मोदी जी ! कश्मीर की ‘स्वायत्तता’ की बात चिदम्बरम से पहले वाजपेयी ने की थी !



ओम थानवी

चुनावी माहौल में बात का बतंगड़ बनना नई बात नहीं है। चिदम्बरम शायद इसी का शिकार हुए हैं। नरेंद्र मोदी से लेकर स्मृति ईरानी तक ने उन्हें देश के टुकड़े करने वाला, पाकिस्तान की ज़ुबान बोलने वाला ठहराया है। जबकि उन्होंने स्वायत्तता की बात की थी, कश्मीर में “आज़ादी” की माँग को स्वायत्तता की सीमा में देखने-समझने की एक पुरानी बात। इसमें बुरा क्या था?

आप सहमत हों चाहे न हों, पर स्वायत्तता देने का मतलब भारत से अलग होना नहीं होता। स्वायत्तता हमारे संविधान में दी गई व्यवस्था है, पाकिस्तान के संविधान की व्यवस्था नहीं है।

असल बात तो यह है कि भाजपा ख़ुद ईमानदारी से कश्मीर की समस्या हल करने की कोशिश करना चाहती है या नहीं। जम्मू-कश्मीर को विशिष्ट दरज़ा देने वाली धारा 370 को ख़त्म करने की माँग से अब वह लगातार आँख चुरा रही है। क्योंकि प्रदेश में पीडीपी के साथ सत्ता का सुख भोग रही है। सुनते हैं संघ के अनेक नेता तक भाजपा के इस धोखे से आहत हैं।

कश्मीर में हालात बिगड़ते ही चले जाते हैं। ऐसे में वहाँ स्वायत्तता के सहारे आग बुझाने की बात करना एक विचार मात्र है, सीमा पार का कोई षड्यंत्र नहीं। उसे चुनाव में तथ्यहीन और भद्दे ढंग से घसीटना साबित करता है कि कश्मीर के मामले में केंद्र की सरकार में ज़रा गंभीरता नहीं है।

ये लोग शायद भूल गए हैं कि चिदम्बरम ने स्वायत्तता की बात कल की है, अटलबिहारी वाजपेयी तो प्रधानमंत्री रहते कह चुके हैं (देखें ख़बर की करतन)।


मज़े की बात यह है कि अपने नारे (जुमले?) भूलकर भाजपा जिस पीडीपी के साथ जम्मू-कश्मीर में सत्ता में बैठी है, उस पीडीपी ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर को हमेशा (पार्टी का चुनाव घोषणापात्र गवाह है) “पाक-शासित” कहा है – मकबूजा यानी क़ब्ज़े का कश्मीर नहीं।
इतना ही नहीं, पीडीपी के घोषणापत्र में “सेल्फ रूल” (खुदमुख्तारी, संप्रभुता) का उल्लेख था; इसका भी कि जम्मू-कश्मीर का सदर (राज्यपाल) भारत के राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत प्रतिनिधि नहीं होगा, बल्कि चुनकर आया प्रतिनिधि होगा; राज की अपनी न्यायपालिका होगी; न भारत का चुनाव आयोग वहां काम कर सकेगा, न राज्य सुप्रीम कोर्ट के दायरे में आएगा; भारतीय प्रशासनिक सेवा भी वहां नहीं चलेगी। पीडीपी का सबसे सनसनीखेज लिखित संकल्प यह रहा है कि जम्मू-कश्मीर में भारत और पाकिस्तान दोनों की मुद्रा बाजार में एक साथ चलेगी!

ऐसे राष्ट्रद्रोही संकल्पों को जपने वाली पीडीपी के साथ सरकार चला रही भाजपा अटलबिहारी वाजपेयी का स्वायत्तता का विचार चिदम्बरम के होठों पर आते ही देश के टुकड़े होने का हौवा पैदा करने लगी? राजनीति में विचारों की टकराहट अच्छी चीज़ होती है, जानबूझकर गंदगी उलीचना तो नहीं।



 

वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी जनसत्ता के पूर्व संपादक हैं।