पेगासस जासूसी मामले का मुद्दे पीछे कुछ वक्त से लगातार सुर्खियों में हैं। केंद्र सरकार इस मामले को लेकर घिरी हुई है। इसपर कार्यवाही के लिए मामला सुप्रीम कोर्ट तक भी पहुंच चुका है। सरकार पर पेगासस के जरिए लोगों की जासूसी करने के मामले को लेकर कोर्ट में याचिका भी दर्ज कराई गई। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को हो रही सुनवाई में केंद्र सरकार ने स्वीकार किया कि सरकार आतंकवाद से लड़ने और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए संदिग्ध संगठनों की निगरानी(monitoring) करती है। लेकिन सॉफ्टवेयर का नाम नहीं बता सकते। निगरानी के लिए कई सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जाता है जो जरूरी है। नाम बताकर क्या हम उन संगठनों को अलर्ट नहीं करेंगे जिनकी हम निगरानी कर रहे हैं?
नही बताएंगे मॉनिटरिंग सॉफ्टवेयर का नाम..
बता दें कि पेगासस जासूसी की बात सामने आने पर कई सवाल खड़े हुए थे इसमें कुछ लोगों का नाम भी सामने आया था जिनकी मॉनिटरिंग सरकार द्वारा करने का आरोप था। इसी बीच कोर्ट में दायर याचिका में कहा गया था की सरकार इसकी जानकारी सार्वजनिक करे। इसी का हवाला देते हुए केंद्र ने कहा की याचिकाकर्ता चाहते हैं कि हम बताए कि किस सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल किया जाता है। लेकिन हम नही बताएंगे क्योंकि तकनीक इतनी आगे है कि एक बार जब वे जान जायेंगे कि मॉनिटरिंग के लिए किस सॉफ्टवेयर का उपयोग किया जा रहा है, तो वे अपने सिस्टम को सुरक्षित कर लेंगे और मॉनिटरिंग से बचेंगे।
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने केंद्र कि बात रखते हुए कहा कि कौन सा सॉफ्टवेयर उपयोग में है और कौन सा नहीं, इस बारे में कोई भी देश जानकारी सार्वजनिक नहीं करता है। लेकिन उनकी एक ही मांग है कि जानकारी दी जाए, ये प्रार्थना क्यों की गई है, इसकी जानकारी उन्हें नहीं है।
सब कुछ हम समिति के सामने रखेंगे..
मेहता ने कहा कि जानकारी सार्वजनिक रूप से नहीं दी जा सकती और न ही उच्चतम न्यायालय से यह अपेक्षा की जाती है कि वह सरकार से इस जानकारी को सार्वजनिक करने के लिए न कहे। केंद्र के पास अदालत से छिपाने के लिए कुछ नहीं है, वह सारी जानकारी विशेषज्ञ समिति को देगा, जो अदालत के निर्देशन में काम करेगी। हम सब कुछ समिति के सामने रखेंगे। लेकिन यह सार्वजनिक बहस का विषय नहीं हो सकता। हम जानकारी सार्वजनिक नहीं कर सकते हैं।
मेहता ने सॉफ्टवेयर का नाम सार्वजनिक न करने की केंद्र कि बात को मजबूरी देते हुए अदालत में उदाहरण दिया। उन्होंने कहा, कल एक वेब पोर्टल पर चर्चा होगी कि कुछ सैन्य उपकरणों का इस्तेमाल अवैध(गैरकानूनी) उद्देश्यों के लिए किया गया है। फिर एक व्यक्ति अदालत में याचिका दायर करेगा जिसका इससे कोई लेना-देना नहीं है और सेना से यह बताने के लिए कहेगा कि किस उपकरण का उपयोग किया गया है?
उन्होंने कहा कि अगर मैं सरकार को शपथपत्र में सॉफ्टवेयर के बारे में जानकारी देने की सलाह देता हूं, तो मुझे अपने कर्तव्य में विफल माना जाएगा। मुझे नहीं लगता कि देश के सुप्रीम कोर्ट में याचिकाकर्ता, जिनकी प्रार्थना जांच के लिए है, सॉफ्टवेयर का नाम देने पर जोर दें। उनकी प्रार्थना का जवाब हमारी ओर से दिए जा रहे हैं और हम जांच के लिए तैयार हैं। उन्होंने आगे कहा, हम क्या इस्तेमाल कर रहे हैं, क्या इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं किसपर इस्तेमाल कर रहे हैं, जिसपर इस्तेमार कर रहे हैं किस कारण कर रहे है? यह सब हम कमेटी को बताएंगे। कमेटी को जांच करने दीजिए, कमेटी सुप्रीम कोर्ट को रिपोर्ट करेगी। इसमें सरकारी कर्मचारी नहीं बल्कि विशेषज्ञ होंगे।
असली मसला है कि प्रबुद्ध लोगों के फोन हैक क्यों किए: SC
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से केंद्र का पक्ष सुनने के बाद कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता क्या कह रहे हैं, उससे कोर्ट को कोई मतलब नहीं है। रक्षा सेनाओं ने क्या सॉफ्टवेयर प्रयोग किया है हम इस बारे में आपसे नहीं पूछेंगे चाहे याचिकाकर्ता की मांग कुछ भी ही। आप और हम देश की सुरक्षा से समझौता नहीं कर सकते। जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि यहां असली मसला कुछ और है, यहां नागरिक हैं और सिविलियन हैं। कुछ प्रतिष्ठित लोग हैं जो शिकायत कर रहे हैं कि उनका फोन हैक हो गया है और उन पर नजर रखी जा रही है।
यह सच है कि नियम निगरानी की अनुमति देते हैं, यह उपयुक्त प्राधिकारी की अनुमति से किया जा सकता है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। सरकार कोर्ट को क्यों नहीं उचित प्राधिकार शपथ पत्र दायर कर यह जानकारी देती। शपथपत्र में हम एक भी शब्द ऐसा नहीं चाहते जो देश की सुरक्षा से जुड़ा हो। कोर्ट ने कहा कि आप हमसे आश्वासन ले लीजिए कि यह इस कार्यवाही के दायरे से बाहर होगा, हम भी आपकी तरह इस मामले को बाहर नहीं जाने देना चाहते। सुरक्षा सही है लेकिन हमारा मसला है कि प्रबुद्ध लोगों के फोन हैक क्यों हुए?