बीते कुछ वर्ष से शिक्षक और प्रशासन द्वारा छात्र-छात्राओं के साथ बुरा बर्ताव और शोषण के आरोपों के कारण लगातर चर्चा के केंद्र में बने हुए बीएचयू से एक और छात्रा की शोषण का मामला प्रकाश में आया है. इस बार यह आरोप एजुकेशन विभाग के प्रमुख और डीन पर है. बीएचयू की शिक्षा संकाय की एक शोध छात्रा का आरोप है कि विभाग अध्यक्ष और डीन ने अटेंडेंस लगवाने के बहाने उनका यौन एवं मानसिक शोषण किया है. इस मामले में आरोपित विभाग अध्यक्ष और डीन का पक्ष अख़बार में आया मगर पीड़ित लड़की का पक्ष कहीं नहीं आया. उस छात्रा का पक्ष रख रहे हैं शिक्षा संकाय से पीएचडी कर चुके डॉ. तपन कुमार. -संपादक
दिनांक 18/07/19 को दैनिक जागरण के वाराणसी संस्करण से शिक्षा संकाय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय के संकाय प्रमुख (Head & Dean) के ऊपर यौन एवं मानसिक शोषण के आरोपों से सम्बंधित खबर प्रकाशित हुई है, जिसमें कुलपति महोदय का भी बयान है और संकाय प्रमुख महोदय का भी बयान है। लेकिन शिकायत दर्ज कराने वाली शोध छात्रा का पक्ष उक्त ख़बर से नदारद है।
तो क्या है उस लड़की का पक्ष, आइये उसे पढ़ते-समझते हैं।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति, महिला प्रकोष्ठ एवं संकाय के महिला प्रकोष्ठ में दर्ज कराई गई शिकायत में शिक्षा संकाय की शोध छात्रा ने अपनी आपबीती बताते हुए लिखा है कि;
जिन शोधार्थियों के शोध निर्देशक/निर्देशिका रिटायर हो चुके/चुकी हैं, उनके स्कालर्स के अटेंडेंस का रजिस्टर उन्होंने अपने ऑफिस में रखवाया था। यह लड़की जब हस्ताक्षर करने जाती तो उसे अश्लील तरीके से लगातार घूरते। इतने से भी मन न भरा तो बाद में रजिस्टर अपने सामने मेज पर रखवा कर हस्ताक्षर करवाने लगें तथा अब और ज्यादा अश्लील तरीके से उसे देखने लगें। उनके लगातार अश्लील तरीके से घूरकर देखने पर लड़की ने तंग आकर एक दिन पूछ लिया कि “हाँ सर, बताइये कोई बात है?” तो संकाय प्रमुख झेंपकर इधर उधर की बातें करने लगें। उसके बाद वे बहाने बहाने से गैर-जरूरी बातें और हँसी-ठिठोली करने की कोशिश करते लेकिन जब लड़की ने किसी प्रकार से उन्हें बढ़ावा नहीं दिया तो उसे दूसरे तरीकों से परेशान करने लगें।
कभी कभार जब शोध छात्रा अपने शोध निर्देशक से मिलने जाने या किसी अन्य कारण से थोड़ी देर से आती तो उसे डाँटने और उसके रजिस्टर में एब्सेंट लगाने लगे। पूछने पर उन्होंने शोध निर्देशक का लेटर लेकर आने को कहा तो अगले दिन शोध छात्रा ने इस बाबत का लेटर लाकर ऑफिस में जमा कर दिया, तो ऑफिस से उसे निर्देश मिला कि वह जब भी ऐसा लेटर लाए तो संकाय प्रमुख को व्यक्तिगत रूप से सूचित करे।
उसने जब संकाय प्रमुख से इसपर सवाल पूछा तो संकाय प्रमुख ने पहले इनकार किया फिर स्वीकार करते हुए ऑफिस से कागजात गायब होने का तर्क दिया। अब सवाल उठता है कि जब अधिकांश शोध छात्र-छात्राओं को लेट होता है तो ऐसा निर्देश सिर्फ उस लड़की को ही क्यों?
यह तो सिर्फ एक उदाहरण है। ऐसे अनेक तरीके से शोध छात्रा को इतनी मानसिक प्रताड़ना दी गयी कि काशी हिंदू विश्वविद्यालय के स्वास्थ्य केंद्र के चिकित्सक ने उसके मेंटल स्ट्रेस के चिंताजनक स्तर को देखते हुए बेड रेस्ट की सलाह दी और मेडिकल सर्टिफिकेट भी जारी किया। जिसे शोध छात्रा ने संकाय के ऑफिस में जमा किया।
शोध छात्रा के इस मेडिकल सर्टिफिकेट को देखने के बाद भी उसे प्रताड़ित करने का कार्य जारी रहा, यहाँ तक कि संकाय प्रमुख ने लड़की का अमानवीय तरीके से मज़ाक उड़ाते हुए उसपर कमेंट किया कि “आजकल तो तुम रोज काउंसलिंग करवा रही हो”। इसी तरह किसी और के उपस्थिति के रिकार्ड के आधार पर शिकायत दर्ज करने वाली छात्रा को अनुपस्थित रहने का नोटिस थमा दिया गया। लड़की ने जब रिकार्ड दिखाया तो ऑफिस से इसे मानवीय भूल बता कर अपना पल्ला झाड़ लिया गया।
हाँ इस बीच छात्रा का प्रतिरोध देखते हुए संकाय प्रमुख ने उपस्थिति का रजिस्टर अपने ऑफिस से हटवा कर बगल के कॉमन रूम में रखवा दिया।
अपनी प्रताड़ना का कोई अंत न देखकर शोधछात्रा ने विश्वविद्यालय के कुलपति, महिला प्रकोष्ठ और संकाय के महिला प्रकोष्ठ में लिखित शिकायत दर्ज कराई।
विश्वविद्यालय के महिला प्रकोष्ठ द्वारा बुलाई गई बैठक में संकाय प्रमुख ने शोधछात्रा से कहा कि वे उसके सामने सौ प्रतिशत झुक रहे हैं, अब वो मामला खत्म करे। कमेटी ने शोधछात्रा को आश्वासन दिया कि उसके साथ अब ऐसा कुछ नहीं होगा। शोधछात्रा ने कमेटी की प्रमुख से इस बाबत लिखित गारंटी की मांग की।
जिसके बाद संकाय प्रमुख के इशारों पर उनकी दो शोध छात्राओं ने संकाय में संकाय प्रमुख को क्लीन चिट प्रदान करने वाला हस्ताक्षर अभियान चलवाया। जिसमें गैरकानूनी ढंग से शिकायत दर्ज करने वाली लड़की की पहचान उजागर करते हुए उसपर तरह-तरह के इल्जाम लगाए गए।
अब सवाल उठता है कि जब शिकायत दर्ज कराने वाली लड़कियों या महिलाओं की पहचान नहीं ज़ाहिर होनी चाहिए का कानून होने के बावजूद इस तरह का गैरकानूनी कार्य जब संकाय में हुआ तो क्या अब कुलपति महोदय और महिला प्रकोष्ठ के यह दायित्व नहीं बनता कि वे अब गंभीरता से मामले में कार्यवाही करें, ताकि विद्यार्थियों का विश्वविद्यालय की न्यायिक प्रक्रिया पर विश्वास कायम रहे? साथ ही यह सवाल उठता है कि क्या विश्वविद्यालय में अपने यौन उत्पीड़न का विरोध करना क्या अपराध है?
तपन कुमार, शिक्षा संकाय, काशी हिंदू विश्वविद्यालय से शिक्षाशास्त्र में Ph.D की उपाधि