कबीर संजय
सत्ताइस साल बाद टिड्डी दल भयंकर तरीके से हमले कर रहे हैं। राजस्थान, गुजरात, पंजाब, मध्यप्रदेश, हरियाणा, उत्तर प्रदेश खासतौर पर इसके निशाने पर है। पहली बार टिड्डी दलों ने जयपुर जैसी शहरी आबादी क्षेत्र में घुसपैठ की है। क्या हैं ये टिड्डे। कैसे सफाचट कर देते हैं ये पूरी हरियाली। क्यों सत्ताइस साल बाद ये इतने भयंकर साबित हो रहे हैं। नीचे कुछ बिन्दुओं में इन बातों को समझने की मैं कोशिश करता हूं—
1. टिड्डी दल किसी एक देश की समस्या नहीं हैं। ये एक ग्लोबल समस्या है। अरब सागर के तीन तरफ यानी अफ्रीका, अरब और भारतीय उप महाद्वीप के देश इसके हमलों से प्रभावित होते रहे हैं। माना जाता है कि क्लाइमेट क्राइसिस के चलते वर्ष 2018 में कुछ असामान्य चक्रवाती तूफान आए हैं। इनके चलते खासतौर पर अरब क्षेत्र में बरसात हुई। जिससे रेत वाली जमीन में ज्यादा नमी बनी। इसके चलते टिड्डी दलों की भयंकर पैदावार हुई है।
2. आमतौर पर इनकी पैदावार पर रोक लगाने के लिए ऐसी जगहों जहां पर इन्होंने अंडे दिए होते हैं, वहां पर दवाओं का छिड़काव किया जाता है। लेकिन, इस बार कोरोना संकट के चलते ईरान का पूरा अमला उससे निपटने में ही जुटा हुआ था। इसके चलते इन कीटों को नष्ट करने का काम प्रमुखता से नहीं हुआ। जिसके चलते समस्या विकराल हो गई।
3. भारत में इस बार मार्च, अप्रैल और मई के पहले पखवाड़े में लगातार ही नियमित अंतराल में पश्चिमी विक्षोभों की सक्रियता रही है। इसके चलते नियमित अंतराल पर बारिश हुई है। जिससे मौसम में नमी बनी रही। यह कीटों के पनपने के लिए बेहद मुफीद स्थिति बन गई।
4. भारत के गुजरात, राजस्थान और पंजाब जैसे राज्यों में पिछले साल ही टिड्डी दलों का हमला हुआ था। लेकिन, इस समस्या पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। आश्चर्यजनक तौर पर टिड्डियां इस बार भयंकर ठंड में भी सर्वाइव कर गईं। जबकि, ठंड उतरते ही उन्हें नमी वाला बहुत ही अच्छा मौसम मिला। जिसके चलते उनके पैदावार में बड़ी तेजी आई।
5. आमतौर पर टिड्डी दल हर तरह के पेड़-पौधें, फसलें आदि चट कर जाते हैं। बड़े पेड़ों की भी कोमल पत्तियों और टहनियों को वे खा जाते हैं। एक सामान्य टिड्डी दल में पंद्रह करोड़ तक की संख्या में टिड्डे हो सकते हैं और हवा अगर मुफीद हो तो वे 150 किलोमीटर तक की यात्रा एक दिन में कर सकते हैं। एक वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला एक सामान्य टिड्डी दल एक दिन में 35 हजार लोगों के बराबर का खाना खा सकते हैं।
6. बलुई जमीन को टिड्डी दल अपनी ब्रीडिंग कॉलोनी में बदल देते हैं। मादा टिड्डा जमीन में दो से चार इंच का छेद करके उसमें अंडे देती है। मेटिंग के आठ से 24 घंटों बाद मादा अंडे देने की शुरुआत कर देती है। अपने जीवन भर में एक टिड्डा पांच सौ अंडे देती है। यह भी देखने में आता है कि मादाएं एकदम करीब-करीब अंडे देती हैं। यहां तक कि एक वर्ग मीटर के बीच में पांच हजार तक अंडे हो सकते हैं। एक अंडा 7-9 मिलीमीटर लंबा होता है। गर्मी का मौसम टिड्डों के लिए बेहद मुफीद होता है। गर्मी के दिनों में इन अंडों में से 12 से 15 दिनों के भीतर ही बच्चे निकल आते हैं जबकि जाड़े के दिनों में तीन से चार सप्ताह लग जाते हैं। इन्हें निंफ कहा जाता है। गर्मी के दिनों में तीन से चार सप्ताह में निंफ बड़े हो जाते हैं और इनके पंख निकल आते हैं, जबकि, जाड़े के दिनों में इसमें छह से आठ सप्ताह लग जाते हैं।
