भीषण मंदी की मार झेल रही देश की अर्थव्यवस्था के बीच मोदी सरकार एक फरवरी को 2021-22 का आम बजट करने वाली है। इसी बीच आज कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम, कांग्रेस नेता जयराम रमेश और मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और मोदी सरकार के लिए बजट सुझाव पत्र जारी किया है।
प्रेस कांन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने कहा कि चार दिन बाद 2021-22 का बजट प्रस्तुत किया जाएगा। कांग्रेस पार्टी देश की जनता के समक्ष 31-03-2021 को समाप्त होने वाले साल का आकलन एवं उन कामों की सूची प्रस्तुत कर रही है, जिन्हें वर्ष 2021-22 में करने की जरूरत है । सबसे पहले यह साफ कर दें कि मौजूदा केंद्र सरकार से कोई भी उम्मीद नहीं की जा सकती है कि वो हमारे इस आकलन को स्वीकार करेंगे या फिर अर्थव्यवस्था के सुधार के बारे हमारे परामर्शों पर कोई ध्यान देंगे। पूरा देश जानता है कि मौजूदा भाजपा सरकार अत्यंत जिद्दी, अच्छी सलाह को न मानने वाली एवं अपनी आर्थिक नीतियों के विध्वंसकारी परिणामों के प्रति लापरवाह है। इसके बावजूद भी हम देश की जनता के सामने अपने सुझाव रख रहे हैं।
आपदा से विनाश
पी चिदंबरम ने कहा कि 2020-21 के बजट की असलियत उसके प्रस्तुत किए जाने के कुछ ही हफ्तों के भीतर ही दिखने लगी थी। कांग्रेस पार्टी ने उस समय भी चेताया था कि बजट गलत मान्यताओं पर आधारित है, जिससे निर्धारित लक्ष्यों को प्राप्त करना असंभव होगा। महामारी नहीं भी फैलती, तब भी अर्थव्यवस्था को निरंतर गिरना ही था, जिसकी शुरुआत 2018-19 की पहली तिमाही में हो गई थी और जो गिरावट लगातार अगली आठ तिमाहियों में जारी रही। कोरोना महामारी ने अर्थव्यवस्था को रसातल में पहुंचा दिया और यह 2020-21 की पहली तिमाही में माईनस 23.9 (-23.9) प्रतिशत तथा दूसरी तिमाही में माईनस 7.5 (-7.5) प्रतिशत तक गिर गई। मौजूदा वित्तमंत्री ने देश में पिछले चार दशकों में आए पहले मंदी के दौर की अध्यक्षता करने की ‘विशिष्टता’ हासिल की है।
साल 2020-21 का अंत नकारात्मक वृद्धि के साथ होगा। साल की शुरुआत में लगाए गए अनुमान के अनुसार एक भी आंकड़ा हासिल नहीं हो पाएगा। राजस्व के लक्ष्य बड़े अंतर से पीछे छूट जाएंगे, पूँजी निवेश को गहरी चोट लगेगी, राजस्व घाटा 5 प्रतिशत के लगभग रहेगा और राजकोषीय घाटा बढ़कर 7 फीसदी से ज्यादा हो जाएगा। 2020-21 के बजट पर समय बर्बाद करने का कोई औचित्य नहीं है। यह शुरू में आपदाकारी था और वित्त वर्ष के अंत में विनाशकारी साबित होगा।
हमें आशंका है कि लीपापोती करके वित्त मंत्री 2020-21 के लिए संशोधित अनुमान प्रस्तुत करके 2021-22 के लिए सुनहरी कहानी गढ़ने का प्रयास करेंगी। अतः 2020-21 के लिए संशोधित अनुमान झूठे आंकड़ों का पुलिंदा होगा और 2021-22 का बजट अनुमान एक भ्रामक मायाजाल।
वास्तविकता
कांग्रेस नेताओं ने कहा कि हमारा मानना है, वास्तविकता यह है कि-
