का भी गठन किया जाए। कांग्रेस संगठन में राष्ट्रीय स्तर पर तीन नए विभागों का गठन किया जाए –

(1) पब्लिक इनसाईट डिपार्टमेंट’, ताकि भिन्न-भिन्न विषयों पर जनता के विचार जानने व नीति निर्धारण हेतु ‘‘तर्कसंगत फीडबैक’’ कांग्रेस नेतृत्व को मिल पाए।

(2) ‘राष्ट्रीय ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट’ का गठन हो, ताकि पार्टी की नीतियों, विचारधारा, दृष्टि, सरकार की नीतियों व मौजूदा ज्वलंत मुद्दों पर पार्टी के नेताओं व कार्यकर्ताओं का व्यापक प्रशिक्षण हो पाए। केरल स्थित ‘राजीव गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज़’ से इस राष्ट्रीय ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट की शुरुआत की जा सकती है।

(3)अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के स्तर पर ‘‘इलेक्शन मैनेजमेंट डिपार्टमेंट’’ का गठन किया जाए, ताकि हर चुनाव की तैयारी प्रभावशाली तरीके से हो व अपेक्षित परिणाम निकलें।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के महासचिव (संगठन) के तहत अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी प्रदेश कांग्रेस कमेटी, जिला कांग्रेस कमेटी के पदाधिकारियों के कार्य का मूल्यांकन भी हो, ताकि बेहतरीन काम करने वाले पदाधिकारियों को आगे बढ़ने का मौका मिले और निष्क्रिय पदाधिकारियों की छंटनी हो पाए।

पार्टी में लंबे समय तक एक ही व्यक्ति द्वारा पद पर बने रहने के बारे कई विचार सामने आए। संगठन के हित में यह है कि पाँच वर्षों से अधिक कोई भी व्यक्ति एक पद पर न रहे, ताकि नए लोगों को मौका मिल सके। यही नहीं, मौजूदा भारत के आयु वर्ग व बदलते स्वरूप के अनुसार यह आवश्यक है कि कांग्रेस कार्यसमिति, राष्ट्रीय पदाधिकारियों, प्रदेश, जिला, ब्लॉक व मंडल पदाधिकारियों में 50 प्रतिशत पदाधिकारियों की आयु 50 वर्ष से कम हो। राष्ट्रीय, प्रदेश, जिला, ब्लॉक व मंडल संगठनों की इकाईयों में सामाजिक वास्तविकता का प्रतिबिंब भी हो, यानि दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों व महिलाओं को न्यायसंगत प्रतिनिधित्व मिले। संगठन में ‘‘एक व्यक्ति, एक पद’’ का सिद्धांत लागू हो। इसी प्रकार, ‘‘एक परिवार, एक टिकट’’ का नियम भी लागू हो। यदि किसी के परिवार में दूसरा सदस्य राजनीतिक तौर से सक्रिय है, तो पाँच साल के संगठनात्मक अनुभव के बाद ही वह व्यक्ति कांग्रेस टिकट के लिए पात्र माना जाए। उत्तर-पूर्व के प्रांतों के लिए गठित की गई ‘‘नॉर्थ ईस्ट को-ऑर्डिनेशन कमेटी’’ के अध्यक्ष को कांग्रेस कार्य समिति का स्थायी आमंत्रित सदस्य बनाया जाए। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस कार्यसमिति के सदस्यों में से कांग्रेस अध्यक्ष द्वारा एक समूह का गठन हो, जो समय-समय पर जरूरी व महत्वपूर्ण राजनैतिक विषयों पर निर्णय लेने हेतु कांग्रेस अध्यक्ष को सुझाव दे व उपरोक्त निर्णयों के क्रियान्वयन में मदद करे।

हर प्रांत के स्तर पर भिन्न-भिन्न विषयों पर चर्चा करने व निर्णय हेतु एक ‘‘पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी’’ का गठन किया जाए। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी व प्रदेश कांग्रेस कमिटियों का सत्र साल में एक बार अवश्य आयोजित हो। इसी प्रकार, जिला, ब्लॉक व मंडल कमिटियों की बैठक नियमित रूप से आयोजित की जाए। आज़ादी के 75 वर्ष पूरे होने पर हर जिला स्तर पर 9 अगस्त से 75 किलोमीटर लंबी पदयात्रा का आयोजन हो, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम के लक्ष्यों व त्याग तथा बलिदान की भावना प्रदर्शित हो।

