WHY I AM A HINDU (मैं हिंदू क्यों हूँ)–काँग्रेस नेता शशि थरूर की किताब का यही नाम है जो जनवरी 2018 में प्रकाशित हुई। लेकिन उन्हें लगता है कि 2019 में बीजेपी जीती तो भारत हिंदू पाकिस्तान बन जाएगा। ‘हिंदू पाकिस्तान’, यानी जिस तरह से इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान में धर्मनिरपेक्षता को दफ़नाया गया और अल्पसंख्यकों से लेकर उदारवादियों को निशाना बनाया गया, वैसा ही भारत में होगा। चुनावी साल में बीजेपी के बड़े-बड़े नेता हिंदू-मुसलमान करने में जुट गए हैं तो काँग्रेस इस खेल के मैदान में जाने से बच रही है। स्वाभाविक है उसने थरूर के बयान से पल्ला झाड़ लिया। पर थरूर तो थरूर हैं। ख़ुद को हिंदू बताने वाली किताब लिखने वाले थरूर ने बयान को लेकर बीजेपी के हमले पर सीधा बल्ला लगा दिया। उन्होंने न खेद प्रकट किया और न माफ़ी माँगी। उल्टा अपनी बात दोहरा दी।
देश में जैसा माहौल है, उसमें ऐसा कम ही होता है। बहरहाल, थरूर अड़े हैं तो बहुत लोग उनके साथ खड़े हो गए हैं। वे खुलकर थरूर की बात का समर्थन कर रहे हैं। दो वरिष्ठ पत्रकारों की फ़ेसबुक टिप्पणियाँ यहाँ पेश हैं जो बताती हैं कि थरूर का डटना काम आ रहा है–
शशी थरूर ने जो कहा , सही कहा। समझ कमजोर है तो गिरोही चिचिआयेगा ही। हिन्दू पाकिस्तान का अर्थ समझते हो लेकिन स्वीकारोगे नही। 47 , 14 15 अगस्त को एक साथ दो मुल्क बने, जो कल तक एक थे। दोनो ने जम्हूरी निजाम की पैरवी की और अवाम से कहा हम जनतंत्र जिएंगे। क्या हुआ पाकिस्तान में? क्या कारण थे कि सेना ने बैरक से बाहर आकर हुकूमत थाम ली। इसका कारण तो खोजो ।
सुन गिरोही! एक सनक, एक एकाधिकार, कुर्सी की सलामती के लिए तमाम जरायम कारनामे, कारपोरेट के सामने झुक कर उनके इशारे पर निजाम में हेर फेर, जनशक्ति जब ऊपर उठकर आई तो सेना को बाहर बुला लिया, और सेना ने महसूस किया कि जब हमारे ही बूते हुकूमत चलनी है तो सीधे तौर पर हम क्यों न चलाएं। इस हालात को बनाने में मजहब का पर्दा लटकाया गया। धर्म के नाम पर हिंसा उठी। समाज टूट गया। बहुत कम मुल्क होंगे जहां एक ही मुल्क में दो तरह के नागरिक एक दूसरे के विरोध में खड़े मिलें- वह है पाकिस्तान। भारत से गए मुसलमान आज भी वहां के नागरिक नही माने गए, उन्हें मुहाजिर बोलते हैं। सिंध और बलूच दोयम दर्जे के राज्य ही नही, दोयम दर्जे के नागरिक भी हैं।
तुम जब चीख खीख के बोलते हो कि 60 साल में कांग्रेस ने क्या किया? तो उसका एक माकूल जवाब यह है कि भारत को ‘ हिन्दू पाकिस्तान’ नही बनने दिया। हमारे भी मुल्क में शरणार्थी आये थे, आज वे हमसे ऐसे घुल मिल गए हैं कि उनको छानना भी मुश्किल है। तुम मुतवातिर 50 साल से इसी कोशिश में तो लगे रहे कि हिंदुस्तान भी पाकिस्तान की डगर चले। आज जब हुकूमत में हो तो वो सारे काम कर रहे हो जिसे पाकिस्तान कर चुका है। गिनाऊँ क्या?
