हैदराबाद बनाम उन्नावः जाति और वर्ग की जटिल परतों में छुपे दो बलात्कार कांड

सुशील मानव सुशील मानव
ग्राउंड रिपोर्ट Published On :


एक सप्ताह के भीतर गैंगरेप के बाद जिंदा जलाने के दो केस सामने आए।  एक केस में पीड़िता के पक्ष में जनांदोलन खड़ा हुआ, दूसरे में नहीं। पहले केस (हैदराबाद) में जहां पीड़िता उच्च सामाजिक आर्थिक हैसियत की थी जबकि उसके आरोपी निम्न समाजिक आर्थिक हैसियत के, वहीं दूसरे (उन्नाव) केस में स्थिति इसके उलट है। पीड़िता निम्न आर्थिक सामाजिक हैसियत की है, उसके आरोपी उच्च राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक हैसियत के।

उन्नाव की गैंगरेप पीड़िता ने शुक्रवार रात 11 बजकर 40 मिनट पर दम तोड़ दिया। गैंगरेप के बाद 5 दिसंबर को उसे जिंदा जला दिया गया था। जली हालत में वह लगभग एक किलोमीटर तक मदद के लिए दौड़ती रही थी, जिसके बाद लगभग 90 प्रतिशत जली हालत में वो दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल भर्ती कराई गई थी। वो लगातार बात करते हुए कह रही थी कि मैं जिंदा रहना चाहती हूँ और आरोपियों को सजा पाते हुए देखना चाहती हूँ।

‘उन्नाव की बेटी’ की अंत्येष्टि आज, पिता ने मांगा ‘हैदराबादी’ इंसाफ़, कहानी उलझी

उन्नाव गैंगरेप के सभी आरोपी सवर्ण (ब्राह्मण) हैं। पीड़िता ने एसडीएम दयाशंकर पाठक के सामने दिए बयान में बताया था कि वह मामले की पैरवी के लिए रायबरेली जा रही थी। जब वह गौरा मोड़ के पास पहुंची थी तभी पहले से मौजूद गांव के हरिशंकर त्रिवेदी, रामकिशोर त्रिवेदी, उमेश बाजपेयी और बलात्कार के आरोपित शिवम त्रिवेदी, शुभम त्रिवेदी ने उस पर हमला कर दिया और उस पर पेट्रोल डालकर आग लगा दी। शिवम और शुभम त्रिवेदी 1 दिसंबर को ही ज़मानत पर छूटे थे।

पीड़िता ने आरोप लगाया था कि शिवम और शुभम त्रिवेदी ने दिसंबर 2018 में उसे अगवा कर उससे बलात्कार किया था, हालांकि इस संबंध में 4 महीने बाद यानि मार्च 2019 में प्राथमिकी दर्ज की गई थी।

पीड़िता की ओर से 156 (3) और महिला आयोग को दिए गए प्रार्थना पत्र में जिक्र है कि मुख्य आरोपी शिवम त्रिवेदी पीड़िता से प्यार और उसे शादी का झांसा देकर लंबे समय तक पीड़िता का यौन शोषण करता रहा। जब पीड़िता ने शादी का दबाव बनाया तो आरोपी शिवम ने 19 जनवरी 2018 को रायबरेली कोर्ट में शादी के अनुबंध पर हस्ताक्षर किया था। अनुबंध के कुछ दिन बाद ही पीड़िता को अकेला छोड़कर शिवम अपने घर वापस आ गया और पीड़िता नाराज होकर बुआ के घर चली गई।

शिवम ने अनुबंध के बाद उस छोड़ दिया। वह अपनी बुआ के घर रहने लगी तो शिवम वहां आ गया। फिर शुभम के साथ मिलकर 12 दिसंबर 2018 को रेप किया।