बदलते परिवेश में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मीडिया व संचार विभाग के अधिकारक्षेत्र, कार्यक्षेत्र व ढांचे में बदलाव कर व्यापक विस्तार किया जाए तथा मीडिया, सोशल मीडिया, डाटा, रिसर्च, विचार विभाग आदि को संचार विभाग से जोड़ विषय विशेषज्ञों की मदद से और प्रभावी बनाया जाए। प्रदेशों के सभी मीडिया, सोशल मीडिया, रिसर्च आदि विभागों का अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के संचार विभाग के अंतर्गत रख सीधा जुड़ाव बने, ताकि पार्टी का संदेश प्रतिदिन देश के हर कोने-कोने में फैल सके।

‘‘राजनैतिक समूह’’ ने मौजूदा विषम परिस्थितियों में ‘‘भारतीयता की भावना’’ व ‘‘वसुधैव कुटुंबकम’’ के सिद्धांतों को हर कांग्रेसजन द्वारा आत्मसात करने पर बल दिया। ‘‘भारतीय राष्ट्रवाद’’ ही कांग्रेस का मूल चरित्र है और इसके विपरीत, भाजपा का छद्म राष्ट्रवाद सत्ता की भूख पर केंद्रित है। हर कांग्रेसजन का कर्तव्य है कि वह इस अंतर को जन-जन तक पहुंचाए। आज सत्तासीन दल द्वारा भारतीय संविधान, उसमें निहित सिद्धांतों व अधिकारों तथा बाबा साहेब अंबेडकर की सोच पर षडयंत्रकारी हमला बोला गया है। संवैधानिक अधिकारों पर आक्रमण का पहला आघात देश के दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं व गरीबों को पहुंचा है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का संकल्प है कि सभी कांग्रेसजन गांधीवादी मूल्यों व नेहरू जी के आज़ाद भारत के सिद्धांत की रक्षा हेतु हर हालत में संघर्षरत रहेंगे। साथ-साथ, नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने वाली सभी संवैधानिक संस्थाओं को भी सत्ता के हित साधने के लिए कमजोर व निष्प्रभावी बना दिया गया है। इन विघटनकारी ताकतों से लोहा लेने हेतु कांग्रेस संगठन के साथ-साथ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सभी सामाजिक, सांस्कृतिक, गैर सरकारी संगठनों, ट्रेड यूनियन, थिंक टैंक व सिविल सोसायटी समूहों से व्यापक संपर्क और संवाद स्थापित करेगी। जहां भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को अपने संगठन की शक्ति व बल बूते के आधार पर हर जगह जमीनी पकड़ पैदा करनी है, वहीं राष्ट्रीयता की भावना व प्रजातंत्र की रक्षा हेतु भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस सभी समान विचारधारा के दलों से संवाद व संपर्क स्थापित करने को कटिबद्ध है तथा राजनैतिक परिस्थितियों के अनुरूप जरूरी गठबंधन करने के रास्ते खुले रखेगी।

भारत की संप्रभुता व भूभागीय अखंडता पर चीन द्वारा अतिक्रमण को कभी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। लद्दाख में भारतीय सैनिकों की शहादत को हम सलाम करते हैं। इस पूरे मामले पर केंद्र सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित न होना व प्रधानमंत्री की रहस्यमयी चुप्पी देश के लिए गंभीर चिंता का विषय है। कई दौर की वार्ता के बावजूद चीन द्वारा भारत की सरजमीं से अनधिकृत कब्जा न छोड़ना अपने आप में भारत की अखंडता को चुनौती है। भाजपा द्वारा राष्ट्रीय सुरक्षा से किया जा रहा यह खिलवाड़ अस्वीकार्य है।