- अर्थव्यवस्था मंदी के दौर में है, अर्थव्यवस्था में सुधार बहुत धीमा और पीड़ादायक होगा, 2021-22 के लिए जीडीपी वृद्धि की दर (स्थिर मूल्यों पर) बहुत कम यानी 5 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होगी।
- बेरोज़गारी की मौजूदा दर ग्रामीण इलाके में 9.2 प्रतिशत और शहरी इलाके में 8.9 प्रतिशत है। 2021-22 में बेरोज़गारी की दर अधिक बनी रहेगी, खत्म हुई ज्यादातर नौकरियाँ फिर से वापस नहीं आएँगी और नई नौकरियों के सृजन की दर बहुत मामूली होगी। संगठित क्षेत्र में की गई वेतन की कटौती तो बहाल हो जाएगी, लेकिन 2021-22 में वास्तविक वेतन नहीं बढ़ेगा।
- यदि भाजपा सरकार खेती विरोधी कानूनों एवं कृषि उत्पादों के लिए आयात/निर्यात की प्रतिगामी नीतियों के माध्यम से खेती में बाधाएं नहीं डालेगी तो कृषि क्षेत्र में संतोषजनक वृद्धि होगी।
- बचत पर कम ब्याज दर, अपर्याप्त ऋण वृद्धि, संरक्षणवाद, मित्र पूंजीपतियों को बढ़ावा देने, एकाधिकारवाद को बढ़ावा देने, अविश्वास का माहौल फैलाने एवं बदले की भावना से की जाने वाली प्रशासनिक कार्यवाही के चलते औद्योगिक क्षेत्र ज्यादा निवेश आकर्षित नहीं कर पाएगा।
- प्रौद्योगिकी द्वारा संचालित क्षेत्र होने के कारण सेवा क्षेत्र में वृद्धि मध्यम रहेगी, लेकिन इस सेक्टर में नौकरियों की वृद्धि दर कम ही रहेगी।
- संरक्षणवादी नीतियों एवं 2021-22 में विश्व की अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर न आ पाने के वजह से आयत व निर्यात में ठहराव रहेगा।
- महंगाई की वर्तमान दर तीव्र व कष्टदायक है और यह संभव है कि मुद्रास्फीति दर पर लगाम लगाने के लिए रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया दर बढाकर हस्तक्षेप करे। और
- अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन और कोरोना महामारी की प्रतिक्रिया में सरकार के अपर्याप्त उपायों के चलते आर्थिक असमानता बढ़ गई है। ऑक्सफोर्ड द्वारा जारी एक रिपोर्ट ‘असमानता का वायरस’ ने बताया है कि बड़ी संख्या में लोगों ने आय व आजीविका खो दी, जबकि कुछ चुनिंदा पूँजीपतियों की संपत्ति में कई गुना बढ़ोत्तरी हुई।
मोदी सरकार ने पिछले सात सालों में हमारी अर्थव्यवस्था एवं तीव्र आर्थिक वृद्धि की संभावनाओं को नेस्तानाबूद कर दिया। पूर्व सीईए, डॉक्टर अरविंद सुब्रमण्यम ने 2004 से 2010 की अवधि को भारतीय अर्थव्यवस्था के स्वर्णिम साल कहा है। वहीं तुलनात्मक रूप से साल 2014 से 2020 का काल धीमा पर निश्चित रूप से पतन की ओर अग्रसर रहा। ब्रुकिंग्स द्वारा हाल ही में आईएमएफ़ एवं वर्ल्ड बैंक के डेटा के अध्ययन के आधार पर अपमानजनक निष्कर्ष सामने लाए हैं, जो चौंकाने वाले बिल्कुल नहीं हैं। इसके अनुसार आने वाले समय में भारत में गरीबी इतनी बढ़ेगी कि नाइजीरिया को मात देकर भारत दुनिया का सबसे ज्यादा गरीब जनसंख्या वाला देश बन जाएगा। सात वर्षों के बाद मोदी सरकार का यही योगदान होगा।
आने वाले समय में हमें देश की अर्थव्यवस्था में ‘वी’ आकार का सुधार नहीं दिखता। हमें लगता है कि सुधार अथवा सुदृढ़ीकरण धीमा और कष्टप्रद होगा, जिसमें लाखों परिवार आजीविका के लिए संघर्ष करने को मजबूर होंगे, और यह अंग्रेजी के ‘के’ अक्षर से परिलक्षित होगा। इसके परिणामस्वरूप, आर्थिक असमानता बढ़ेगी। जो लोग हाशिए पर हैं, वो और ज्यादा पीछे धकेल दिए जाएंगे।