इस केस में पुलिस की भूमिका शुरुआत से ही संदिग्ध थी। आरोपियों ने पहले पुलिस के जरिए दबाव बनाकर मामले को थाने से ही निपटाने की कोशिश की थी। पीड़िता ने अपनी तहरीर में लिखा है कि शिवम की धमकियों से आजिज़ आकर उसने बिहार थाने से लेकर लालगंज पुलिस से कई बार गुहार लगाई, कई महीने चक्कर काटने के बाद भी पुलिस ने कुछ नहीं किया गया। थाने में सुनवाई न होने पर पीड़िता ने कोर्ट की शरण ली थी।

4 जनवरी 2019 को कोर्ट के आदेश पर लालगंज में दोनों आरोपितों पर केस दर्ज किया गया। केस दर्ज करने के बाद पुलिस ने चार्जशीट लगा दी। शिवम को पुलिस ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया।

काफी कोशिश के बाद केस तो दर्ज हो गया था मगर आरोपित व उसके परिजन संग गांव के लोग केस वापस लेने का लगातार दबाव बना रहे थे। गांव में पंचायत हुई तो शिवम के घरवालों ने पीड़िता पर दबाव बनाया कि रुपये ले लो और शिवम को छोड़ दो। आरोपित परिवार पीड़िता को 3 लाख रुपये हर्जाना देने की बात कर रहे थे। प्रधान के घरवालों का कहना था कि इन रुपयों से दूसरी शादी कर लेना। पीड़िता ने कहा कि वह शिवम की पत्नी बनकर नहीं रहना चाहती, बल्कि वह सिर्फ बहू होने का हक मांग रही है।

इसके लिए शिवम के घरवाले तैयार नहीं थे। लड़की आखिर तक शिवम के साथ रहने की बात पर अड़ी रही। यह बातें आरोपितों को नागवार गुजरी। उन्होंने अधिक दबाव बनाया तो पीड़िता ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। आरोपित को जेल हुई तो मौका पाते ही पीड़िता को जिंदा जलाकर रास्ते से हटा दिया गया। शिवम और शुभम के घरवालों के मुताबिक जलाने में दोनों का हाथ नहीं था क्योंकि उस दिन वे दोनों कहीं और थे।

क्या विडंबना है कि एक ओर जहां उत्तर प्रदेश पुलिस ताबततोड़ एनकाउंटर कर रही हैं वहीं दूसरी ओर उन्नाव में पिछले ग्यारह महीने में बलात्कार के 86 केस दर्ज़ हुए हैं। जाहिर है जिस क्षेत्र के प्रतिनिधि (कुलदीप सिंह सेंगर) खुद गैंगरेप का आरोपी हो जिसके पक्ष में आंदोलन होते हों, वहाँ बलात्कार को बढ़ावा मिलेगा ही। नैतिकता देखिए कि भाजपा सांसद साक्षी महाराज बलात्कार आरोपी कुलदीप सिंह सेंगर को सार्वजनिक रूप से जन्मदिन की बधाई देते हैं।

पिछले साल खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वामी चिन्मयानंद के ऊपर से शिष्या से बलात्कार का केस हटा दिया था और इस साल स्वामी जी का मसाज वीडियो वायरल हो गया, लेकिन योगी की पुलिस ने पीड़िता को ही गिरफ्तार करके ब्लैकमेल करने का केस ठोक दिया और आरोपी को मसाज देने के लिए फाइवस्टार हॉस्पिटल में एडमिट करवा दिया।

इससे पहले 2017 में रायबरेली की ऊँचाहार तहसील के अप्टा गाँव में पांच ब्राह्मण एक गैंगवार में मारे गए थे जिनके खिलाफ़ अलग अलग थानों में केस दर्ज था। वे फतेहपुर और प्रतापगढ़ से गाड़ियों में भरकर उक्त गाँव के प्रधान की हत्या करने गए थे, जिन्हें गाँव वालों ने घेरकर मारकर आग के हवाले कर दिया था। योगी सरकार ने सभी मृतकों के परिवार को 5-5 लाख रुपए दिए थे।

