थाइलैंड खनन आपदा में अपनी पीठ खुजाने वाली सरकार मेघालय पर उदासीन क्‍यों है?


मेघालय की खदान में फंसे 15 मजदूरों पर शिलांग टाइम्‍स का अहम संपादकीय




मेघालय में एक पखवाड़े से कोई पंद्रह मजदूर खदानों में फंसे हुए हैं। इस राष्‍ट्रीय आपदा की तरफ राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ध्‍यान एक बयान देकर दो दिन पहले खींचा था।

ताजा स्थिति यह है कि राज्‍य सरकार ने खदान से पानी निकालने के लिए एक पंप निर्माता कपनी की पेशकश पर बड़े पंप मंगवाए हैं लेकिन एनडीआरएफ के मुताबिक खदान से आ रही गंध मुमकिन है मजदूरों की लाशों की हो। कुल मिलाकर केंद्र और राज्‍य सरकार का रवैया बहुत ढीला है।

इसके ठीक उलट थाइलैंड में कुछ दिन पहले जब 12 मजदूर एक खदान में फंसे थे तो भारत सरकार सहित यहां की मीडिया ने उनकी कवरेज में दिन रात एक कर दिया था। जिस भारतीय कंपनी ने वहां पानी निकालने के लिए पंप भेजा था, उसी ने अब जाकर बड़े पंप भेजने का प्रस्‍ताव राज्‍य सरकार को दिया है। इस पंप को आने में चाहे जितना वक्‍त लगे, लेकिन सवाल उठता है कि थाइलैंड के मजदूरों को बचाकर अपना डंका पीटने वाली भारत सरकार अपने ही देश के एक सूबे के 15 मजदूरों की जान बचाने में दिलचस्‍पी क्‍यों नहीं दिखा रही है।

इस बीच शिलांग टाइम्‍स की संपादक पैट्रीशिया मुखिम ने एक ट्वीट कर के सरकार का ध्‍यान इस हादसे की ओर खींचा है। मुखिम के ऊपर मेघालय में अवैध खनन पर लिखने के चलते बम से हमला हो चुका है। वे पिछले कई साल से यहां अवैध खनन का मुद्दा उठाती रही हैं।

आज शिलांग टाइम्‍स ने इस त्रासदी पर एक संपादकीय भी लिखा है। मीडियाविजिल अपने पाठकों के लिए उक्‍त संपादकीय अविकल प्रकाशित कर रहा है।

मेघालय में इंसानी जिंदगी की कोई कीमत नहीं   

मेघालय में हर किसी को मानव अधिकार हासिल नहीं है। गरीब और बेआवाज़ लोगों को बेशक कोई अधिकार नहीं हैं। पिछले 13 दिसंबर को ईस्‍ट जैंतिया हिल्‍स जिले के लुमथारी स्थित क्‍सान में खदानों में अचानक आई बाढ़ के दौरान फंसे खननकर्मियों को अपनी किस्‍मत के भरोसे छोड़ दिया गया है। पंद्रह से ज्‍यादा लोगों के प्रति जो अमानवीय बरताव हो रहा है और बिना किसी मदद दिए उन्‍हें दर्द में मरने को अकेले छोड़ दिया गया है, उसके खिलाफ जनता में कोई आवाज़ नहीं उठ रही। यह मसला कई सवाल खड़े करता है। पहला, खनन संबंधी ऐसी तबाहियों से निपटने के लिए राज्‍य प्रशासन की तैयारी कैसी है। ईस्‍ट जैंतिया हिल्‍स के प्रशासन ने कितनी तेजी से प्रतिक्रिया दी है या फिर वह अपनी नाक के नीचे हो रहे अवैध खनन को छुपाने मे जुटा हुआ था? फंसे हुए खनन कर्मियों को छुड़ाने के लिए जिला प्रशासन की ओर से राज्‍य सरकार को क्‍या संदेश भेजा गया? क्‍या रक्षा बलों को सहयोग के लिए संपर्क किया गया? क्‍या रैटहोल खदानों में ऐसे हादसों से निपटने के लिए राज्‍य आपदा राहत बल (एसडीआरएफ) पर्याप्‍त प्रशिक्षित है? क्‍या उन्‍हें मानक प्रक्रियाओं की जानकारी है? खदानों से पानी खींच निकालने वाले 100 हॉर्सपावर के पंप लाने में इतनी देरी क्‍यों हो रही है? यह खनन हादसा वास्‍तव में किसी दुर्घटना से निपटने में राज्‍य आपदा प्रबंधन बल (एसडीएमएफ) की क्षमता और सामर्थ्‍य पर सवाल खड़े करता है। एक ऐसे राज्‍य में जहां खनन गतिविधियां बड़े पैमाने पर संचालित की जा रही हों और 2014 तक रैट होल खनन को छूट मिली हुई हो, एसडीएमएफ को खनन हादसों से निपटने का पर्याप्‍त प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए था लेकिन ऐसा लगता है कि यह काम इस बल का है ही नहीं क्‍योंकि खदानें निजी हाथों में हैं और खननकर्मियों को माल की तरह बरता जाता है।

आम धारणा यही है कि खदानों में काम करने वाले मजदूर या तो बांग्‍लादेश से भाग कर आए हुए लोग होते हैं जो काम की तलाश में रहते हैं या फिर वे नेपाली हैं जो 1950 की भारत-नेपाल संधि का फायदा उठाकर भारत की सीमा में प्रवेश कर जाते हैं। इस मामले में हालांकि तीन मजदूर स्‍थानीय हैं जो इसी जिले से हैं जबकि सात वेस्‍ट गारो हिल्‍स से हैं ओर चार अन्‍य असम के कोकराझार के रहने वाले हैं। सत्‍ताधारी मेघालय डेमोक्रेटिक अलायंस (एमडीए) से किसी भी मंत्री का घटनास्‍थल पर न पहुंचना इस घटना से उपजे ज़ख्‍म पर नमक छिड़कने जैसा है। यहां तक कि आपदा प्रबंधन विभाग के मंत्री किर्मेन शिला, जिन्‍होंने पहले बड़े दावे के साथ कहा था कि ईस्‍ट जैंतिया हिल्‍स जिले के उनके चुनावी क्षेत्र कोई अवैध खनन नहीं होता है, उनहें भी घटनासथल पर जाकर खुद हादसे का विवरण लेने की कोई ज़रूरत नहीं महसूस हुई। यह सपादकीय लिखे जाने तक विपक्ष से भी कोई विधायक घटनास्‍थल पर नहीं पहुंचा है। केवल राजबाला क्षेत्र के विधायक आज़ाद अमन वहां गए थे क्‍योंकि सात मजदूर उनके इलाके के रहने वाले हैं। मार्च 2006 में ही राजस्‍व

मेघालय की सरकार आपदा प्रबंधन को कोई तरजीह नहीं देती, इसका सुबूत यह तथ्‍य है कि राहत, पुनर्वास और आपदा प्रबंधन के विभाग का 2006 में ही राजस्‍व विभाग के साथ विलय कर दिया गया था। यह विलय 2 मार्च 2006 को आई अधिसूचना संख्‍या आरडीजी4/2003/55 के माध्‍यम से किया गया। सवाल उठता है कि राज्‍य में जमीनों और भू-रिकॉर्ड की देखरेख करने वाला राजस्‍व विभाग आपदा प्रबंधन के काम को क्‍यों देखेगा और कैसे? इसका जवाब दिया जाना चाहिए। और यह जवाब खुद सरकार को देना चाहिए।