उत्तर-पूर्व के शांतिप्रिय प्रांतों में अलगाववाद व उग्रवाद का विस्तार अति चिंताजनक है। राजनैतिक स्वार्थों हेतु असम-मिज़ोरम-मेघालय सीमा विवाद, नागालैंड – मणिपुर राष्ट्रीय राजमार्ग का लंबे समय तक बंद रहना, रहस्यमयी नागा शांति समझौते का 2019 से क्रियान्वयन न हो पाना व पूरे उत्तर-पूर्व में सत्ता प्राप्ति हेतु सामाजिक व राजनैतिक अस्थिरता का माहौल पैदा कर देना भाजपा की नाकामियों को दर्शाता है। जम्मू-कश्मीर की विशेष स्थिति बदल पूर्ण राज्य का दर्जा छीन लेना, प्रांत को केंद्रीय शासित दर्जे में तब्दील कर देना, प्रांतीय विधानसभा की बहाली न कर चुनाव न करवाना, जम्मू-कश्मीर के लोगों से वोट का अधिकार छीन लेना, जम्मू-कश्मीर में त्रुटिपूर्ण डिलिमिटेशन लागू करना, अस्थिरता व असुरक्षा के माहौल के चलते उग्रवादियों द्वारा सुरक्षा बलों व कश्मीरी पंडितों सहित हजारों मासूम नागरिकों को निशाना बनाकर उनकी हत्या करना अपने आप में केंद्र सरकार की गंभीर नाकामी का परिचायक है।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कड़े शब्दों में भाजपा-आरएसएस द्वारा देश में सांप्रदायिक विभाजन फैलाने के एजेंडा की निंदा करती है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस धर्म, भाषा, जाति, रंग व क्षेत्रवाद के आधार पर अल्पसंख्यकों, गरीबों व वंचितों को निशाना बना वोट बटोरने की राजनीति का सिरे से खंडन करती है।

केंद्र सरकार द्वारा देश के संघीय ढांचे पर हमला तो और भी खतरनाक है। बार-बार प्रांतों के अधिकार क्षेत्र पर गैरकानूनी व अनैतिक अतिक्रमण करना भाजपाई सत्ता का स्वभाव बन गया है। यहां तक कि राज्यपाल के पद का दुरुपयोग अब भाजपाई सत्ता सिद्धी के लिए खुलेआम किया जाता है व संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। राष्ट्रहित में इन सब अनैतिक कृत्यों का भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कड़ा विरोध करेगी।

‘‘आर्थिक समूह’’ ने व्यापक विचार-विमर्श के बाद भारत के लिए ‘‘नव संकल्प आर्थिक नीति’’ बनाने व लागू करने की कवायद की। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा 1990 के दशक में किए अर्थव्यवस्था के उदारीकरण से हुए अभूतपूर्व फायदे का संज्ञान लेते हुए एक ऐसी उदारीकरण केंद्रित अर्थव्यवस्था के गठन को प्रोत्साहित करने की प्रस्तावना की गई, जिसमें निजी क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका तो रेखांकित की जाए, पर साथ साथ सशक्त व व्यवहारिक सार्वजनिक उपक्रमों की संरचनात्मक भूमिका भी बनी रहे।

उदारीकरण के 30 वर्षों के बाद तथा घरेलू व वैश्विक परिस्थितियों का संज्ञान लेते हुए स्वाभाविक तौर से आर्थिक नीति में बदलाव की आवश्यकता जरूरी है। इस ‘‘नव संकल्प आर्थिक नीति’’ का केंद्र बिंदु रोजगार सृजन हो। आज के भारत में ‘‘जॉबलेस ग्रोथ’’ को कोई स्थान नहीं हो सकता। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस मोदी सरकार की रोज़गार विहीन आर्थिक नीतियों को सिरे से खारिज करती है। हमारा मानना है कि जो आर्थिक नीति नए रोजगार पैदा करने पर केंद्रित होगी, वही देश में उच्च विकास दर ला सकती है। नव संकल्प आर्थिक नीति के लिए अनिवार्य है कि वह देश में फैली अत्यधिक गरीबी, भुखमरी, चिंताजनक कुपोषण (खासतौर से महिलाओं व बच्चों में) व भीषणतम आर्थिक असमानता का निराकरण कर सके।