इसी तरह सहारनपुर की दलित विरोधी हिंसा में प्रशासन ने ठाकुरों की ओर खेमेबंदी की थी और पीड़ित जाति के लोगों को ही दोषी बनाकर प्रताड़ित किया था।

बलात्कार जैसे बेहद संगीन और संवेदनशील मामलों में हमारा समाज बलात्कारी की जाति, धर्म और सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक हैसियत देखकर तय करता है कि कैसी प्रतिक्रिया देनी है। आप क्या सोचते हैं दिसंबर 2012 में दिल्ली गैंगरेप केस में यदि आरोपी निम्न सामाजिक, आर्थिक हैसियत के होते तो क्या वो आंदोलन इस तरह हुआ होता? हरगिज़ न होता। अव्वल तो उसे मीडिया ने ही तूल न दिया होता। थोड़ा बहुत कहीं कोई मोमबत्तियां लेकर निकलता भी तो मीडिया उस ख़बर को ही ब्लैकआउट कर देता।

ये तो वो देश है जहाँ बलात्कारी के पक्ष में आंदोलन होते हैं! देखा नहीं उन्नाव केस में ही आरोपी कुलदीप सिंह सेंगर के पक्ष में किस तरह से प्रशासन और योगी सरकार आखिर तक खड़े नज़र आए। वो तो सुप्रीम कोर्ट का दख़ल न होता तो आरोपी की गिरफ्तारी तक न होती। जम्मू कठुआ केस में देखा नहीं कैसे भाजपा सरकार के दो मंत्रियों ने बलात्कारियों के पक्ष में तिरंगा यात्रा निकाली और केस में भी यदि कथित हिंदुत्ववादी सरकार की चलती तो दलित, मुस्लिम समाज के किसी निर्दोष लड़के को ही फांसी पर टांग दिया गया होता।

आसाराम के पक्ष में भी जंतर-मंतर पर आंदोलन किए गए । राम-रहीम को दोषी ठहराए जाने के बाद केंद्र और राज्य राम-रहीम के प्रति न सिर्फ़ नरम रुख अपना रहे थे बल्कि कोर्ट के फैसले के ख़िलाफ़ उपद्रव फैलाकर इसे जनांदोलन और जनभावना बनाकर पेश करने के लिए भारी षडयंत्र रचा गया जिसमें 36 लोगों की मौत हुई थी। इस पर टिप्पणी करते हुए चंडीगढ़ हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री को फटकार लगते हुए कहा था- “वे (मोदी) भारत के प्रधानमंत्री हैं बीजेपी के नहीं। क्या हरियाणा देश का हिस्सा नहीं है?” कानून-व्यवस्था चाक-चौबंद करने की हिदायत कोर्ट ने 24 घंटे पहले ही दी थी।

सवाल है कि इसी सरकार में अयोध्या पर कोर्ट के फैसला और कश्मीर से धारा 370 हटाये जाने के बाद कोई कानून-व्यवस्था नहीं बिगड़ी। क्यों? जाहिर है जहाँ सरकार की मंशा कानून-व्यवस्था बिगाड़ने की थी वहां बिगड़ी, जहाँ नहीं बिगाड़ने की थी वहां नहीं बिगड़ी।

कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी ने शनिवार को उन्नाव रेप केस में पीड़ित परिवार से मुलाकात की और हरसंभव मदद का आश्वासन दिया। इससे पहले प्रियंका गांधी ने ट्वीट करके योगी सरकार पर कई गंभीर सवाल खड़े किए थे। उन्होंने ट्वीट में लिखा– ‘उन्नाव की पिछली घटना को ध्यान में रखते हुए सरकार को तत्काल पीड़िता को सुरक्षा क्यों नहीं दी गई? जिस अधिकारी ने उसकी FIR दर्ज करने से मना किया उस पर क्या कार्रवाई हुई?’

