प्रख्यात गाँधीवादी वास्तुकार दीदी कॉन्ट्रेक्टर (डेलिया किंजिंगर) का निधन हो गया है। उनका जन्म 1929 में अमेरिका में हुआ था। हिमाचल प्रदेश के गाँव सिद्धबाड़ी में रहते हुए दीदी ने स्थानीय सामग्री से भवन बनाने की कला को इस क़दर प्रचारित किया कि लोग दूर-दूर से उनका हुनर सीखने पहुँचते थे। उन्हें महिलाओं को दिया जाने वाला सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार- नारी शक्ति पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। उनका वास्तुशिल्प एक राजनीतिक वक्तव्य की तरह था जिसमें भवन निर्माण प्रक्रिया प्रकृति के साथ संयोजित होती है।
इत्तेफ़ाक़ से प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने कल ही फ़ेसबुक पर दीदी कान्ट्रेक्टर के बारे में जानकारी दी थी। नीचे उसे पढ़िये और उसके नीचे एक वीडियो देखिये..
दीदी कॉन्ट्रेक्टर की उम्र अब लगभग 90 साल है. वे हिमाचल में सिद्धबाड़ी नाम के गाँव में एक मिट्टी के छोटे घर में रहती हैं. दीदी के पिता जर्मन और माँ अमेरिकी थीं. दीदी की शादी एक गुजराती ( नारायन कांट्रेक्टर) से हुई. दीदी ने हिमाचल में आकर अपने मिट्टी के मकान का नक्शा खुद ही बनाया. उसके बाद अनेकों लोगों ने अपने घर का नक्शा भी दीदी से बनवाया. दीदी के मकान प्रसिद्ध होने लगे. आज दीदी के पास अनेकों वास्तुशिल्प विश्वविद्यालय अपने छात्रों को काम सीखने के लिए भेजते हैं .
लेकिन दीदी के पास खुद वास्तुशिल्प की डिग्री नहीं है.दीदी अपने मकान में सिर्फ स्थानीय सामान ही इस्तेमाल करती है. उनके बनाए मकानों में मिट्टी , बांस ,पत्थर और स्थानीय मिलने वाली लकड़ी का ही इस्तेमाल होता है. अगर आप उनसे एक बड़ा मकान बनवाने के लिए नक्शा बना कर देने के लिए कहेंगे तो वो आपसे आपके परिवार के सदस्यों के बारे में पूछेंगी और फिर सिर्फ ज़रूरी आकार का नक्शा बना कर देंगी. दीदी गांधीवादी हैं .उनके घर में सारे कपड़े खादी के हैं. उनका रहन सहन बिलकुल सादा है. गांधी कहते थे हमारी सारी ज़रूरतें आस पास के पांच गाँव से ही पूरी होनी चाहिये. इसे ही गांधी स्वदेशी कहते थे.
मकान में लगने वाली सामग्री को दूर से, डीज़ल जला कर ,सीमेंट और स्टील बनाने के लिए लोगों को विस्थापित कर के प्रदूषण फैला कर लाकर सारे देश में एक जैसे कंक्रीट के मकान बनाए जा रहे हैं. मकान की सामग्री दूर से लेकर आने और सारे देश में एक जैसे कांक्रीट के मकान बनाना मुनाफे की अर्थव्यवस्था और उसे समर्थन देने वाली राजनीति का प्रतीक है. अभी आप जो मकान बनाते है उसमे से अस्सी प्रतिशत पैसा पूंजीपति की जेब में जाता है लेकिन मिट्टी के मकान में अस्सी प्रतिशत पैसा मजदूर के घर में जाता है .
दीदी कहती हैं कि मकान मेरे लिए मेरा राजनैतिक वक्तव्य है. दीदी के मिट्टी के मकान इसके विरुद्ध ज़मीन पर मिट्टी से लिखा गया एक राजनैतिक वक्तव्य है.