हम मानते हैं कि कुछ महत्वपूर्ण आवश्यकताएं ऐसी हैं, जो आर्थिक प्रबंधन के दायरे के बाहर आती हैं, जैसे कि, (1) स्वास्थ्य के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर किए जाने वाले खर्च में बढ़ोत्तरी और (2) रक्षा खर्च में वृद्धि। हम इन दोनों मदों में भरपूर वृद्धि का समर्थन करते हैं।
कांग्रेस के सुझाव
अर्थव्यवस्था में गिरावट को रोकने एवं सुधार को गति देने के लिए अनेक अर्थशास्त्रियों सुझाव दे चुके हैं, जिनमें से कुछ अर्थशास्त्री पहले मोदी सरकार का समर्थन कर चुके हैं। हमारा मानना है कि निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिएं
- देर से ही सही, अर्थव्यवस्था को बड़ा वित्तीय प्रोत्साहन दिया जाए। इस तरह के प्रोत्साहन से लोगों के हाथों में पैसा जाएगा और मांग बढ़ेगी।
- अर्थव्यवस्था में सबसे नीचे स्थित 20 से 30 प्रतिशत परिवारों के हाथों में कम से कम छह माह तक सीधे पैसा जाए।
- सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को पुर्नजीवित करने की योजना बनाकर लागू की जाए, ताकि बंद हो चुकी यूनिट पुनः खुल सकें, खत्म हो चुकी नौकरियां फिर से शुरू हों और जिन लोगों के पास औसत शिक्षा व कौशल है, उनके लिए नई नौकरियाँ उत्पन्न हो सकें।
- टैक्स दरों, खासकर जीएसटी एवं अन्य अप्रत्यक्ष टैक्स दरों (यानि पेट्रोल व डीज़ल के टैक्स दरों) में कटौती की जाए।
- सरकारी पूंजीगत व्यय बढ़ाए जाएं।
- सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में पैसा पहुंचाया जाए और उन्हें हर लोन पर जाँच एजेंसियों की निगरानी के भय के बिना कर्ज देने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
- संरक्षणवादी नीतियों को खत्म किया जाए, दुनिया के साथ फिर से जुड़ें, ज्यादा से ज्यादा देशों के साथ द्विपक्षीय व्यापार समझौते हों एवं आयात के खिलाफ पूर्वाग्रह का त्याग किया जाए।
- दूरसंचार, बिजली, खनन, निर्माण, विमानन एवं पर्यटन व आतिथ्य के लिए सेक्टर विशेष पुनरोद्धार पैकेज बनाए जाएं।
- टैक्स कानूनों में किए गए संशोधनों की समीक्षा कर उन संशोधनों को रद्द करें, जिन्हें व्यापक रूप से टैक्स टेररिज़्म माना गया है।
- आरबीआई, सेबी, ट्राई, सीईआरसी एवं अन्य रेगुलेटरी एजेंसियों द्वारा बनाए गए उन नियमों की विस्तृत व समय सीमा में समीक्षा की जाए, जिन्हें व्यापक रूप से अति-नियमन के रूप में देखा गया।
कांग्रेस नेताओं ने कहा कि जैसा हमने कहा कि इस सरकार से हमें कोई अपेक्षा नहीं है। हमारी कोशिश है कि आज हम गलत नीतियों, अक्षम आर्थिक प्रबंधन एवं हाथ से जाते अवसरों को आपके सामने रखें। और सौभाग्यवश अगर हमारे किसी सुझाव को सरकार मान भी लेती है (जिसका श्रेय हम नहीं चाहते), तो हमें भारत के नागरिकों के लिए खुशी व राहत महसूस होगी।
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— Congress (@INCIndia) January 28, 2021