भाजपा सरकार द्वारा 70 साल में बनाई गई सरकारी संपत्तियों का अंधाधुंध निजीकरण अपनेआप में खतरनाक है। यह और गंभीर हो जाता है, जब भाजपा सरकार पब्लिक सेक्टर कंपनियों को बदनीयति से औने-पौने दाम पर अपने चंद और चहेते पूंजीपति मित्रों को बेच रही है। न केवल दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों का आरक्षण खत्म हो रहा है, बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था पर कुछ लोगों का एकाधिकार स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस इस अंधाधुंध निजीकरण का घोर विरोध करेगी।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का मानना है कि जनकल्याण ही आर्थिक नीति का सही आधार हो सकता है। भारत जैसे तरक्कीशील देश में जनकल्याण नीतियों से आम जनमानस के लिए रोजगार सृजन व आय के साधन बढ़ाना अनिवार्य व स्वाभाविक है।

नव संकल्प आर्थिक नीति के तहत केंद्र व प्रांतीय सरकारों के बिगड़ते हुए वित्तीय संबंधों का संज्ञान लेने की आवश्यकता है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुताबिक समय आ गया है, जब केंद्र व प्रांतों के बीच वित्तीय संबंधों की पुनर्समीक्षा हो और प्रांतों के अधिकारों की संरक्षण व सुरक्षा भी हो।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का विश्वास है कि हमें भारत की अर्थव्यवस्था व वर्कफोर्स को भविष्य की आवश्यकताओं के अनुरूप तैयार करना है। भविष्य की चुनौतियों में बदलती वैश्विक अर्थव्यवस्था भी है तथा बदलती आधुनिक तकनीक, जैसे कि रोबोटिक्स, आर्टिफिशियल इंटैलिजेंस, मशीन लर्निंग, के अनुरूप देश की वर्कफोर्स को ढालना भी है। नई अर्थव्यवस्था में देश व दुनिया में हो रहे जलवायु परिवर्तन का संज्ञान लेना भी अनिवार्य है। नव संकल्प आर्थिक नीति एक निष्पक्ष, न्यायपूर्ण व समानता के सिद्धांत पर आधारित अर्थव्यवस्था का निर्माण करेगी, जिसमें सभी वर्गों को मौके व आर्थिक प्रगति के अवसर मिल पाएंगे।

‘‘किसान व खेत मजदूर समूह’’ ने देश में भाजपा सरकार निर्मित मौजूदा कृषि संकट का गहन संज्ञान लेते हुए कई महत्वपूर्ण विषयों और नीतियों पर पुनर्विचार की आवश्यकता पर बल दिया। कर्ज के दलदल में फंसे देश के अन्नदाता पर 31 मार्च, 2021 तक ₹16.80 लाख करोड़ का कर्ज चढ़ गया है। केंद्र सरकार ने 8 वर्षों में किसान की कर्ज मुक्ति हेतु पूर्णतया उदासीनता व बेरुखी दिखाई है। वक्त की मांग है कि ‘‘राष्ट्रीय किसान ऋण राहत आयोग’’ का गठन कर कर्जमाफी से कर्जमुक्ति तक का रास्ता तय किया जाए। कर्ज न लौटा पाने की स्थिति में किसान के खिलाफ अपराधिक कार्यवाही तथा किसान की खेती की जमीन की कुर्की पर पाबंदी लगाई जाए तथा खेतिहर किसानों को मुफ्त बिजली उपलब्ध हो। किसान की एक और सबसे बड़ी समस्या फसल की कीमत न मिलना है। आजाद भारत के सबसे बड़े किसान आंदोलन के बाद मोदी सरकार द्वारा एमएसपी की गारंटी पर विचार करने हेतु कमेटी बनाने का वादा तो किया, पर हुआ कुछ नहीं। किसान संगठनों की न्यायोचित मांग है कि केंद्र सरकार एमएसपी की कानूनी गारंटी दे तथा किसान की एमएसपी का निर्धारण c2+50% के आधार पर हो, यानि एमएसपी निर्धारण करते समय किसान को ‘cost of capital’ व ‘जमीन का किराया’ जोड़कर 50 प्रतिशत अधिक दिया जाए।