7. यूं तो टिड्डी दल हर प्रकार की हरी चीज को साफ कर कर देते हैं। लेकिन, ऑक, नीम, धतूरा, शीशम और अंजीर को वे नहीं खाते हैं। निंफ और वयस्क टिड्डा दोनों ही नुकसान पहुंचाने वाले होते हैं। जब ये टिड्डी दल अपने पूरे जोर पर होते हैं तो अकाल तक का खतरा पैदा कर देते हैं। वर्ष 1926 से 31 के बीच भारत के अलग-अलग हिस्सों में लगातार टिड्डी दलों के हमले हुए। कहा जाता है कि उस समय तक टिड्डी दल फसलों को चट करने के लिए आसाम तक पहुंच गए थे।
8. फसलों को खाने के अलावा शहरी क्षेत्रों में भी तमाम प्रकार की परेशानियां पैदा कर सकते हैं। घरों, बिस्तरों और रसोईघरों में वे घुस जाते हैं। बहुत सारे लोग इसके प्रति एलर्जिक भी होते हैं। टिड्डी दलों की वजह से रेलवे लाइन पर घर्षण कम हो जाता है और इससे ट्रेन के फिसलने का खतरा पैदा हो सकता है। इसलिए ट्रेनों तक को रोकना पड़ता है। वे अगर जलाशयों में गिर जाते हैं तो पानी भी पीने योग्य नहीं रह जाता।
9. एक विशालकाय टिड्डी दल दस वर्ग किलोमीटर तक में फैले हो सकते हैं। इस तरह के दल में तीन सौ टन तक टिड्डे हो सकते हैं। अभी तक ऐसे झुंड भी रिकार्ड किए गए हैं जो 300 वर्ग किलोमीटर तक में फैले थे। वे सूरज की रोशनी को रोक लेने वाले किसी काले-मनहूस बादल की तरह किसानों की आशाओं पर मंडराते हैं।
10. आमतौर पर टिड्डा तीन से पांच महीने तक जीता है। हालांकि, यह भी मौसम के ऊपर बहुत कुछ निर्भर करता है। टिड्डा का जीवन चक्र तीन अलग-अलग हिस्सों में यानी अंडा फिर होपर या निंफ और वयस्क में बांटा जा सकता है।
11. टिड्डी दलों का हमला रोकने के लिए भारत में बहुत पहले से कृषि मंत्रालय के अंतर्गत लोकस्ट वार्निंग आर्गेनाइजेशन काम करता रहा है। इसके केन्द्र राजस्थान में जगह-जगह पर बनाए गए हैं। जहां पर टिड्डी दलों की आमद और उनकी ब्रीडिंग पर निगाह रखी जाती है। कुछ विशेषज्ञ तो यहां तक बताते हैं कि पहले इस संस्था के पास अपने विमान भी हुआ करते थे। इन विमानों के जरिए टिड्डी दलों पर छिड़काव किया जाता था और उनको समाप्त करने की कोशिश होती थी।
12. इन कोशिशों को काफी कुछ कामयाबी भी मिली थी और टिड्डी दलों के हमले लगभग समाप्त हो गए थे। लेकिन, हाल के दिनों में मौसम का चक्र बिगड़ने के चलते टिड्डी दल फिर से हमलावर हो गए हैं। टिड्डी का कोई एक दल भारत में सक्रिय नहीं हैं। मध्यप्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में टिड्डियों का एक दल घूम रहा है। इसके चलते हजारों करोड़ की फसलें चट होती जा रही हैं। जबकि, एक अन्य दल ने पाकिस्तान की ओर से प्रवेश किया है जो पंजाब में फसलों को चट करने में जुटा हुआ है।
13. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अभी से इन दलों का खात्मा करने में पूरी ताकत झोंकी जाए तो भी पांच साल लगेगा इन्हें पूरी तरह से समाप्त करने में। अगले कुछ महीनों में वे भारत में तमाम जगहों पर कहर बरपाने वाले हैं।
(दोस्तो, कोरोना की तरह ही टिड्डी दलों के हमले को भी हल्के में नहीं लिया जा सकता है। क्योंकि, वे भी हमारी खेती और अर्थव्यवस्था को गहरा जख्म देने वाले हैं। सबसे खराब स्थिति वह होगी जब वे लोगों को भुखमरी में धकेल देंगे। इसमें एक खास बात यह है कि टिड्डी दलों को कुछ देशों में अच्छा फूड सोर्स माना जाता है। )
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।