डिजिटल उपनिवेशवाद को निमंत्रण देता डिजिटल इंडिया और बायोमेट्रिक युआईडी/आधार संख्या



सार्वजनिक बयान


28 मार्च, 2017 को सभी अखबारों ने यह गलत खबर छपी कि मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने 27 मार्च, 2017 को कोर्ट ने बायोमेट्रिक विशिष्ट पहचान (युआईडी) /आधार संख्या मामले में कोई फैसला दिया है. अगली सुनवाई 3 अप्रैल को होने की संभावना है. इससे पहले सितम्बर 14, 2016 के एक कोर्ट की एक खंडपीठ ने 5 जजों के संविधान पीठ के 15 अक्टूबर 2015 के आदेश को यह कहते हुए दोहराया कि युआईडी/आधार संख्या किसी भी कार्य के लिए जरूरी नहीं बनाया जा सकता है.

सितम्बर 14 का फैसला काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि केंद्र सरकार ने आधार कानून, 2016 को लागू करने के सम्बन्ध में आखिरी अधिसूचना सितम्बर 12 को जारी किया था. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का आखिरी आदेश ही देश का कानून होता है, इसलिए सितम्बर 14 का आदेश ही देश का कानून है. आधार के सम्बन्ध में दिए गए फैसले का केवल एक संविधान पीठ ही कोई संशोधन कर सकती है. इस आदेश के बाद अभी तक कोई नया फैसला या संशोधन नहीं आया है. बायोमेट्रिक आधार संख्या डिजिटल इंडिया का अभिन्न अंग है.

लोक सभा और राज्य सभा में बहस से यह बिल्कुल उजागर हो गया है कि सरकार ने संसद, मीडिया और नागरिको को आधार के सम्बन्ध में निरंतर गुमराह किया है. वह चुनाव आयोग को भी भरमा चुकी है. मगर आयोग ने उसमे सुधार कर लिया. गौरतलब है कि सत्रहवे मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने 4 अप्रैल 2012 कोतत्कालीन गृह सचिव राज कुमार सिंह (वर्तमान में भाजपा सांसद) को मतदाता पहचान  कार्ड को विशिष्ट पहचान संख्या/आधार से जोड़ने के सबंध में पत्र लिखा था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में आयोग ने अपने आदेश को संशोधित कर यह स्पष्ट कर दिया कि विशिष्ट पहचान संख्या/आधार और मतदाता पहचान कार्ड को साथ नहीं जोड़ा जायेगा. चुनाव आयोग की वेबसाइट पर ईवीएम (EVM) पर उठे 29 सवालों का जो जवाब चुनाव आयोग ने दिया है वह समीचीन है. आयोग का प्रश्न 26 का जवाब सूचित करता है कि ईवीएम के “प्रत्येक कंट्रोल यूनिट में एक विशिष्ट आईडी नम्बर होता है.” यदि ईवीएम का विशिष्ट आईडी नम्बर (UID), विशिष्ट पहचान संख्या/आधार और मतदाता पहचान कार्ड जुड़ जाते है तो मतदाता की गोपनीयता और गुप्त मतदान के सिद्धांत व लोकतान्त्रिक मूल अधिकार लुप्त हो जायेंगे. कोर्ट के आदेश के सन्दर्भ में चुनाव आयोग ने 13 अगस्त, 2015 को अपना 27 फ़रवरी, 2015 के आदेश का संशोधन कर यह स्पष्ट किया कि मतदाता पहचान पत्र के लिए बायोमेट्रिक (यूनिक आइडेंटिफिकेशन) युआईडी/आधारसंख्या जरूरी नहीं है। गौर तलब है कि आयोग ने अपने आदेश में लिखा है कि आधार नंबर के एकत्रीकरण,भरण और उसे आयोग के डेटाबेस में बोने की क्रिया को तत्काल प्रभाव से बंद करना होगा और आगे से कोई भी आधार आकड़ा किसी भी संस्थान या डाटा हब से एकत्रित नहीं किया जायेगा.

बायोमेट्रिक आधार निजी संवेदनशील सूचना पर आधारित है. धन की परिभाषा में “देश के आकड़े”, “निजी संवेदनशील सूचना” और “डिजिटल सूचना”शामिल है. सरकार की बॉयोमेट्रिक्स समिति की रिपोर्ट“

28 मार्च, 2017 को सभी अखबारों ने यह गलत खबर छपी कि मुख्या न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली तीन जजों की पीठ ने 27 मार्च, 2017 को कोर्ट ने बायोमेट्रिक विशिष्ट पहचान (युआईडी) /आधार संख्यामामले में कोई फैसला दिया है. अगली सुनवाई 3 अप्रैल को होने की संभावना है. इससे पहले सितम्बर 14,2016 के एक कोर्ट की एक खंडपीठ ने 5 जजों केसंविधान पीठ के 15 अक्टूबर 2015 के आदेश को यहकहते हुए दोहराया कि युआईडी/आधार संख्या किसी भीकार्य के लिए जरूरी नहीं बनाया जा सकता है.

