जितेन्द्र कुमार
पंजाब नेशनल बैंक को नीरव मोदी द्वारा लूटने की खबर को आज के सभी अखबारों में प्रमुखता से छापा गया है। बस अखबारों की सुर्खियों में इस बात का जिक्र नहीं है कि आरोपी नीरव मोदी का अंबानी घराने से किसी तरह का कोई लेना-देना है! फिर भी, यह खबर सभी अखबारों में है। लेकिन एक और खबर है जिसका जिक्र ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के अलावा किसी भी अखबार में नहीं है। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के संवाददाता अविशेक जी दस्तीदार ने “पीएम पैनल चीफ रेड फ्लैग्ड इलेक्ट्रिफिकेशन प्लानः रीथिंक” शीर्षक से एक खबर छापा है।
इस खबर में कहा गया है कि प्रधानमंत्री के इकॉनोमिक एडवाइजरी काउंसिल के चेयरमैन बिबेक देबरॉय ने रेलवे बोर्ड को रेल का विद्युतीकरण न करने की सलाह देते हुए कहा है कि उसे इस योजना पर अमली जामा पहनाने से पहले पुनर्विचार करना चाहिए। इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि पीयूष गोयल जब ऊर्जा मंत्री थे तो उन्होंने प्रस्ताव दिया था कि रेलवे को 100 फीसदी विद्युतीकरण की तरफ जाना चाहिए जिससे रेलवे मंत्रालय को 10 हजार करोड़ रुपए सालाना की बचत होगी। बिबेक देवरॉय ने प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी अपनी रिपोर्ट में रेल मंत्रालय को सलाह दी है कि सरकार को डीजल पर ही ट्रेन को चलाते रहना चाहिए क्योंकि अगर इसका विद्युतीकरण किया जाता है इसमें बहुत ही अधिक संसाधन की जरूरत पड़ेगी जो रेलवे के पास नहीं है। अपनी बात की पुष्टि के लिए देबरॉय ने तरह-तरह के डेटा की सहायता ली है जिसमें बताया गया है कि चीन, रूस और यूरोप में 33 से 43 फीसदी ट्रेनों को विद्युतीकरण हुआ है। इस रिपोर्ट को प्रधानमंत्री कार्यालय ने रेल मंत्रालय को पुनर्विचार के लिए भेज दिया है।
अब इस कहानी को थोड़ा डी-कोड कीजिए। पहले भारतीय रेल सरकार के स्वामित्व वाली इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन से डीजल खरीदता था लेकिन मोदी जी के प्रधानसेवक बनने के बाद रेलवे ने वर्ष 2015 में रिलायंस इंडस्ट्रीज से डीजल खरीदने का करार किया। इस करार के तहत रेल मंत्रालय हर साल 27000 लाख लीटर डीजल खरीदेगा। कुल मिलाकर आज के दिन यह सौदा सालाना 17,000 करोड़ से ऊपर का है। अर्थात बिबेक देबरॉय रेल मंत्रालय को यह सलाह दे रहा है कि आप 10,000 करोड़ रुपए मत बचाइए बल्कि 17 हजार करोड़ रूपए अंबानी जी को इस ‘सेवा’ के लिए देते रहिए!
आखिर इस तरह की लूट में कोई सरकार इतनी बेहयाई से कैसे शामिल हो सकती है? प्रधानसेवक की इस हाई पावर कमेटी के अन्य सदस्य हैं- रतन विट्टल, डॉक्टर सुरजीत भल्ला, डॉक्टर रतिन रॉय और डॉक्टर अशिमा गोयल। ये तमाम बाजार पोषित अर्थशास्त्री हैं जो समान्यतया निजीकरण के पक्ष में रहे हैं जो हमेशा ही पब्लिक सेक्टर के खिलाफ राय देते रहे हैं, जबकि बिबेक देबरॉय नीति आयोग के सदस्य भी रहे हैं। ये बिबेक देबरॉय वही सज्जन हैं जिन्होंने कांग्रेस के समय में ही राजीव गांधी फाउंडेशन के प्रमुख के नाते गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को बेहतरीन सोशल इंडेक्स को बनाए रखने वाला मुख्यमंत्री बताया था जबकि गुजरात का अल्पसंख्यक आज भी उस सदमे से उबर नहीं पाया है!