हम शशी थरूर की सोच के साथ हैं ।
(चंचल जी, वरिष्ठ पत्रकार और चित्रकार हैं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रह चुके हैं।)
शशि थरूर के बयान पर जारी है कुछ के प्रेत- धरम का नंगा नाच
2000 की बात होगी, उसके बाद तो मैं सहारा दैनिक छोड़, एक रीजनल चैनल ‘तारा बांग्ला’ पर हिंदी बुलेटिन ‘खास खबर आज की’ में न्यूज एडिटर होकर कोलकाता आ गया था। जो एक साल ही चला ।
बहरहाल बात 2000 की। बहुत खूंरेज माहौल ( दंगा ) कवर करने के लिए स्व. शशांक शेखर त्रिपाठी ( शेखर ) ने मुझे आजमगढ़ भेजा था। मुझे अपनी रपट की शुरुआती या उठान लाइनें ( इंट्रो ) आज तक याद हैं —
‘ …. सदर मस्जिद के ठीक सामने फ़क़त 100 मीटर की दूरी पर सूअरबाड़ा, आज तक फिरकावराना फ़साद की वजह नहीं बना था। जबकि सुअरों की गश्त मस्जिद के पास तक होती थी ।…. लेकिन तालिबान के हिन्दू संस्करणों ने ‘ वंदे मातरम ‘ को अपनी कुत्सित नीयत पर घिस- घिस कर उसे एक जमात को चुभने की हद तक नुकीला बना दिया ….’ मैंने लिखा था — ‘ तालिबान के हिन्दू संस्करण!’
यानी वह हिन्दू दस्ते जो तालिबानियों जितने ही कट्टर और असहिष्णु हैं। मिज़ाज में उनकी कार्बन कॉपी। जबरदस्त नाराजगी एक खास खेमे की तब मेरी इस रपट पर भी आयी थी।
सोचता हूं कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, शीर्षस्थ लेखक और बुद्धिधर्मी शशि थरूर ने ऐसा क्या कह दिया जिसको लेकर मीडिया में बवाल है। यह तो खैर स्वाभाविक है कि मीडिया के 80 प्रतिशत लोग शशि थरूर के बयान में अंतर्निहित अर्थ और उसकी लाक्षणिकता न समझ सकें या वे किसी पक्ष के हों। उन्हें कुछ सतही ले उड़ने की आदत हो जिसे खेल सकें । उन्हें एक खास काट की संस्कृति के प्रेत- धरम का नंगा नाच नहीं दिख रहा है। हादसे नहीं गिना रहा फिलहाल ।
कई असल पत्रकार और बुद्धिधर्मी जिस असहिष्णुता , नृशंसता और अलोकतान्त्रिकता के खिलाफ संघर्षरत हैं, शशि थरूर के बयान में, अगर भाजपा 2019 में जीती, तो उसके ही और गहरा जाने या संस्थागत हो जाने की कंपा और सिहरा देने वाली आशंका है।
भारत ही नहीं, दुनिया भर के उदारवादी इस आशंका को व्यक्त कर चुके हैं , जिसे शशि थरूर ने जाहिर किया है । संविधान के सेक्युलर ढांचे के लिए बेहद खतरनाक और इस गुंडा दौर को लेकर, गोदी मीडिया के कुछ लोगों को छोड़, हर मुनासिब आदमी भयग्रस्त है।
मैं तो शशि थरूर के बयान में 2019 में उदार , सहिष्णु, लोकतांत्रिक हिन्दू और कठमुल्ला हिंदुओं के बीच साफ दो छोर की
संभावना देख रहा हूं। यह जरूरी बयान कि ‘ अगर भाजपा 2019 में जीती या सत्ता में आयी तो यह देश ( भारत ) हिन्दू पाकिस्तान हो जाएगा, सही समय पर आया है । माहौल उतना ही खौफ़जदा है और आशंका सही है कि अगर भाजपा 2019 में लौटी तो अपना भारत , साम्प्रदायिकता की कोख से निकले , मजहबी कट्टरता वाले अलोकतांत्रिक पाकिस्तान में बदल जायेगा। जहां कट्टरता और आतंक न केवल पोषित बल्कि संस्थागत हो चुका है।
शशि थरूर जैसे इंटेलेक्चुअल के बयान को उसकी गहराई और उसमें सन्निहित अर्थों के साथ समझा जाना चाहिए । मैं शशि थरूर से सहमत हूं। मैं तो कहता हूं, जिसका जिक्र शुरू में किया है, अगर भाजपा 2019 में लौटी तो हिन्दू तालिबानी मिजाज, संस्थागत हो जायेगा। मेरे अनुज दिल्ली में रह रह, राजनीतिक विश्लेषक अनिल उपाध्याय और प्रो. अनिल कुमार उपाध्याय की यह आशंका भी मुझे बहुत निराधार नहीं लगती कि 2019 में भाजपा अगर लौटी तो इस देश में लोकतंत्र का ढांचा संविधान सम्मत नहीं कुछ कुछ और होगा ।
(राघवेंद्र दुबे उर्फ़ भाऊ वरिष्ठ पत्रकार हैं।)