सितम्बर 14 का फैसला काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि केंद्र सरकार ने आधार कानून, 2016 को लागू करने के सम्बन्ध में आखिरी अधिसूचना सितम्बर 12 को जारी किया था. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का आखिरी आदेश ही देश का कानून होता है, इसलिए सितम्बर 14 का आदेश ही देश का कानून है. आधार के सम्बन्ध में दिए गए फैसले का केवल एक संविधान पीठ ही कोई संशोधन कर सकती है. इस आदेश के बाद अभी तक कोई नया फैसला या संशोधन नहीं आया है. बायोमेट्रिक आधार संख्या डिजिटल इंडिया का अभिन्न अंग है.

लोक सभा और राज्य सभा में बहस से यह बिल्कुल उजागर हो गया है कि सरकार ने संसद, मीडिया और नागरिको को आधार के सम्बन्ध में निरंतर गुमराह किया है. वह चुनाव आयोग को भी भरमा चुकी है. मगर आयोग ने उसमे सुधार कर लिया. गौरतलब है कि सत्रहवे मुख्यचुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी ने 4 अप्रैल 2012 कोतत्कालीन गृह सचिव राज कुमार सिंह (वर्तमान मेंभाजपा सांसद) को मतदाता पहचान  कार्ड को विशिष्टपहचान संख्या/आधार से जोड़ने के सबंध में पत्र लिखाथा. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में आयोग ने अपनेआदेश को संशोधित कर यह स्पष्ट कर दिया कि विशिष्टपहचान संख्या/आधार और मतदाता पहचान कार्ड कोसाथ नहीं जोड़ा जायेगा. चुनाव आयोग की वेबसाइट परईवीएम (EVM) पर उठे 29 सवालों का जो जवाब चुनावआयोग ने दिया है वह समीचीन है. आयोग का प्रश्न 26का जवाब सूचित करता है कि ईवीएम के “प्रत्येक कंट्रोलयूनिट में एक विशिष्ट आईडी नम्बर होता है.” यदि ईवीएमका विशिष्ट आईडी नम्बर (UID), विशिष्ट पहचान संख्या/आधार और मतदाता पहचान कार्ड जुड़ जाते है तोमतदाता की गोपनीयता और गुप्त मतदान के सिद्धांत वलोकतान्त्रिक मूल अधिकार लुप्त हो जायेंगे. कोर्ट केआदेश के सन्दर्भ में चुनाव आयोग ने 13 अगस्त, 2015को अपना 27 फ़रवरी, 2015 के आदेश का संशोधनकर यह स्पष्ट किया कि मतदाता पहचान पत्र के लिएबायोमेट्रिक (यूनिक आइडेंटिफिकेशन) युआईडी/आधारसंख्या जरूरी नहीं है। गौर तलब है कि आयोग ने अपनेआदेश में लिखा है कि आधार नंबर के एकत्रीकरण,भरण और उसे आयोग के डेटाबेस में बोने की क्रिया कोतत्काल प्रभाव से बंद करना होगा और आगे से कोई भीआधार आकड़ा किसी भी संस्थान या डाटा हब सेएकत्रित नहीं किया जायेगा.

बायोमेट्रिक आधार निजी संवेदनशील सूचना पर आधारित है. धन की परिभाषा में “देश के आकड़े”, “निजी संवेदनशील सूचना” और “डिजिटल सूचना”शामिल है. सरकार की बॉयोमेट्रिक्स समिति की रिपोर्ट“बॉयोमेट्रिक्स डिजाईन स्टैण्डर्ड फॉर युआईडीएप्लिकेसंस की अनुशंसा में कहा है कि “बॉयोमेट्रिक्स आकड़े राष्ट्रीय संपत्ति है और उन्हें अपने मूल विशिष्ट लक्षण में संरक्षित रखना चाहिए.” कोई राष्ट्र या कम्पनी या इन दोनों का कोई समूह अपनी राजनीतिक शक्ति का विस्तार “आकड़े” को अपने वश में कर के अन्य राष्ट्रों पर कर नियंत्रण कर सकता है. क्या किसी भी बायोमेट्रिक-डिजिटल पहल के द्वारा अपने भौगोलिक क्षेत्र के लोगों के ऊपर किसी दूसरे विदेशी भौगोलिक क्षेत्र के तत्वों के द्वारा उपनिवेश स्थापित करने देना और यह मान्यता रखना कि यह अच्छा काम है, देश हित में है?

सूचना के संग्रहण का इतिहास साम्राज्यों के इतिहास से जुड़ा है. आज हर रोज अमेरिकी सरकार के 24 विभाग191 देशो में 71, 000 लोगो कि मदद से 169 दूतावासों के 276 सुरक्षित महलों से आज के सूचना संचार आधारित साम्राज्य का कारोबार चलता है. जनगणना से लेकर जनता के निजी संवेदनशील सूचना, उंगलियों के निशान, आँखों के पुतलियो के निशान, आवाज़ के सैंपल,डीएनए, मोबाइल, इन्टरनेट और साइबर बादल पर स्थित आकड़ो तक की जानकारी को एकत्रित और सूचीबद्ध करके साम्राज्य अपने आपको सुरक्षित और अपने अलावा सबको असुरक्षित कर रहा है.