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना भी असलियत में निजी बीमा कंपनी मुनाफा योजना बन गई है। निजी बीमा कंपनियों ने पिछले 6 वर्षों में ₹34,304 करोड़ मुनाफा कमाया, पर किसान को कोई लाभ नहीं मिला। वक्त की मांग है कि खेती के पूरे क्षेत्र का बीमा किया जाए व ‘नो प्रॉफिट, नो लॉस’ के सिद्धांत पर बीमा योजना का संचालन सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की बीमा कंपनियां करें। किसान कल्याण के लिए यह आवश्यक है कि कांग्रेस के 2019 के घोषणापत्र के अनुरूप एक अलग ‘‘कृषि बजट’’ संसद में प्रस्तुत हो, जिसमें किसान कल्याण की सभी परियोजनाओं का लेखा-जोखा दिया जाए। मौसम की मार, प्राकृतिक आपदा, बाजारी मूल्यों में उतार-चढ़ाव आदि को देखते हुए किसान को राहत देने हेतु ‘‘राष्ट्रीय किसान कल्याण कोष’ बनाया जाए। किसान के ट्रैक्टर व खेती के अन्य उपकरण जीएसटी की परिधि से मुक्त हों।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के साल 2019 के घोषणापत्र में अंकित ‘न्याय के सिद्धांत’ को हर किसान व खेत मजदूर परिवार पर लागू कर हर माह प्रति परिवार को ₹6,000 हस्तांतरण हो। छोटे व सीमांत किसानों व भूमिहीन गरीबों को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए यही एक उपाय है। वक्त की यह भी मांग है कि कृषि उपज मंडियों की संख्या मौजूदा 7,600 से बढ़ाकर 42,000 की जाए, ताकि हर 10 किलोमीटर पर एक कृषि उपज मंडी की स्थापना हो। ग्रामीण रोजगार और गरीबी उन्मूलन के लिए मनरेगा ही एकमात्र उपाय है। दुर्भाग्यवश केंद्रीय भाजपा सरकार ने कोरोना की विषम परिस्थितियों के बावजूद मनरेगा के बजट में कटौती कर डाली है। मनरेगा में हर व्यक्ति को जहां 100 दिन का काम देना अनिवार्य हो, वहां यह जरूरी है कि मनरेगा मजदूरी को न्यूनतम मजदूरी के बराबर लाकर सालाना औसत आमदनी को ₹18,000 किया जाए।

‘‘सामाजिक न्याय व सशक्तीकरण समूह’’ ने देश के शोषितों, वंचितों, पिछड़ों, गरीबों व अल्पसंख्यकों के साथ षडयंत्रकारी अन्याय व भेदभाव पर विस्तृत चिंतन किया तथा इन समूहों की आवाज व मांग कांग्रेस संगठन के माध्यम से देश भर में उठाने का संकल्प लिया। इस संकल्प का सबसे पहला कदम केंद्र व प्रांतीय सरकारों के बजट में एससी-एसटी सबप्लान को कानूनी मान्यता के साथ पुनः शुरू करना है। महिला सशक्तीकरण हेतु संसद, विधान सभाओं व विधान परिषदों में 33 प्रतिशत महिला आरक्षण का संवैधानिक संशोधन जल्द से जल्द पारित हो तथा हर वर्ग की महिला को अनुपातिक आरक्षण का लाभ मिले। मज़दूरों के संगठन के सशक्तीकरण हेतु कारगर कदम उठाने का संकल्प भविष्य के भारत के लिए अनिवार्य है।

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा एससी-एसटी आरक्षित संसदीय व विधानसभा क्षेत्रों में वंचित वर्गों के नए नेतृत्व निर्माण हेतु ‘लीडरशिप मिशन’ चलाए जाने का संकल्प लिया गया। भाजपा प्रायोजित वैमनस्यपूर्ण माहौल के चलते यह भी अनिवार्य है कि अल्पसंख्यकों, एससी, एसटी, ओबीसी के मोहल्लों में कांग्रेस पार्टी एक विशेष ‘सद्भावना मिशन’ चलाकर समरसता का भाव पैदा करे। एससी-एसटी, ओबीसी व अल्पसंख्यक समुदायों की आवाज पुरजोर तरीके से उठाने, उनकी समस्याओं पर फोकस करने व उनके नेतृत्व को उचित स्थान देने हेतु अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी में ‘‘सामाजिक न्याय सलाहकार परिषद’’ का गठन हो, जो कांग्रेस अध्यक्ष को इस बारे सुझाव दे सके। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस आदिवासियों के लिए एक ‘‘विशेष हैल्थ मिशन’’ बनाने व आदिवासियों के पट्टों की सुरक्षा करने को संकल्पबद्ध है। कांग्रेस कार्यसमिति, प्रदेश व जिला कांग्रेस कमेटीज़ की हर छः महीने में एक बैठक एससी, एसटी, ओबीसी, अल्पसंख्यक व महिला मुद्दों पर केंद्रित हो।

