मोदी युग में जैसा मज़ाक महात्मा गाँधी के साथ हुआ है, उतना किसी के साथ नहीं। इस बात को भुलाया नहीं जा सकता कि मोदी के नेतृत्व में जो विचारधारा केंद्रीय सत्ता पर क़ाबिज़ है, उसके हाथ महात्मा गाँधी के ख़ून से रँगे हैं। पर यह इतिहास की एक घटना भर नहीं है। बापू को रोज़ाना मारा जा रहा है। हद तो ये है कि अब मोदी प्रिय अंबानी भी अपने आर्थिक साम्राज्य के विस्तार के लिए उस अधनंगे फ़कीर की दुहाई दे रहे हैं।
कौन नहीं जानता कि महात्मा गाँधी के सबसे प्रिय मंत्र ‘सत्य’ और ‘अहिंसा’ थे। लेकिन इस दौर में झूठ का जैसा विस्तार हुआ है, वह अभूतपूर्व है। सोशलमीडिया नाम के जिन्न को साध कर झूठ को सत्य से भी ज्यादा चमकदार बनाया गया है। इसके लिए आई.टी.सेल गढ़े गए हैं और ख़ुद पीएम मोदी इस अखाड़े के उस्तादों को ट्विटर पर फॉलो करते हैं।
अहिंसा की तो बात ही न कीजिए। संयुक्त राष्ट्र संघ ने महात्मा गाँधी के जन्मदिन 2 अक्टूबर को विश्व अहिंसा दिवस घोषित किया है, लेकिन मोदी जी ने उसे स्वच्छता के नाम समर्पित कर दिया। महात्मा गाँधी के चश्मे को स्वच्छता अभियान का प्रतीक चिन्ह बना दिया गया लेकिन भूलकर भी कभी अहिंसा का नाम नहीं लिया गया। सड़कों पर पीट-पीट कर मार डाला जाता रहा लेकिन पी.एम.मोदी ने उफ़ तक न की। बीजेपी सरकारों ने गौरक्षक के नाम पर होने वाली गुंडागर्दी को पूरा संरक्षण दिया।
जब ऐसी सरकार हो जो हत्यारों को राष्ट्रवादी धर्मयोद्धा बता रही हो तो फिर मुकेश अंबानी क्यों पीछे रहें। वे ई कामर्स के क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं और नहीं चाहते कि विदेशी कंपनियों को भी देशवासियों के तमाम डाटा उपलब्ध हों। वे चाहते हैं कि सारे डाटा देशी कंपनियों (यानी उनकी) के पास हों। इसे वे औपनिवेशीकरण के विरुद्ध ज़रूरी कदम बता रहे हैं। उदारीकरण और वैश्वीकरण के नाम पर पूँजी का पहाड़ खड़ा करने वालों का राष्ट्रप्रेम जाग गया है।
आर्थिक मामलों के जानकार गिरीश मालवीय लिखते हैं-
‘मुकेश अंबानी गाँधी का नाम ले रहे है। 2019 का यह सबसे बड़ा मजाक है! मुकेश अम्बानी को अपने आर्थिक साम्राज्य की चिंता है। वह एक ‘अधनंगे फकीर’ को अपनी ढाल बना रहे हैं। वाइब्रेंट गुजरात समिट में अंबानी ने कहा कि गांधी जी की अगुवाई में भारत ने राजनीतिक औपनिवेशीकरण के खिलाफ अभियान चलाया ।अब हमें आंकड़ों के औपनिवेशीकरण के खिलाफ सामूहिक तौर पर अभियान छेड़ने की जरूरत है।
आज अम्बानी E कामर्स के क्षेत्र में प्रवेश कर रहे है तो उन्हें डाटा लोकलाइजेशन की चिंता सता रही है क्योंकि उनका नया बिजनेस पूरी तरह से डाटा पर ही निर्भर है। डाटा लोकलाइजेशन का अर्थ है कि देश में रहने वाले नागरिकों के निजी आंकड़ों का कलेक्शन, प्रोसेस और स्टोर करके देश के भीतर ही रखा जाए और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्थानांतरित करने से पहले लोकल प्राइवेसी कानून या डाटा प्रॉटक्शन कानून की शर्तों को पूरा किया जाए।
अंबानी तो आज सिर्फ इसकी बात कर रहे हैं लेकिन मोदी सरकार तो पहले से ही उनकी इच्छा को पूरी करने में लगी हुई है। ई कॉमर्स को लेकर जो नीति बनाई जा रही है उसके बारे में ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट बताती है कि ई-कॉमर्स सेक्टर के लिए बनी इस नई ड्रॉफ्ट पॉलिसी को अगर बिना किसी बदलाव के अगर कानून बनाया जाता है तो तेल से लेकर टेलिकॉम सेक्टर तक में धूम मचाने वाले मुकेश अंबानी अमेजन के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरेंगे।
वैसे सच तो यह है कि मोदी सब कुछ रिलायंस के हवाले कर के ही मानेंगे।’