सूचना प्रोद्योगिकी से सम्बंधित संसदीय समिति ने अमेरिकी नेशनल सिक्यूरिटी एजेंसी (NSA) द्वारा किये जा रहे ख़ुफ़िया हस्तक्षेप और विकिलिक्स और एडवर्ड स्नोडेन के खुलासे और साइबर क्लाउड तकनीकी और वैधानिक खतरों के संबध में इलेक्ट्रॉनिक और सूचना प्रौद्योगिकी विभाग के तत्कालीन सचिव जे सत्यनारायणा (वर्तमान में चेयरमैन, भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण, भारत सरकार) से पूछा था. हैरत की बात ये सामने आई कि सचिव को विदेशी सरकारों और कम्पनियों द्वारा सरकारी लोगो और देशवासियों के अधि-आंकड़ा (मेटा डाटा) एकत्रित किये जाने से कोई परेशानी नहीं थी. इस सन्दर्भ में अधि आकड़ा के एकत्रीकरण का अर्थ है यह है कि संदेश के आगमन बिंदु, प्रस्थान बिंदु,संदेश का मंजिल और सदेश मार्ग के बारे में जानकारी को किसी ख़ुफ़िया संस्था द्वारा प्राप्त करना. इन्होने समिति को बताया कि भारत सरकार ने अमेरिकी सरकार से  स्पष्ट जिक्र किया है कि भारतीय दृष्टि से संदेश के सामग्री पर आक्रमण बर्दाश्त नहीं किया जायेगा औरअसहनीय माना जायेगा. यह तो तय है कि भारत सरकार, उनके अधिकारी और संसदीय समिति उस अनाम शायर से भी गए गुजरे मालूम होते है जो कह गए है कि हम वो है जो ख़त का मज़मून भाप लेते है लिफाफा देख कर. सरकार के सचिव को लिफाफा दिखाने से परहेज नहीं है.   

जब दुनिया के सबसे ताकतवर राष्ट्रपति ने यह धमकी भरा दावा किया कि उनके पास “सबसे लंबे समय तक की स्मृति” है तो यह स्पष्ट हुआ कि उनका दावा उनके डिजिटल कंपनियों के स्मृतिकोष पर आधारित है. ये कंपनिया अपने देश के हित में काम करने के लिए अमेरिकी पेट्रियट (देशभक्ति) एक्ट (क़ानून), 2001 के कारण बाध्य है. आधार से जुड़े बायोमेट्रिक आकड़े राष्ट्रीय धन है, जिसे विदेशी कंपनियों-साफ्रण (फ्रांस), एक्सेंचर (अमेरिका) आदि के जरिये विदेशी सरकारों को केवल सात साल के लिए मुहैया कराया जा रहा है!

गौरतलब है कि बायोमेट्रिक आधार को रक्षा से जुड़े क्षेत्रो में भी लागू कर दिया गया है. इसके भयावह परिणाम हो सकते है. उपनिवेशवाद के प्रवर्तकों की तरह ही साइबरवाद और डिजिटल इंडिया के पैरोकार किसी भी कीमत पर अपने मुनाफे के मूल मकसद को छुपा रहे है.

काफी समय से साम्राज्यों का अध्ययन उनके सूचना संचार का अध्ययन के रूप में प्रकट हुआ है. अब तो यह निष्कर्ष सामने आ गया है कि संचार का माध्यम ही साम्राज्य था. संग्रहीत सूचना साम्राज्यों का एक अचूक रणनीतिक हथियार रहा है. डिजिटल-बायोमेट्रिक तकनीक के जरिये एक नए प्रकार का साम्राज्य का जन्म हो रहा है जो देश और देश के कानून व्यवस्था,न्यायपालिका, विधायिका और कार्यपालिका को मोहित कर रहा है और चुनौती भी दे रहा है.

अब सुप्रीम कोर्ट को इन तथ्यों के आलोक में यह तय करना है कि डिजिटल उपनिवेशवाद को निमंत्रण देता डिजिटल इंडिया और विशिष्ट आईडी नम्बर भारत और भारतीयों के भविष्य को सुरक्षित करता है या असुरक्षित करता है और क्या विदेशी ताकतों के प्रभाव में वर्तमान और भविष्य के देशवासियों को संरचनात्मक तरीके से बायोमेट्रिक आधार संख्या के लिए बाध्य करना संवैधानिक है और क्या यह राष्ट्रहित में है.

संपर्क सूत्र: डॉ गोपाल कृष्ण, सदस्य, सिटीजन्स फोरम फॉर सिविल लिबर्टीज, फोरम आधार विधेयक, 2010 के आकलन के लिए वित्त संबंधी संसद की स्थायी समिति के समक्ष पेश हुआ था.