ममता बनर्जी मुलायम के रास्ते पर चलीं और बंगाल में लेफ्ट की जगह बीजेपी के रूप उन्होने नया विपक्ष पैदा किया. लेकिन उन्ही का पैदा किया किया विपक्ष अब उनका सबसे बड़ा सरदर्द बन चुका है. पिछले पांच साल से बंगाल से आने वाले राजनीतिक खबरों में सिर्फ बीजेपी और तृणमूल ही सुर्खियां बनती हैं. तीसरा पक्ष गायब हो चुका है.
कांग्रेस ने अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा में पार्टी का नेता बना कर बंगाल की राजनीति में तीसरा पक्ष खड़ा करने का इरादा दिखाया है. बीजेपी और ममता बनर्जी की ध्रुवीकरण की राजनीति में मतदाता के सामने एक तीसरी आवाज़ और विकल्प का खुला होना ज़रूरी है. 44 विधायकों के साथ कांग्रेस पश्चिम बंगाल की असेंबली में दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. वामपंथी दलों में न ऊर्जा बची और न ही राजनीतिक सूझबूझ जो बंगाल के भंवर में गोता लगाने की हिम्मत जुटा पाये.
बंगला, अंग्रेज़ी और हिन्दी धाराप्रवाह बोलने वाले अधीर रंजन 1999 से मुर्शीदाबाद जिले की बेहरामपुर सीट से लगातार पांचवी बार जीत कर लोकसभा पंहुचे हैं. अधीर नक्सलबाड़ी आंदोलन से भी जुड़े रहे हैं और इमरजेंसी में मीसा के तहत जेल भी गये थे.
संसद में अधीर को बीजेपी के सामने खड़ा करना दो संकेत देता है. पहला कि ममता बनर्जी के कांग्रेस छोड़ने के बाद पार्टी पहली बार बंगाल को अपने रेडार में लिया है. प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति बनने के बाद और प्रियरंजन दासमुंशी लंबी बीमारी के निधन के बाद बंगाल की राजनीति में कांग्रेस का दखल नहीं रह गया था जो कमी अब उम्मीद है अधीर पूरा करेंगे. दूसरा महत्वपूर्ण संकेत है कि राहुल गांधी अब संसद के बाहर की राजनीति का रास्ता चुनेंगे.
संसद के बाहर राहुल गांधी क्या करेंगे ये तो अभी साफ नहीं है पर कांग्रेस अगर दोबारा राष्ट्रीय राजनीति में बड़ी भूमिका निभाने लायक बचेगी ये सड़क पर तय होना है संसद में नहीं.
(वीडियो अधीर रंजन चौधरी का 2017 के बजट पर कांग्रेस का पक्ष है. मुद्दों और अंग्रेज़ी और हिन्दी दोनों भाषाओं पर पकड़ इस भाषण में देखी जा सकती है.)