यह भी समझना ज़रूरी है कि अहम नीतिगत मसलों पर सरकार को मुकेश अंबानी के हित वाले सुझाव देने के लिए बैठाए गए बिबेक देबरॉय जैसे लोगों की अपने काम में योग्यता क्या है। केंद्र सरकार द्वारा नोटबंदी के फैसले के बाद जब पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने इसकी आलोचना की थी, तो सरकार की ओर से देबरॉय को उनका जवाब देने के लिए उतारा गया था। उस वक्त वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने इस पर चुटकी लेते हुए एक ट्वीट किया था और कैम्ब्रिज युनिवर्सिटी की ओर से देबरॉय को लिखी एक चिट्ठी प्रस्तुत की थी जिसमें बताया गया था कि वे पीएचडी में फेल हो गए हैं।
Modi's favoured economist, Niti Ayog member,Debroy, fielded to counter MMS on Noteban, is a failed Dr from Cambridgehttps://t.co/soFIBbp9HD pic.twitter.com/IVLruuuEKg
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) November 26, 2016
यह महज संयोग नहीं हो सकता कि सरकार एक ऐसा बिल लाए जिसमें कहा गया हो कि अगर बैंक को किसी तरह का घाटा होता है तो बैंक खाताधारकों के खाते में जमा पैसे नहीं लौटाएगी। अर्थात अरुण जेटली और मोदी सरकार में मौजूद सभी लोग इस बात को बखूबी जानते हैं कि पूंजीपति इस तरह के सौदे करते हैं जिसमें सरकारी बैंकों को लूटा जाता है। इसलिए आम जनता की बैंकों में जमा गाढ़ी कमाई को ही हड़पकर अर्थव्यवस्था को चलाते रहना पड़ेगा।
खबरदार! बैंकों में जमा आपके बचे-खुचे पैसे पर डाका डालने के लिए आ रहा है नया बिल…
शायद बात 2004 या 2005 की होगी। तब मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे। आरएसएस के एक मित्र ने बताया था कि अंबानी इतना बड़ा है कि नरेन्द्र मोदी उसे मैनेज नहीं कर पाते हैं। इसलिए मोदी अंबानी के बरक्स एक अद्योगपति खड़ा करने की कोशिश कर रहा है जिसका नाम गौतम अडानी है। चूंकि अडानी इतना कॉमन नाम नहीं बना था और मोदी का कद भी बीजेपी के टॉप दस लीडरान में शामिल नहीं हुआ था, इसलिए अडानी का नाम मेरे जेहन से पूरी तरह निकल गया। कई दिनों के बाद जब उस स्वयंसेवक मित्र की बात आई तो मैंने बार-बार गूगल करने की कोशिश की कि आखिर उस आदमी का नाम और कारोबार क्या है जिसके बारे में वह बता रहे थे। चूंकि नाम याद नहीं रह गया था और अडानी की हैसियत आज वाली नहीं हुई थी, इसलिए उसका नाम खोज नहीं पाया। बहुत दिनों के बाद जब गुजरात में ‘वाइब्रेंट गुजरात’ नामक कार्यक्रम होने लगा तब पता चला कि अरे वह संघी सज्जन तो इस गौतम अडानी की बात कर रहे थे।
यह सही है कि प्रधानसेवक बनने के पहले से ही मोदी ने अंबानी को थोड़ा साध जरूर लिया है लेकिन अंबानी इतना बड़ा हाथी बन चुका है कि किसी व्यक्ति को तो छोड़िए अब किसी भी राजनीतिक पार्टी को उसे नियंत्रण में रखने की औकात नहीं रह गई है। इसी का परिणाम है कि गौतम अडानी भले ही आज भी प्रधानसेवक मोदी के आंखों के सितारा हों, लेकिन अंबानी भी अपने हित में जो भी फैसले करवाना चाहता हो, करवा ही लेता है। यही कारण है कि आर्म्स डील का लाइसेंस मिलने के साथ ही इतना बड़ा सौदा सरकार के साथ उसने कर लिया।
अब मुकेश अंबानी का दामाद देश को हजारों करोड़ का चूना लगा के सरकार की नाक के नीचे से निकल गया है और सरकार कह रही है कि कुछ खास नहीं हुआ जबकि अखबार पीएनबी घोटाले से जुड़ी खबर के ठीक बगल में अंबानी को लाभ पहुंचाने वाली सिफारिश छाप रहा है।
पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी) स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) के बाद भारत के सार्वजनिक क्षेत्र का दूसरा सबसे बड़ा बैंक है। और जितने रकम का घोटाला बताया जा रहा है वह 13,000 करोड़ रुपए से ऊपर का है। पीएनबी की वर्ष 2016-17 के वित्त वर्ष में 1320 करोड़ रुपए की आमदनी थी, मतलब यह कि यह घोटाला कुल आमदनी का दस गुना है। घोटाले की रफ्तार इतनी तेज थी कि देश के सबसे बड़े उद्योगपति का रिश्तेदार होने के बावजूद आयकर विभाग को आरोपी नीरव मोदी के यहां जनवरी 2017 में छापेमारी करनी पड़ी थी। लेकिन इस मामले को उस समय मीडिया ने पूरी तरह दबा दिया था। यह मामला अब सिर्फ पीएनबी तक ही सीमित नही रह गया है। जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार पीएनबी ने 30 बैंकों को पत्र लिखकर सब पर आरोप लगया है कि घोटाला उन बैंकों में भी हुआ था।
अब चूंकि इस मामले में बड़े-बड़े रसूखदार लोग शामिल हो गए हैं इसलिए देश के सबसे बड़े स्पिन डॉक्टर व वित्त मंत्री अरुण जेटली के बैंकिंग विभाग में संयुक्त सचिव लोक रंजन कह रहे हैं, ‘यह कोई बड़ा मामला नहीं है और ऐसी स्थिति भी नहीं बनी है जिससे कहा जा सकता है कि हालात काबू में नहीं हैं।’
तो क्या माना जाए कि बैंकिंग घोटाले की जड़ में इंदिरा गांधी हैं क्योंकि उन्होंने ही बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था!
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और मीडियाविजिल के सम्पादकीय सलाहकार मंडल के सदस्य हैं.