अभिषेक श्रीवास्तव
बुधवार को अलीगढ़ मुस्लिम युनिवर्सिटी में हिंदूवादी तत्वों द्वारा किया गए हमले को कैसे देखा जाए? क्या यह मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर पर हुए विवाद का नतीजा था, जैसा कि मीडिया के कुछ हिस्सों में बताया गया है? ध्यान रहे कि तीन दिन पहले अलीगढ़ के भाजपा सांसद सतीश गौतम ने एएमयू प्रशासन को एक चिट्ठी लिखी थी कि छात्रसंघ के भवन में जिन्ना की तस्वीर क्यों लगी हुई है। इस पर हर जगह ख़बर चली और आखिरकार जब बुधवार को पूर्व राष्ट्रपति हामिद अंसारी लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड के आयोजन में सम्मान लेने अलीगढ़ पहुंचे, उसी दिन हिंदू युवा वाहिनी और एबीवीपी के सदस्यों ने उस गेस्ट हाउस के बाहर हथियारबंद हमला किया जहां अंसारी ठहरे हुए थे।
अगर यह मामला जिन्ना की तस्वीर से शुरू हुआ तो वहीं पर खत्म होना चाहिए था, फिर अंसारी के आने का दिन ही क्यों चुना गया? आखिर दिक्कत जिन्ना की तस्वीर से थी, तो हमला अंसारी पर क्यों किया गया? इस पर आने से पहले न्यूज़लॉन्ड्री पर शर्जील उस्मानी का आंखों देखा हाल पढि़ए कि आखिर कल हुआ क्या:
”अंसारी कार्यक्रम के आयोजन से थोड़ा पहले ही यूनिवर्सिटी कैंपस पहुंच गए लिहाजा उन्हें यूनिवर्सिटी के गेस्ट हाउस में ले जाया गया. थोड़ी ही देर में वहां एबीवीपी और हिंदू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं का हुजूम इकट्ठा हो गया. उनके साथ पुलिस भी थी. इनके हाथों में लाठी-डंडे और दूसरे हथियार थे. भीड़ में लोग नारे लगा रहे थे- ‘एएमयू के गद्दारों को, गोली मारो सालों को’, और ‘एएमयू मुर्दाबाद’, ‘जिन्ना मुर्दाबाद’. ज्यादातर नारों के निशाने पर पूर्व उपराष्ट्रपति थे और ऐसा लग रहा था कि एबीवीपी और हिंदू युवा वाहिनी के लोग उनके ऊपर हमले की नीयत से आए थे. स्टूडेंट यूनियन की तरफ से दाखिल की गई शिकायत में कहा गया है कि वे हामिद अंसारी पर हमले की नीयत से आए थे.”
छात्रसंघ ने हामिद अंसारी पर हमले की नीयत को लेकर उपद्रवियों की शिकायत क्यों की? क्या यह महज इलहाम का मामला है या इसके पीछे कोई सच्चाई भी है? हिंदुत्ववादी एजेंडे के लिए हामिद अंसारी क्या अहमियत रखते हैं और क्यों? अंसारी जब उपराष्ट्रपति थे उस वक्त हमने कई बार देखा कि सोशल मीडिया पर उन्हें लेकर कई विवाद खड़े किए गए। तब से लेकर कल तक की घटना के बीच हालांकि हमने एक बात भुलाए रखी कि हामिद अंसारी बहुत पहले से हिंदूवादियों के निशाने पर हैं और उन्हें मारने की पहली साजि़श आज से कोई दस साल पहले रची गई थी।
क्या आपको याद है कि 16 जुलाई 2010 को क्या हुआ था? उस दिन आजतक के अंग्रेज़ी संस्करण हेडलाइंस टुडे चैनल पर आरएसएस के लोगों ने हमला किया था। हजारों की हिंदूवादी भीड़ ने दिल्ली के वीडियोकॉन टावर को घेर लिया था जिसके भीतर लिविंग मीडिया यानी आजतक और हेडलाइंस टुडे का दफ्तर हुआ करता था। करीब 2000 की भीड़ चैनलों के दफ्तर में घुस गई थी। काफी तोड़फोड़ की गई। लॉबी में कांच से लेकर गमलों तक को तोड़ दिया गया था लेकिन किसी को चोट नहीं आई थी।
यह काम आरएसएस के लोगों ने ही किया था, इसे अगले दिन राम माधव ने खुद साबित कर दिया जब उन्होंने हमले के लिए माफी मांगी और बयान दिया, ”वह एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन था। हम माफी मांगते हैं कि कुछ गमले और संपत्ति को नुकसान पहुंचा। यह नुकसान नहीं होना चाहिए था।” साथ ही राम माधव ने एक बात और कही थी- वैसे तो कई अखबारों ने आतंकी गतिविधियों में संघ के नेताओं की संलिप्तता की बात लिखी थी लेकिन इस समाचार चैनल ने ”निष्पक्ष पत्रकारिता के मानकों का उल्लंघन किया।”