एक अन्य ट्वीट में उन्होंने लिखा− “यूपी में आए दिन महिलाओं पर जो अत्याचार हो रहा है, उसको रोकने के लिए सरकार क्या कर रही है?”

उन्नाव रेप पीड़िता की मौत के विरोध में शनिवार को कांग्रेस पार्टी ने बीजेपी मुख्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन किया। प्रदर्शन महिला कार्यकर्ता भी शामिल हुईं। कार्यकर्ताओं ने पहले भाजपा मुख्यालय के गेट पर प्रदर्शन किया। पुलिस के रोकने पर कार्यकर्ता गेट के सामने बैठ गए और नारेबाजी शुरू कर दी। इस दौरान पुलिस ने आंदोलनकारी कांग्रेसियों पर लाठी चार्ज किया। पुलिस के हटाने पर कार्यकर्ता विधानसभा के समक्ष पहुंच गए और वही सड़क पर बैठ कर प्रदर्शन शुरू कर कर दिया। प्रदर्शन के दौरान कार्यकर्ताओं ने प्रदेश सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की। भाजपा सरकार पर बिगड़ती कानून व्यवस्था व बेटियों का साथ हो रहे अत्याचार को रोक न पाने का आरोप लगाया।

इससे पहले इस मसले पर शनिवार 6 दिसंबर को लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने उन्नाव में बलात्कार पीड़िता को जलाये जाने की घटना की ओर इंगित करते हुए कहा कि, “आज हम एक तरफ राम मंदिर बनाने वाले हैं दूसरी तरफ देश में सीताएं जलाई जा रही हैं।” उनके इस बयान पर केंद्रीय मंत्री बहसबाजी पर उतर आई और बाद में कांग्रेस के सासंदो को मारने के लिए आगे बढ़ने का आरोप लगाकर विक्टिम कार्ड खेलने लगीं।


पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी भाजपा सरकार द्वारा सवर्ण आरोपियो को संरक्षण देने का आरोप लगाते हुए विधानसभा के आगे धरना दिया।

पुलिस हो, मीडिया हो, सरकार हो या कि न्यायालय हो, देश की तमाम संवैधानिक और प्रशासनिक संस्थाओं पर सवर्ण समाज का दबदबा है। उन्हें पता है कि कोई भी अपराध करके भली भाँति निकला जा सकता है। ऐसे में किसी अवर्ण के लिए न्याय पाने का संघर्ष और दुरूह हो जाता है। भँवरी देवी केस में न्यायालय ने सवर्ण बलात्कारियों को निर्दोष बताते हुए उनके पक्ष में क्या तर्क गढ़े थे जरा एक नज़र उस पर भी-

अगड़ी जाति का कोई पुरुष किसी पिछड़ी जाति की महिला का रेप नहीं कर सकता क्योंकि वह ‘अशुद्ध’ होती है।
गांव का प्रधान बलात्कार नहीं कर सकता (प्रधान सवर्ण था)।
अलग-अलग जाति के पुरुष गैंग रेप में शामिल नहीं हो सकते।
60-70 साल के ‘बुजुर्ग’ बलात्कार नहीं कर सकते।
एक पुरुष अपने किसी रिश्तेदार के सामने रेप नहीं कर सकता (ये दलील चाचा-भतीजे की जोड़ी के संदर्भ में दी गई थी)।
भंवरी देवी के पति चुपचाप खामोशी से अपनी पत्नी का बलात्कार होते हुए नहीं देख सकते थे।

इस मामले में सबसे गंभीर टिप्पणी बिहार के डीजीपी गुप्तेश्वर पांडे की आयी है जिन्होंने कहा है कि लोग अपराधियों को माला पहनाकर पूजें और फिर अपराध की शिकायत भी करें, दोनों बातें एक साथ नहीं हो सकतीं।


Related