नई शिक्षा नीति को लेकर व्यापक मंत्रणा हुई। विशेषतया यह चिन्हित किया गया कि नई शिक्षा नीति के प्रावधान स्वाभाविक तौर से गरीबों व शोषित वर्गों के बच्चों को बराबरी के अधिकार से वंचित करती है, तथा अमीर-गरीब की खाई को और बढ़ाने वाली है।

कांग्रेस-यूपीए सरकार द्वारा पिछड़े वर्गों की जातीय जनगणना के आँकड़ों को जानबूझकर केंद्र सरकार द्वारा सार्वजनिक नहीं किया जा रहा। इसके पीछे सीधा लक्ष्य पिछड़े वर्गों को उनके अधिकारों से वंचित करना है। हमारा संकल्प है कि जातीय जनगणना के आँकड़ों को सार्वजनिक करने की मांग को लेकर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस एक निर्णायक संघर्ष करेगी और पिछड़े वर्गों को उनका अधिकार दिलवाएगी।

‘‘युवा समूह’’ ने महंगी शिक्षा, गरीब और अमीर के बच्चों में कोरोना की विभीषिका के बाद पैदा हुए भीषण ‘डिजिटल डिवाईड’ व बेतहाशा बेरोजगारी की मार झेल रहे युवाओं की असहनीय पीड़ा पर चिंता व्यक्त करते हुए इस खाई को पाटने के बारे में विस्तृत चर्चा की। भाजपा निर्मित बेरोजगारी के दंश से लड़ने के लिए कश्मीर से कन्याकुमारी तक ‘रोजगार दो पदयात्रा’ का प्रस्ताव किया, जिसकी शुरुआत आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर 15 अगस्त, 2022 से हो। स्कूलों में लागू किए गए शिक्षा के अधिकार कानून की तर्ज पर गरीब विद्यार्थियों के लिए कॉलेज व विश्वविद्यालयों में भी निशुल्क शिक्षा का प्रावधान हो। गरीब और अमीर के बच्चों में पैदा हुई अप्रत्याशित डिजिटल डिवाईड की खाई का केंद्र सरकार स्थायी समाधान करे व प्रांतों की मदद करे। सभी सरकारी विभागों, भारत सरकार के उपक्रमों व तीनों सेनाओं में पड़े खाली पद अगले छः महीने में विशेष ‘भर्ती अभियान’ चलाकर भरे जाएं।

संगठनात्मक स्तर पर 50 प्रतिशत पद 50 साल से कम उम्र के साथियों को मिलें। युवा समूह ने यह निष्कर्ष भी निकाला कि संसद, विधायिकाओं, विधान परिषद व सभी चुने हुए पदों पर रिटायरमेंट की उम्र की एक सीमा तय की जाए। भविष्य में पार्टी की सरकारों में सभी पदों पर 50 वर्ष से कम आयु के 50 प्रतिशत व्यक्ति हों। उससे अधिक उम्र के तजुर्बेकार लोगों का फायदा पार्टी के संगठन की मजबूती के लिए लिया जाए। 2024 के संसदीय लोकसभा चुनाव से शुरुआत कर उसके बाद सभी संसद, विधायिकाओं, विधान परिषदों व अन्य स्तरों पर कम से कम 50 प्रतिशत टिकट 50 वर्ष से कम की आयु के साथियों को दिए जाएं। पार्टी के नेताओं द्वारा गैरराजनैतिक गतिविधियों में अग्रणी भूमिका व सक्रियता निभाई जाए, जैसे कि यूथ फेस्टिवल, सांस्कृतिक आयोजन, खेल आयोजन, यूथ पार्लियामेंट, विषय विशेष पर टाउन हॉल मीटिंग व ब्लड डोनेशन आदि। इससे भी युवा वर्ग में पार्टी के फैलाव व विस्तार को मदद मिलेगी।

ठीक 80 वर्ष पहले, साल 1942 में महात्मा गांधी ने ‘‘भारत छोड़ो’’ का नारा दिया था। साल, 2022 का देश का नारा है – ‘‘भारत जोड़ो’’!

यही है उदयपुर का ‘नव संकल्प’!

15 मई 2022