क्या था यह ”उल्लंघन”? जो लोग कल की घटना को सांसद के जिन्ना संबंधी बयान से जोड़ कर देख रहे हैं वे शायद आठ साल पहले की इस घटना को भूल चुके हैं। हेडलाइंस टुडे ने दरअसल एक टेप चलाया था जिसमें उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की हत्या की साजिश का खुलासा किया गया था। यह बात आज 2018 में कितनी प्रासंगिक हो चुकी है, उस टेप के विवरणों को याद करने से पता लगेगा।
हेडलाइंस टुडे ने जो टेप चलाए थे, उनमें एक टेप डॉ. हामिद अंसारी की हत्या की साजि़श से जुड़ा था। योजना यह थी कि दिल्ली के जामिया मिलिया इस्लामिया में एक कार्यक्रम के दौरान एक नियोजित बम विस्फोट में उनकी हत्या की जाएगी। उस टेप में षडयंत्रकारी के रूप में किन्हीं डॉ. आरपी सिंह का नाम सामने आया था। जो टेप चलाए गए थे, वे जांच एजेंसियों के पास से चैनल को प्राप्त हुए थे। इन टेपों के आधार पर जिन लोगों को भगवा आतंक के कठघरे में खड़ा किया गया, उनमें इंद्रेश कुमार, बीजेपी के नेता बीएल शर्मा, दिल्ली के एंडोक्रिनोलॉजिस्ट डॉ. आरपी सिंह और पुणे के वाडिया कॉलेज में रसायन विभाग के प्रमुख डॉ. शरद कुंठे शामिल थे।
इन सभी की साजिशें हालांकि आपस में गहरे जुड़ी हुई हैं, लेकिन डॉ. आरपी सिंह का सीधा लेना-देना तत्कालीन उपराष्ट्रपति डॉ. हामिद अंसारी की हत्या के साथ बताया गया था। हेडलाइंस टुडे के मुताबिक फरीदाबाद में जनवरी 2008 में एक बैठक हुई थी जिसमें डॉ. आरपी सिंह, दयनंद पांडे, लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित और बीएल शर्मा मौजूद थे। इसी बैठक में अंसारी पर हमले की योजना बनी थी जो बाद में नाकाम हो गया।
जो टेप जारी किया गया, उसके संवाद कुछ यूं थे:
पांडे: जामिया मिलिया इस्लामिया युनिवर्सिटी में एक पुरस्कार समारोह हुआ था जिसमें उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी मौजूद थे।
डॉ. सिंह: मैं उस कार्यक्रम में विरोध करने गया था। अपने साथ 15 लीटर पेट्रोल भी ले गया था लेकिन मुझे मौका ही नहीं मिला।
भगवा आतंकवाद की जांच के सिलसिले में पुलिस को दयानंद के लैपटॉप से कुछ टेप हासिल हुए थे जिनमें ऐसी कई बैठकों का विवरण था। जनवरी 2009 में महाराष्ट्र एटीएस ने मकोका अदालत में मुंबई में जो चार्जशीट मालेगांव मामले में जमा की थी, उसमें फरीदाबाद के कश्मीरी पंडितों के एक मंदिर में हुई इस बैठक का उल्लेख है। चार्जशीट कहती है कि उस बैठक में भाजपा के नेता और दो बार के सांसद रहे बीएल शर्मा ‘प्रेम’ के अलावा उत्तर प्रदेश के आरएसएस प्रचारक राजेश्वर सिंह (आगरा और अलीगढ़ में घर वापसी कार्यक्रम के लिए कुख्यात और फिलहाल पश्चिमी यूपी के संघ प्रभारी), दिल्ली से हिंदू महासभा के सदस्य अयोध्या प्रसाद त्रिपाठी, अभिनव भारत के समीर कुलकर्णी, सुधाकर चतुर्वेदी, पुरोहित, कर्नल धर और रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय मौजूद थे।
बाद में जब एनआइए ने मालेगांव विस्फोट कांड की जांच अपने हाथ में ली, तो एनआइए ने इस मामले में एक पूरक चार्जशीट दायर करते हुए कुछ को आरोपी बनाया और कुछ को छोड़ दिया। आज मालेगांव मामले में जब मुकदमा ऐसी स्थिति स्थिति में पहुंच चुका है कि कुछ दिनों बाद यह पूछना पड़ सकता है कि आखिर यह विस्फोट किसने करवाया, तो जाहिर है हामिद अंसारी की जान लेने के षडयंत्र की बात तो दूर की कौड़ी रह जाएगी जिसे कोई याद तक नहीं रखेगा।
65_1_PressRelease13052016कल जो कुछ भी एएमयू में हुआ, उसका एक दोष हमारे सामूहिक स्मृतिभ्रंश का भी जाता है कि हमने महज आठ-दस पहले की साजिशों को भुला दिया है। उन दिनों के अखबार और खबरों को पलट कर देखें तो शर्तिया तौर पर कहा जा सकता है कि भगवा आतंक का अधूरा अभियान अब भी जारी है। इस अभियान का एक हिस्सा हामिद अंसारी की हत्या करना था।
एएमयू में कल हुई घटना उसी अधूरे एजेंडे को पूरा करने का हिस्सा है। इसमें न तो कुछ स्वयं स्फूर्त है और न ही कोई संयोग। जिन्ना की तस्वीर का बहाना था। असल एजेंडा पूर्व उपराष्ट्रपति को निपटाना था।
लेखक मीडियाविजिल के कार्यकारी सम्पादक हैं